केरल में कांग्रेसी मोर्चे को स्पष्ट बहुमत
१३ मई २०११140 सदस्यों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए 71 सदस्यों की जरूरत होती है.
यूडीएफ के प्रतिद्वंद्वी एलडीएफ के खाते में 68 सीटें आई हैं और अब उसे सत्ता से हाथ धोना होगा. 87 वर्षीय मुख्यमंत्री वीएस अच्युतानंदन के नेतृत्व में एलडीएफ को सत्ता विरोधी लहर का नुकसान उठाना पड़ा है.
हार के बावजूद सीपीएम सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी है. 45 सीटों पर उसके उम्मीदवार जीते हैं. वहीं 85 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली कांग्रेस को 38 सीटों से संतोष करना पड़ा है.
इस बार किसकी बारी
वैसे पिछले तीन दशकों के दौरान केरल में बारी बारी से यूडीएफ और एलडीएफ की सत्ता रही है. इस लिहाज से बारी यूडीएफ की ही थी. एलडीएफ पिछले पांच साल से राज्य की सत्ता में था. पिछले चुनाव में एलडीएफ को 98 सीटें मिलीं जबकि यूडीएफ के खाते में 42 सीटें आईं.
इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल ) और केरल कांग्रेस (मनी) का यूडीएफ की जीत में खासा योगदान रहा. मुस्लिम मतों पर मुस्लिम लीग और ईसाई वोटों पर केरल कांग्रेस (मनी) की अच्छी पकड़ मानी जाती है. इस गठबंधन में जेएसएस और सीएमपी जैसी छोटी पार्टियां भी शामिल हैं. ये अपना खाता भी नहीं खोल पाईं. केरल में बीजेपी फिर एक बार फ्लॉप रही जबकि उसने राज्य के उत्तरी और दक्षिणी हिस्सों में जमकर प्रचार किया था.
बड़े नेता जीते
यूडीएफ के जिन उम्मीदवारों ने आसानी से जीत दर्ज की उनमें मुख्यमंत्री पद के दावेदार ओमन चांडी, केपीसीसी के अध्यक्ष रमेश चेन्नीथाला, के मुरलीधरन (कांग्रेस), आईयूएमएल के नेता पीके कुनहालीकुट्टी और केरल कांग्रेस के नेता केएम मनी (पाला) शामिल हैं.
उधर सीपीएम के दिग्गज मुख्यमंत्री अच्युतानंदन तीसरी बार अल्लुपझा से जीत गए हैं जबकि उनके मंत्रिमंडल के कई साथियों को हार का सामना करना पड़ा है.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः वी कुमार