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तस्करी रोकने की तकनीक

१८ दिसम्बर २०१३

यूरोप कोकीन का दूसरा सबसे बड़ा बाजार है. तस्कर चालाकी से ड्रग्स छुपाकर या दूसरी चीजों में मिलाकर पानी के रास्ते यूरोप भेजते हैं. लेकिन जर्मनी के सबसे बड़े बंदरगाह में अधिकारी तकनीक के सहारे तस्करों को लपेट ही लेते हैं.

Symbolbild Kokain
तस्वीर: picture-alliance/dpa

अपराधियों के तार कई देशों में जुड़े होते हैं. लिहाजा उन्हें कहीं भी दबोचना जरूरी है. हैम्बर्ग के बंदरगाह में हर साल दुनिया भर से 90 लाख टन सामान आता है. लेकिन कारोबार के समुद्री रास्ते का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय ड्रग माफिया भी करते हैं. कुछ ही समय पहले हैम्बर्ग में दक्षिण अमेरिका से आई 11 किलोग्राम कोकीन पकड़ी गई.

बंदरगाह में जर्मनी के कस्टम अफसर लगातार तस्करों और मादक पदार्थों की खोज में जुटे रहते हैं. कस्टम अधिकारी डीटर लेंडसेवस्की बताते हैं कि एशिया से आए सामान में काफी हेरोइन आने की संभावना रहती है.

खोजी कुत्ते का सहारा

लेंडसेवस्की का साथी है खोजी कुत्ता. कुत्ते को कोकीन, हेरोइन, अफीम, हशीश, एमफेटैमिन और चरस खोजने की ट्रेनिंग मिली है. लेंडसेवस्की कहते हैं, "कुत्ते की नाक में सूंघने वाली कोशिशकाएं इंसान से कहीं ज्यादा होती हैं. उसके दिमाग का वह हिस्सा जो गंध का विश्लेषण करता है, वह काफी बड़ा होता है." इंसानों में यह हिस्सा मटर के दाने जितना होता है, जबकि कुत्तों में अखरोट जितना बड़ा. कुत्ते की नाक की बनावट भी अलग होती है. बरसात में कुत्तों को मिट्टी की खुश्बू ज्यादा अच्छी तरह पता चलती है और वे कई तरह की गंधों को ज्यादा बारीकी से सूंघ सकते हैं.

पुलिस और कस्टम अधिकारियों के काम करने के तरीके में अनुशासन जरूरी होता है. इसी का अभ्यास खोजी कुत्तों को भी कराया जाता है. उसे मानसिक रूप से स्वस्थ और खुश रखना भी जरूरी है. कुत्ते के लिए ये सब भले ही एक खेल जैसा हो, लेकिन कस्टम अधिकारियों को मादक पदार्थ खोजने में इससे बड़ी मदद मिलती है.

लैब से गुजरता कानूनी रास्ता

बरामदगी के बाद संदिग्ध सामान को लैब में टेस्टिंग के लिए भेजा जाता है. एक्सपर्ट पन्नी में आए सफेद पावडर की जांच करते हैं. ये कुछ भी हो सकता है, मैदा, चीनी का बुरादा या फिर कोकीन भी. इसी वजह से लैब में टेस्ट किये जाते हैं.

लैब में फॉरेंसिक एक्सपर्ट थोमास गेरेस सबसे पहले पावडर को एक सॉल्वेंट में घोलते हैं. अगर ये कोकीन हुई तो रंग नीला होगा. लेकिन अदालत में अपराध साबित करने के लिए ये काफी नहीं. गेरेस कहते हैं, "प्रीटेस्ट अदालत में मान्य नहीं है, क्योंकि इसमें कई खामियां होती है. अदालत के सामने बहुत सारे मामले आते हैं, इसीलिए हमें पक्के सबूत चाहिए, ताकि हम साबित कर सकें कि ये कोकीन ही है."

इसलिए जरूरत है मास स्पेक्ट्रोमीटर की. ये हाई टेक मशीन 280 डिग्री तापमान गर्मी के सहारे पावडर को घोल देती है. इस दौरान उसमें मौजूद तत्व अलग अलग हो जाते हैं. गेरेस इसके पीछे का विज्ञान समझाते हैं, "पावडर पर इलेक्ट्रोड की बमबारी की जाती है, इससे मॉलीक्यूल टूट जाते हैं और मास स्पेक्ट्रोमीटर मॉलीक्यूल के टूटे कणों की वजन के हिसाब से जांच करता है. इस मशीन की मदद से हम यह भी पता कर सकते हैं कि पावडर में कोकीन की मात्रा कितनी है. हमारा दूसरा पैमाना है सघनता, कि कोकीन कितनी शुद्ध है.

कस्टम अधिकारियों के लिए ये नतीजे अहम है. कोकीन की मात्रा जितनी ज्यादा, गुनाह भी उतना बड़ा. ड्रग माफिया कई बार कोकीन को पांच गुना तक डाइल्यूट कर देते हैं. लेकिन हैम्बर्ग की अत्याधुनिक प्रयोगशाला फिलहाल अपराधियों से दो कदम आगे है. तस्करों को दबोचने का तंत्र मुस्तैद है. उनकी ये चुस्ती हैम्बर्ग बंदरगाह को साफ रखे हुए है.

रिपोर्ट: एंके हिलमन/ ओएसजे

संपादन: ईशा भाटिया

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