कोठे से छूट कर शेल्टर होम में अटकना रुका
१४ जुलाई २०१७बांग्लादेश भारत की सीमा पर एक शाम जब आकाश बदलों से भरा था, नदी में आड़ी तिरछी तैरती नाव पर मछली पकड़ने वाली जाल में छिपी 16 साल की पायल भारत पहुंचने का बेसब्री से इंतजार कर रही थी. उसके एजेंट ने कहा था कि वहां डांस ट्यूटर की नौकरी उसके इंतजार में है. कुछ दिनों के बाद उसे महाराष्ट्र के एक कोठे पर बेच दिया गया. पायल ने बताया कि उसे "यहां पीटा गया, गालियां दी गईं, कमरे में बंद रखा गया" और ना जाने कितने लोगों के साथ यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया गया. करीब 9 महीने पहले उसे वहां से छुड़ा कर एक शेल्टर होम में रखा गया. अब उसे ये भरोसा नहीं था कि कोई उसे घर पहुंचाने में मदद कर सकता है.
इसी वक्त पुणे से करीब 1500 किलोमीटर दूर नयी दिल्ली के बांग्लादेश उच्चायोग में कॉन्सुलर विभाग के प्रमुख मोशर्रफ हुसैन बड़ी संख्या में उन लड़कियों के यात्रा दस्तावेजों को मंजूरी दे रहे थे जिन्हें तस्करी कर भारत लाया गया था. समाचार एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में मोशर्रफ हुसैन ने कहा, "मैंने देखा कि बांग्लादेश की लड़कियां और लड़के भी काफी मुश्किलें झेलते हैं, जांच की धीमी प्रक्रिया के कारण उन्हें घर लौटने के लिए लंबे समय तक इंतजार करना पड़ता है." मार्च 2015 में दिल्ली उच्चायोग में आए हुसैन ने ये भी कहा, "मैंने तेजी से काम करना शुरू किया और देखा कि छुड़ायी गई लड़कियों के बारे में बहुत सी जानकारियां आने लगीं. मैं केरल जा कर ऐसी लड़कियों से मिला जो सरकारी शेल्टर होम में सात साल से घर लौटने का इंतजार कर रही हैं."
पिछले दो साल से हुसैन देह व्यापार के लिए तस्करी से भारत लाई गई बांग्लादेशी लड़कियों को वापस भेजने के काम में तेजी लाने के मिशन में जुटे हुए हैं. पिछले साल हुसैन ने पूरे देश के शेल्टर होम्स का दौरा किया, इनमें पुणे का रेस्क्यू फाउंडेशन का शेल्टर होम भी शामिल है. यहीं उनकी मुलाकात दो हफ्ते पहले पायल से हुई. पायल ने अपनी कहानी और पता उन्हें दिया जिसकी पुष्टि हो गई. पायल के यात्रा दस्तावेज पिछले हफ़्ते जारी कर दिए गए और वो दो महीने में बांग्लादेश लौट जाएगी. पायल ने रॉयटर्स से कहा, "जब मैंने बताया कि मैं वापस आ रही हूं तो मेरी मां रोने लगी. मैंने उसे बताया कि कुछ महीने पहले मेरी हालत बहुत खराब थी लेकिन अब मैं ठीक हूं. मैं खुश हूं कि मैं शेल्टर होम से घर जा रही हूं कोठे से नहीं."
घर वापसी में तेजी
बांग्लादेश में डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल रहे हुसैन ने 438 लड़कियों को उनके घर वापस भेजा है इनमें करीब आधी तो बीते छह महीने में वापस गई हैं. इनमें ज्यादातर महाराष्ट्र से ही छुड़ायी गयीं. आबादी के लिहाज से भारत का दूसरा बड़ा राज्य महाराष्ट्र तस्करी कर लायी गयी लड़कियों का मुख्य ठिकाना है. सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि इतने कम समय में इतनी ज्यादा लड़कियों को बांग्लादेश भेजने की यह सबसे बड़ी घटना है. मानव तस्कर गरीब घरों की महिलाओं और बच्चों को भारत में अच्छी नौकरी का लालच देकर यहां ले आते हैं लेकिन उन्हें कोठे या फिर घरेलू नौकरों के रूप में बेच देते हैं.
बहुत सी बच्चियों और महिलाओं को बचा लिया जाता है लेकिन उन्हें घर लौटने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ता है. भारत की संस्था सेव द चिल्ड्रन की कार्यक्रम निदेशक ज्योति नाले कहती हैं, "उच्चायोग के नए अधिकारियों की दिलचस्पी लेने के बाद प्रक्रिया थोड़ी आसान हुई है. सेव द चिल्ड्रन महाराष्ट्र सरकार के साथ मिल कर लड़कियों को घर वापस भेजने में मदद करता है. शिनी पाडियारा रेस्क्यू फाउंडेशन की शेल्टर होम सुपरिटेंडेंट हैं. उन्होंने लंबे इंतजार के बाद लड़कियों की घर लौटने की बेचैनी को देखा है. वो बताती हैं, "पहले लड़कियों को घर लौटने के लिए दो-तीन साल इंतजार करना पड़ता था. वो आक्रामक हो जाती थीं. 2015 में तो कुछ लड़कियों ने खूब तोड़फोड़ की और यहां से भाग गयीं."
इस साल मई में 22 लड़कियां शेल्टर होम से अपने घर चली गईं. अभी यहां 19 लड़कियां हैं जिनमें से 19 के यात्रा दस्तावेज आ चुके हैं. हुसैन हर मामले पर नजर रखते हैं, पुलिस अधिकारियों के निरंतर संपर्क में रहते हैं और सामाजिक संगठनों के साथ सहयोग करते हैं. इस वजह से इंतजार का वक्त घट कर दो हफ़्ते से एक महीने तक आ गया है जो पहले कम से कम चार पांच महीने हुआ करता था.
पायल ने बताया कि जल्दी ही वो 17 दूसरी लड़कियों के साथ यहां से ट्रेन में कोलकाता जाएगी. वहां से पुलिस की वैन उन्हें सीमा पर ले कर जाएगी. वहां इन लड़कियों को आव्रजन अधिकारियों की मौजूदगी में एक सामाजिक संगठन को सौंपा जाएगा. यह संगठन उन्हें उनके मां बाप के पास ले जाएगा. पायल ने कहा, "मैं अपनी मां के हाथ की बनी मछली खाने का इंतजार कर रही हूं. वो पानी भी पिला देगी तो मुझे बहुत खुशी होगी."
एनआर/एके (रॉयटर्स)