कूड़े से कोई शहर खूबसूरत कैसे बन सकता है? नीदरलैंड्स के दो शहरों, एम्स्टरडम और रॉटरडम ने इसका फार्मूला ढूंढ निकाला है. दोनों शहर कूड़ा जमा करने में लगे हैं.
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मागडालेना एम्सटरडम में रहती हैं. जब घर में बहुत सामान भर जाता है, तो पुरानी चीजें जमा कर उन्हें "द जीरो वेस्ट लैब" में ले जाती हैं. यहां उन्हें अपने पुराने कपड़ों, अखबारों और बोतलों के बदले कुछ डिस्काउंट कूपन मिल जाते हैं. इनसे मागडालेना बाजार में जाकर खरीदारी कर सकती हैं.
नीदरलैंड्स में इस तरह के और भी कई प्रयास चल रहे हैं. आइडिया है शहरी कूड़े को कम करने का और कूड़े में फेंकी गई चीजों को किसी और रूप में इस्तेमाल करने का. मिसाल के तौर पर मागडालेना की पुरानी जीन्स को जीरो वेस्ट लैब ने एक ऐसी स्थानीय कंपनी के पास भेज दिया, जो इससे बैग और कुशन-कवर बनाती है. इसके अलावा पुराना इलेक्ट्रॉनिक्स का सामान और प्लास्टिक बोतलें बच्चों के लिए आयोजित होने वाली कला की वर्कशॉप में इस्तेमाल की जाएंगी.
जीरो वेस्ट लैब की शुरुआत 2016 में हुई और तब से अब तक 30 स्थानीय उद्योग और 1,100 घर इससे जुड़ चुके हैं. एक पैनकेक स्टॉल चलाने वाले टॉम लीफलैंग का कहना है कि प्रोजेक्ट की सफलता की वजह यह है कि यह अनिवार्य नहीं है, "अगर प्रोजेक्ट स्वैच्छिक हो, तो लोग उससे जुड़ने में अधिक रुचि दिखाते हैं."
इंसान से ज्यादा साइकिल!
एम्सटर्डम में इंसान से ज्यादा साइकिलें हैं. तस्वीरों के जरिए देखते हैं साइकिल की वजह से किस तरह की परेशानी होती है और उसका समाधान क्या है.
तस्वीर: DW/C. Nasman
एम्सटर्डम एक ऐसा शहर है जहां इंसान से ज्यादा साइकिलें हैं. नीदरलैंड्स की राजधानी में सात लाख की आबादी है लेकिन साइकिलों की संख्या दस लाख है. साइकिल खड़ी करने की जगहें भरी हुईं हैं. सड़कें गैरकानूनी ढंग से खड़ी साइकिलों से पटी पड़ी हैं. साइकिल चोरी आम बात है.
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एम्सटर्डम में साइकिल खड़ी करना सिरदर्द साबित हो सकता है. रास्ते संकरे हैं साथ ही साथ साइकिल पार्किंग की जगह भी सीमित है. एम्स्टर्डम के मुख्य स्टेशन के बाहर इस साइकिल सवार को अपनी साइकिल के लिए जगह की तलाश है.
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एम्स्टर्डम सेंट्रल स्टेशन के बाहर साइकिल पड़ाव में 2500 साइकिलें निशुल्क खड़ी की जा सकती हैं. लेकिन दफ्तर और कॉलेज जाने के समय ये पड़ाव कुछ मिनटों में ही भर जाता है. तीन मंजिल वाली इस पार्किंग में साइकिल सवार को पार्किंग के लिए कभी ऊपर तो कभी नीचे भागना पड़ता है.
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आधिकारिक पड़ाव में नहीं खड़ी की गईं साइकिलें हटाई जा सकती हैं. साइकिल डिपो के मैनेजर पीटर बरखोउट कहते हैं, ''अगर आप साइकिल नहीं हटाते हैं तो शहर में जाम लग सकता है. शहर आने-जाने लायक नहीं रहेगा.'' साल 2012 में साइकिल डिपो में 65 हजार से ज्यादा साइकिलें खड़ी की गई थी.
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साइकिल डिपो के कर्मचारी गैरकानूनी तरीके से खड़ी की गईं साइकिलों को मुख्य स्टेशन वाले इलाके से हटाते हैं. गैरकानूनी तरीके से खड़ी की गईं साइकिलों के ताले तोड़े जाते हैं और फिर उन्हें डिपो में लाया जाता है. इस डिपो में एक समय में 12 हजार से लेकर 17 हजार तक साइकिलें होती हैं.
