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कश्मीर में 4G के दौर में 2G के सहारे हैं छात्र

स्तुति मिश्रा
५ अगस्त २०२०

ऐसे समय में जब भारत के कुछ राज्यों में इंटरनेट को बुनियादी हक बनाए जाने पर विचार चल रहा है, देश का एक इलाका पाबंदियों के कारण समय से पहले धकेल दिया गया है. कोरोना युग में किस हाल में हैं कश्मीर के छात्र?

कश्मीर में कर्फ्यूतस्वीर: Reuters/D. Ismail

एक साल पहले 5 अगस्त को कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली धारा 370 को हटाकर राज्य को यूनियन टेरिटरी में बांट दिया गया. इस ऐतिहासिक फैसले को लागू करने के साथ ही भारत सरकार ने कई कड़े फैसले लिए, जिनमें इंटरनेट और दूरसंचार के लगभग सभी माध्यमों को बंद करने का फैसला भी शामिल था. शुरुआती दौर में केबल और फोन नेटवर्क तक पर रोक थी. कुछ वक्त बाद सरकार ने मोबाइल नेटवर्क को बहाल किया, लेकिन इंटरनेट के लिए सिर्फ 2G की इजाजत मिली. आज भी कश्मीर में 4G नेटवर्क पर रोक है और घाटी में रहने वाले लोग 2G के सहारे रहते हुए एक साल का वक्त काट चुके हैं.

कोरोना महामारी के प्रकोप से देशभर में स्कूल, कॉलेज और ऑफिस बंद हैं और सभी संस्थान इंटरनेट के सहारे  काम कर रहे हैं. स्कूल-कॉलेज वेबिनार और ऑनलाइन क्लास संचालित कर रहे हैं. कोविड-19 के संक्रमण के बढ़ते खतरे के कारण लोगों का घर से बाहर निकलना मुश्किल है. जाहिर है देश के बाकी हिस्सों की तरह कश्मीर में भी कोरोना का कहर जारी है. जहां देश जल्द ही 20 लाख केस का आंकड़ा छूने जा रहा है वहीं कश्मीर में भी 20 हजार से ज्यादा केस हैं. लेकिन कोरोना के कहर के बीच कश्मीरियों के पास घर से पढ़ाई या काम का कोई विकल्प नहीं है.

बिना इंटरनेट कैसे हो ऑनलाइन पढ़ाई?

श्रीनगर के मशहूर सनबर्न स्कूल में पढ़ाने वाले बशारत हुसैन का कहना है कि सरकार ने ऑनलाइन क्लास लेने का ऑर्डर तो दे दिया, लेकिन जब उन्हें इंटरनेट ही ठीक से मुहैया नहीं तो वो क्लास कैसे लें. उनका कहना है, "ऑनलाइन क्लास में यहां बच्चों की कोई पढ़ाई मुमकिन नहीं, कभी हमारा नेटवर्क काम नहीं करता है, तो कभी बच्चों में से कोई नेटवर्क की खराबी की वजह से क्लास से जुड़ नहीं पाता. एक स्लाइड या वीडियो क्लास को दिखाने में भी बहुत परेशानी होती है. ऐसे में पढ़ाई एक मजाक ही बन गई है." कश्मीर में फिलहाल पढ़ाई का मतलब ऑनलाइन क्लास की जगह वीडियो या ऑडियो रिकॉर्ड कर भेजने तक सीमित हो गया है. बशारत हुसैन कहते हैं कि वो बच्चों को खराब इंटरनेट के जरिए ही पढ़ाने के लिए नए-नए उपाय सोचते रहते हैं. वो व्हाट्सएप पर अपनी आवाज रिकॉर्ड कर भेजते हैं लेकिन कई बार बच्चों के लिए उतना भी डाउनलोड कर पाना नामुमकिन होता है.

