कार्बन उत्सर्जन और जलवायु परिवर्तन पर चर्चा करने के लिए जिन सम्मेलनों का आयोजन किया जाता है उनका भी पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ता है. लेकिन जर्मनी के बॉन में होने वाली कॉप23 कार्बन न्यूटरल रह सकती है.
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जलवायु परिवर्तन से जुड़े सम्मेलनों में शिरकत करने के लिए दुनिया भर से बड़ी संख्या में लोग आयोजन स्थल पर पहुंचते हैं. चर्चा-परिचर्चाओं में शामिल होने आये इन मेहमानों का हवाई यात्राओं से लेकर, रहने, उठने-बैठने आदि से जुड़ी चीजों का भरपूर ख्याल रखा जाता है जिसका जाहिर तौर पर पर्यावरण पर असर पड़ता है. लेकिन जर्मनी के बॉन शहर में 6 नवंबर से 17 नवंबर तक चलने वाली कॉप23 की तैयारियों में इन सारे मसलों का पूरा ख्याल रखा जा रहा है.
शहर में कॉप23 सम्मेलन होना है जिसमें दुनिया के 195 देशों के लगभग 20 हजार लोग शिरकत करेंगे. इसलिए क्रॉन्फेंस को अधिक से अधिक पर्यावरण के अनुकूल बनाने पर जोर दिया जा रहा है. इसी दिशा में संयुक्त राष्ट्र के सभी कार्यकारी दल सम्मेलन से जुड़ी हर छोटी-बड़ी तैयारियों को सतत विकास के एजेंडे से जोड़ कर ही तैयार कर रहे हैं. संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख उद्देश्यों में से एक है, "समाज को कार्बन या जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से तटस्थ बनाना" जो बॉन के इस सम्मेलन में नजर आ सकता है.
कैसे होगा बंदोबस्त
हालांकि सम्मेलन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे बड़ा हिस्सा होगा लंबी हवाई यात्राओं का. जब इतने सारे लोग शहर में रहेंगे तो उनके लिए अतिरिक्त ऊर्जा की भी आवश्यकता होगी. इसके इतर उन्हें लोकल ट्रांसपोर्ट मुहैया कराना भी एक बड़ा मुद्दा रहेगा. विशेषज्ञ कॉप23 के दौरान सतत विकास के एजेंडे पर जर्मन सरकार को सुझाव देते हुए कहते हैं कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए अधिक से अधिक उपाय अपनाने चाहिए, जहां तक संभव हो अक्षय ऊर्जा को प्रयोग किया जाना चाहिए.
विशेषज्ञों की राय
हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि इन सब के बावजूद एक बड़ा हिस्सा ऐसा होगा जो उत्सर्जन में योगदान देगा, इसलिए सरकार को एक बड़े हिस्से का निवेश किसी दूसरी जगह चल रहे जलवायु संरक्षण कार्यक्रम में करना चाहिए. सम्मेलन के दौरान अधिक से अधिक सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल किया जाये इसलिए कॉप23 के कॉन्फ्रेंस परिसरों को शटल से जोड़ा जाना तय किया गया है. संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबक, जर्मन सरकार, क्लीन डेवलपमेंट मैकेनिज्म के तहत कॉप23 के लिए उत्सर्जन क्रेडिट खरीद सकती है. संयुक्त राष्ट्र की क्लाइमेट न्यूटरल रहने की पहल भी इस दिशा में अहम रहेगी.
जानिए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन से जुड़ी अहम बातें
जर्मनी के बॉन शहर में 6-17 नवंबर तक चलने वाले संयुक्त राष्ट्र के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन, कॉप23 में दुनिया भर के प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे.
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क्या है कॉप23
कॉप23, 23वीं क्रॉन्फेंस ऑफ द पार्टीज टू द यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कनवेंशन ऑन क्लाइमेंट चेंज (यूएनएफसीसीसी) का छोटा नाम है. यूएनएफसीसीसी को साल 1992 में रियो अर्थ सम्मिट के दौरान अपनाया गया था. रियो सम्मेलन को विश्व समुदाय का जलवायु परिवर्तन की दिशा में उठाया गया पहला संयुक्त कदम माना जाता है.
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फिजी की अगुवाई
कॉप23 की अगुवायी इस साल फिजी कर रहा है. फिजी का उद्देश्य पेरिस समझौते के तहत कमजोर समाजों को जलवायु परिवर्तन से जुड़े कदमों का हिस्सा बनाना है. जिसके लिए अध्यक्ष देश समावेशी और पारदर्शी दृष्टिकोण को अपना रहा है. साथ ही यह छोटा विकासशील द्वीप अपने अनुभव भी साझा कर रहा है.
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रियो कनवेंशन
रियो अर्थ समिट को रियो कनवेंशन के नाम से भी जाना जाता है. इस कनवेंशन में यूनएफसीसीसी ने वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में स्थिरता लाने की दिशा में एक ढांचा तैयार किया था. यूएनएफसीसीसी को साल 1994 में लागू किया गया था और अब दुनिया के तकरीबन 195 देश इसके सदस्य हैं.
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कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज
हर साल समझौते में शामिल पार्टियां या सदस्य देश कनवेंशन की प्रगति का आकलन करती हैं. साथ ही चर्चा करती हैं कि कैसे अधिक से अधिक व्यापक ढंग से जलवायु परिवर्तन से निपटा जाये. पहली कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज साल 1995 में बर्लिन में आयोजित की गयी थी. साल 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल स्थापित किया गया, जो विकसित देशों पर उत्सर्जन घटाने से जुड़ी कानूनी बाध्यतायें तय करता है.
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क्या है सीएमपी
साल 2005 तक कॉप का छोटा नाम सीएमपी हुआ करता था. सीएमपी का अर्थ है, "कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज सर्विंग एज द मीटिंग ऑफ पार्टीज टू द क्योटो प्रोटोकॉल". इसका मतलब है कि कॉप23 को सीएमपी13 भी कहा जा सकता है.
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कॉप21
फ्रांस की राजधानी पेरिस में साल 2015 के दौरान कॉप21 में पेरिस समझौते के लिए हामी भरी गयी. यह समझौता ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और विकासशील देशों को ऐसे कदमों को अपनाने में सहयोग देने से जु़ड़ा हुआ है.
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पेरिस समझौता
इसमें हस्ताक्षरकर्ता देशों ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से कम रखने को लेकर कानूनी प्रतिबद्धता जतायी. यह समझौता सभी देशों के वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की कोशिश करने के लिए भी कहता है.
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अमेरिका बाहर
जून 2017 में अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने पेरिस समझौते से बाहर आने की घोषणा की. इस पर ट्रंप ने कहा था, "फिलहाल अमेरिका गैर बाध्यकारी पेरिस समझौते और समझौते की वजह से लादे गए क्रूर वित्तीय और आर्थिक बोझ को लागू करने के सारे कदमों पर रोक लगा रहा है."
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सम्मेलन के बाद कॉप23 के कॉर्बन फुटप्रिंट की गणना की जायेगी, जिसे संतुलित करने के लिए कदम उठाये जायेंगे. कॉर्बन फुटप्रिंट को इको मैनेजमेंट और ऑडिट स्कीम के तहत किसी बाहरी पर्यावरण एजेंसी द्वारा सत्यापित किया जायेगा.