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कैसे करें जर्मनी में पैसे खर्च

२ जून २०१२

गर्मियों का मौसम यानी पर्यटन का मौसम. स्कूल की छुट्टियां लगी नहीं कि नानी दादी का घर बच्चों की सबसे पसंदीदा जगह. हालांकि उच्च मध्यमवर्गीय भारतीय अब यूरोप घूमने भी निकल रहे हैं.

तस्वीर: Fotolia/Franz Pfluegl

पैसा दुनिया को आसान बना देता है, कम से कम जब बात घूमने की हो तो निश्चित ही. 2001 में जर्मनी ने यूरो लागू किया. इस मुद्रा को इस तरीके से बनाया गया कि सिक्के लेकर चलने वाले समाज को असुविधा नहीं हो. क्योंकि यहां के लोग आज भी कैश देना पसंद करते हैं और उनके पास भरपूर सिक्के जमा होते हैं. दो यूरो, एक यूरो, पचास सेंट, 20 सेंट, दस सेंट यहां तक कि एक और दो सेंट के सिक्के भी लोग रखना पसंद करते हैं. और ये काम भी आते हैं.

मुद्रा खरीदते समय महंगी नहीं पड़े इसके लिए सबसे अच्छा तरीका है कि किसी एटीएम से सीधे पैसे निकाले जाएं. इससे पहले अपने बैंक से पूछना नहीं भूलिएगा कि विदेश में बैंक कार्ड इस्तेमाल करने पर कितनी फीस लगेगी. जर्मनी की हर बैंक में चूंकि रुपये के बदले यूरो नहीं दिए जाते हैं इसलिए या तो एयरपोर्ट पर ही मुद्रा खरीद लें या फिर भारत से लेकर आएं.

छोटी दुकानों में क्रेडिट कार्ड नहींतस्वीर: picture alliance/KEYSTONE

जर्मनी में क्रेडिट कार्ड का फैशन नहीं है. अधिकतर जर्मन पर्स में पैसे लेकर चलते हैं या फिर डेबिट कार्ड से भुगतान करते हैं. बड़े स्टोर्स में या फिर होटल में क्रेडिट कार्ड लिए जाते हैं लेकिन छोटे रेस्तरां और दुकानों में ये नहीं चलते. कई तो डेबिट कार्ड भी नहीं लेते. इसलिए घूमते समय जरूरी है कि कैश साथ में रखा जाए.

जो भी कीमत रसीद पर लिखी जाती है उसमें टैक्स जुड़ा होता है इसलिए बड़ी दुकानों, कॉफी हाउस, रेस्तरां में मिलने वाले बिल पर जो कीमत लिखी है वही आपको चुकानी हैं. टैक्सी का बिल भी. भाव ताव होता है सब्जी मंडी में या फिर हाट बाजार में.

रोज का सामान खरीदने के लिए लोग अपनी थैलियां अक्सर साथ में लेकर जाते हैं. और अगर आप नहीं ले गए हैं तो सुपर मार्केट में प्लास्टिक, कागज या कपड़े की थैली के लिए आपको कम से 10 सेंट से एक यूरो तक पैसे चुकाने होते हैं. कई दुकानों में रखी कपड़े की थैली वापिस करने पर आपको दिए हुए पैसे वापिस मिल जाते हैं.

बीयर खरीदते समय या फिर जूस खरीदते समय हमेशा ध्यान रखें कि ग्लास या प्लास्टिक की बोतलों पर कुछ पैसे डिपॉजिट किए जाते हैं जो आठ सेंट से 25 सेंट के बीच होते हैं. जब आप ये बोतलें लौटाते हैं तो पैसे वापिस मिलते हैं. 25 सेंट की चार बोतलें एक यूरो और एक यूरो की रुपये में कीमत कम से कम 65 रुपये.

रविवार आराम

जर्मनी में अधिकतर दुकाने सुबह 9 या 10 बजे खुलती हैं. और शाम 6 या 8 बजे बंद हो जाती हैं. बड़े शहरों में कुछ दुकानें रात 10 बजे तक खुली रहती हैं. लेकिन पूरी रात दुकानें खुली रखने की अमेरिकी और ब्रिटिश परंपरा यहां नहीं है. शनिवार को जल्दी दुकानें बंद करने की यहां परंपरा है. कभी कभी तो 2 बजे ही दुकानें बंद हो जाती हैं.

छोटे शहरों की छोटी दुकानें अक्सर दोपहर 1 से 3 बजे तक लंच के लिए बंद रहती हैं. लेकिन बड़े शहरों की छोटी दुकानों में भी ऐसा हो सकता है.

रविवार को अधिकतर दुकानें बंद रहती हैं. लेकिन अगर कुछ कम पड़ जाए तो पेट्रोल स्टेशन पर अधिकतर जरूरत का सामान, ब्रेड दूध, अंडे जैसी चीजें मिल जाती हैं. कई बार महीने में एक बार, खासकर गर्मियों में एक रविवार को सभी दुकानें खुली रखी जाती हैं.

मेडिकल स्टोरतस्वीर: Bilderbox

अगर खूब केक खा के पेट खराब हो गया है, या ठंड के कारण सिरदर्द है तो दवाई खरीदी जा सकती है. दवाई की दुकान को यहां अपोथेके कहा जाता है. दवाइयां सिर्फ इसी दुकान में मिलेंगी. और कहीं, किसी मार्केट में आप दवाई नहीं खरीद सकते. किसी भी मार्केट में दवाई दुकानों की कमी नहीं है. लेकिन रविवार को यह खुली नहीं रहती. इसलिए दवाई अगर खरीदने की जरूरत पड़े तो सप्ताह में ही खरीदें. हालांकि रविवार को इलाके में एक दवाई की दुकान खुली होती है. और हर मेडिकल स्टोर पर लिखा होता है कि उस रविवार को कौन सी दुकान खुली हुई है. अक्सर बड़े ट्रेन स्टेशनों पर भी एक मेडिकल स्टोर खुला होता है.

अगर आप किसी ट्रेवल एजेंट ट्रिप में आ रहे हैं तो कोई बात नहीं लेकिन अगर अकेले आ रहे हैं और पैसे बचाना चाहते हैं तो बेस्ट है कि निकलने से पहले ही इंटरनेट सर्च कर लें. रहने के लिए सस्ते और अच्छे होटल ही नहीं, यूथ होस्टल और छोटे अपार्टमेंट भी ठीक ठाक कीमत में किराए पर मिल जाते हैं.

रिपोर्टः आभा मोंढे

संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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