चुनावों में कोविड संबंधी सावधानी बरतते हुए कैसे हो अभियान इस सवाल पर चुनाव आयोग और मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के बीच ठन गई है. चुनाव आयोग ने अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर दस्तक दी है.
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मामला मूल रूप से मध्य प्रदेश से संबंधित है जहां विधान सभा की 28 सीटों के लिए उप चुनाव होने वाले हैं. चुनावों के लिए अभियान जोरों पर हैं, लेकिन इस बीच रैलियों में आती भारी भीड़ और उससे संक्रमण के फैलने के खतरे को देखते हुए मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर पीठ ने अभियानों पर पाबंदी लगा दी थी.
अदालत ने अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाले सभी जिलों के मजिस्ट्रेटों को आदेश दिया था कि वो किसी भी उम्मीदवार या पार्टी को जन सभाएं आयोजित करने के लिए तभी अनुमति दें जब वो यह साबित कर सकें कि वर्चुअल चुनावी अभियान संभव नहीं है.
अदालत ने यह भी कहा था कि रैली की अनुमति तभी दी जाए जब पार्टी या उम्मीदवार इतने पैसे जिला मजिस्ट्रेट के पास जमा करा दें जिनसे रैली में आने वाले सभी लोगों के लिए मास्क और सैनिटाइजर की व्यवस्था की जा सके. इस संबंध में अदालत ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का भी आदेश दिया था. अदालत के अनुसार इन दोनों नेताओं ने अपनी रैलियों में कोविड संबंधी सावधानी नहीं बरती थी.
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पूर्व मुख्यमंत्री कमल नाथ के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का भी आदेश दिया था. अदालत के अनुसार इन दोनों नेताओं ने अपनी रैलियों में कोविड संबंधी सावधानी नहीं बरती थी.तस्वीर: Imago/Hindustan Times/M. Faruqui
गुरुवार को मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया था, लेकिन अब खुद चुनाव आयोग ही इस लड़ाई में कूद गया है. आयोग ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि चुनाव कराना सिर्फ उसके अधिकार क्षेत्र में आता है और हाई कोर्ट का आदेश उसके अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप कर रहा है. आयोग ने यह भी कहा है कि हाई कोर्ट का आदेश सभी प्रतिद्वंदियों को सामान अवसर देने की अवधारणा पर असर डालेगा और पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही पटरी से उतार देगा.
मध्य प्रदेश के लिए ये उपचुनाव बहुत महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये एक बार फिर राज्य में सत्ता पर असर डाल सकते हैं. ये 28 सीटें तब खाली हुई थीं जब कांग्रेस के 25 विधायकों ने पूर्व कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के नेतृत्व में अपनी पार्टी से बगावत कर दी थी और विधान सभा से इस्तीफा दे दिया था. इसके बाद राज्य में कमल नाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस की नवनिर्वाचित सरकार गिर गई थी और बीजेपी एक बार फिर सत्ता में आ गई थी. तीन सीटें विधायकों के निधन की वजह से खाली हो गई थीं.
मध्य प्रदेश के साथ साथ इस समय बिहार में भी चुनावी अभियान जोरों पर है. वहां 28 अक्टूबर से तीन चरणों में विधान सभा चुनावों में मतदान होना है. सभी पार्टियां बड़ी बड़ी रैलियां आयोजित कर रही हैं और कई रैलियों में भारी भीड़ भी उमड़ती दिखी है. कोविड संबंधी सावधानियों में से ना एक दूसरे से दूरी बनाए रखने का पालन हो रहा है और ना कोई मास्क पहन रहा है.
ऐसे में यह देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट चुनावी रैलियों पर कोई अंकुश लगाता है या नहीं.
कोरोना के साए में जब अक्टूबर और नवंबर में बिहार विधान सभा के चुनाव होंगे तो कुछ महत्वपूर्ण चेहरे सामने नहीं होंगे. उनमें राजद के लालू यादव प्रमुख हैं, जो इस समय चारा घोटाले में सजा काट रहे हैं.
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लालू प्रसाद यादव
जेपी आंदोलन की उपज व सामाजिक न्याय के पुरोधा लालू प्रसाद यादव 1990 से 97 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उनकी पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व में 2005 तक बिहार में उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने शासन किया. चारा घोटाले के मामले में फिलहाल लालू प्रसाद रांची जेल में बंद हैं. वे लोकसभा के पहले सांसद हैं जिन्हें सजा मिलने के कारण सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहराया गया.
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रामविलास पासवान
लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक व दलितों की राजनीति करने वाले रामविलास पासवान आठ बार लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं. वर्तमान में वे राज्यसभा के सदस्य और नरेंद्र मोदी की सरकार में खाद्य आपूर्ति व उपभोक्ता मामलों के मंत्री हैं. बीते कुछ दिनों से दिल्ली के एक अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है. रिकॉर्ड मतों से चुनाव जीतने के लिए मशहूर पासवान की अनुपस्थिति में उनके पुत्र चिराग नैया संभालेंगे.
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शरद यादव
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद में जन्मे शरद यादव मुख्य रूप से बिहार की राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं. वे चार बार मधेपुरा (बिहार), दो बार जबलपुर (मध्यप्रदेश) व एक बार बदायूं (उत्तर प्रदेश) से सांसद बने. वर्तमान में वे लोकतांत्रिक जनता दल के अध्यक्ष हैं. 75 वर्षीय शरद यादव अभी बीमार चल रहे हैं. कुछ दिन पहले उन्होंने बिहार में विपक्षी महागठबंधन को सत्ता में लाने की बात कह समर्थकों में उत्साह भरा था.
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प्रशांत किशोर
चुनावी रणनीतिकार व जनता दल यूनाइटेड के पूर्व उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर चुनावी मौसम में नजर नहीं आ रहे. बिहार को दस साल में देश के अग्रणी राज्यों की सूची में शामिल कराने के लिए योजना लेकर आने का दावा करने वाले प्रशांत किशोर का जुलाई के अंतिम हफ्ते से कोई अता-पता नहीं है. हां, सोशल मीडिया में ‘बात बिहार की’ नाम से बने पेज पर वे सक्रिय जरूर हैं. समझा जाता है वे मिशन बंगाल पर काम कर रहे हैं.
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मोहम्मद शहाबुद्दीन
राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन इस बार भी चुनावों से दूर रहेंगे. सिवान के बाहुबली सांसद दो भाइयों को तेजाब से मार डालने के जुर्म में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. शहाबुद्दीन फिलहाल दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं. नीतीश कुमार को परिस्थितियों के नेता की संज्ञा देने वाले शहाबुद्दीन लालू प्रसाद को अपना नेता मानते हैं. एक वक्त था जब सिवान की हर दुकान में उनकी तस्वीर टंगी होती थी.
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जगन्नाथ मिश्र
तीन बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे जगन्नाथ मिश्र का 2019 में निधन हो गया. अड़तीस साल की उम्र में 1975 में जब वे बिहार के मुख्यमंत्री बने तो प्रांत के सबसे युवा मुख्यमंत्री थे. अपने राजनीतिक जीवन के आखिरी दिनों में वे जनला दल यूनाइटेड में शामिल हो गए थे. चारा घोटाले में 44 अन्य लोगों के साथ वे भी अभियुक्त थे. सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें दो मुकदमों में बरी कर दिया था.