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समाज

केजरीवाल के कदम से श्रमिकों का कितना भला होगा?

चारु कार्तिकेय
३० अक्टूबर २०१९

दिल्ली में बीस साल के बाद श्रमिकों का न्यूनतम वेतन बढ़ा है. पर क्या इस से सभी श्रमिकों को लाभ मिलेगा? जानिये न्यूनतम वेतन की संवैधानिक व्यवस्था को.

Arvind Kejriwal Indien Ministerpräsident Porträt
तस्वीर: Reuters

दिल्ली में काम करने वाले श्रमिकों का न्यूनतम वेतन बढ़ा दिया गया है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी अब देश में सबसे ज्यादा न्यूनतम वेतन देने वाला राज्य बन गई है और इसका फायदा 55 लाख श्रमिकों को मिलेगा. उन्होंने ये भी कहा कि ये रकम राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन का भी तीन गुना है.

श्रमिकों को मिलने वाले न्यूनतम वेतन का क्या स्तर होगा, यह केंद्र सरकार और सभी राज्य सरकारें कानूनी तौर पर तय करती है. ऐसा न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948 के तहत होता है. इसके तहत हर पांच साल पर न्यूनतम वेतन में संशोधन करना होता है और हर छह महीने पर महंगाई भत्ता बढ़ाना होता है.

इस कानून के प्रावधान अनिवार्य तो नहीं है पर वैधानिक जरूर हैं. तय मानकों से कम वेतन देने को बंधुआ मजदूरी माना जाता है और पकड़े जाने पर दंड का प्रावधान है.

श्रमिकों को तरह तरह के खर्चों के लिए कितने न्यूनतम वेतन की जरूरत है और रोजगार देने वालों की वेतन देने की कितनी क्षमता है, इसका निर्णय करने के लिए वेतन बोर्डों का गठन किया जाता है और ये बोर्ड अध्ययन के बाद दिशा-निर्देश देते हैं.

भारत में अत्यंत विभाजित रोजगार बाजार की वजह से सभी तरह के श्रमिक इसका लाभ नहीं उठा पाते. इसके दायरे में सिर्फ अनुसूचित रोजगार आते हैं यानी उन क्षेत्रों में मजदूरी जिन्हें इस कानून के तहत मान्यता प्राप्त है. कानून के तहत सरकारों को समय समय पर सूची में नए नए क्षेत्रों को जोड़ने की आजादी है.

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कहां कितना न्यूनतम वेतन

दिल्ली सरकार की ताजा अधिसूचना के बाद दिल्ली में अकुशल कर्मचारियों को 14,842 रुपये, अर्धकुशल कर्मचारियों को 16,341 रुपये और कुशल कर्मचारियों को 17, 991 रुपये मासिक न्यूनतम वेतन मिलेगा. दिल्ली सरकार का दावा है कि दिल्ली के 14,842 रुपये न्यूनतम वेतन के मुकाबले पड़ोसी राज्य हरियाणा में 8827 रुपये, उत्तर प्रदेश में 5750 रुपये, गुजरात में 8190 रुपये और महाराष्ट्र में 10, 411 रुपये न्यूनतम वेतन है. केंद्रीय सरकार में न्यूनतम वेतन 10,140 रुपये है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ये भी कहा कि 2015 में जब उनकी आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई थी, तब दिल्ली में न्यूनतम वेतन 8,632 रुपये प्रति माह हुआ करता था. यानी उनकी सरकार ने पांच साल में न्यूनतम वेतन में 72 प्रतिशत वृद्धि की है.  

किसे लाभ होगा, किसे नहीं

दिल्ली सरकार के अनुसार इस वृद्धि का लाभ 55 लाख श्रमिकों को मिलेगा. पर ये वही श्रमिक हैं जो रोजगार के अनुसूचित क्षेत्रों में काम करते हैं. इनके अलावा दिल्ली में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में श्रमिक भारी संख्या में असंगठित क्षेत्रों में काम करते हैं, जिन्हें न न्यूनतम वेतन की गारंटी मिलती है, ना अन्य कोई सुविधा और सुरक्षा. माना जाता है कि देश में 90 प्रतिशत से भी ज्यादा श्रमिक असंगठित क्षेत्रों में ही काम करते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/B. Armangue

दिल्ली के बारे में ऐसा कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन अनुमान जरूर हैं. वामपंथी ट्रेड यूनियन सीटू की दिल्ली इकाई के महासचिव अनुराग सक्सेना दिल्ली न्यूनतम वेतन बोर्ड के सदस्य हैं और उसकी सलाहकार समिति के भी सदस्य थे जिन्होंने नए वेतनों की सिफारिश की थी. उनका कहना है कि दिल्ली में कभी ऐसा सर्वेक्षण हुआ ही नहीं, लेकिन उनका अनुमान है कि राष्ट्रीय राजधानी में कम से कम 90 लाख श्रमिक हैं. 

इसका मतलब है दिल्ली के लगभग 60 प्रतिशत श्रमिक इस न्यूनतम वेतन के दायरे में आएंगे और 40 प्रतिशत बाहर रह जाएंगे. वेतन में वृद्धि का स्वागत करते हुए अनुराग कहते हैं कि दिल्ली में बीस साल से एक रुपये की भी वृद्धि नहीं हुई थी इसलिए ये वृद्धि इस कमी की भरपाई करेगी. 

व्यवस्था कितनी पुख्ता

साथ ही अनुराग ने कुछ और आवश्यक कदमों पर भी ध्यान दिलाया. उनका कहना है कि अनुसूचित रोजगारों में और क्षेत्रों को शामिल करने की जरूरत है. ये वेतन अधिकतर सरकारी क्षेत्र में काम कर रहे श्रमिकों पर लागू होते हैं जबकि निजी क्षेत्र में काम कर रहे लगभग 40 लाख मजदूर इसकी गारंटी से वंचित हैं. अनुराग कहते हैं कि इन्हें भी इस व्यवस्था के दायरे में लाना जरूरी है.

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कानून के पालन को सुनिश्चित कराना भी एक अहम् पहलू है जिसकी तरफ और ध्यान दिए जाने की जरूरत है. ठेकेदार अक्सर न्यूनतम वेतन कानून का उल्लंघन करते हैं और श्रमिक इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते. अमल करने की व्यवस्था ढीली होने की वजह से ऐसे ठेकेदार पकड़े भी नहीं जाते.

अनुराग ने बताया कि दिल्ली में 31 औद्योगिक क्षेत्र हैं लेकिन इनमे श्रम कानूनों का पालन सुनिश्चित कराने के लिए श्रम इंस्पेक्टरों की संख्या है सिर्फ 16. लिहाजा और इंस्पेक्टरों की भी नियुक्ति होनी चाहिए और कानून का कड़ाई से पालन हो, इसे सुनिश्चित करना चाहिए.

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