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कोगों के विद्रोही नेता एनकुंदा गिरफ़्तार

२४ जनवरी २००९

डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कोंगो के विद्रोही नेता लॉरेंत एनकुंदा को शुक्रवार को रवांडा में गिरफ़्तार कर लिया गया. युद्ध अपराध से जुड़े मामलों के लिए उन्हें कोंगो को सौंप दिया जाएगा. सहयोगियो ने उनसे पीठ फेर ली थी.

भूखे बेघर हुए जाते हैं लोग.तस्वीर: AP

विद्रोही नेता के तौर पर एनकुंदा का दबदबा था. लेकिन इस बार क़िस्मत उनसे रूठ गयी. डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कोंगों की सीमाओं में भटकते एनकुंदा को कोंगो और पड़ोसी देश रवांडा के सैनिकों ने एक साझा अभियान में दबोच लिया. अधिकारियों के मुताबिक एनकुंदा को फ़िल्हाल रवांडा में किसी अज्ञात जगह पर रखा गया है. लेकिन समाचार एजेंसियों ने विद्रोहियों से मिली सूचनाओं के हवाले से बताया है कि एनकुंदा को कोंगो सीमा के पास गिज़नेयी शहर में नज़रबंद किया गया है.

एनकुंदा की ताक़त और उनके पतन की दास्तान

एनकुंदा पहले कोंगो सेना में जनरल के तौर पर काम करते थे. लेकिन ये पद छोड़कर उन्होंने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया और नेशनल कांग्रेस फॉर द डिफेंस ऑफ पीपुल सीएनडीपी का गठना किया. 2005 से सेना उनकी गिरफ्तारी के लिए हाथ पांव मार रही थी. एनकांदो की टुकड़ी ने बुकावु शहर पर 2004 में कब्ज़ा कर लिया था. सेना उन्हें इसी के लिए युद्ध अपराध का दोषी मानती है.

रवांडा में गिरफ़्तार हुए विद्रोही नेता एनकोंदोतस्वीर: picture-alliance/ dpa

कोंगो की सरकार का आरोप है कि एनकुंदा उसके पूर्वी इलाकों में भीषण रक्तपात के ज़िम्मेदार हैं और उन्हें इसकी सज़ा भुगतनी होगी. एनकुंदा ने कोंगो की सरकारी और सैन्य मशीनरी को खुली चुनौती दे रखी थी और उनकी विद्रोही टुकड़ी ने सालों से कोंगो की सरकार के नाक में दम कर रखा है.पिछले साल जनवरी में कोंगो सरकार और एनकुंदा की सीएनडीपी पार्टी के बीच शांति समझौता हुआ था लेकिन अगस्त में ही ये टूट गया. उसके बाद दोनों पक्षों के बीच भीषण मारकाट मची जिससे एक लाख से ज़्यादा लोगों को अपने घरबार छोड़कर भागना पड़ा.

अपने हुए अलग

2008 के अंत तक एनकुंदा ने सेना को नाको चने चबवा दिए और राष्ट्रपति जोसेफ काबीला को बातचीत के लिए विवश कर दिया. देश के पूर्व राष्ट्रपति भी संयुक्त राष्ट्र के प्रतिनिधियों की हैसियत से एनकुंदा के अड्डे पर बातचीत में मध्यस्थता के लिए पहुंचे. दिलचस्प बात ये है कि भले ही एनकुंदा की गिरफ्तारी रवांडा में हुई है लेकिन कोंगो सरकार ये आरोप भी पहले लगाती रही है कि उनकी पीठ पर रवांडा सरकार का हाथ रहा है.

2008 में अपनी ताक़त का मुज़ाहिरा करने वाले एनकुंदा अंदरखाने असंतोष से भी जूझ रहे थे. और इस विद्रोही नेता की दबंगई को चुनौती देने के लिए उनकी पार्टी में कुछ और नेता उठ खड़े हुए. सीएनडीपी के सैन्य अधिकारी बोस्को एनतागांडा ने एनकुंदा को विदा कर अभी कुछ दिन पहले ही एलान किया कि उनके सिपाही कोंगो सेना में लौट रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा कि उनके वफ़ादार सिपाही हुतु विद्रोहियों के ख़िलाफ़ लड़ेगें.

संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा में कब तकतस्वीर: AP

हिंसा से डरे हैं आम लोग

एनकुंदा के इस पतन की शुरुआत मंगलवार को उस समय हुई जब रवांडा ने संयुक्त अभियान के तहत हुतु विद्रोह को कुचलने के लिए हज़ारों सैनिक कोंगो भेजे थे. गुरुवार को ये सेना बुनगाना स्थित एनकुंदा के मुख्यालय में घुस गयी. एनकुंदा को मुट्ठी भर लोगों के साथ भागना पड़ा लेकिन आखिरकार वो दबोच लिए गए. लेकिन रवांडा और कोंगो की सैन्य कार्रवाई यहीं नहीं थमती. वे हुतु विद्रोहियो को हर हाल में ख़त्म कर देना चाहते हैं. नए सिरे से जो रक्तपात मचेगा उसमें जानकारों की राय में एक बार फ़िर निर्दोष लोगो का ख़ून भी बहेगा. यूनीसेफ जैसी अंतरराष्ट्रीय सहायता एजेंसियों और स्थानीय लोगों ने चिंता जतायी है कि आर-पार पर आमादा सेना हुतु लड़ाकों और आम नागरिकों के बीच फ़र्क करने में नाकाम होगी. एनकुंदा की गिरफ़्तारी अफ्रीका के इस संकटग्रस्त इलाके के लिए राहत की बात हो, लेकिन बात सिर्फ़ यही नहीं है.

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