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केंद्र सरकार की अयोध्या पहल ‘मास्टरस्ट्रोक’

समीरात्मज मिश्र
२९ जनवरी २०१९

भारत सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल करके अपील की है कि अयोध्या में विवादित हिस्से को छोड़कर बाकी जमीन राम जन्मभूमि न्यास को सौंप दें ताकि राम मंदिर की योजना पर काम किया जा सके.

Indien Hindu-Nationalisten fordern den Bau eines Tempels
तस्वीर: Getty Images/AFP/S. Hussain

अयोध्या में विवादित जमीन के बंटवारे का मुकदमा सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. मंगलवार से पांच जजों की बेंच उस पर सुनवाई करने वाली थी लेकिन ये सुनवाई एक बार फिर टल गई. जाहिर है, ऐसे में केंद्र सरकार इस अर्जी के माध्यम से ये संदेश देना चाहती है कि वो मंदिर निर्माण के लिए गंभीर है लेकिन सुप्रीम कोर्ट में मामला होने की वजह से कुछ कर पाने में लाचार है.

जानकारों का कहना है कि केंद्र सरकार ये संदेश हूबहू इसी तरह दे सकती थी, यदि ऐसा वो आज से चार साल पहले करती, लेकिन अब काफी देर हो चुकी है और उसके संदेश को ‘डीकोड' करने वाली जनता इस बात को भली भांति समझ रही है कि लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ये पहल क्यों हो रही है.

वहीं सरकार की इस पहल को लेकर अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्म भूमि विवाद के पक्षकार किसी तरह न तो उत्साहित हैं और न ही किसी तरह का रोष या खुशी है. सच कहा जाए तो वो सरकार के इस कदम को खास महत्व ही नहीं दे रहे हैं क्योंकि इसमें उन्हें ऐसा कुछ नहीं दिख रहा है जिससे विवाद का कोई हल निकले या मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो.

हालांकि उत्तर प्रदेश की राज्य सरकार और विश्व हिन्दू परिषद को सरकार के इस कदम से राम मंदिर निर्माण मामले में कुछ आगे बढ़ने की उम्मीद नजर आ रही है. मंगलवार को योगी आदित्यनाथ की पूरी कैबिनेट प्रयागराज स्थित कुंभ क्षेत्र में थी जहां कैबिनेट की बैठक हुई और उसके बाद सभी मंत्रियों ने संगम स्नान किया. मुख्य मंत्री योगी आदित्यनाथ ने केंद्र सरकार के इस पहल की प्रशंसा की.

लेकिन राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में प्रमुख पक्षकार निर्मोही अखाड़ा के प्रतिनिधियों को तो इस बात पर भी ऐतराज है कि केंद्र सरकार इसे रामजन्मभूमि न्यास को क्यों सौंप रही है? निर्मोही अखाड़ा के महंत दिनेंद्र दास दावा करते हैं कि यदि ये पूरी जमीन निर्मोही अखाड़ा को सौंप दी जाए तो मामले का हल तुरंत निकल जाएगा क्योंकि अखाड़ा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को अपनी जमीन देने को तैयार है.

तस्वीर: Samiratmaj Misha

मामले में प्रमुख मुस्लिम पक्षकार इक़बाल अंसारी को सरकार के इस कदम से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि उनका दावा सिर्फ उसी जमीन पर है जहां कभी बाबरी मस्जिद थी लेकिन हाजी महबूब को सरकार की इस कोशिश में ‘दाल में कुछ काला' नजर आ रहा है. इन सबके बीच एक अहम सवाल ये है कि यदि सुप्रीम कोर्ट केंद्र सरकार की इस अपील को मान भी लेती है तो क्या राम मंदिर निर्माण संभव हो सकेगा?

कानूनी जानकार तो ऐसा होना संभव बताते हैं लेकिन अयोध्या के पक्षकार और धर्मशास्त्री इसे कतई स्वीकार नहीं करते. राम जन्म भूमि मंदिर के मुख्य पुजारी महंत सत्येंद्र दास कहते हैं कि जब तक गर्भगृह की विवादित जमीन पर फैसला नहीं होता मंदिर निर्माण नहीं शुरू हो सकता. सत्येंद्र दास के मुताबिक, मंदिर 67 एकड़ जमीन पर नहीं बल्कि गर्भ गृह की जमीन पर बनना है और इसके लिए सिर्फ यही विकल्प है कि सरकार कानूनी रास्ता निकाले, यानी अध्यादेश लाए.

दूसरी ओर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड के वकील और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के संयोजक जफरयाब जिलानी कहते हैं कि इसमें अभी बहुत से पेंच हैं और ये इतना आसान नहीं है. जिलानी का कहना है कि 67 एकड़ जमीन का एक बड़ा हिस्सा कब्रिस्तान का है और क्या कब्रिस्तान की जमीन पर मंदिर निर्माण संभव है?

अयोध्या में विवादित स्थल के आस-पास की क़रीब 67 एकड़ ज़मीन का केंद्र सरकार ने साल 1993 में अधिग्रहण कर लिया था. बाद में कोर्ट ने इस पूरे परिसर में यथास्थिति बनाए रखने और कोई धार्मिक गतिविधि न होने के निर्देश दिए थे. साल 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस जमीन के 2.77 एकड़ को तीन पक्षों में बराबर-बराबर बांट दिया था. हाईकोर्ट के इसी आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है.

तस्वीर: Reuters/P. Kumar

ऐसा माना जाता है कि साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनने के पीछे मतदाताओं की ये उम्मीद भी थी कि सरकार बनने के बाद अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा. लेकिन सरकार अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर चुकी है और ये मामला अब तक सुप्रीम कोर्ट में उलझा हुआ है. सरकार ने अब तक अपनी ओर से कोई पहल भी नहीं की. ये कयास लगाए जा रहे थे कि शायद सरकार संसद के शीत सत्र में इस संबंध में कोई अध्यादेश लाए, लेकिन उसकी संभावना भी खत्म हो गई.

कुछ विश्लेषकों का तो यह भी कहना है कि बीजेपी राम मंदिर मुद्दे को खत्म होने भी नहीं देना चाहती लेकिन केंद्र और राज्य दोनों जगह पूर्ण बहुमत सरकार चला रही इस पार्टी के पास मंदिर निर्माण की पहल न करने का अब कोई बहाना भी नहीं बचा है. वरिष्ठ पत्रकार शरद प्रधान कहते हैं कि ऐसी स्थिति में वो कुछ ऐसा करना चाहती है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे.

लेकिन शरद प्रधान कहते हैं कि अब बहुत देर हो चुकी है, "अब लोग ये नहीं मानेंगे कि आपने क्या कोशिश की, अब तो सीधे तौर पर यही पूछेंगे कि आपने मंदिर बनाया क्यों नहीं. क्योंकि ये हमेशा यही कहते थे कि जब केंद्र और राज्य में पूर्ण बहुमत की सरकार होगी तभी उनके लिए ऐसा करना संभव है. मतदाताओं ने उनको इसका पूरा मौका दिया.”

बहरहाल, अभी ये मामला एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में है कि वो केंद्र सरकार की इस अपील को स्वीकार करती है या नहीं. दोनों ही स्थितियों में इतना तो तय है कि मंदिर निर्माण के संबंध में अगली कोई कार्रवाई लोकसभा चुनाव से पहले होनी मुश्किल है.

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