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कैसे होती है इंटरनेट पर आपकी जासूसी

१४ जून २०१३

भारत में बैठे आप कब, कहां, क्या लिख रहे हैं, किससे फोन पर क्या बात कर रहे हैं, अमेरिका में बैठे अधिकारी सब देख-सुन रहे हैं. कभी सोचा है कि कैसे हो रहा है यह सब? क्या आपकी कंप्यूटर स्क्रीन उनके कंप्यूटर पर भी खुली है?

तस्वीर: Fotolia/Pedro Nunes

अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के बड़ी इंटरनेट कंपनियों के जरिए जासूसी करने के मामले ने दुनिया भर में हलचल मचा दी है. भारत में भी नागरिक इस बात से चिंतित हैं कि ना सिर्फ अमेरिकी नागरिकों पर बल्कि भारत में रहने वाले लोगों के हर पल की खबर भी अमेरिका के हाथों में है. कैसे हो सकता है यह सब, क्या यह किसी डाक की तरह है जिसे शक होने पर अधिकारी कभी भी हाथ से खोल सकते हैं? जी नहीं, उससे भी ज्यादा.

(आपका फोन कोई और तो नहीं सुन रहा)

कैसे होती है इंटरनेट जासूसी

भारत में सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसाइटी के कार्यकारी निदेशक सुनील अब्राहम ने डॉयचे वेले को बताया कि फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी बड़ी कंपनियों के पास आपकी अलग अलग जानकारी होती है. समूची जानकारी को कंपनी का हर सदस्य नहीं देख सकता है. उनके पास आपकी नियमित जानकारी ही है. वे आपके मेसेज नहीं खोल सकते हैं. लेकिन जब खुफिया एजेंसी के पास आपके कंप्यूटर पर चल रहे माइक्रोसॉफ्ट प्रोसेसर से लेकर आपके गूगल, फेसबुक और दूसरे अहम अकाउंट की जानकारी होती है तो उनके पास सब कुछ होता है. वे जब चाहें आपके कंप्यूटर से खुद अपने कंप्यूटर को जोड़ कर आपकी हर हरकत का पता कर सकते हैं.

हालांकि अमेरिकी कांग्रेस द्वारा पारित कानून के अनुसार केवल जिस व्यक्ति पर शक है, उसके अकाउंट से जुड़ी जानकारी के लिए खुफिया एजेंसी को पहले अदालत से अनुमति लेनी होती है जिसके आधार पर उन्हें इंटरनेट कंपनियां सर्वर तक की पहुंच देती हैं. लेकिन अब्राहम ने बताया कि एजेंसी ने ऐसा करने के बजाए कंपनियों के साथ मिलकर एक पीछे का रास्ता निकाला है जिसके तहत उनके पास सभी के अकाउंट का ब्योरा आ गया.

भारतीयों पर भी जासूसी

अब्राहम ने बताया कि भारत में इस्तेमाल हो रहे सभी बड़े सॉफ्टवेयर और फेसबुक और गूगल जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटें अमेरिका में रजिस्टर्ड हैं. यानि यहां जो कुछ भी हो रहा है वह सब अमेरिकी सर्वर से हो कर गुजर रहा है. ऐसे में उनके लिए भारत में बैठे किसी व्यक्ति के अकाउंट को खोलना और पढ़ना जरा भी मुश्किल नहीं है. जबकि भारत अमेरिकी नागरिकों के साथ ऐसा नहीं कर सकता है. इस तरह कोई भी भारतीय अकाउंट अमेरिका की नजर से छुपा नहीं है.

सुनील अब्राहम और उनके जैसे दूसरे एक्टिविस्ट आईक्लाउड और एयर एंड्रॉयड जैसे तंत्रों के इस्तेमाल के प्रति भी लोगों को सचेत करते आए हैं.तस्वीर: privat

भारत सरकार के लिए जरूरी यह भी है कि उसके बड़े अधिकारियों, सैन्य अधिकारियों और सरकारी विभागों की जानकारी के साथ ऐसा कुछ ना हो सके. भारत के विदेश मंत्रालय ने इस मामले पर आपत्ति जताते हुए अमेरिका को ऐसा करने से रोकने का दावा किया है. यह अमेरिका के हाथों भारतीयों की निजता का हनन है. अब्राहम कहते हैं कि इस बारे में दोनों सरकारों के बीच बातचीत के बाद ही नतीजे सामने आएंगे. हालांकि भारत सरकार ऐसा पूरी तरह रोक पाएगी इस पर संदेह ही है.

(किसने खोला राज)

सभी देश कर रहे हैं जासूसी

सुनील अब्राहम ने बताया कि थोड़ी बहुत इंटरनेट जासूसी सभी देशों की सरकार करती है. यह देश की सुरक्षा के लिए अहम भी है. लेकिन यह कम से कम स्तर तक ही होनी चाहिए. उनका मानना है कि वर्तमान हालात के दौरान हर देश ज्यादा से ज्यादा जानकारी का भूखा होता जा रहा है. ऐसे में निजता का क्या अर्थ है वह भी मिटता जा रहा है. लेकिन ऐसे में भी अमेरिका का भारतीयों पर जासूसी करना सही नहीं है.

इसके लिए जरूरी यह है कि भारत सरकार अपने नागरिकों को इंटरनेट पर अपनी निजता बनाए रखने के तरीकों से अवगत कराए. लेकिन यह इसलिए संभव नहीं हो सकता है, क्योंकि फिर लोगों के बारे में जरूरत पड़ने पर खुद भारत सरकार जासूसी नहीं कर पाएगी.

अब्राहम ने बताया कि ऐसी स्थिति में आईक्लाउड और एयर एंड्रॉयड जैसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल भी सुरक्षित नहीं है. वह और उनके जैसे दूसरे इंटरनेट एक्सपर्ट और कार्यकर्ता लोगों से अपील करते आए हैं कि वे इन सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अपनी निजी जानकारी को संचित करने के लिए ना करें.

सुनील अब्राहम ने कहा कि यह तो बस शुरुआत है. ऐसा नहीं है कि ये मामले यहीं थम जाएंगे. आगे आने वाले समय में हम इस तरह की जासूसी और जानकारी लीक हो जाने की और बातें सुनें तो हैरान नहीं होना चाहिए. हमारे पास अभी तक ऐसा सिस्टम नहीं है जो निजता को पूरी तरह सुरक्षित रखने के लिए आश्वस्त कर सके.

रिपोर्ट: समरा फातिमा

संपादन: महेश झा

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