कुछ ही समय पहले जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल बने सत्यपाल मलिक ने जो किया, उसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है. कुल मिलाकर राज्य का राजनीतिक परिदृश्य बेहद दिलचस्प और अनेक प्रकार की संभावनाओं से भरा लगने लगा है.
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अपवादस्वरूप ही राज्यपालों ने अपने संवैधानिक पद की गरिमा और जिम्मेदारी के अनुरूप काम किया है. अमूमन नाजुक वक्त में वे केंद्र सरकार के एजेंट की भूमिका निभाते हैं. और अगर जम्मू-कश्मीर के कुछ ही समय पहले राज्यपाल बने सत्यपाल मलिक ने भी यही किया, तो इसमें कुछ भी आश्चर्यजनक नहीं है.
जैसे ही राज्य में भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध तैयार हो रहे पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस के महागठबंधन की सरकार बनने की संभावना प्रबल हुई, वैसे ही उन्होंने विधानसभा भंग कर दी. उनका कहना था कि यदि परस्पर विरोधी विचारधाराओं वाले दल मिलकर सरकार बनाते हैं तो वह स्थाई सिद्ध नहीं होगी और इससे सेना एवं सुरक्षा बालों को मदद नहीं मिलेगी.
जून में जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को निलंबित करके वहां राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था क्योंकि सत्तारूढ़ गठबंधन में से भारतीय जनता पार्टी निकल गई थी और मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पीडीपी अकेली रह गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार उसी समय विधानसभा को भी भंग कर सकती थी लेकिन उसने ऐसा न करके उसे मात्र निलंबित किया.
यह कदम तब उठाया जाता है जब यह उम्मीद हो कि वर्तमान विधानसभा के भीतर से नई सरकार के गठन की संभावना है, भले ही उसमें कुछ वक्त लगे. सरकार के गठन में विचारधारा की भूमिका तो तभी खत्म हो गई थी, जब आतंकवादियों के प्रति नर्म रुख के लिए जानी जाने वाली पीडीपी और अपने को सबसे बड़ी देशभक्त पार्टी बताने वाली बीजेपी ने एक-दूसरे के साथ हाथ मिलाकर सरकार बना ली थी. इसलिए मलिक का यह तर्क किसी के भी गले नहीं उतर सकता.
दो विधायकों वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता और आतंकवाद के पूर्व समर्थक सज्जाद लोन के साथ बीजेपी की काफी समय से बात चल रही थी. पार्टी के पास जम्मू से 25 विधायक थे. बहुमत के लिए उन्हें कम से कम 17 अन्य विधायकों के समर्थन की जरूरत थी. जाहिर है कि ये विधायक अन्य पार्टियों को तोड़कर ही जुटाए जा सकते थे.
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
कश्मीर मुद्दे की पूरी रामकहानी
आजादी के बाद से ही कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में एक फांस बना हुआ है. कश्मीर के मोर्चे पर कब क्या क्या हुआ, जानिए.
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1947
बंटवारे के बाद पाकिस्तानी कबायली सेना ने कश्मीर पर हमला कर दिया तो कश्मीर के महाराजा ने भारत के साथ विलय की संधि की. इस पर भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया.
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1948
भारत ने कश्मीर का मुद्दा संयुक्त राष्ट्र में उठाया. संयुक्त राष्ट्र ने प्रस्ताव 47 पास किया जिसमें पूरे इलाके में जनमत संग्रह कराने की बात कही गई.
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1948
लेकिन प्रस्ताव के मुताबिक पाकिस्तान ने कश्मीर से सैनिक हटाने से इनकार कर दिया. और फिर कश्मीर को दो हिस्सों में बांट दिया गया.
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1951
भारतीय कश्मीर में चुनाव हुए और भारत में विलय का समर्थन किया गया. भारत ने कहा, अब जनमत संग्रह का जरूरत नहीं बची. पर संयुक्त राष्ट्र और पाकिस्तान ने कहा, जनमत संग्रह तो होना चाहिए.
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1953
जनमत संग्रह समर्थक और भारत में विलय को लटका रहे कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्लाह को गिरफ्तार कर लिया गया. जम्मू कश्मीर की नई सरकार ने भारत में कश्मीर के विलय पर मुहर लगाई.
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1957
भारत के संविधान में जम्मू कश्मीर को भारत के हिस्से के तौर पर परिभाषित किया गया.
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1962-63
चीन ने 1962 की लड़ाई भारत को हराया और अक्साई चिन पर नियंत्रण कर लिया. इसके अगले साल पाकिस्तान ने कश्मीर का ट्रांस काराकोरम ट्रैक्ट वाला हिस्सा चीन को दे दिया.
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1965
कश्मीर को लेकर भारत और पाकिस्तान का युद्ध हुआ. लेकिन आखिर में दोनों देश अपने पुरानी पोजिशन पर लौट गए.
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1971-72
दोनों देशों का फिर युद्ध हुआ. पाकिस्तान हारा और 1972 में शिमला समझौता हुआ. युद्धविराम रेखा को नियंत्रण रेखा बनाया गया और बातचीत से विवाद सुलझाने पर सहमति हुई.
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1984
भारत ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया, जिसे हासिल करने के लिए पाकिस्तान कई बार कोशिश की. लेकिन कामयाब न हुआ.
