बदलती दुनिया में भारत कूटनीतिक मोर्चे पर भी बड़ी चुनौतियों का सामना कर रहा है. रूस और चीन के साथ अमेरिका के जटिल संबंधों के बीच तीनों के साथ संबंधों में संतुलन बनाने की कोशिश सोची में मोदी पुतिन वार्ता में भी दिखी.
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अनिश्चितताएं नई चुनौतियां लाती हैं लेकिन साथ ही नए मौके भी. भारत मौजूदा अनिश्चित अंतरराष्ट्रीय माहौल को इसी तरह देखता है और उससे अधिक से अधिक लाभ उठाना चाहता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की विदेशनैतिक पहलकदमियां किसी नर्तक के दक्षता से पेश किए जटिल तालों की तरह है जो अलग अलग कलात्मक रुचि वाले दर्शकों को लुभाने को निकला हो.
भारतीय कूटनीति का एक नया तत्व आसपड़ोस के देशों के अलावा दुनिया में उभरती हकीकतों के व्यापक परिपेक्ष्य में विश्व नेताओं के साथ द्विपक्षीय रिश्तों को फाइन ट्यून करने के लिए अनौपचारिक शिखर वार्ता है, जिसने हाल के समय में महत्व अख्तियार कर लिया है. पिछले महीने मोदी की चीनी नेता शी जिनपिंग के साथ वुहान में मुलाकात हुई थी और अब उन्होंने सोमवार को सोची में रूसी राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन से मुलाकात की है.
रूस पिछली सदी का सोवियत संघ नहीं है जिसके समर्थन का भारत भरोसा कर सकता था. फिर भी दोनों देश पुराना जोश बनाए रखते हुए नई अंतररराष्ट्रीय परिस्थितियों में ढलने की कोशिश कर रहे हैं. भारत हथियारों की खरीद पर निर्भरता घटाने के लिए रूस से दूर होने की प्रक्रिया में है जबकि रूस पाकिस्तान के साथ रिश्ते कायम करने की धीमी लेकिन सधी हुई कोशिश कर रहा है. इसका एक संकेत पाकिस्तान को सैनिक ट्रांसपोर्ट बेचने की तैयारी है. पूरा सैनिक संबंध इससे बस एक कदम दूर है. इसीलिए इसे नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए कि मोदी ने भारत रूस संबंधों को "विशेष और विशेषाधिकार प्राप्त सामरिक सहयोग" बताया.
पुतिन के परिवार से आप मिले हैं?
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को आपने विश्व नेताओं के साथ खूब देखा होगा. शायद छुट्टियां मनाते हुए उनकी दबंग तस्वीरें भी आपने देखी हों. लेकिन क्या आप उनके परिवार से मिले हैं?
तस्वीर: picture-alliance/AA/Russian Presidential Press and Information Office
ताकतवर पुतिन
पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से रूसी ताकत और सत्ता पुतिन के इर्द गिर्द ही घूम रही है. वह दुनिया के सबसे ताकतवर लोगों में शुमार होते हैं. विश्व भर के मीडिया में वह छाये रहते हैं. लेकिन इस दौरान उनके परिवार के सदस्यों की झलक कम ही देखने को मिलती है.
तस्वीर: Alexey Druzhinin/AFP/Getty Images
पुतिन का परिवार
किसी जमाने में खुफिया एजेंसी केजीबी के एजेंट रहे पुतिन की दो बेटियां हैं येकातेरीना और मारिया. 1983 में उन्होंने ल्युदमिला पुतिना से शादी की. लेकिन 2014 में उनका तलाक हो गया. पुतिन अपनी निजी जिंदगी को पोशीदा रखने के लिए जाने जाते हैं.
