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कैसे होता है परमाणु रिसाव?

१३ मार्च २०११

भूकंप और सूनामी के बाद अब जापान में परमाणु संकट का खतरा मंडरा रहा है. भूकंप का असर टोक्यो के फुकुशिमा डाइची परमाणु बिजली घर पर पड़ा है जहां से नाभिकीय रिसाव होने की आशंका पैदा हो गई है. क्या है ये नाभिकीय रिसाव.

तस्वीर: AP

जापान का फुकुशिमा डाइची परमाणु बिजली घर कूलेंट वाटर रिएक्टर सिस्टम वाले परमाणु संयंत्र से बिजली पैदा करता है. रिएक्टर के अंदर मौजूद परमाणु इंधन की छड़े नाभिकीय विखंडन के जरिए गर्मी पैदा करते हैं. इस तरह रिएक्टर में मौजूद पानी गर्म होता है जिसे टरबाइन से गुजार कर बिजली पैदा की जाती है. ठंडा होने के बाद यही पानी दोबारा रिएक्टर में जाता है और गर्म होकर वापस टरबाइन तक आता है.

रिएक्टर ठंडा करने के लिए बिजली जरुरी

इस तरह के रिएक्टर का अंदरूनी हिस्सा लंबी नलियों का बना होता है जिनके अंदर परमाणु इंधन की छड़ें लगी होती हैं. इन छड़ों में यूरेनियम होती है और जब इसे रेडियोधर्मी तरीके से तोड़ा जाता है तो भारी मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है. यही ऊर्जा नलियों में मौजूद पानी का तापमान बढ़ा देती है. इसके साथ ही ऊर्जा से भरे न्यूट्रॉन भी पैदा होते हैं जो अगल बगल की दूसरी छड़ों में प्रतिक्रियाओं की कतार शुरू कर देते हैं.

जापान का फुकुशिमा डाइची परमाणु बिजली घरतस्वीर: AP

इस प्रतिक्रिया को रोकने या नियंत्रित करने के लिए ईंधन की छड़ों के बीच नियंत्रक छड़ें डाली जाती हैं. प्रतिक्रिया रोकने के लिए लगाई गईं न्यूट्रॉन को अवशोषित कर लेती हैं. जब परमाणु बिजली घर को बंद करना होता है तो उसके लिए इन नियंत्रक छड़ों को रिएक्टर में डाला जाता है. इस तरह परमाणु विखण्डन होना पूरी तरह बंद हो जाता है और रिएक्टर ठंडा हो जाता है. हालांकि इसके पूरी तरह से ठंडे होने में काफी समय लगता है. इसके लिए बिजली से चलने वाले पंप का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी मदद से पानी के प्रवाह को रोक दिया जाता है. इस तरह से रिएक्टर ठंडा हो जाता है.

चेर्नोबिल जैसा हादसा

लेकिन अगर इस दौरान बिजली कट जाए तो इसे संभालना मुश्किल हो जाता है. ऐसी हालत में रिएक्टर के भीतर तापामान और दबाव दोनों बढ़ते रहते हैं. इस प्रक्रिया को रोका नहीं गया तो गर्मी और दबाव के कारण रिएक्टर के आवरण को नुकसान पहुंचता है. ये आवरण भी नियंत्रक छड़ों की तरह ही काम करते हैं. ऐसी स्थिति में यूरेनियम और उससे निकली दूसरी चीजें जैसे सेजियम नियंत्रक छड़ों तक पहुंच जाते हैं और रिएक्टर की सतह पर जाकर बैठ जाते हैं. एक बार अगर ऐसा हो गया तो वहां अनियंत्रित परमाणु विस्फोट शुरु हो जाते हैं और ये तापमान और दबाव को और ज्यादा बढ़ा देते हैं. इसका नतीजा ये हो सकता है कि अंत में पूरा रिएक्टर ही विस्फोट का शिकार हो जाए जैसा कि 25 साल पहले चेर्नोबिल में हुआ था. वैज्ञानिकों के मुताबिक सबसे बड़ा परमाणु हादसा इसी रूप में सामने आएगा क्योंकि धमाके के कारण सारे रेडियोधर्मी तत्व वातावरण में मिल जाएंगे.

25 साल पहमे चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र में हुआ था धमाकातस्वीर: picture-alliance/dpa

फुकुशिमा में रक्षा तंत्र ने भूकंप के बाद गई बिजली के कारण काम करना बंद कर दिया. बिजली के ना होने पर जेनरेटर की मदद ली गई लेकिन वो भी ठीक तरह से नहीं चल सके. इसके बाद रिएक्टर को ठंडा करने के लिए बिजली की बैटरी का सहारा लिया गया लेकिन बैटरी थोड़ी देर के लिए ही काम आ सकी. रिएक्टर में पानी का तापमान बढ़ता जा रहा है और उसके भाप में बदलने के कारण रिएक्टर में दबाव भी बढ़ रहा है. यही वजह है कि यहां विस्फोट हुआ. इस विस्फोट की वजह से आशंका जताई जा रही है कि नाभिकीय विकिरण होगा जिसे रोकना मुश्किल होगा.

रिपोर्टः जिबिले गॉल्टे/ईशा भाटिया

संपादनः एन रंजन

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