खाद्य गुणवत्ता के अंतरराष्ट्रीय निर्णायक संगठन कोडेक्स कमीशन ने सालाना बैठक में चावल की गुणवत्ता पर अहम फैसला लिया है. इसके अनुसार चावल में आर्सेनिक की मात्रा 0.02 मिलीग्राम प्रतिकिलो से अधिक नहीं होनी चाहिए.
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जेनेवा में चल रही सालाना बैठक में अंतरराष्ट्रीय संगठन द कोडेक्स एलिमेंटेरियस कमीशन ने यह फैसला लिया. विश्व स्वास्थ्य संगठन की खाद्य सुरक्षा संयोजक अंगेलिका ट्रिशर के मुताबिक, "आर्सेनिक एक पर्यावरण प्रदूषक है. यह प्राकृतिक रूप से पैदा होता है. चावल के पौधों में यह पानी और मिट्टी से आता है."
फसल में आर्सेनिक
आर्सेनिक पृथ्वी की ऊपरी सतह यानि भूपर्पटी में पाया जाता है. इसकी सबसे ज्यादा मात्रा एशियाई देशों में पाई जाती है जहां चावल का उत्पादन सबसे ज्यादा होता है. समस्या तब होती है जब खेतों की सिंचाई ऐसे कुंए से निकाले गए पानी से होती है जो ज्यादा गहरे नहीं होते. इस तरह के पानी के स्रोतों में आर्सेनिक की मात्रा अधिक होती है.
टिशर कहती हैं, "जब हम सुरक्षा मानकों की बात करते हैं, साफ तौर पर मतलब ग्राहक की सेहत से होता है." वह आगे कहती हैं, "चावल कई देशों में मुख्य खाद्यान्न के रूप में इस्तेमाल होता है, विश्व की आबादी का बड़ा हिस्सा इससे प्रभावित होता है." आर्सेनिक की भारी मात्रा कई बार पीने वाले पानी में भी होती है. ऐसे में अगर चावल में भी आर्सेनिक की ज्यादा मात्रा होती है तो यह खाने वाले के लिए खतरनाक साबित हो सकता है.
कई खतरे
बांग्लादेश समेत भारत, कंबोडिया, चीन और वियतनाम जैसे देश इससे ज्यादा प्रभावित हैं. आर्सेनिक के लंबे समय तक सेवन से शरीर को कैंसर का खतरा हो सकता है. टिशर बताती हैं कि कैंसर के अलावा कई दूसरे खतरे भी आर्सेनिक के कारण बढ़ जाते हैं. इनमें दिल की बीमारी और डायबिटीज शामिल हैं. साथ ही तंत्रिका तंत्र और मस्तिष्क को भी खतरा है.
हालांकि खाद्यान्न संबंधी दूसरी समस्याओं के बीच आर्सेनिक की बात आम तौर पर कम ही निकलती है. टिशर कहती हैं, "इससे ऐसा नहीं होता कि आपको फौरन कोई भयंकर प्रभाव दिखाई दे." आर्सेनिक का शरीर पर असर लंबे समय में दिखता है.
डब्ल्यूएचओ और संयुक्त राष्ट्र का खाद्य एवं कृषि संगठन एफएओ 186 देशों के कोडेक्स कमीशन का संचालन करता है. देशों में इसके मानकों के प्रभाव के लिए इनका देशों के कानून में जोड़ा जाना जरूरी है. एफएओ के वरिष्ठ अधिकारी टॉम हाईलांट कहते हैं, "हम अपना खाना सुरक्षित और अच्छी गुणवत्ता वाला चाहते हैं. हम अपने खाने से बीमार नहीं होना चाहते."
एसएफ/आईबी (एएफपी)
कैंसर से बचने के तरीके
कैंसर को जीवन का अंत नहीं समझ लेना चाहिए. वैज्ञानिकों को पता लग चुका है कि यह बीमारी होती कैसे है. फिर बचने के उपाय भी हो सकते हैं.
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किस्मत अपने हाथ
विशेषज्ञ बताते हैं कि कैंसर के लगभग आधे मामले कम किए जा सकते हैं. कैंसर के ट्यूमर का हर पांचवां मामला सिगरेट पीने से होता है. इससे फेफड़ों के कैंसर के अलावा कई और तरह के ट्यूमर भी हो सकते हैं.
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मोटापे से खतरा
कैंसर की दूसरी सबसे बड़ी वजह मोटापा है. शरीर में जब इंसुलिन बढ़ता है तो वह हर तरह के कैंसर का खतरा बढ़ा देता है. मोटी महिलाओं की वसा कोशिकाओं में सेक्स हॉर्मोन भी ज्यादा निकलते हैं जिससे गर्भाशय या स्तन कैंसर हो सकते हैं.
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आलसी मत बनिए
लंबे रिसर्च से पता चला है कि नियमित व्यायाम से ट्यूमर का खतरा कम हो जाता है. कारण है कसरत से शरीर में इंसुलिन का स्तर कम होना. जरूरी नहीं कि आप बहुत भागदौड़ वाले खेल ही खेलें. साइकिल चलाने और टहलने से भी फायदा है.
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ज्यादा न पीजिए
शराब से मुंह, गले और खाने की नली में ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है. धूम्रपान और शराब साथ लेने से कैंसर का खतरा 100 गुना बढ़ जाता है. अधिक से अधिक वाइन का एक ग्लास ही सेहत के लिए ठीक होता है.
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'रेड मीट' कम
आंतों के कैंसर के लिए इसे जिम्मेदार माना जाता है. दूसरी ओर मछली का मांस कैंसर से बचाता है.
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ज्यादा धूप नहीं
सूरज की पराबैंगनी किरणें शरीर में इतने अंदर तक जा सकती हैं कि कोशिकाओं में घुस कर जीनोम यानि आनुवांशिक संरचना बदल दें. 'सन टैन' के शौकीनों को ध्यान देना होगा क्योंकि ज्यादा धूप से त्वचा का कैंसर हो सकता है.
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आधुनिक दवाएं भी दोषी
एक्सरे से जीनोम यानि आनुवांशिक संरचना पर असर पड़ता है. लेकिन बदलती रोजमर्रा में मुश्किलें बहुत हैं. हवाई जहाजों में सफर के दौरान भी लोग कैंसर पैदा करने वाले विकिरण के संपर्क में आते हैं.
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संक्रमण से कैंसर
ह्यूमन पैपिलोमा वायरस के संक्रमण से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है. इससे तस्वीर में दिखाई दे रहा बैक्टीरिया पेट में पहुंच जाता है और वहां कैंसर पैदा करता है. इन संक्रमणों से बचने के टीके लिए जा सकते हैं.
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इतनी बुरी नहीं गर्भनिरोधक गोलियां
इन गोलियों से स्तन कैंसर का खतरा थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन ओवरी या अंडाशय के कैंसर से काफी हद तक बचा जा सकता है. कम से कम कैंसर के मामले में तो गोलियां लेना अच्छा है.
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बाकी प्रकृति जिम्मेदार
कई बार सारी अच्छी आदतों के बावजूद बीमारी हो सकती है. कभी उम्र का तकाजा ले डूबता है तो कभी पीढ़ी दर पीढ़ी जीन से होने वाली बीमारी. रिपोर्ट: ब्रिगिटे ओस्टेराथ/ऋतिका राय संपादन: ए जमाल