स्कूल के बदले खुले में पढ़ाईतस्वीर: AFP/T. Mustafa

ऐसी ही कुछ समस्या श्रीनगर में रहने वाले औरूस आरिफ की है जो एसपी कॉलेज से बीए सेकेंड ईयर की पढ़ाई कर रहे हैं. उनका कहना है कि 2G के साथ ऑनलाइन पढ़ाई कर पाना नामुमकिन है. औरूस आरिफ कहते हैं, "ज्यादातर छात्र बिना किसी स्टडी मैटीरियल के पढ़ाई कर रहे हैं. इसकी वजह सिर्फ इंटरनेट स्पीड नहीं, बल्कि लगातार लगता लॉकडाउन भी है." औरूस की चिंता ये भी है कि सितंबर में उनके इम्तहान हैं जिसके लिए पढ़ाई करना तो दूर उनके पास अभी लेक्चर सुन पाने का भी कोई साधन नहीं है. उन्हें चिंता है कि उनकी पढ़ाई और करियर पर काफी बुरा असर पड़ रहा है. श्रीनगर में पढ़ने वाले तनवीर का कहना है कि वहां के लोगों के लिए लॉकडाउन कोई नई बात नहीं, वहां ज्यादातर क़ॉलेज अकसर 4-5 महीने के लिए बंद कर दिए जाते हैं, लेकिन लोगों के पास घर से काम और पढ़ाई करने के लिए बुनियादी सुविधाएं भी ना होना उनकी सबसे बड़ी परेशानी है.

कश्मीरी छात्र पहले भी राजनीतिक अशांति, कर्फ्यू और प्रतिबंधों की मार झेलते रहे हैं, लेकिन कोरोना महामारी ने उन छात्रों पर भी असर डाला है, जिन्हें दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में अपने संस्थानों और विश्वविद्यालयों के बंद होने के बाद जम्मू-कश्मीर में अपने घरों को लौटना पड़ा था. वे भी बाकी छात्रों की तरह अब ना तो ऑनलाइन क्लास या वेबिनारों में भाग ले सकते हैं और ना ही घर से काम कर सकते हैं. एक नामी मीडिया संस्थान में काम कर रहे माजिद नाईक भी कई लोगों की तरह कोविड के बढ़ते मामलों के बीच अपने घर श्रीनगर वापस गए, लेकिन घर से काम कर पाना नामुमकिन था. इसी बीच उन्हें खबर मिली की कंपनी में छंटनी हो रही है और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया. 

कश्मीर में नई डोमिसाइल नीति से नाराजगी

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कोर्ट और सरकार के बीच फंसा मामला

कई विशेषज्ञों ने इंटरनेट पर रोक लगाने के केंद्र सरकार के फैसले को कश्मीरियों के मौलिक अधिकार का हनन बताया है. हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर में 4G इंटरनेट बहाल करने के लिए कई याचिका दायर हुई थी, लेकिन कोर्ट ने अब तक कोई फैसला नहीं सुनाया है. 11 मई को एक याचिका की सुनवाई में कोर्ट में एक कमिटी गठित करने की बात हुई थी जो हालात का जायजा लेगी. साथ ही कर्फ्यू हटाने और इंटरनेट की स्पीड तेज करने को लेकर समय समय पर मांग उठती रही है, लेकिन बैन को लगे एक साल हो गया है और ‘सालगिरह' पर भी कश्मीर में कर्फ्यू लगा है.

21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा दायर एक हलफनामे में केंद्र ने घाटी में आगे आने वाले कुछ समय में ढील ना देने की बात की थी. इसके पीछे पाकिस्तान द्वारा खड़ी की जा रही सुरक्षा चिंताओं और दुष्प्रचार को कारण बताया गया है. कुछ दिनों बाद अब तक 4G की बहाली का विरोध कर रही जम्मू और कश्मीर सरकार ने अब केंद्र सरकार से तेज स्पीड इंटरनेट वापस लाने की गुजारिश की है. लेफ्टिनेंट गवर्नर जीसी मुर्मू ने कहा है कि चाहे 2G हो या 4G हो, पाकिस्तानी प्रचार जारी रहेगा. स्थानीय सरकार के इस हृदय परिवर्तन को अभी लागू किया जाना बाकी है.

