जहां किसान दो-चार लाख का कर्ज न चुका पाने पर बैंकों की वसूली प्रक्रिया से डर कर मौत को गले लगा लेता है, वहीं हजारों करोड़ लूटकर चंपत हो जाने वाला विदेशों में बैठकर खुद को शान से दिवालिया घोषित कराने में जुट जाता है.
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बैंक धोखाधड़ी के नित नए और हैरतअंगेज मामले सामने आने से अगर किसी का भरोसा टूट रहा है, तो उस आम भारतीय का जिसका भरोसा खुद से ज्यादा अपने बैंक पर रहा है. यह बात अलग है कि सरकार ने नीरव मोदी की धोखाधड़ी के सामने आते ही एक कानून का हथियार तैयार कर लिया है, लेकिन उससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या भारत में घोटालेबाजों की संपत्तियों को जब्त करने के बाद डूबा पैसा लौट पाएगा?
नीरव मोदी के मामले ने बैंकिंग सिस्टम की चूलें हिला कर रख दी हैं. यकीनन यह सवाल भी उठेंगे कि क्या एक मामूली सा डिप्टी मैनेजर रैंक का अधिकारी इतना बड़ा धोखा कर सकता है? शायद सभी कहेंगे, नहीं क्योंकि तमाम बैंकिंग सिस्टम यहां तक कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के होने के बावजूद सबसे अहम उस रिजर्व बैंक की निगरानी है जो कि सरकार की तरफ से सभी बैंकों पर न केवल कड़ी निगरानी और नियंत्रण रखता है, बल्कि गलत गतिविधियों को जांचने, रोकने और पकड़ने के लिए भी जवाबदेह है. फिर भी यह सब हो जाए, यकीनन व्यवस्थाओं की बड़ी चूक है जिसने भारत के पूरे बैंकिंग सिस्टम की साख और तौर-तरीकों पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है.
पीएनबी घोटाला: क्या, कैसे और कब हुआ?
भारत में पीएनबी घोटाले से देश का पूरा वित्तीय सेक्टर सन्न है. मुंबई में बैंक की सिर्फ एक शाखा से 1.77 अरब डॉलर का घपला हो गया. लेकिन कैसे?
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क्या हुआ?
29 जनवरी को पीएनबी के अधिकारी ने सीबीआई के सामने तीन कंपनियों और चार लोगों के खिलाफ एक आपराधिक केस दर्ज कराया है. इनमें अरबपति ज्वेलर नीरव मोदी और मेहुल चौक्सी के नाम शामिल हैं जिन पर 2.8 अरब रुपये की धोखाधड़ी का आरोप है.
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मिलीभगत
बैंक का कहना है कि शाखा के दो जूनियर कर्मचारियों ने इन लोगों की मदद की और क्रेडिट लिमिट सेंक्शन और मेंटिनेंस मार्जिन के बिना ही उन्हें लेटर ऑफ अंडरटेकिंग (एलओयू) जारी कर दिया. यह लेटर भारतीय बैंकों की विदेशी शाखाओं से शॉर्ट टर्म लोन लेने में काम आते हैं.
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मेंटिनेंस मार्जिन?
मेंटिनेंस मार्जिन वह राशि होती है जिसका इंतजाम कर्ज लेने वाले को खुद करना है. अगर 100 रुपया लोन है और बैंक 85 रुपया फाइनेंस कर रहा है, तो 15 रुपये का इतंजाम कर्ज लेने वाले को खुद करना है. क्रेडिट लिमिट राशि की वह सीमा है जितना अधिकतम लोन दिया जा सकता है. इसे बैंक बाद में घटा भी सकता है.
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जांच शुरू
पीएनबी की शिकायत के आधार पर सीबीआई ने 31 जनवरी को आरोपी कंपनियों और लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया. पीएनबी के मुताबिक उसके यहां भी विस्तृत जांच चल रही है. 14 फरवरी को पीएनबी ने कहा कि मुंबई में उसकी एक शाखा में कुल 1.77 अरब डॉलर का घपला हुआ है.
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कैसे पता चला?
पीएनबी का कहना है कि 16 जनवरी को आरोपी कंपनियों ने मुंबई की शाखा में इम्पोर्ट डॉक्यूमेंट का एक सेट भेजा और विदेशी सप्लायरों को लोन के तहत भुगतान करने का आग्रह किया. चूंकि पहले से कोई क्रेडिट लिमिट तय नहीं थी तो अधिकारियों ने पूरा ब्यौरा मांगा ताकि लोन के लिए एलओयू जारी किया जा सके.