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इन साइकिलों को छांटने के बाद कंप्यूटर में इनकी जानकारी दर्ज की जाएगी. साइकिलों के रंग, साइकिल की कंपनी का नाम, सीरियल नंबर और साइकिल कहां से हटाई गई जैसी अहम जानकारियां होती है. साइकिल को हटाए जाने वाले दिन के हिसाब से उन पर एक स्टीकर लगाया जाता है जिसमें एक खास नंबर होता है.
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27 साल की इमके लिग्हार्ट कहती हैं, "साइकिल की चोरी बहुत परेशान करने वाली थी. साइकिल खड़ी करने की जगह नहीं थी.'' लिग्हार्ट ने डिपो की हॉटलाइन सेवा को फोन किया और अपनी साइकिल खोजने में कामयाब हुई. डिपो साइकिल मालिकों से मामूली फीस वसूल करता है.
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26 साल के फिलीप बोंके कहते हैं उनकी साइकिल जब हटाई गई थी तो उनका दिन खराब हो गया था. बोंके के मुताबिक गैरकानूनी तरीके से लगी साइकिलों को हटाना एक अच्छा काम है. इससे कुछ और लोगों के लिए पार्किंग की जगह बन जाती है.
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साइकिल डिपो के मैनेजर बरखोउत कहते हैं, "हम साइकिल को उसके मालिक को वापस करना चाहते हैं. ये हमारा मुख्य व्यापार है. यहां तीन महीने तक साइकिलें रखी जाती हैं. जिन साइकिलों पर दावा नहीं होता, उन्हें नीलाम कर दिया जाता है. एम्स्टर्डम साइकिल चोरी के लिए कुख्यात है.
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क्या है सर्कुलर इकॉनोमी
एम्स्टरडम और रॉटरडम, ये नीदरलैंड्स के दो सबसे बड़े शहर हैं और दोनों ने "सर्कुलर इकॉनोमी" बनने का फैसला किया है, यानी एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था, जहां हर चीज का दोबारा इस्तेमाल हो सके, कूड़े का भी नए माल की तरह. एम्स्टरडम ने इस काम के लिए 2050 तक का लक्ष्य रखा है, जबकि रॉटरडम 2030 तक ही इसे हासिल करने की मंशा रखता है.
देश में हर व्यक्ति सालाना औसतन 550 किलो कूड़ा पैदा करता है. जीरो वेस्ट लैब के अनुसार इसका आधा ही रिसाइकल किया जाता है और एम्स्टरडम में तो महज 27 प्रतिशत. नगर पालिका को उम्मीद है कि 2020 तक यह दर 65 फीसदी हो सकेगी. इसके अलावा एक उद्देश्य यह भी है कि लोग मिल जुल कर एक दूसरे के साथ रहें और अपने पड़ोसियों के साथ मिल कर स्थानीय परियोजनाओँ पर काम कर सकें.
इसी तरह के एक दूसरे प्रोजेक्ट के तहत रॉटरडम में प्लास्टिक के कूड़े के इस्तेमाल से एक फ्लोटिंग पार्क बनाया गया है. यहां बैठ कर लोग समुद्र में जा रहे जहाजों का नजारा देख सकते हैं. इस पार्क के डिजाइनर रामोन कनोएस्टर ने दो साल पहले नदियों से प्लास्टिक के कूड़े की सफाई का काम शुरू किया.
तब से अब तक वॉलंटियर दस हजार किलो प्लास्टिक को नदी-तालाबों से निकाल चुके हैं. कनोएस्टर बताते हैं कि हर साल रॉटरडम की नदी न्यूवे मास से अस्सी हजार किलो से ले कर एक लाख किलो तक प्लास्टिक का कचरा बह कर उत्तरी सागर में मिल जाता है. इसी कचरे को वे कला के रूप में इस्तेमाल कर अपने शहर को और खूबसूरत बनाना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि रॉटरडम का रिसाइकल पार्क दूसरे लोगों को भी कूड़े के सही इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित कर सकेगा.
आईबी/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
प्लास्टिक की जगह ये चीजें करें इस्तेमाल
जब प्लास्टिक लोगों की जिंदगियों का हिस्सा बना, तो सिर्फ उसके फायदों पर ही सबका ध्यान गया, इस पर नहीं कि यह कमाल का आविष्कार भविष्य के लिए कितना खतरनाक साबित हो सकता है. अब प्लास्टिक को अलविदा कहने का वक्त आ गया है.