तस्वीर: Imago
रॉक एंड रोल डांसर
2015 में उनकी छोटी बेटी येकातेरीना उस वक्त सुर्खियों में आयी जब पता चला कि वह मॉस्को में ही कैटरीना तीखोनोवा के नाम से रह रही हैं. तीखोनोवा एक्रोबेटिक रॉक एंड रोल डांसर हैं और 2013 में स्विट्जरलैंड में हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में तीसरे स्थान पर आयी थीं.
तस्वीर: Reuters/J. Dabrowski
अरबों की संपत्ति
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक तीखोनोवा की शादी पुतिन के एक दोस्त के बेटे किरिल शामालोव से हुई है. शामालोव पेशे से कारोबारी हैं और उनकी संपत्ति दो अरब डॉलर के आसपास बतायी जाती है. उन्होंने तेल और पेट्रोकेमिकल्स उद्योग में भारी निवेश किया है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Mordasov
बड़ी बेटी मारिया
येकातेरीना पुतिन की छोटी बेटी है जो 1986 में जर्मन शहर ड्रेसडेन में जन्मी. उस वक्त पुतिन जर्मनी में तैनात थे. उनकी बड़ी बेटी मारिया 1985 में लेनिनग्राद में पैदा हुई. यह तस्वीर 2008 की है जिसमें मारिया अपने पिता पुतिन के साथ मॉस्को में एक मतदान केंद्र की तरफ जाती दिख रही हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP
तलाक की घोषणा
और उनकी पत्नी ल्युदमिला ने अपने तलाक की घोषणा सरकारी टीवी पर की. उन्होंने कहा कि यह उन दोनों का साझा फैसला है. पुतिन ने बताया कि वे एक साथ नहीं रह रहे हैं और उनकी मुलाकातें भी नहीं होतीं. दोनों की शादी लगभग 30 साल चली.
तस्वीर: Reuters
ताज का दीदार
पुतिन के सत्ता के शिखर पर पहुंचने के बाद भी ल्युदमिला आम तौर पर लाइमलाइट से दूर ही रहती थीं. हालांकि रूस की प्रथम महिला के तौर पर उन्होंने कई विदेशी दौरे किये. अक्टूबर 2004 में पुतिन जब भारत गये, तो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ आगरा में ताज का भी दीदार किया था.
तस्वीर: Reuters
एक दूसरे के करीब
पेशे से एयर होस्टेस रहीं ल्युदमिला ने पुतिन से अपनी शादी खत्म करने की घोषणा करते हुए यह भी कहा कि वे हमेशा एक दूसरे के करीब बने रहेंगे. पुतिन ने भी ऐसा ही कहा. यह तस्वीर 2008 की है जब पुतिन और ल्युदमिला मॉस्को के एक रेस्त्रां में खाना खाने पहुंचे थे.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Dmitry Astakhov
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हालांकि अनौपचारिक शिखर वार्ता के नतीजे अभी सामने नहीं आए हैं, यह कहा जा सकता है कि मोदी और पुतिन ने रूस और रूसी कंपनियों के साथ कारोबार करने वाली कंपनियों पर ट्रंप प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के संभावित असर पर चर्चा की है. सरकारी बयान में कहा गया है कि उन्होंने द्विपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के पूरे आयाम पर चर्चा की. ईरान परमाणु डील से अमेरिका का हटना भी भारत और रूस दोनों के लिए चिंता का कारण है, जैसे कि उत्तर कोरिया से सीधे बात करने की अमेरिका पहल.
अमेरिकी राष्ट्रपति चुनावों में रूस की संदिग्ध भूमिका की वजह से ट्रंप प्रशासन रूस के साथ खास अच्छी स्थिति में नहीं है. यूरोप अमेरिका का कट्टर सहयोगी है और वह पुतिन के इरादों पर हमेशा संदेह करता रहा है. भारत भी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के 2000 के भारत दौरे के बाद से सामरिक तौर पर अमेरिका के करीब आ रहा है, उसके पास कूटनीतिक कलाबाजी की बहुत जगह नहीं है. भारत को रूस-अमेरिका-चीन मैट्रिक्स के मद्देनजर भी अपने संबंधों को चुस्त करने की जरूरत है. खासकर इसलिए भी कि राष्ट्रपति ट्रंप ने साफ कर दिया है कि वे चीन को विश्व का नया आर्थिक और सैनिक महाशक्ति बनते देखने को तैयार नहीं हैं.