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पहले नहीं पड़ी जरूरत
इस पर कंपनियों ने कहा कि पहले भी वह इस सुविधा का इस्तेमाल करती रही हैं और कभी मेंटिनेंस मार्जिन की जरूरत नहीं पड़ी. फिर पीएनबी ने अपने रिकॉर्ड खंगाले तो पता चला कि बैंक के दो जूनियर कर्मचारियों ने बैंक के सिस्टम में ब्यौरा दर्ज किए बिना एलओयू जारी कर दिए.
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चार साल तक घपला
पीएनबी का कहना है कि यह घपला चार साल तक चलता रहा और लेन देन होता रहा. बैंकिंग सूत्रों का कहना है कि कुछ बैंकों में अंतरराष्ट्रीय लेन देन के लिए इस्तेमाल होने वाला स्विफ्ट सिस्टम और कोर बैंकिंग सिस्टम एक दूसरे से स्वतंत्र काम करते हैं.
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इसलिए नहीं पता चला
पीएनबी के मामले में, बैंक में इस्तेमाल होने वाले फिनाकल सॉफ्टवेयर पर चलने वाले कोर बैंकिंग सिस्टम पर एलओयू उपलब्ध नहीं थे और इसीलिए उनका पता नहीं चल पाया. फिनाकल सॉफ्टवेयर को इंफोसिस ने तैयार किया है.
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कौन कौन हैं शामिल
पीएनबी ने इस घपले के लिए तीन कंपनियों पर आरोप लगाया है जिनमें सोलर एक्पोर्ट्स, स्टेलर डायमंड्स और डायमंड आर यूएस शामिल हैं. ये कंपनियां कारोबारी नीरव मोदी से संबंधित हैं जिनके न्यूयॉर्क और हांगकांग में बड़े ज्वेलरी स्टोर हैं. फोर्ब्स के मुताबिक मोदी 1.73 अरब डॉलर के मालिक हैं.
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अन्य बैंक भी शामिल
पीएनबी का कहना है कि मोदी की कंपनियों ने बैंक के कर्मचारियों की मिलीभगत से यह घपला किया. इसमें कुछ अन्य बैंकों की विदेशी शाखाओं के कर्मचारी भी शामिल बताए जा रहे हैं. मोदी के रिश्तेदार मेहुल चौक्सी की कंपनियां गीतांजलि जेम्स, गिली इंडिया और नक्षत्र भी आरोपों में घिरी हैं.
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"बेबुनियाद आरोप"
गीतांजलि का कहना है कि चौक्सी का इस घपले से कोई लेना देना नहीं है. कंपनी के मुताबिक चौक्सी अपना नाम सीबीआई केस से हटाने के लिए हर मुमकिन कानूनी कदम उठाएंगे. वहीं नीरव मोदी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है. उनकी मुख्य कंपनी फायरस्टार डायमंड ने आरोपों को खारिज किया है.
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कार्रवाई
घपला सुर्खियों में आने के बाद नीरव मोदी के घर और दफ्तरों पर छापे मारे गए हैं. बैंक की शाखा में तलाशी की गई है. पीएनबी ने अपने दो कर्मचारियों के खिलाफ भी आपराधिक मामला दर्ज कराया है. वित्त मंत्रालय ने सभी बैंकों से चौकसी बरतने को कहा है.
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सबसे बड़ा बैंक घपला
भारत के बैंकिंग सेक्टर का यह सबसे बड़ा घपला ऐसे समय में सामने आया है जब बैंकों और खासकर सरकारी बैंकों की तरफ से लोन के तौर पर दी गई 9,500 अरब रुपये की रकम वापस नहीं आ पा रही है. इससे बैंक नए कर्जे देने से बचते हैं और रिकवरी सिस्टम चरमरा रहा है.
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राहत पैकेज
सख्त वित्तीय परिस्थितियों के बावजूद सरकार ने हाल में बैकों की खस्ता हालत को ध्यान में रखते हुए उन्हें 900 अरब रुपये की मदद दी है. यह बैकों के लिए तैयार 2,000 अरब रुपये के राहत पैकेज का हिस्सा है. अंतरराष्ट्रीय बैंकिंग नियमों के तहत अगले साल तक भारतीय बैंकों को अपनी पूंजी का हिस्सा बढ़ाना होगा.