सुनसान सड़क पर मरीज के पास जाता एक पैरामेडिकतस्वीर: Reuters/D. Ismail

कई जिंदगियों पर पड़ा असर

कश्मीर की समस्याओं का अंत यहीं नहीं होता. स्कूलों में ऑनलाइन क्लास ना हो पाने के अलावा वहां की एक और बड़ी समस्या रोजगार के अवसरों की भी है. सनबर्न कश्मीर के सबसे नामी स्कूलों में से गिना जाता है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला समेत प्रांत को कई बड़े नाम पढ़ाई कर चुके हैं. लेकिन बशारत हुसैन का कहना है कि उस स्कूल में भी असंख्य ऐसी कहानियां हैं, जहां लोगों के पास बच्चों के लिए लैपटॉप या स्मार्ट फोन खरीदने के पैसे नहीं हैं पर उन्हें मजबूरी में खरीदना पड़ा है. बशारत हुसैन कहते हैं, "यहां लगातार कर्फ्यू लगे रहने से कई लोगों का व्यापार बिलकुल खत्म हो गया है. पर्यटन जो पहले थोड़ा बहुल होता था उसके बिलकुल रुक जाने से कई लोग प्रभावित हुए हैं, साथ ही इलाके में नौकरियां भी बेहद कम हैं." वैसे भी आम कश्मीरियों के घर में पैसों की थोड़ी बहुत किल्लत रही है, लेकिन ऐसे परिवार भी हैं जो बच्चों की के लिए लैपटॉप या स्मार्ट फोन खरीदने की हालत में नहीं हैं. बशारत हुसैन  कहते हैं कि वो नाम नहीं बता सकते लेकिन ऐसे बच्चे हैं जो अब तक इन चीजों को नहीं खरीद पाए हैं.

पढ़ाई के अलावा कश्मीर घाटी में कई ऐसी चीजें सिरदर्द बनी हुई हैं जो दूसरी जगहों पर राहत का काम कर रही हैं. कश्मीर के डॉक्टर अगर चाहें भी तो ऑनलाइन मरीजों को नहीं देख पाते. श्रीनगर के महाराजा हरि सिंह अस्पताल के एक सीनियर डॉक्टर की मानें तो वहां लगातार लोगों को घर से बाहर ना निकलने को तो कहा जा रहा है, साथ ही जो लोग कोरोना के शिकार नहीं हैं उनका अस्पताल आना भी ठीक नहीं, पर मुश्किल ये है कि खराब इंटरनेट के कारण कोई भी काम बाहर निकले बिना मुमकिन नहीं है. ये कोरोना की समस्या को और बढ़ा सकता है. डॉक्टरों की समस्या ये है कि अगर वे मरीजों को घर बैठे देखना चाहें तो फोन पर बात करना ही एकमात्र जरिया है. अगर मरीज को आमने-सामने देखना हो या हाई रेजोल्यूशन फोटो चाहिए तो इतनी खराब इंटरनेट स्पीड में ये हो पाना मुश्किल है.

कश्मीर में 5 अगस्त 2019 से लेकर अब तक पढ़ाई, स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर जो प्रभाव पड़ा उसका असर लोगों को आने वाले काफी वक्त तक दिखेगा. कई लोगों के व्यवसाय बंद हो चुके हैं और जिनके चल पा रहे हैं वो भी भारी घाटे में हैं. कश्मीर के लोग घाटी में सामान्य स्थिति की बहाली चाहते हैं. बशारत हुसैन का कहना है कि सरकार अपनी कोरोना नीति में कश्मीर और उसकी अलग परिस्थितियों के बारे में नहीं सोच रही. और उनकी उम्मीद है कि आने वाले समय में इस बात का ध्यान रखा जाएगा ताकि आम लोगों की समस्याएं कुछ कम हों.

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