मदद मांगते पुतिन, तो रिफ्यूजी बने ट्रंप
अब्दुल्ला अल-आमरी की पेंटिंग में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप बेघर हैं, तो रूस के राष्ट्रपति पुतिन मदद मांग रहे हैं. दुनिया के नेताओं को कैनवास पर उतारने वाले सीरियाई कलाकार आमरी अपनी पेटिंग्स से बहुत कुछ कह जाते हैं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
डॉनल्ड ट्रंप
अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की आक्रामक नीतियों के चलते उन्हें कैनवास पर जगह मिली है. इसमें ट्रंप अपने बोरिया-बिस्तर समेटे, परिवार समेत बेघर नजर आ रहे हैं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
व्लादिमीर पुतिन
कैनवास पर मदद का कटोरा लेकर लिए नजर आ रहे हैं रूस के राष्ट्रपति. पुतिन अब साल 2024 तक रूस के राष्ट्रपति पद पर काबिज रहेंगे.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
बशर अल असद
इस पेटिंग में सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद को एक नाव के साथ जूझते हुए दिखाया गया है. शरणार्थियों ने बड़ी संख्या में नावों के सहारे समंदर पार किए हैं. लेकिन कई नावें डूबीं और हजारों जानें गईं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
अंगेला मैर्केल
लाखों शरणार्थियों को जर्मनी में जगह देने का निर्णय लेने वाली चांसलर अंगेला मैर्केल को इस मुद्दे पर भारी राजनीतिक आलोचना झेलनी पड़ी है. तस्वीर में मैर्केल डरी हुई और कंफ्यूज नजर आ रहीं हैं.
तस्वीर: DW/A. Drechsel
किम जोंग उन
उत्तर कोरिया आम तौर पर दुनिया के नेताओं से दूर रहता है. लेकिन मिसाइल परीक्षण और आक्रामक बयानों के चलते सुर्खियों में बने रहने वाले उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन को भी कैनवास पर उतारा गया है, वो भी मिसाइल के साथ.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
खाने का इंतजार
इस पेटिंग में दुनिया के ये नेता लाइन बनाकर खाना मिलने का इंतजार कर रहे हैं. आर्टिस्ट आमरी कहते हैं कि जब ये लोग इस स्थिति में होंगे, तभी आम लोगों की तकलीफों को समझेंगे.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
आम आदमी
आमरी कहते हैं, "मैं चाहता हूं कि ये लोग स्वयं को आइने में देंखे और खुद को एक कमजोर व्यक्ति, एक शरणार्थी की तरह देंखे. इस पेटिंग में एक आम व्यक्ति को दिखाया गया है."
तस्वीर: Abdalla Al Omari
भागते शरणार्थी
ओमारी ने अपनी जिंदगी सीरिया के कैंपों में बिताई है. उन्होंने बताया कि तस्वीरों में भागते हुए जब उन्होंने लोगों को देखा, तो महसूस किया कि यह दुनिया को परेशान करता एक मानवीय संकट है.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
न भूले नेता
इन नेताओं को आम व्यक्तियों की इस परेशानी से जोड़कर आमरी चाहते हैं कि ये नेता उन आम लोगों को याद रखें जिनके फैसले इनकी जिंदगियों को प्रभावित करते हैं. यहां सब नेता रिफ्यूजी बन कर भाग रहे हैं.