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1987
जम्मू कश्मीर में विवादित चुनावों के बाद राज्य में आजादी समर्थक अलगाववादी आंदोलन शुरू हुआ. भारत ने पाकिस्तान पर उग्रवाद भड़काने का आरोप लगाया, जिसे पाकिस्तान ने खारिज किया.
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1990
गवकदल पुल पर भारतीय सुरक्षा बलों की कार्रवाई में 100 प्रदर्शनकारियों की मौत. घाटी से लगभग सारे हिंदू चले गए. जम्मू कश्मीर में सेना को विशेष शक्तियां देने वाले अफ्सपा कानून लगा.
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1999
घाटी में 1990 के दशक में हिंसा जारी रही. लेकिन 1999 आते आते भारत और पाकिस्तान फिर लड़ाई को मोर्चे पर डटे थे. कारगिल की लड़ाई.
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2001-2008
भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत की कोशिशें पहले संसद पर हमले और और फिर मुबई हमले समेत ऐसी कई हिंसक घटनाओं से नाकाम होती रहीं.
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2010
भारतीय सेना की गोली लगने से एक प्रदर्शनकारी की मौत पर घाटी उबल पड़ी. हफ्तों तक तनाव रहा और कम से कम 100 लोग मारे गए.
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2013
संसद पर हमले के दोषी करार दिए गए अफजल गुरु को फांसी दी गई. इसके बाद भड़के प्रदर्शनों में दो लोग मारे गए. इसी साल भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मिले और तनाव को घटाने की बात हुई.
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2014
प्रधानमंत्री मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ गए. लेकिन उसके बाद नई दिल्ली में अलगाववादियों से पाकिस्तानी उच्चायुक्त की मुलाकात पर भारत ने बातचीत टाल दी.
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2016
बुरहान वानी की मौत के बाद कश्मीर में आजादी के समर्थक फिर सड़कों पर आ गए. अब तक 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और गतिरोध जारी है.
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2019
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आतंकी हमले में 46 जवान मारे गए. इस हमले को एक कश्मीरी युवक ने अंजाम दिया. इसके बाद परिस्थितियां बदलीं. भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बना हुआ है.
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2019
22 जुलाई 2019 को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान से मुलाकात करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने दावा किया की भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनसे कश्मीर मुद्दे को लेकर मध्यस्थता करने की मांग की. लेकिन भारत सरकार ने ट्रंप के इस दावे को खारिज कर दिया और कहा कि कश्मीर का मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय बातचीत से ही सुलझेगा.
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2019
5 अगस्त 2019 को भारत के गृहमंत्री अमित शाह ने राज्यसभा में एक संशोधन विधेयक पेश किया. इस संशोधन के मुताबिक अनुच्छेद 370 में बदलाव किए जाएंगे. जम्मू कश्मीर को विधानसभा वाला केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. लद्दाख को भी एक केंद्र शासित प्रदेश बनाया जाएगा. धारा 35 ए भी खत्म हो गई है.
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पीडीपी के वरिष्ठ नेता मुजफ्फर बेग के लोन की तरफ झुकाव के सार्वजनिक होने से बीजेपी को जो आशा बंधी थी, वह महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और गुलाम नबी आजाद के बीच बीजेपी विरोधी महागठबंधन बनाकर नई सरकार बनाने पर सहमति बनते ही समाप्त हो गई. नतीजतन तुरत-फुरत विधानसभा को भंग कर दिया गया. हालांकि महागठबंधन बनाने वाले दल शुरू से ही मांग कर रहे थे कि विधानसभा को तत्काल भंग करके चुनाव कराए जाएं, लेकिन उसे तब तक भंग नहीं किया गया जब तक बीजेपी को नई सरकार बनाने की उम्मीद रही.
विधानसभा भंग होने से राज्य की राजनीतिक बिसात एक बार फिर से बिछाई जा रही है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्लाह ने स्पष्ट कर दिया है कि उनकी पार्टी पीडीपी के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी. कांग्रेस का रुख अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन लगता है कि वह भी अकेले ही लड़ेगी. पीडीपी का आतंरिक विद्रोह दब जाएगा या और भी अधिक उग्र होकर उभरेगा, कहा नहीं जा सकता. यानी जम्मू-कश्मीर राज्य की राजनीति एक बार फिर अस्थिरता की ओर बढ़ चली है.
इसी बीच भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव और जम्मू-कश्मीर मामलों के प्रभारी राम माधव ने दूसरों की देशभक्ति पर संदेह करने की संघ परिवार की परंपरा का पालन करते हुए यह आरोप लगा कर राजनीतिक तापमान और भी बढ़ा दिया है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी पाकिस्तान के इशारे पर काम कर रहे हैं. उमर अब्दुल्लाह द्वारा इसे साबित करने की चुनौती दिए जाने पर उन्होंने इस पर लीपापोती करने की कोशिश की लेकिन अब्दुल्लाह इस पर कानूनी कार्रवाई करने की सोच रहे हैं. यानी कुल मिलाकर राज्य का राजनीतिक परिदृश्य बेहद दिलचस्प और अनेक प्रकार की संभावनाओं से भरा लगने लगा है.
कहां कहां है आजादी की मांग
दुनिया में कहां कहां अलगाववाद
दुनिया में कई जगहों पर अलग देशों को लेकर आंदोलन चल रहे हैं. विभिन्न ऐतिहासिक, राजनीतिक और आर्थिक कारणों से हो रहे ये आंदोलन दुनिया को नए देश दे सकते हैं.