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कैसे चलती है जैविक घड़ी

७ दिसम्बर २०१२

इंसानों और पेड़ पौधों में जैविक घड़ी होती है, जो उन्हें समय का आभास करा देती हैं. इसी वजह से रात में इंसान सुस्त हो जाता है और दिन में काम करता है. रिसर्चर इस बात का पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह काम कैसे करती है.

तस्वीर: MEDICA, COMPAMED

दक्षिण जर्मनी के म्यूनिख शहर में मशहूर माक्समिलियान यूनिवर्सिटी में इस घड़ी पर रिसर्च की जा रही है. फफूंद के नमूने जांचे जा रहे हैं. यह पता लगाने की कोशिश हो रही है कि वह कौन सी जीन होती है, जो जैविक घड़ी के बारे में आभास कराती है.

रिसर्च से जुड़े, क्रोनोबायोलॉजिस्ट टिल रोएनेबर्ग का कहना है, "फफूंद में जैविक घड़ी के लिए जिम्मेदार जीन मनुष्य या चूहों से अलग होते हैं. कुल मिला कर क्रमिक विकास के दौरान जैविक घड़ी में बहुत बदलाव हुए हैं, इसलिए पेड़ पौधों, जीवाणुओं, स्तनपायी जीवों और कीड़ों में अलग अलग जीन होते हैं जो उनकी जैविक घड़ी निर्धारित करते हैं."

मंथन की प्रस्तुतकर्ता ईशा भाटियातस्वीर: DW

इस बारे में डीडब्ल्यू के वीडियो साइंस मैगजीन मंथन में विस्तार से बताया गया है. यह कार्यक्रम भारत में दूरदर्शन नेशनल पर शनिवार सुबह 10:30 बजे देखा जा सकता है. लेकिन अगर मानव जैविक घड़ी के बारे में पता लगाना है तो फिर फफूंद पर रिसर्च क्यों की जा रही है.

विज्ञान इस बात को साबित कर चुका है कि इंसानों की तरह पेड़ पौधे भी रात और दिन पहचानते हैं. 20वीं सदी में इस मुद्दे पर गहन अध्ययन हो चुके हैं और उसके नतीजे आज भी कारगर साबित हो रहे हैं. विज्ञानियों का मानना है कि जब फफूंद के बारे में पता लगा लिया जाएगा, तो उससे दूसरे जानवरों की जीन संरचना भी पढ़ी जा सकेगी. हालांकि इस बारे में पूरी जानकारी के लिए कई रिसर्च और करने होंगे और इसमें लंबा वक्त लग सकता है.

आईबी/एजेए (डीडब्ल्यू)

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