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सबको पता है कि वित्तीय लेन-देन की कार्यप्रणाली विश्वास और भरोसे की होती है. भरोसा न टूटने के लिए निचले पायदान से ही शुरुआत की जरूरत होती है. लेकिन बैंकिंग धोखाधड़ी के इस बड़े खेल में ऐसा नहीं हुआ. यही कारण है कि सालों साल तक मामला ऊपर तक नहीं पहुंचा या यूं कहें कि पहुंचने नहीं दिया गया क्योंकि ट्रांजेक्शन रिस्क पर एक से अधिक बैंक के लोगों ने इंटरनल कंट्रोल की विफलता का फायदा उठाया.
चौंकाने वाली सच्चाई यह भी है कि अगस्त 2016 के बाद तीन मौकों पर बैंकों को स्विफ्ट प्रणाली के दुरुपयोग के लिए सतर्क किया गया था लेकिन बावजूद इसके, विभिन्न बैंकों ने चेतावनियों को अपने 'हिसाब' से लिया. शायद इसी 'हिसाब' में जोखिम था जिसका नतीजा नीरव मोदी और कुछ अन्य ने कर दिखाया. यह बात अलग है कि अब रिजर्व बैंक अपनी सफाई में कुछ भी कहे या चेतावनियों का हवाला दे लेकिन सांप तो निकल गया लकीर पीटने से क्या फायदा! रिजर्व बैंक की विज्ञप्तियों को देखें तो यही लगता है.
16 फरवरी की विज्ञप्ति में आरबीआई कहता है, "पीएनबी में जो धोखाधड़ी का मामला सामने आया है वह आंतरिक नियंत्रण प्रणाली की असफलता और उसके एक अथवा अधिक कर्मचारियों के दोषपूर्ण व्यवहार की वजह से उपजे संचालन जोखिम का मामला है." वहीं 20 फरवरी की विज्ञप्ति में रिजर्व बैंक ने कहा कि उसने स्विफ्ट प्रणाली के संभावित दुरुपयोग को लेकर अगस्त 2016 के बाद बैंकों को तीन बार सतर्क किया था.
गौरतलब है कि बैंकों में होने वाला कोई भी सामान्य लेनदेन सीबीएस सॉफ्टवेयर के जरिए होता है लेकिन इसी बीच इलाहाबाद बैंक की मुख्य कार्यकारी अधिकारी ऊषा अनंत सुब्रह्मण्यम ने कहा, "उनके बैंक में स्विफ्ट और सीबीएस प्रणाली आपस में नहीं जुड़ी हैं, बैंक ने अपनी सभी शाखाओं को इस संबंध में सतर्कता बरतने का ज्ञापन भेजा है."
ये डूबे तो फिर आ सकती है मंदी
फाइनेंशियल स्टैबिलिटी बोर्ड (एफएसबी) ने दुनिया के सबसे बड़े और जोखिम भरे बैंकों की लिस्ट जारी की है. इन बैंकों ने हिचकोले खाए तो 2008 की मंदी जैसा हाल हो सकता है.
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जेपी मॉर्गन
एफएसबी के मुताबिक अमेरिकी इनवेस्टमेंट बैंक जेपी मॉर्गन सबसे अहम तो है ही, लेकिन सबसे जोखिम भरा बैंक भी है. एफएसबी के मुताबिक जेपी मॉर्गन बैंक को अगर झटके लगे तो वैश्विक अर्थव्यवस्था थर्राने लगेगी.
तस्वीर: Getty Images/E.Dunand
सिटी ग्रुप
लिस्ट में अमेरिकी बैंक सिटी ग्रुप को दूसरे नबंर पर रखा गया है. बैंक दो फीसदी कैपिटल प्रीमियम रखता है. बड़ा कर्ज डूबने की स्थिति में यह प्रीमियम बैंक को बचाने में नाकाम साबित हो सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
डॉयचे बैंक
डॉयचे बैंक, बैंक ऑफ अमेरिका, एचएसबीसी भी सूची में शामिल हैं. मुनाफा बढ़ाने के लिए ये बैंक बेहद जोखिम भरे इलाकों में निवेश करते हैं. एफएसबी के मुताबिक इस निवेश में कहीं भी गड़बड़ी आने पर पूरी चेन प्रभावित होगी.
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बीएनपी पारीबा
फ्रांस के बीएनपी पारीबा बैंक की रैंकिंग में भी गिरावट आई है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के ठीक होने के बाद अब बड़े बैंक फिर से ज्यादा लचीले होने लगे हैं. एफबीएस इसी को लेकर आगाह कर रहा है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
आईसीबीसी
इसके तहत चीन के तीन बैंक आते हैं, बैंक ऑफ चाइना, चाइना कंस्ट्रक्शन बैंक और आईसीबीसी. अथाह पूंजी वाले ये बैंक दुनिया भर में भारी निवेश कर रहा है. हाल के समय में आईसीबीसी अंतरराष्ट्रीय फाइनेंशियल सिस्टम में भी निवेश कर रहा है.
