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कॉप23 से मायूस हुए डूबते देश

१८ नवम्बर २०१७

बॉन के जलवायु सम्मेलन में आखिरी दिन रात भर माथापच्ची के बाद कुछ मामलों पर सहमति बनी. लेकिन नतीजों ने डूबने का खतरा झेल रहे द्वीय देशों को निराश किया.

Bonn COP23 Klimakonferenz 2017
तस्वीर: DW/Maximiliano Monti

रात भर की चर्चा के बाद जर्मनी के शहर बॉन में संयुक्त राष्ट्र का 23वां जलवायु सम्मेलन खत्म हुआ. सम्मेलन में हिस्सा ले रहे 195 देशों ने जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे देशों के लिए "एडेप्टेशन फंड" बनाने पर रजामंदी जताई. एडेप्टेशन फंड 2001 में हुए क्योटो प्रोटोकॉल का हिस्सा है. इस फंड का इस्तेमाल जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे विकासशील देशों में स्वच्छ ऊर्जा के प्रोजेक्ट्स को फाइनेंस करने के लिए किया जाएगा. लेकिन पैसा किसे दिया जाएगा, सरकार को या सीधे प्रोजेक्ट्स को, यह पेंच अब भी फंसा हुआ है.

हल्की प्रगति के बावजूद बॉन में मौजूद प्रतिनिधियों ने शनिवार सुबह एक दूसरे को बधाई दी. पृथ्वी को बचाने के लिए वो बहुत कुछ भले ही न कर पाएं हो लेकिन 2015 की पेरिस संधि को बचाए रखने में सफल हुए. सम्मेलन की अध्यक्षता कर रहे फिजी के प्रधानमंत्री फ्रांक बैनिमारामा ने कहा, बॉन का नतीजा "हमारे पेरिस समझौते की भावना और उसके दृष्टिकोण और उसकी गति की अहमियत को रेखांकित करता है."

रात भर चली चर्चातस्वीर: Reuters/W. Rattay

सम्मेलन के बाद चीन के मुख्य वार्ताकार शी जेनहुआ ने कहा, "जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक चुनौती है. पेरिस संधि ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए एक ऐतिहासिक गति प्रदान की है, जिसे अब रिवर्स नहीं किया जा सकता." बॉन की कॉन्फ्रेंस में द्वीय देशों की कुछ चिताओं को हल करने पर सहमति बनी. पेरिस संधि के बड़े लक्ष्य हासिल करने के लिए जरूरी कदम अब 2018 में पोलैंड में होने वाले जलवायु सम्मेलन में तय किये जाएंगे.

2015 के पेरिस समझौते के तहत 197 देशों ने ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने का वादा किया था. समृद्ध देशों ने 2020 तक 100 अरब डॉलर की वित्तीय सहायता देने पर हामी भरी थी. 2020 के बाद हर साल 100 अरब डॉलर जमा करने थे. इस रकम से गरीब देशों को स्वच्छ ऊर्जा मुहैया कराने की योजना है. साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के खिलाफ भी यह पैसा काम आता. लेकिन कौन कितना पैसा देगा, वित्तीय सहयोग की पारदर्शिता कैसे तय की जाएगी, इन मुद्दों पर इस बार भी रजामंदी नहीं हो सकी.

बॉन की कॉन्फ्रेंस में इस बात पर सहमति जरूर बनी कि उत्सर्जन कम करने का वादा करने वाले देशों की सही से जांच कैसे की जाए. लेकिन इसका पता 2018 में ही चलेगा कि विकसित देश कितना उत्सर्जन कम कर रहे हैं. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप पहले ही 2020 तक पेरिस संधि से बाहर निकलने का एलान कर चुके हैं. ज्यादातर लोगों को लग रहा था कि बॉन कॉन्फ्रेंस में अमेरिका नकारात्मक भूमिका निभाएगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

बॉन सम्मेलन की अध्यक्षता प्रशांत महासागर का द्वीय देश फिजी कर रहा था. उसकी अगुवाई में बॉन पहुंचे द्वीय देशों के नेता विकसित देशों के रुख से मायूस हुए. विकसित देशों ने बड़े बदलावों का विरोध किया. "लॉस एंड डैमेज" जैसे तकनीक बिंदु पर बात करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञों का ग्रुप जरूर बना. लेकिन द्वीय देशों के मुताबिक वे अभी ही जलवायु परिवर्तन की मार झेल रहे हैं और उन्हें तुरंत वित्तीय सहायता की जरूरत है. इस पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकला. पलाऊ के राष्ट्रपति टॉमी रेमेनगेसाऊ ने कहा, "हमारे लिए जीवन और मृत्यु का सवाल है. यह एक नैतिक सवाल है, जिसका नैतिक जवाब मिलना चाहिए."

(कैसे काम करता है कृत्रिम सूर्य)

ओएसजे/एमजे (डीपीए, एएफपी, रॉयटर्स)

 

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