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कोरल रीफ को खतरे में डालेगी तेल पाइपलाइन

१५ फ़रवरी २०२१

इस्राएल के पर्यावरणवादियों ने चेतावनी दी है कि इस्राएल और संयुक्त अरब अमीरात के बीच हुए तेल पाइपलाइन के करार से लाल सागर के कोरल रीफ खतरे में पड़ जाएंगे. इस मुद्दे पर इस्राएल में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.

Eilat Ashkelon Pipeline Company
तस्वीर: CC by Chaver83

वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे "इकोलॉजी के लिए एक बड़ी आपदा आ सकती है." संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल को लाल सागर में इलात पोर्ट तक टैंकरों के जरिए पहुंचाने की योजना है. दोनों पक्षों के बीच रिश्ते सामान्य होने के कुछ ही महीनों के भीतर इसे लेकर करार भी हो चुका है जिस पर इसी साल अमल भी शुरू हो जाएगा.

जानकार चेतावनी दे रहे हैं कि पुराने इलात से तेल रिसाव की आशंका है. इसे लेकर इस्राएल के पर्यावरण सुरक्षा मंत्रालय ने करार पर तुरंत "जरूरी" बातचीत करने की मांग की है. बीते हफ्ते सामाजिक कार्यकर्ता इस मुद्दे पर लामबंद हो गए. कार्यकर्ताओं ने इलात के तेल सेतु के सामने की पार्किंग लॉट में प्रदर्शन भी किया. इस दौरान लगाए गए नारों में कहा गया कि कोरल के नुकसान की कीमत पर मुनाफा कामाने की कोशिश की जा रही है. सोसायटी फॉर कंजर्वेशन ऑफ द रेड सी एनवायरनमेंट के संस्थापक सदस्य शमुलिक टागर का कहना है, "जहां तेल को उतारा जाएगा कोरल रीफ वहां से महज 200 मीटर की दूरी पर हैं. वे कहते हैं कि टैंकर आधुनिक हैं और कोई समस्या नहीं होगी "हालांकि ऐसा कोई तरीका नहीं जिसमें गड़बड़ ना हो."

तस्वीर: CC by Chaver83

शमुलिक टागर ने अनुमान लगाया है कि हर हफ्ते दो से तीन टैंकर आएंगे और इससे इकोलॉजिकल टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे शहर की सुंदरता पर भी असर पड़ेगा. उनका कहना है, "जब डॉक पर टैंकर खड़े हों तो आप ग्रीन टूरिज्म का धोखा नहीं दे सकते."

अमेरिका की मध्यस्थता पर संयुक्त अरब अमीरात और इस्राएल ने पिछले साल राजनयिक रिश्ते बहाल किए. इसके बाद दोनों पक्षों के बीच हुए समझौते में इस्राएल की सरकारी यूरोप एशिया पाइपलाइन कंपनी, ईएपीसीऔर एक नई कंपनी मेड रेड लैंड ब्रिज लिमिटेड का आबू धाबी की नेशनल होल्डिंग कंपनी और इस्राएल की कई फर्मों के बीच करार हुआ है.

अक्टूबर में ईएपीसी ने घोषणा की कि वह संयुक्त अरब अमीरात से कच्चा तेल लाने के लिए मेडरेड के साथ करार कर रहा है. इस तेल को पहले यूएई से इलियत लाया जाएग और फिर पाइपलाइनों के जरिए इस्राएल के एशकेलॉन शहर लाया जाएगा जहां से इसका यूरोप में निर्यात होगा.

सामाजिक कार्यकर्ताओं की दलील है कि करार के नियमों के आधार पर कड़ी समीक्षा नहीं की गई है. इसकी वजह है ईपीएसी को ऐसी सरकारी एजेंसी का दर्जा मिला हुआ है, जो संवेदनशील ऊर्जा सेक्टर में काम करती है.

तस्वीर: Reuters/Yehuda Ben Itach

दुनिया भर में कोरल की आबादी को जलवायु परिवर्तन के कारण पैदा होने वाली ब्लीच का खतरा झेलना पड़ रहा है. इलात के रीफ अपने अनोखे उष्मा प्रतिरोध के कारण स्थिर बने हुए हैं. इनका विस्तार शहर के तट से करीब 1.2 किलोमीटर के इलाके में है जिसमें कई प्रकार के जलीय जीवों का भी बसेरा है.

हालांकि ईएपीसी पोर्ट के करीब होने की वजह से अब उन पर खतरा मंडरा रहा है. इलात इंटरयूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर मरीन साइंस में मरीन बायोलॉजी एंड टेक्नोलॉजी के प्रमुख नादव शशार का कहना है कि बुनियादी ढांचा ऐसा नहीं बनाया गया है जो हादसों को रोक सके, "केवल प्रदूषण के पानी में पहुंच जाने के बाद उसे छानने की व्यवस्था है."

शशास उन 230 विशेषज्ञों में एक हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री बेन्यामिन नेतन्याहू से इस करार के विरोध में अपील की है. उनकी दलील है कि ढुलाई बढ़ने का नतीजा, "तेल के निरंतर रिसाव के रूप में सामने आएगा."

ईएपीसी का कहना है कि इलात से लाखों टन तेल की ढुलाई होगी. कंपनी ने इस मुद्दे पर चर्चा करने से मना कर दिया लेकिन उसका कहना है कि उसके उपकरण आधुनिक और अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि उनका लक्ष्य ईपीएसी को बंद कराना नहीं है. वे तो बस उसकी क्षमता को सीमित करना चाहते हैं.

एनआर/आईबी (एएफपी)

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