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कहने की जरूरत नहीं है कि सिस्टम में कितनी बड़ी खामी थी जो सबको पता थी, ऐसे में इतना बड़ा धोखा असंभव कैसे था? बैंकों की शीर्ष संस्था भारतीय बैंक संघ (आईबीए) कहती है कि रिजर्व बैंक ने सभी बैंकों को 30 अप्रैल तक अपनी स्विफ्ट प्रणाली को बैंक के कोर बैंकिंग सल्यूशंस (सीबीएस) से जोड़ने को कहा है. सवाल यह भी है कि क्या यह काम पहले नहीं हो सकता था? जब सिस्टम में कमी सबको पता थी तो उसके लिए सतर्कता भी उतनी ही जरूरी थी. निश्चित रूप से सामूहिक उत्तरदायित्व का मामला है और सवाल यह उठता है कि इसे क्यों पूरा नहीं किया गया और इसका दोषी कौन होगा?
अपने बचाव में रिजर्व बैंक या प्रभावित दूसरे बैंक चाहे जो कहें लेकिन यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी विडंबना ही कही जाएगी क्योंकि जहां भारत को दुनिया में तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था बताने का दंभ भरा जाता है, वहीं अकेला व्यक्ति भारतीय बैंकों के हजारों करोड़ रुपये लूट लेता है.
निश्चित रूप से बात बड़ी हैरान करने वाली है क्योंकि जिस देश में एक अदना सा किसान दो-चार लाख रुपये का कर्ज न चुका पाने में विफल होकर बैंकों की वसूली प्रक्रिया से डर कर मौत को गले लगा लेता है, वहीं हजारों करोड़ लूटकर चंपत हो जाने वाला विदेशों में बैठकर खुद को शान से दिवालिया घोषित कराने में जुट जाता है. इससे भी आगे भारत आना तो दूर, उल्टा बदनाम करने की कोशिशों के नाम पर धंधे पर चोट बताकर खुलेआम विदेश में बैठ पैसा न लौटाने की धमकी तक देता है. निश्चित रूप से यह आमजनों के बीच बैंक की साख और उससे भी ज्यादा उभरती अर्थव्यवस्था पर करारा प्रहार है. भविष्य में यह न हो, इसके लिए बेहद कड़े और उससे भी ज्यादा प्रभावी प्रबंधन की फौरन जरूरत है.
ऋतुपर्ण दवे (आईएएनएस)
कहां दी जाती है सबसे ज्यादा रिश्वत
वर्ल्ड बैंक एंटरप्राइज के सर्वेक्षणों के मुताबिक दुनिया को रिश्वत के हिसाब से इस तरह विभाजित किया जा सकता है. ये आंकड़े बता रहे हैं कि किस इलाके में टैक्स अधिकारियों को कितनी कंपनियों को रिश्वत देनी पड़ती है.
तस्वीर: nootropa - Fotolia.com
सबसे भ्रष्ट
पूर्वी एशिया और पैसिफिक, जहां 29.8 फीसदी कंपनियों को रिश्वत देनी पड़ी.
तस्वीर: picture alliance/CTK
दो नंबरी
दक्षिण एशिया इस मामले में दूसरे नंबर पर है. वहां 19.6 फीसदी ने रिश्वत का दवाब माना.
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नंबर 3
सब-सहारन अफ्रीका में 18.1 फीसदी कंपनियों को रिश्वत देने की जरूरत पड़ी.
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नंबर 4
मध्य-पूर्व में 17.3 फीसदी कंपनियां रिश्वत देकर आगे बढ़ पाईं.
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नंबर 5
मध्य एशिया में रिश्वत देने वाली कंपनियां 9.7 फीसदी रहीं.
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नंबर 6
कैरिबियाई दुनिया में रिश्वत देने की जरूरत 5.9 फीसदी कंपनियों को पड़ी.
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नंबर 7
दक्षिण अमेरिका में 5.8 फीसदी कंपनियां रिश्वत देने की बात मानती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
नंबर 8
मध्य यूरोप और बाल्टिक देशों में 2.7 फीसदी कंपनियों ने रिश्वत देने का दर्द झेला.
तस्वीर: DW
नंबर 9
पश्चिमी यूरोप में 2.5 फीसदी कंपनियों ने रिश्वत का दबाव महसूस किया.