जापान कोयले से चलने वाले संयंत्रों का जीवन बढ़ाने के लिए कम कार्बन उत्सर्जन करने वाली अमोनिया के इस्तेमाल को बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. आखिर किस वजह से अमोनिया पर टिकी हैं जापान की उम्मीदें?
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जापान दुनिया का पांचवां सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है. उसने लक्ष्य बनाया है कि 2050 तक वो कार्बन न्यूट्रल बन जाएगा. हालांकि 2011 की फुकुशिमा त्रासदी के बाद उसका परमाणु उद्योग संकट में पड़ गया और बिजली बनाने के लिए कोयले और गैस पर उसकी निर्भरता बढ़ गई.
जापान पर ब्रिटेन और अन्य देशों से कोयले के इस्तेमाल को कम करने का लगातार दबाव बना रहता है. ग्लासगो में शुरू होने वाली सीओपी26 शिखर बैठक में उसे एक बार फिर इन सवालों का सामना करना पड़ेगा. इसीलिए वो ऐसे उपायों की तलाश कर रहा है जिनसे उसके कार्बन पदचिन्ह भी कम हो सकें और ऊर्जा की मांग भी पूरी हो सके.
अमोनिया के फायदे
अमोनिया का मुख्य रूप से उर्वरकों और केमिकलों को बनाने के लिए उपयोग किया जाता है. इसमें तकनीकी और कीमत संबंधी चुनौतियां भी हैं लेकिन जापान को उम्मीद है कि वो एक ऐसे तरीके का पथ प्रदर्शक बन सकता है जिससे कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों में कार्बन के उत्सर्जन को कम किया जा सके.
अक्टूबर में देश की सबसे बड़ी ऊर्जा उत्पादक कंपनी जेरा ने अपने एक संयंत्र में छोटी मात्रा में अमोनिया का इस्तेमाल शुरू किया. 4.1 गीगावाट का यह संयंत्र केंद्रीय जापान के आईची के हेकिनन में स्थित है. यह 30 साल पुराना है और देश का सबसे बड़ा कोयले से चलने वाला संयंत्र है. अमोनिया मुख्य रूप से हाइड्रोजन और नाइट्रोजन से बनती है. हाइड्रोजन प्राकृतिक गैस ने मिलती है और नाइट्रोजन हवा से.
अमोनिया को जलाने पर कार्बन डाइऑक्साइड नहीं निकलती लेकिन अगर उसे जीवाश्म ईंधनों के साथ बनाया जाए तो उस प्रक्रिया में गैसें निकलती हैं. हेकिनन में जो प्रयोग चल रहा है उसका लक्ष्य है मार्च 2025 तक एक गीगावाट के एक यूनिट में करीब दो महीनों तक 30,000 से 40,000 टन अमोनिया में से 20 प्रतिशत अमोनिया के इस्तेमाल को हासिल करना. अगर यह प्रयोग सफल हो गया तो यह एक बड़े व्यावसायिक संयंत्र में दुनिया में पहला इस तरह का प्रयोग होगा.
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राह में कई चुनौतियां
जापान को उम्मीद है कि धीरे धीर वो कोयले को पूरी तरह हटा कर अमोनिया का इस्तेमाल कर सकेगा और 2050 तक पूरी तरह अमोनिया से चलने वाला एक संयंत्र बना सकेगा. अमोनिया का फायदा यह है कि ऊर्जा कंपनियां मौजूदा संयंत्रों और तकनीक को बिना ज्यादा बदलाव किए इस्तेमाल करना जारी रख सकेंगी. हेकिनन वाले प्रयोग में 48 बर्नरों को बदलने और एक टंकी और कुछ पाइपलाइनों को बदलने के अलावा बाकी उपकरण वैसे के वैसे ही रखे जाएंगे.
लेकिन अभी इस राह में कई चुनौतियां हैं. फरवरी में उद्योग मंत्रालय ने बताया था कि 20 प्रतिशत अमोनिया मिला कर बिजली बनाने की कीमत है 12.9 येन प्रति किलोवॉट, जो 100 प्रतिशत कोयले के इस्तेमाल के खर्च से 24 प्रतिशत ज्यादा है. हेकिनन में संयंत्र के प्रबंधक कत्सुया तनिगावा कहते हैं, "अगर अमोनिया मुख्यधारा का ईंधन बन गया तो सप्लाई करने वालों के बीच प्रतियोगिता की वजह से दाम गिर जाऐंगे."
उद्योग मंत्री ने बताया कि अमोनिया की सप्लाई भी एक चुनौती है. एक गीगावॉट के संयंत्र में 20 प्रतिशत अमोनिया के साल भर इस्तेमाल के लिए 5,00,000 टन अमोनिया चाहिए. मुख्य जगहों पर सभी कोयले वाले संयंत्रों में ऐसा करने के लिए दो करोड़ टन अमोनिया की जरूरत होगी जो उसके वैश्विक उत्पादन का 10 प्रतिशत है. एक बड़ी सप्लाई चैन बनाने के लिए जापानी कंपनियां सऊदी अरब, ऑस्ट्रेलिया, नॉर्वे और एशिया की कंपनियों के साथ मिल कर काम कर रही हैं.
सीके/एए (रॉयटर्स)
बिजली उत्पादन के विभिन्न तरीके
रोटी, कपड़ा और मकान की तरह ही बिजली भी लोगों की मूलभूत आवश्यकता बन चुकी है. घर रोशन करने से लेकर ट्रेन चलाने तक हर जगह बिजली की जरूरत होती है. एक नजर बिजली उत्पादन के तरीकों पर.
