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कैसी हो गई है कश्मीर के लोगों की जिंदगी

२१ अगस्त २०१९

भारत प्रशासित कश्मीर में लोग दो सप्ताह से बिना संचार के रह रहे हैं. सड़कें बंद हैं. डीडब्ल्यू के रिपोर्टर रिफत फरीद ने बाकी दुनिया से कट कर श्रीनगर में रह रहे लोगों की जिंदगी का जायजा लिया. उनसे सुनिए वहां की पूरी कहानी.

Bildergalerie Kaschmir Alltag in Srinagar
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

भारतीय प्रशासित कश्मीर के सबसे बड़े शहर श्रीनगर में 5 अगस्त की आधी रात के आसपास सब कुछ अचानक शांत हो गया. फोन बजने बंद हो गए. इंटरनेट भी बंद हो गया. गलियां सुनसान हो गईं. सभी सड़कों को बंद कर दिया गया था. अर्धसैनिक बल के जवान पूरे शहर में तैनात कर दिए गए. श्रीनगर पूरी तरह बंद हो गया.

मैं यहां सात वर्षों से पत्रकार के रूप में काम कर रहा हूं लेकिन जिस तरह से यह घटना हुई, मुझे एक बड़े झटके का एहसास हुआ. जब मैं सुबह सात बजे घर से निकला, यह पता नहीं था कि क्या हो रहा था. इस बात की पुष्टि करने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा था कि आखिर शहर में इतनी घेराबंदी क्यों की गई है? श्रीनगर में पूरी तरह खामोशी छायी हुई थी. ऑफिस पहुंचने के लिए मुझे कई चेकप्वाइंट पर तैनात सुरक्षाकर्मियों को सफाई देनी पड़ी.

कुछ चेकप्वाइंट पर सुरक्षाबलों ने बातचीत के बाद मुझे आगे जाने की इजाजत दी लेकिन कई अन्य ने वापस लौटने को कहा. एक चेकप्वाइंट पर जहां मुझे लौटने को कहा गया था, वहां मैंने खुद को एक पत्रकार बता आगे जाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन ये मेरी गलती थी. इसलिए आगे से मैंने खुद को पत्रकार बताना छोड़ दिया.

एक झटके में समाप्त हो गया अर्ध-स्वायत दर्जा

मैंने शहर के एक बड़े अस्पताल में जाने का फैसला किया ताकि यह पता चल सके कि कहीं कुछ हुआ तो नहीं है. वहां मैंने करीब दो घंटे इंतजार किया. लेकिन जैसा मैंने उम्मीद की थी, वैसा कुछ नहीं था. मरीजों की भीड़ नहीं थी. बावजूद इसके संशय बरकरार था. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर हो क्या रहा है? लेकिन जैसे ही मैं ऑफिस पहुंचा, भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने सात दशक पुराने धारा 370 को निरस्त करने की घोषणा कर दी थी. धारा 370 से मुस्लिम बहुल क्षेत्र को अर्ध-स्वायत होने का दर्जा मिला हुआ था, जो एक झटके में समाप्त हो गया.

इस फैसले की घोषणा के बाद भारत सरकार चिंतित थी कि विरोध और प्रदर्शन शुरू हो जाएंगे, जैसा कि 2008, 2010 और 2016 में हो चुका था. भारत सरकार इन्हीं संभावनाओं को देखते हुए अर्धसैनिक बल के जवानों को तैनात कर चुकी थी और हजारों की संख्या में राज्य में मौजूद पर्यटकों और हिंदू श्रद्धालुओं को निकाला जा चुका था. श्रीनगर में पूरी तरह घेराबंदी कर दी गई थी. कंटीले तारों के सड़कों को घेर दिया गया था और संचार के सभी साधन बंद कर दिए गए थे.

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के भारत सरकार के फैसले ने कश्मीरियों में यह आशंका भी पैदा कर दी कि इस क्षेत्र की जनसांख्यिकी को बदलने के बड़े कदम उठाए जाएंगे. भारत-प्रशासित कश्मीर देश का एकमात्र क्षेत्र है जहां मुस्लिम बहुसंख्यक हैं.

जारी है खामोशी का आलम

फोन लाइन और इंटरनेट कनेक्शन बंद रहने की वजह से श्रीनगर में खामोशी का आलम जारी है. यहां रह रहे लोग दुनिया से पूरी तरह अलग-थलग हो गए हैं. वे दोस्तों और रिश्तेदारों की खबर का इंतजार करते हैं. श्रीनगर में घेराबंदी के पहले दिन से ही मेरे घर पर माता-पिता दबाव महसूस कर रहे थे. हमने अपने घर पर जरूरी सामान इकट्ठा कर लिए थे लेकिन वे इस बात को लेकर चिंतित थे कि कहीं कुछ छूट तो नहीं रहा है. उन्होंने दवा, खाने के सामान और दूध इत्यादि जैसे सामानों की फिर से जांच की. अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली रात शहर पूरी तरह शांत था.

अगले दिन 7 अगस्त को मैंने फिर से बाहर निकलने और शहर का जायजा लेने का फैसला किया. संचार का कोई माध्यम चालू नहीं था. खबर भेजने के कोई रास्ते नहीं थे. मुझे अगले दिन फिर से चेकप्वाइंट पर रोका गया और पूछा गया, "तुम कहां जाना चाहते हो?" मैंने सावधानी से जवाब दिया. सुरक्षाकर्मी कुछ देर रूके और फिर जाने दिया.

