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कृष्ण की नगरी में होली शुरू

९ फ़रवरी २०११

ऋतुओं में बसंत को सबसे मनभावन है. उमंगों और तरंगों के त्यौहार बसंत पंचमी पर उत्तर भारत में समारोह होते हैं. पंजाब में गिद्धा होता है और होलिका लगाई जाती है, पर कृष्ण की जन्मभूमि में बसंत की शुरुआत एक अलग तरह से होती है.

तस्वीर: DW

मथुरा में बसंत पंचमी के दिन से ही होली शुरू हो जाती है . इसी परंपरा के तहत मंगलवार को बांके बिहारी के मंदिर में होली खेली गई . बसंत पंचमी के दिन बांके बिहारी के मंदिर में इतनी भीड़ होती है कि बहुत कम लोग ही अंदर तक पहुंच पाते हैं. बसंत पंचमी के दिन से यहां चालीस दिन के मेले की शुरूआत होती है जो होली तक चलता रहता है.
मंगलवार को सुबह नौ बजे आरती के बाद बांके बिहारी ने अपने श्रद्धालुओं के साथ अबीर गुलाल से होली खेली . इस होली के साथ ही मथुरा के मंदिरों में रसिया गान भी शुरू हो जाता है . ढोल नगाड़े की थाप पर होली के रसियाओं के गीत का केंद्र कान्हा होते हैं . यह गीत इस मौसम के लुभावने रूप को भी बयान करते हैं कि फागुन आने वाला है और राधारानी और रसियों का बुलावा आने वाला है जब जमकर भांग छाननी है और बरसाने में गोपियों संग होली की मस्ती करनी है..

तस्वीर: DW
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‘ जग होरी ब्रज होरा ' यानी चालीस दिन तक चलने वाली इस होली के कारण ही ब्रज की होली को दुनिया भर में शोहरत हासिल हुई है . बसंत पंचमी की पूर्व संध्या पर बड़े बड़े नगाड़े बजाकर इस होली के आगमन की एक तरह से सूचना दी जाती है. होलिका दहन से सात दिन पहले होने वाली बरसाने की लट्ठमार होली देखने के लिए हजारों विदेशी सैलानी हर साल आते हैं . कहते हैं कि ब्रज की होली में लोग इतना रच बस जाते हैं कि होली आते आते सभी के मुंह से निकलने लगता है ...हो ली , यानी अब बस करो.

माघ की पंचमी से शुरू होकर अगहन की पूर्णिमा तक चलने वाली इस होली में अबीर गुलाल की वृंदावन के बांके बिहारी के मंदिर से शुरूआत होती है और बरसाना,नंदगांव और कृष्ण के जन्म स्थान गोकुल होती हुआ कान्हा के बड़े भाई बलदेउ का नगरी बल्देव पहुंचती है . जहां वह कपड़ा फाड़ होली में बदल जाती है और ‘ दाऊजी का दुरंग' के साथ समाप्त होती है .

रिपोर्टः सुहेल वहीद

संपादनः एन रंजन

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