प्लास्टिक को अपनी जिंदगी से निकालने में सबसे अहम कदम तो यही है कि इसकी दीवानगी को छोड़ा जाए. प्लास्टिक की जगह कपड़े के थैले का इस्तेमाल किया जा सकता है. इन जनाब की तरह प्लास्टिक की स्ट्रॉ को मुंह में फंसाने की शर्त लगाने की जगह कुछ बेहतर भी सोचा जा सकता है. मैर्को हॉर्ट ने 259 स्ट्रॉ को मुंह में रखने का रिकॉर्ड बनाया था.
तस्वीर: AP
खा जाओ
यूरोपीय संघ सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक लगाने पर विचार कर रहा है. ऐसे में प्लास्टिक की स्ट्रॉ, कप, चम्मच इत्यादि बाजार से गायब हो जाएंगे. इनके विकल्प पहले ही खोजे जा चुके हैं. जैसे कि जर्मनी की कंपनी वाइजफूड ने ऐसे स्ट्रॉ बनाए हैं जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद खाया जा सकता है. ये सेब का रस निकालने के बाद बच गए गूदे से तैयार की जाती हैं.
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आलू वाला चम्मच
एक दिन में कुल कितने प्लास्टिक के चम्मच और कांटे इस्तेमाल होते हैं, इसके कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं लेकिन इतना जरूर है कि दुनिया भर में कूड़ेदान इनसे भरे रहते हैं. भारत की कंपनी बेकरीज ने ज्वार से छुरी-चम्मच बनाए हैं. स्ट्रॉ की तरह इन्हें भी आप खा सकते हैं. ऐसा ही कुछ अमेरिकी कंपनी स्पड वेयर्स ने भी किया है. इनके चम्मच आलू के स्टार्च से बने हैं.
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चोकर वाली प्लेट
जिस थाली में खाएं, उसी को खा भी जाएं! पोलैंड की कंपनी बायोट्रेम ने चोकर से प्लेटें तैयार की हैं. अगर आपका इन्हें खाने का मन ना भी हो, तो कोई बात नहीं. इन प्लेटों को डिकंपोज होने में महज तीस दिन का वक्त लगता है. खाने की दूसरी चीजों की तरह ये भी नष्ट हो जाती हैं. और इन प्लेटों का ना सही तो पत्तल का इस्तेमाल तो कर ही सकते हैं.
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कप और ग्लास
अकेले यूरोप में हर साल 500 अरब प्लास्टिक के कप और ग्लास का इस्तेमाल किया जाता है. नए कानून के आने के बाद इन सब पर रोक लग जाएगी. इनके बदले कागज या गत्ते के बने ग्लास का इस्तेमाल किया जा सकता है. जर्मनी की एक कंपनी घास के इस्तेमाल से भी इन्हें बना रही है. तो वहीं बांस से भी ऑर्गेनिक ग्लास बनाए जा रहे हैं.
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घोल कर पी जाओ
इंडोनेशिया की एक कंपनी अवनी ने ऐसे थैले तैयार किए हैं जो देखने में बिलकुल प्लास्टिक की पन्नियों जैसे ही नजर आते हैं. लेकिन दरअसल ये कॉर्नस्टार्च से बने हैं. इस्तेमाल के बाद अगर इन्हें इधर उधर कहीं फेंक भी दिया जाए तो भी कोई बात नहीं क्योंकि ये पानी में घुल जाते हैं. कंपनी का दावा है कि इन्हें घोल कर पिया भी जा सकता है.
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अपना अपना ग्लास
भाग दौड़ की दुनिया में बैठ कर चाय कॉफी पीने की फुरसत सब लोगों के पास नहीं है. ऐसे में रास्ते में किसी कैफे से कॉफी का ग्लास उठाया, जब खत्म हुई तो कहीं फेंक दिया. इसे रोका जाए, इसके लिए बर्लिन में ऐसा प्रोजेक्ट चलाया जा रह है जिसके तहत लोग एक कैफे से ग्लास लें और जब चाहें अपनी सहूलियत के अनुसार किसी दूसरे कैफे में उसे लौटा दें.
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क्या जरूरत है?
ये छोटे से ईयर बड समुद्र में पहुंच कर जीवों को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. समुद्री जीव इसे खाना समझ कर खा जाते हैं. यूरोपीय संघ इन पर भी रोक लगाने के बारे में सोच रहा है. इन्हें बांस या कागज से बनाने पर भी विचार चल रहा है. लेकिन पर्यावरणविद पूछते हैं कि इनकी जरूरत ही क्या है. लोग नहाने के बाद अपना तौलिया भी तो इस्तेमाल कर सकते हैं.
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