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

श्रीनगर में हर कुछ सौ मीटर पर सड़क को ब्लॉक कर दिया गया था. श्रीनगर के ऐतिहासिक लाल चौक को सील कर दिया गया था. ये वही लाल चौक है जहां भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरु ने कश्मीर के लोगों से जनमत कराने का वादा किया था.

बाहर घूमना खतरे से खाली नहीं था. किसी भी तरह की आपातकालीन स्थिति में परिजनों से संपर्क करने और किसी नंबर पर फोन करने का कोई रास्ता नहीं था. मैं महाराजा हरि सिंह अस्पताल की ओर गया. इसका नाम कश्मीर के अंतिम हिंदू राजा के नाम पर रखा गया था, जिन्होंने 1947 में इस क्षेत्र को भारत को सौंप दिया था. सड़क हादसे में घायल एक व्यक्ति को स्ट्रेचर पर लादकर लाया जा रहा था. उसकी हालत चिंताजनक थी लेकिन उसके परिजनों से संपर्क करने का कोई साधन नहीं था.

एंबुलेंस ड्राईवर ने बताया कि इसकी बाइक को एक ट्रक ने धक्का मार दिया था और वहां सड़क पर इसे उठाने वाला कोई नहीं था. मैं भावुक होकर अस्पताल से निकल गया. अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद एक महिला अपने घर जाने के लिए किसी गाड़ी का इंतजार कर रही थी. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और कहा, तुम्हारा दिल भी मेरी तरह कमजोर दिखता है.

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

मैंने खुद को किसी हारे हुए व्यक्ति की तरह महसूस किया

अपने करियर में मैंने कई कहानियों पर काम किया है और महसूस किया है कि भावनाओं से निपटना मेरे लिए बहुत मुश्किल होता है. उदाहरण के तौर पर, पिछले महीने मैंने उन तीन लोगों को बारे में रिपोर्टिंग की थी, जो 23 साल जेल में रहने के बाद निर्दोष पाए गए और जेल से रिहा हुए. उनकी कहानी दिल दहलाने वाली थी लेकिन किसी भी चीज से कश्मीर के लोगों की हताशा की तुलना करना मुश्किल है. मैंने चिंतित होकर अस्पताल छोड़ दिया क्योंकि जो लोग परेशानियों का सामना कर रहे थे, उसकी रिपोर्ट करने का कोई साधन नहीं था. मुझे एक पत्रकार के रूप में हारा हुआ महसूस हुआ.

11 अगस्त को घेराबंदी का सातवां दिन था. मैं श्रीनगर में घूम रहा था और देखा कि एक महिला सड़क किनारे गिरी पड़ी है. वह अचेत होकर गिर पड़ी थी और उसके सिर पर गहरी चोट आयी थी. वहां कोई मौजूद नहीं था, जो महिला को अस्पताल ले जा सके. मैंने उसे अस्पताल ले जाने का निश्चय किया. उसने मुझे बताया, "मैं अपने बच्चों के खाने का सामान खरीदने के लिए दुकान की तलाश कर रही थी." वह मुसलमानों के बड़े त्योहार ईद के पहले की शाम थी.

महिला ने कहा, "मैं एक विधवा हूं. मेरे बच्चों ने मुझे बाहर निकलने से मना किया लेकिन मैं उनसे एक घंटे में वापस लौटने का वादा कर बाहर निकली. लेकिन अब देर हो जाएगी. मेरे पास कोई साधन नहीं है कि मैं उन्हें बता सकूं कि मुझे वापस लौटने में देर हो जाएगी."

तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui

घेराबंदी में ईद

12 अगस्त को मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर गया. वह ईद का दिन था. एयरपोर्ट के रास्ते में काफी ज्यादा जगहों पर सड़कों को ब्लॉक किया गया था. हर जगर कंटीले तारों से घेराबंदी की गई थी. यह साधारण दिनों से काफी ज्यादा था. इसके बाद मैं घर लौट आया. मेरे एक पड़ोसी ने मुझे रोका और ईद की मुबारकबाद दी. मैं तो भूल ही गया था कि आज ईद भी है. मेरी 9 साल की भतीजी और 3 तथा 5 साल के दो भतीजों के पास पहनने को नए कपड़े नहीं थे. हमने घर पर किसी तरह के पकवान भी नहीं बनाए थे. बच्चे एक बागीचे में जाकर दूसरे बच्चों के साथ खेलना चाहते थे लेकिन उन्हें नहीं जाने दिया गया.

5 अगस्त को कश्मीर में घेराबंदी की गई थी. कई दिन बीत चुके हैं लेकिन स्थिति में किसी तरह का बदलाव नहीं हुआ है. लोगों ने तो अब दिन गिनना भी छोड़ दिया है. कश्मीर में अब हर दिन एक जैसे ही दृश्य दिखते हैं. वही घेराबंदी. न तो इंटरनेट चालू है और न ही फोन कर परिजनों और रिश्तेदारों से बात कर सकते हैं. न तो गम के बारे में पता चल रहा है और न ही खुशी के बारे में.

रिफत फरीद/आरआर

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