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कैसा होगा 2019 का चुनाव देश के उद्योगों के लिए?

निधि सुरेश
२८ मार्च २०१९

भारतीय बैंक डूबे कर्ज से परेशान हैं. ऐसे में वह कर्ज न दें तो कंपनियों के लिए विस्तार और कठिन होगा. ऋण दिया जाए तो इस बात की गारंटी कैसे मिलेगी कि पैसा वापस आएगा. उद्योग जगत ऐसे कई सवालों के साथ चुनाव को देख रहा है.

Indien Textilfabrik
तस्वीर: Andrew Caballero-Reynolds/AFP/Getty Images

90 करोड़ भारतीय मतदाता अपनी अगली संसद का चुनाव करने जा रहे हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए भी चुनाव बेहद अहम है. देश के कई बड़े उद्योगपतियों का मानना हैं कि केंद्र में मजबूत सरकार का होना देश के अर्थिक विकास के लिए बहुत जरूरी है. केंद्र में मजबूत सरकार का फायदा ये होता है कि जो नीतियां अभी तक बनाई गई है वे आगे भी चलती रहेगी. नीतिगत परिवर्तन के होने की संभावना कम होती है.

मगर गठबंधन सरकार को इकोनोमी के लिए खराब मानना, ये भी ठीक नहीं है. अगर शेयर बाजार की बात करें तो 1989 से 2014 में देश में कई गठबंधन की सरकारें बनी जिन्होंने शेयर बाजार को 14 बार बढ़त दिलाई थी. सेंसेक्स जो जुलाई 1990 में 1,001 अंक पर था मई 2014 में 24,000 अंक तक पहुंच गया था. हालांकि चुनाव नतीजों के दौरान और उसके बाद शेयर बाजार में उतार चढ़ाव कोई नई बात नहीं है.

फ्रैंकलिन टेम्पलटन इंडिया के एमडी और मुख्य निवेश अधिकारी आनंद राधाकृष्णन का मानना है कि "चुनाव की वजह से छोटे समय के लिए निवेश करने वाले लोगों की भावनाओं पर असर पड़ेगा और बाजार में उतार चढ़ाव लगा रहेगा. मगर इस समय हर राजनीतिक दल ऋण माफी, सब्सिडी, जीएसटी में कमी, बेरोजगारी भत्ते आदि पर लोकलुभावन वादे कर रहे हैं जो खतरनाक है. क्योंकि अगर ऐसा होता है तो महंगाई बढ़ सकती है. वैश्विक बाजारों में भी काफी अस्थिरता बनी हुई हैं और इसकी वजह से भारत में आने वाला पैसा भी कम हो सकता हैं."

हरियाणा के गोलपुरा में मोज्जेरेला चीज का प्लांटतस्वीर: AP

नीतियों के नब्ज टटोलते सेक्टर

चुनाव का असर कई उद्योगों पर पढ़ता हैं. किस तरह की सरकार केंद्र में आती है और वे कैसी नीतियां बनती है, उद्योग इस बात पर बहुत ध्यान देते हैं. इन नीतियों के हिसाब से ही उद्योग जगत अपने फैसले लेता है. केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस का कहना है कि "इस बार के चुनाव पर सबकी नजर रहेगी क्योंकि ये अभी साफ नहीं हुआ है कि कौन जीतेगा? कई कंपनियां जून तक अपने निवेश के फैसले नहीं लेंगी. वे देखना चाहेंगी कि किस तरह की सरकार बनती है. हालांकि ऐसा नहीं है कि अर्थव्यवस्था थम जाएगी. कंपनियां सिर्फ जरूरी निवेश के फैसले करेंगी. अर्थव्यवस्था को मांग आगे बढ़ाएगी, जैसे कि रबी की फसल, शादी का सीजन और साल के अंत में खरीद (विशेष रूप से कॉरपोरेट्स के लिए). इन सब पर चुनाव का असर नहीं होता."

