1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

कैसा होगा हमारा डिजिटल समाज

६ मई २०१३

बर्लिन में आयोजित होने वाले इस साल के इंटरनेट रिपुब्लिका का मोटो है, इन साइड आउट. और मकसद है जानना कि इंटरनेट समाज में अंदर कौन है और बाहर कौन. हमारे समाज पर इसका क्या असर पड़ रहा है और आगे का रास्ता कैसा है.

तस्वीर: Flickr/iStockphoto I re:publica 2012

जर्मनी में रिपुब्लिका, वेबसाइटों के अलावा ब्लॉगिंग और नेटवर्किंग का एक बड़ा सम्मेलन है. यहां पूरी दुनिया से शोधकर्ता, कार्यकर्ता और ब्लॉगर आते हैं जो इंटरनेट के जरिए अपने काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं. रिपुब्लिका के दौरान बर्लिन शहर जैसे इंटरनेट का मक्का बन गया हो. लैपटॉप लिए लोग बैठकों में जाते हैं. कुछ लोग हॉल के बीचों बीच टाइप कर रहे हैं या बरामदे में धूप सेंकते हुए इंटरनेट के बारे में अपने ख्याल बांट रहे हैं.

ऐसा लगता है जैसे यहां इंटरनेट के लिए जरूरी आइडिया नहीं बल्कि कोई पॉप संगीत का फेस्टिवल हो रहा हो. यहां सूट बूट पहने ज्यादा लोग नहीं दिखते. यहां आने वाले ज्यादातर लोगों ने टैटू गुदवाया है, लगभग सभी की आंखों पर चश्मा है. 2012 में माहौल कुछ ऐसा था, 2013 में माहौल शायद इससे भी तनावरहित रहेगा और इंटरनेट को बढ़ावा देने के लिए खूब सारे आइडिया यहां से आएंगे.

रिपुब्लिका की शुरुआत

2007 में मार्कुस बेकेडाल और जॉनी हॉयसलर ने रिपुब्लिका की शुरुआत की,  दोनों ब्लॉगर हैं. उसी साल अप्रैल में 700 इंटरनेट कार्यकर्ता मिले और राजनीति से लेकर मीडिया, संस्कृति, लाइफस्टाइल और तकनीक पर बहस की. यह ऐसे मुद्दे थे जिससे 25 साल से ज्यादा उम्र की युवा प्रभावित हो रहे थे. पहले रिपुब्लिका सम्मेलन का मोटो था, इंटरनेट में जीवन.

आज भी इंटरनेट में डाटा सुरक्षा और कॉपीराइट पर बहस होती है. अपनी सुरक्षा का हवाला देते देश वेबसाइटों पर रोक लगा देते हैं. इंटरनेट में मुहिम चलाई जाती हैं, रिपुब्लिका में इन सब पर चर्चा होती है. इस बीच दुनिया भर से ब्लॉगर और कार्यकर्ता यहां आ रहे हैं. राजनीतिज्ञों ने भी यहां अपना चेहरा दिखाना शुरू कर दिया है.

जाहिर है कि रिपुब्लिका में कुछ अजीबोगरीब लोग भी शामिल होते हैं. 2010 में अमेरिकी इंटरनेट विद जेफ जारविस ने इंटरनेट में निजी जानकारी पर बहस की और जर्मनों से पूछा, कि वे इंटरनेट पर अपनी निजी जिंदगी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं देते लेकिन सौना में बिना कपड़ों के पहुंच जाते हैं. जारविस ने फिर मौजूद लोगों से कहा कि वे उनके साथ सौना में एक खास बैठक में हिस्सा ले सकते हैं.

जर्मन ब्लॉगर साशा लोबोतस्वीर: Flickr/Jonas Fischer/re:publica

जर्मन ब्लॉगर साशा लोबो सम्मेलन में काफी मशहूर हैं.  उन्हें लगता है कि वे लोगों की आलोचना का शिकार बने हैं. लोगों ने उनके ब्लॉग पर काफी बुरा भला कहा और इसे शिटस्टॉर्म का नाम दिया गया है. लोबो कहते हैं कि कुछ शिटस्टॉर्म काफी बुरे थे और कुछ सामान्य थे.

लोबो ने जनता को ट्रोल्स के बारे में भी बताया. ट्रोल इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले ऐसे लोग होते हैं जो अपने फेसबुक या ब्लॉग कमेंट के जरिए लेखक या किसी और को ठेस पहुंचाते हैं.

लेकिन रिपुब्लिका इंटरनेट नर्ड्स यानी इंटरनेट विदों के लिए ही नहीं है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि यह अभिव्यक्ति की आजादी की बात है और इसके जरिए हम पूछ सकते हैं कि हम अपने लिए किस तरह का डिजिटल समाज चाहते हैं.

इसके लिए आम लोगों और राजनीतिज्ञों में भी जागरूकता लानी होगी क्योंकि नेता अब जाकर इंटरनेट को समझ रहे हैं. आजकल ट्विटर के जरिए सरकार की नीतियों का भी पता लगता है. जर्मन सरकार के प्रवक्ता श्टेफन जाइबर्ट ट्विटर पर हैं और लगातार खबरें देते रहते हैं. अमेरिका में भारत की राजदूत निरुपमा राव लगातार ट्वीट करती रहती हैं. भारत के कई नेता भी ट्विटर में अपनी सोच सार्वजनिक करते रहते हैं. प्रधानमंत्री दफ्तर का भी अपना ट्विटर अकाउंट है.

इस साल रिपुब्लिका में 5,000 लोग आ रहे हैं. 350 कार्यकर्ता अपने प्रोजेक्ट और अपने ख्याल पेश करेंगे. अमेरिकी कार्यकर्ता जिलियन यॉर्क और क्यूबा की ब्लॉगर यओआनी सांचेस भी पहुंच रही हैं. सांचेस ने 2008 में अपने ब्लॉग के लिए डीडब्ल्यू बॉब्स का ईनाम जीता लेकिन वहां की सरकार ने उन्हें देश से बाहर नहीं जाने दिया. अब वह आखिरकार पुरस्कार लेने जर्मनी आ चुकी हैं.

रिपोर्ट: सिल्के वुंश/मानसी गोपालकृष्णन
संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

और रिपोर्टें देखें
डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें