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कैसे ढूंढते हैं पक्षी रास्ता

१७ फ़रवरी २०१६

मंथन के इस अंक में जानिए कि कैसे दृष्टिहीन भी एक खास सिस्टम की मदद से पक्षियों की तरह अपना रास्ता खोज सकेंगे. इसके अलावा कार्यक्रम में होगी एक खास जीवनशैली जिसमें दुग्ध उत्पादों से भी दूरी रखी जाती है.

तस्वीर: Fotolia/Valeriy Kirsanov

चमगादड़ जैसे पक्षियों के बारे में अक्सर लोग हैरान रहते हैं कि ये अंधेरे में कैसे रास्ता ढूंढ लेते हैं? इसी रहस्य को सुलझा चुके वैज्ञानिक अब इसी तकनीक की मदद से दृष्टिहीनों को भी रास्ता खोजना सिखा रहे हैं. असल में यह सोनार साउंड नेविगेशन की प्रक्रिया है. कुछ जानवरों का अपना सोनार होता है जिसकी मदद से वे आवाज करते हैं और उसकी प्रतिध्वनि से पता करते हैं कि वे कहां हैं और क्या अगल बगल में कोई बाधा है. इसकी मदद से वे अपने आस पास के माहौल के बारे में जानकारी लेते हैं. चमगादड़ और डॉल्फिन के सोनार गुणों के बारे में तो पता है. अब दृष्हीन लोगों के व्यवहार में भी इस गुण के इस्तेमाल का पता चला है.

वैज्ञानिक इस बात से काफी प्रभावित हैं कि कुछ लोग सोनार तकनीक की विधि का इस्तेमाल चलने फिरने के लिए कर सकते हैं. लेकिन उनकी दिलचस्पी यह जानने में भी है कि दिमाग में आखिर होता क्या है, दिमाग जानकारी पाने के लिए ध्वनि को किस तरह प्रोसेस करता है, दृष्हीन और देख सकने वालों के दिमाग में क्या अंतर होता है. इस बार मंथन में इस विषय पर विस्तृत जानकारी के साथ खास रिपोर्ट.

कैसे बचाएं जानवर

साथ ही जानिए कि जानवरों की हत्या और जंगलों के सिकुड़ने से निपटने के लिए क्या किया कर रहा है जॉर्जिया. जानवरों के लिए निवास की समस्या एक अहम मुद्दा है. जानवर का ठिकाना जंगल है. वहीं उसे रहने, खाने, सोने की जगह मिलती है. लेकिन जिस लिहाज से जंगल कट रहे हैं, जानवरों का खाना खत्म होता जा रहा है और उन्हें मजबूरन इंसानों की बस्तियों में घुसना पड़ रहा है. मंथन के इस अंक में जानिए कि जब जॉर्जिया में लोगों को यही बात समझाने की कोशिश की गयी, तो क्या हुआ.

सैर और खानपान

साथ ही कार्यक्रम में ले चलेंगे आपको जर्मनी के खूबसूरत शहर ब्रांडेनबुर्ग. कभी बंटे रहे बर्लिन को देखने आजकल दुनिया भर से लोग आते हैं. और जिनके पास कुछ ज्यादा समय होता है वे आस पास के इलाकों को भी देखते हैं. एक आकर्षण है हावेल नदी पर बसा ब्रांडेनबुर्ग शहर.

और अंत में एक खास रेस्तरां के किचन में होगा आपका स्वागत. शेफ खुद बताएंगे कि वे वीगन खाना कैसे बनाते हैं. कोई आपसे कहे कि शाकाहारी हो जाएं, तो आप क्या क्या खाना छोड़ेंगे? मांस, मच्छी, अंडा. लेकिन क्या आप दूध भी पीना छोड़ देंगे? वीगन लोग ऐसा ही करते हैं. उनका मानना है कि दूध, दही, पनीर, सब जानवरों से ही तो मिलता है, तो उन्हें भी क्यों खाया जाए. वीगन लोग सोयाबीन का इस्तेमाल बहुत करते हैं. दूध की जगह सोयामिल्क, पनीर की जगह टोफू. कटलेट, सॉसेज, सब सोया और सब्जियों से बना लिया जाता है. इन सब बातों पर विस्तार से जानकारी होगी एक खास रिपोर्ट में.

तो देखना ना भूलें, मंथन हर शनिवार सुबह 11 बजे डीडी नेशनल पर.

एसएफ/आईबी

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