सबनवीस ने डॉयचे वेले को ये भी बताया कि "उपभोक्ता प्रधान सेक्टर जैसे ऑटो, ड्यूरेबल्स, टेक्स्टाइल अच्छा प्रदर्शन करेंगे. स्टील और सीमेंट जैसे क्षेत्रों को सरकार के पैसे से मदद मिलेगी. अगर केंद्र में मजबूत पार्टी नहीं आती है तो निजी और विदेशी निवेशक बाजार से दूर रहेंगे."

रियल एस्टेट सेक्टर चुनाव से पहले नए घर बनाना कम कर देता है और कोशिश होती है कि पुराने घरों को बेचा जाए. पिछले ढाई-तीन साल से रियल एस्टेट सेक्टर नोटबंदी, रियल एस्टेट (विनियमन और विकास) अधिनियम 2016 और GST जैसे बड़े बदलावों के चलते धीमा हुआ है. अनारकली प्रॉपर्टी कंसल्टेंट्स के अध्यक्ष अनुज पुरी का मानना है कि "ये घर खरीदारों के लिए अच्छा वक्त होता हैं क्योंकि वे कड़ा मोलभाव करके घर खरीद सकते हैं. सेक्टर के लिए जरूरी है कि जो भी नीतियां बदली गई हैं, उन्हें ठीक से चलाया जाए वरना रियल एस्टेट सेक्टर की कमजोरी बरकरार रहेगी."

एयर इंडिया के बाद जेट एयरवेज की हालत खस्तातस्वीर: Imago/Alexander Ludger

 

कुछ सेक्टरों पर असर नहीं

भारत का चौथा सबसे बड़ा सेक्टर है फास्ट मूविंग कंज्यूमर गुड्स (एफएमसीजी). इस पर चुनाव का ज्यादा असर नहीं पड़ता है. फरवरी में बनाए गए बजट में दी गई कई छूटों की वजह से लोगों के पास खर्च करने के लिए ज्यादा पैसे होंगे जो इस सेक्टर के लिए अच्छी बात है. एचडीएफसी सिक्योरिटीज के रिटेल रिसर्च के हेड दीपक जसानी का कहना हैं कि "एफएमसीजी सेक्टर पर मानसून और कमजोर अर्थव्यवस्था का असर पड़ता हैं. इस सेक्टर में ये देखा जाता है कि लोगों के पास खर्च करने के लिए कितने पैसे हैं."

भारत का बैंकिंग सेक्टर पिछले कुछ सालों से बहुत ज्यादा परेशानियों से गुजर रहा है. आम तौर पर उस पर चुनाव का कोई सीधा असर नहीं पड़ता है. लेकिन डूबे कर्ज की रिकवरी के खातिर बैंकिंग सेक्टर के लिए भी केंद्र सरकार और उसकी नीतियां बहुत जरूरी हो चुकी हैं. पिछले तीन साल से बैंकिंग सेक्टर 14,00,000 करोड़ के डूबते कर्ज से जूझ रहा है. इसके लिए सरकार और सेक्टर ने कई कदम भी उठाए हैं मगर इन योजनाओं की सफलता कुछ वक्त बाद दिखाई पड़ती है. भारतीय बैंकिंग संघ के सीईओ वीजी कन्नन का कहना है कि "बैकों को अपने कामकाज में कम से कम हस्तक्षेप चाहिए और इस बात का आश्वासन भी होना चाहिए कि जो गलत फैसले लिए गए हैं, उनके लिए उनके ऊपर शक की नजर से न देखा जाए. जिन कंपनियों ने बैकों से पैसा लिया है उनको पैसा वक्त से लौटाना होगा. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए."  बैंकिंग सेक्टर का मानना हैं कि जो भी सरकार बने वे उन्हें अपना काम करने दे और इस बात का ध्यान रखा जाए की किसी भी नीति को बदला या बंद न किया जाए.

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