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कैसे बचें बुढ़ापे की बीमारियों से

२१ दिसम्बर २०१२

मौत से पहले जिंदगी की आखिरी सीढ़ी बुढ़ापा है, यहां तक पहुंचते पहुंचते शरीर और दिमाग जवाब देने लगता है. दरअसल एक खास प्रक्रिया है जिसके तहत शरीर धीरे धीरे विघटित होने लगता है. मंथन के इस बार बुढ़ापे पर खास रिपोर्ट है.

तस्वीर: DW/Wolfgang Dick

बुढा़पे में शरीर थकने लगता है. दिमाग भ्रम का शिकार होने लगता है. दिमाग अगर बीमार हो जाए तो वह सही ढंग से शरीर को निर्देश नहीं दे पाता. इसका असर कई बुजुर्गों के रोजमर्रा जीवन पर देखा जा सकता है. चलने फिरने का लंबा अनुभव रखने वाले बुजुर्ग लाठी का सहारा लेने लगते हैं. वह जानते हैं कि कदम कैसे रखना है, लेकिन दिमाग भ्रम पैदा करता है और पैर सही तालमेल नहीं बैठा पाते हैं. यही वजह है कि अक्सर बुढ़ापे में लोगों के गिरने का डर बना रहता है. उनके कदम डमगमाने लगते हैं. मंथन के ताजा अंक में बुढ़ापे की बीमारियों और इलाज के बारे में विस्तार से जानकारी है. इटली के रिसर्चर इन बीमारियों पर रिसर्च कर रहे हैं और इनसे निजात पाने के तरीके ढूंढ रहे हैं. इस पर खास चर्चा भी की गई है.

अन्य रिपोर्टों में भी कई दिलचस्प जानकारियां हैं. मसलन एक जमाना था कि जब कैमरे नहीं थे. तब कलाकार लोगों की तस्वीरें बनाते थे. पर यह सौभाग्य सिर्फ कुछ लोगों को ही मिलता था, खास कर धनी वर्ग के लोगों को. विज्ञान अब ऐसी जगह पहुंच रहा है, जहां शरीर के बचे हुए हिस्सों की मदद से लोगों की तस्वीर तैयार की जा सके, वह भी हूबहू.

तस्वीर: DW

भारत में 1960 के दशक में एक इंजीनियर ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को कृष्णा और गोदावरी नदी को जोड़ने की योजना बनाने का प्रस्ताव दिया. करीब चार दशक बाद अटल बिहारी वाजपेयी ने नदियों की जोड़ने की योजना तैयार की. लेकिन योजना अब भी लटकी हुई है और बारिश का पानी बेकार जा रहा है. अगर इन्हें जमा किया जाए तो पता नहीं कितनी मुश्किलों का हल हो सकता है. अफ्रीकी देश लेसोथो इस मामले में मिसाल बन कर सामने आ रहा है. यहां बारिश का पानी जमा करके झील भी बनाई गई है और इससे बिजली भी तैयार हो सकती है.

भारत में दिल्ली सरकार ने बस रैपिड ट्रांजिट यानी बीआरटी की शुरुआत की. यह प्रयोग ज्यादा सफल नहीं हुआ. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में यह खासा कामयाब है. क्यों, एक रिपोर्ट के जरिए बारीक कदमों का जिक्र किया गया है. जोहानिसबर्ग के आस पास टैक्सी ड्राइवर अपनी टैक्सियां छोड़ कर बसों की तरफ ध्यान दे रहे हैं. निश्चित तौर पर पर्यावरण की सुरक्षा का ख्याल उनके मन में है लेकिन साथ ही नया काम उनके लिए आसान भी होता है और मुसाफिरों के लिए किफायती भी.

तेजी से बढ़ते शहरों में हर जगह रेल सेवा मुहैया कराना आसान नहीं. यह खर्चीला है और इसमें काफी वक्त भी लगता है. बस शहरी परिवहन के लिए एक अच्छा विकल्प है, लेकिन इसमें बहुत ज्यादा लोग सवारी नहीं कर सकते है. इस धारणा को बदलने की अब कोशिश हो रही है. जर्मनी में दुनिया की सबसे लंबी बस का ट्रायल हो रहा है. 20 मीटर लंबी बस एक साथ 300 मुसाफिरों को ले जा सकती है. शनिवार सुबह साढ़े दस बजे दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल डीडी नेशनल पर प्रसारित होने वाले मंथन में इस पर खास रिपोर्ट है.

आईबी/ओएसजे

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