तस्वीर: Abdalla Al Omari
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पाकिस्तान के साथ चीन के निकट संबंधों, पाक प्रशासित कश्मीर में उसकी भूमिका और सीमा पर गोलीबारी के बावजूद दोनों देशों ने अपने व्यापारिक संबंधों को बिगड़ने न देने की कोशिश की है. रूस ने शंघाई सहयोग संगठन में भारत को सदस्यता पाने में मदद दी थी. भारत इन संबंधों को अपने विदेशनैतिक लक्ष्यों के लिए इस्तेमाल करना चाहता है. मोदी ने पूर्व राष्ट्रपति अटल बिहारी वाजपेयी के हवाले से कहा कि भारत चाहता है कि रूस एक महत्वपूर्ण और आत्मविश्वासी देश बने जिसकी बहुध्रुवीय दुनिया में अहम भूमिका हो. ये अमेरिका और चीन दोनों को ही परोक्ष इशारा था कि एक महाशक्ति वाली दुनिया खत्म हो गई और शीतयुद्ध के बाद की दुनिया बहुध्रुवीय दुनिया है.
भारत अभी भी रक्षा और कारोबार के मामले में कमजोर है. उसे रूस से 12 अरब डॉलर का सैनिक साजोसामान खरीदना है. पिछले पांच सालों में उसके रक्षा आयात का 62 प्रतिशत रूस से आया है. ये संबंध दोनों ही देशों के हित में है और ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिकी नीतियों के उतार चढ़ाव को देखते हुए स्थिरता बनाए रखने के प्रयासों में तेजी आई है. मोदी के एक दिन के सोची दौरे ने रूस भारत संबंधों में उम्मीदें बढ़ा दी हैं.
दशक गुजर गए, पर इनकी सत्ता कायम है...
चीन में शी जिनपिंग जब तक चाहें राष्ट्रपति रह सकते हैं तो रूस में पुतिन फिर से छह साल के लिए राष्ट्रपति बन गए हैं. लेकिन दुनिया में कई राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दशकों से सत्ता में जमे हैं. डालते हैं इन्हीं पर एक नजर..
तस्वीर: AP
कैमरून: पॉल बिया
अफ्रीकी देश कैमरून में पॉल बिया 35 साल से राष्ट्रपति पद पर कायम हैं. वह 1975 से 1982 तक देश के प्रधानमंत्री भी रहे. फिलहाल उनकी उम्र 85 साल है और सब सहारा इलाके में वह सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति हैं. उन्हें अफ्रीका के सबसे विवादित नेताओं में से एक माना जाता है. उनकी पार्टी 1992 से हर चुनाव में भारी जीतती रही है. लेकिन विरोधी धांधलियों के आरोप लगाते हैं.
तस्वीर: picture alliance/abaca/E. Blondet
रिपब्लिक ऑफ कांगो: डेनिस सासो
अफ्रीकी देश रिपब्लिक ऑफ कांगो में राष्ट्रपति डेनिस सासो पहले 1979 से 1992 तक राष्ट्रपति पद पर रहे और अब 1997 से फिर राष्ट्रपति पद संभाले हुए हैं. 1992 में वह राष्ट्रपति चुनाव हार गए. लेकिन देश में चले दूसरे गृहयुद्ध में सासो के हथियारबंद समर्थकों ने तत्कालीन राष्ट्रपति लेसुबु को सत्ता से बाहर कर दिया.
तस्वीर: Getty Images/AFP
कंबोडिया: हुन सेन
दक्षिण पूर्व एशियाई देश कंबोडिया में हुन सेन पिछले 32 वर्षों से प्रधानमंत्री के पद पर हैं. वह दुनिया में सबसे ज्यादा समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले नेता हैं. उनका असली नाम हुन नबाल था लेकिन उन्होंने खमेर रूज के दौर में अपना नाम बदल लिया. वह 1985 में कंबोडिया के प्रधानमंत्री बने. राजशाही वाले देश कंबोडिया में एक पार्टी का शासन है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/M, Remissa
युंगाडा: योवेरी मोसेवेनी
अफ्रीकी देश युगांडा में राष्ट्रपति योवेरी मुसेवेनी ने 1986 में सत्ता संभाली थी. वह दो पूर्व राष्ट्रपतियों ईदी अमीन और मिल्टन ओबोटे के खिलाफ हुई बगावत का हिस्सा भी माने जाते हैं. कई लोग मानते हैं कि मोसेवेनी के शासन में युगांडा को आर्थिक विकास और राजनीतिक स्थिरता तो मिली लेकिन पड़ोसी देशों में जारी हिंसक विवादों में शामिल होने के आरोप भी उस पर लगे.