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कोल पावर प्लांट
कोल पावर प्लांट बिजली उत्पादन का परंपरागत तरीका है. इसमें कोयले की मदद से पानी गर्म किया जाता है. इससे बनी भाप के उच्च दाब से टरबाइन तेजी से घूमता है और बिजली का उत्पादन होता है.
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हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट
हाइड्रो इलेक्ट्रिसिटी पावर प्लांट ऐसी जगहों पर बनाए जाते हैं जहां तेजी से पानी का प्रवाह होता है. सबसे पहले बांध बना कर नदी के पानी को रोका जाता है. यह पानी तेजी से नीचे गिरता है. इसकी मदद से टरबाइन को घुमाया जाता है और बिजली उत्पादन होता है.
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सौर ऊर्जा
सौर ऊर्जा प्लांट की स्थापना उन क्षेत्रों में की जाती है जहां पूरे साल सूरज की रोशनी पहुंचती है. सूर्य की किरणों को बिजली में बदलने के लिए फोटोवोल्टिक सेलों का उपयोग होता है. इससे एक बैटरी जुड़ी होती है जिसमें बिजली जमा होती है. सोलर फोटोवोल्टिक सेल से पैदा होने वाली बिजली दिष्ट धारा (डायरेक्ट करंट) के रूप में होती है.
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पवन चक्की
पवन चक्की का इस्तेमाल उन क्षेत्रों में किया जाता है जहां हवा की गति तेज होती है. पवन चक्की लगाने के लिए एक टावर के ऊपर पंखे लगाए जाता है. यह पंखा हवा की वजह से घूमता है. पंखे के साथ शाफ्ट की मदद से एक जेनेरेटर जुड़ा होता है. जेनरेटर के घूमने से बिजली उत्पादन होता है.
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न्यूक्लियर पावर प्लांट
इस प्लांट में यूरेनियम-235 को ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. यूरेनियम के परमाणुओं को विखंडित करने के लिए एटॉमिक रिएक्टर का इस्तेमाल होता है. इससे पैदा होने वाली उष्मा से भाप बनाई जाती है. इसी भाप से टरबाईन को घुमाया जाता है जिससे बिजली का उत्पादन होता है. एक किलो यूरेनियम 235 से उत्पन्न ऊर्जा 2700 क्विंटल कोयले जलाने से पैदा हुई ऊर्जा के बराबर होती है.
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डीजल पावर प्लांट
डीजल पावर प्लांट की स्थापना उन जगहों पर की जाती है जहां कोयले और पानी की उपलब्धता पर्याप्त मात्रा में नहीं होती है. डीजल मोटर की मदद से जेनरेटर चलाया जाता है जो बिजली का उत्पादन करता है. यह एक तरह का वैकल्पिक साधन है. सिनेमा हॉल, घर, शादी-विवाह या किसी कार्यालय में आपात स्थिति में बिजली की आपूर्ति के लिए इसका इस्तेमाल होता है.
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नैचुरल गैस पावर प्लांट
नैचुरल गैस पावर प्लांट कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही होता है. फर्क बस इतना है कि इसमें पानी को गर्म करने के लिए कोयले की जगह नैचुरल गैस का इस्तेमाल होता है. पानी गर्म होने के बाद भाप बनता है. उच्च दाब वाले भाप से टरबाइन घूमता है. और इससे बिजली उत्पादन होता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
समुद्री लहर
समुद्र की लहरों से बिजली पैदा की जाती है. समुद्र किनारे दीवार या चट्टान में जेनरेटर और टरबाइन लगाया जाता है. (एक हौज बनाया जाता है जहां टरबाइन और जेनरेटर लगे होते हैं. लहरें जब हौज के भीतर आती है उसमें मौजूद पानी ऊपर उठता-गिरता है. इससे हौज के ऊपरी हिस्से में बनी जगह पर हवा तेजी से ऊपर-नीचे आती है.) लहरों के आने जाने पर टरबाइन दबाव से घूमता है और जेनरेटर चलने लगता है. बिजली पैदा होती है.
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समुद्री तरंग
इस तरीके में लोहे के बड़े-बड़े पाइपों को स्प्रिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ा जाता है. ये समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं. इनका आकार रेलगाड़ी के पांच डिब्बों के बराबर होता है. इनके अंदर मोटर तथा जेनरेटर लगे होते हैं. तरंगों की वजह से पाइप जब ऊपर नीचे होते हैं तो अंदर मौजूद मोटर चलने लगती है. मोटर से जेनेरेटर चलता है और बिजली उतपन्न होती है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बायोमास से बिजली निर्माण
खेती, पशुपालन, उद्योग या वन क्षेत्र के उपयोग में काफी मात्रा में बायोमास सामग्री इकट्ठा होती है. कोल थर्मल पावर प्लांट की तरह ही इसका भी प्लांट होता है. फर्क ये है कि यहां कोयले की जगह बायोमास को जलाया जाता है और पानी को गर्म किया जाता है. पानी गर्म से होने से जो भाप बनती है उससे टरबाइन घूमता है और बिजली उत्पादन होता है.
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जियो थर्मल पावर प्लांट
जैसे-जैसे पृथ्वी की गहराई में जाते हैं, धरती गर्म होती जाती है. एक स्थान वह भी आता है जहां गर्मी की वजह से सारे पदार्थ पिघल जाते हैं जिसे लावा कहते हैं. धरती के अंदर मौजूद इसी ताप के इस्तेमाल से बिजली बनाई जाती है. इसके लिए जमीन में कुएं खोदे जाते हैं. अंदर के गर्म पानी और उसकी भाप का अलग-अलग तरह से इस्तेमाल कर टरबाइन घुमाया जाता है और बिजली बनाई जाती है.