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कूटनीति और सैन्य कार्रवाई के बीच झूल रहे हैं भारत-चीन रिश्ते

४ सितम्बर २०२०

भारत और चीन के रिश्तों में बने हुए तनाव के बीच एक तरफ भारत कूटनीति के जरिए समाधान तक पहुंचने की जरूरत पर जोर दे रहा है, तो दूसरी तरफ सैन्य विकल्प की भी बात कर रहा है.

Indien Himalaya Ladakh Besuch von Narendra Modi
तस्वीर: Reuters/Press information Bureau

लद्दाख में भारत और चीन की सेनाओं के बीच तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है, बल्कि स्थिति हर रोज और ज्यादा तनावपूर्ण होती जा रही है. बताया जा रहा है कि गुरुवार को चीन ने पूर्वी लद्दाख में चुशुल के सामने अतिरिक्त सैनिकों की तैनाती कर दी. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक इस समय इलाके में हाल यह है कि दोनों सेनाओं के हजारों सैनिक, टैंक, बख्तरबंद वाहन और तोपें एक दूसरे के सामने तने हुए हैं.

इन हालात के मद्देनजर, गुरुवार को ही थल सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल आरकेएस भदौरिया दोनों ने इलाके का दौरा किया. जनरल नरवणे चुशुल सेक्टर पहुंचे तो एयर चीफ मार्शल भदौरिया ने पूर्वी सेक्टर में वायु सेना के कई महत्वपूर्ण हवाई अड्डों का जायजा लिया.

खबर है कि जनरल नरवणे शुक्रवार को उत्तर की तरफ और भी कुछ अग्रणी इलाकों का दौरा करेंगे. मौके पर तनाव को देखते हुए दोनों देशों ने सैन्य स्तर पर बातचीत के सभी रास्ते खुले रखे हुए हैं. दोनों सेनाओं के ब्रिगेडियरों के बीच चार दिनों से लगातार बातचीत हो रही है, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है.

भारत और चीन की सेनाओं के हजारों सैनिक, टैंक, बख्तरबंद वाहन और तोपें एक दूसरे के सामने तने हुए हैं.तस्वीर: picture-alliance/Pacific Press/S. Hameed

उधर भारत शीर्ष नेतृत्व के स्तर पर मिले जुले संदेश दे रहा है. एक तरफ विदेश मंत्री एस जयशंकर खुद कूटनीति के जरिए ही समाधान तक पहुंचने की जरूरत पर जोर दे रहे हैं, दूसरी तरफ चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ जनरल बिपिन रावत बार बार सैन्य विकल्प की बात कर रहे हैं. जनरल रावत ने गुरुवार को कहा कि भारत की उत्तरी और पश्चिमी सीमाओं पर चीन और पाकिस्तान की तरफ से संभावित कार्रवाई की आशंका है, लेकिन भारत उस स्थिति से निपटने के लिए तैयार है.

इसके पहले वो कह चुके हैं कि चीन की चुनौती का सामना करने के लिए भारत के पास सैन्य विकल्प भी खुला है. लेकिन विदेश मंत्रालय लगातार बातचीत और कूटनीति पर जोर दे रहा है. ताजा बयान में जयशंकर ने कहा है कि दोनों देशों के एक समझौते तक पहुंचना ना सिर्फ उनके लिए बल्कि पूरी दुनिया के लिए जरूरी है. उन्होंने यह भी कहा कि यह बेहद जरूरी है कि दोनों देशों के बीच जिन विषयों पर आपसी सहमति है उसका ईमानदारी से पालन होना चाहिए.

हालांकि जानकारों का कहना है कि अगर भारत कूटनीति पर जोर देने की बात कर रहा है तो अभी तक दोनों देशों के बीच बातचीत सैन्य स्तर पर ही क्यों हो रही है और राजनीतिक नेतृत्व के स्तर पर क्यों नहीं हो रही है?

इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने रूस के अपने दौरे के दौरान भी चीन को भारत की नाराजगी का संदेश दिया है. वो रूस में शंघाई सहयोग संगठन के रक्षा मंत्रियों की बैठक में हिस्सा लेने गए हैं, जिसका चीन भी सदस्य है. बताया जा रहा है कि गुरुवार को मॉस्को में मौजूद चीन के रक्षा मंत्री ने राजनाथ सिंह से अलग से मिलने का अनुरोध किया लेकिन भारतीय रक्षा मंत्री ने अपनी व्यस्तता का हवाला देते हुए अनुरोध को अस्वीकार कर दिया.

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