तस्वीर: Reuters/J. Akena
ईरान: अयातोल्लाह खामेनेई
ईरान में सत्ता का शीर्ष केंद्र सुप्रीम लीडर को माना जाता है और अयातोल्लाह खामेनेई पिछले 29 साल से इस पद पर कायम हैं. बताया जाता है कि ईरान में इस्लामी क्रांति के संस्थापक अयातोल्लाह खमेनी ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी चुना था. वह 1981 से 1989 तक ईरान के राष्ट्रपति भी रह चुके हैं.
तस्वीर: khamenei.ir
सूडान: उमर अल बशीर
सूडानी राष्ट्रपति उमर हसन अल बशीर जून 1989 से अपने देश के राष्ट्रपति हैं. इससे पहले वह सूडानी फौज में ब्रिगेडियर थे और उन्होंने एक सैन्य बगावत के जरिए लोकतांत्रिक रूप से चुने हुए प्रधानमंत्री सादिक महदी की सरकार का तख्तापलट किया और देश की बागडोर अपने हाथों में ले ली. उन पर अपने विरोधियों को कुचलने के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Abdallah
चाड: इदरीस देबी
मध्य अफ्रीकी देश चाड में इदरीस देबी ने 1990 में राष्ट्रपति हुसैन बाहरे को सत्ता से बेदखल किया और खुद देश के राष्ट्रपति बन गए. वह पिछले पांच राष्ट्रपति चुनावों में भारी वोटों से जीत दर्ज करते रहे हैं. लेकिन चुनावों की वैधता पर राष्ट्रपति देबी के विरोधी और अंतरराष्ट्रीय समुदाय हमेशा उंगलियां उठाते रहे है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/L. Marin
कजाकस्तान: नूर सुल्तान नजरबायेव
मध्य एशियाई देश कजाकस्तान में नूर सुल्तान नजरबायेव 28 साल से सत्ता में हैं. सोवियत संघ के विघटन के बाद कजाकस्तान एक अलग देश बना. तभी से नजरबायेव राष्ट्रपति हैं. इससे पहले वह कजाकस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के प्रमुख थे. उन्होंने कजाकस्तान में कई आर्थिक सुधार किए हैं. लेकिन देश के राजनीतिक तंत्र को लोकतांत्रिक बनाने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है.
तस्वीर: picture alliance/Sputnik/S. Guneev
ताजिकस्तान: इमोमाली राहमोन
एक और मध्य एशियाई देश ताजिकस्तान की सत्ता पर भी 1992 से राष्ट्रपति इमोमाली राहमोन का शासन चल रहा है. उन्हें अपने 25 साल के शासनकाल के शुरुआती सालों में गृहयुद्ध का सामना करना पड़ा जिसमें करीब एक लाख लोग मारे गए. ताजिकस्तान भी पहले सोवियत संघ का हिस्सा था. आज इसे मध्य एशिया का सबसे गरीब देश माना जाता है.
तस्वीर: DW/G. Faskhutdinov
इरीट्रिया: इसाइयास आफवेरकी
अफ्रीकी देश इरिट्रिया की आजादी के बाद से ही इसाइयास आफवेरकी राष्ट्रपति हैं. उन्होंने इथोपिया से इरीट्रिया की आजादी के लिए लंबे समय तक संघर्ष किया. इरिट्रिया को मई 1991 में संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में होने वाले एक जनमत संग्रह के नतीजे में आजादी मिली थी.