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समाज

कोरोना काल में कामकाजी लोगों का सहारा बनी साइकिलें

प्रभाकर मणि तिवारी
११ जून २०२०

पश्चिम बंगाल सरकार ने कभी भीड़ कम करने के लिए कोलकाता की तमाम प्रमुख सड़कों पर साइकिल चलाने पर पाबंदी लगा दी थी. लॉकडाउन में ढील के बाद परिवहन के साधनों की कमी के चलते अब वही साइकिल दफ्तर आने-जाने का सबसे बड़ा सहारा है.

Indien Kolkata Lockdown
तस्वीर: DW/P. M. Tewari

लॉकडाउन तो खत्म हो गया है लेकिन यातायात सामान्य नहीं हुआ है. फिर बसों और ट्रेनों में भीड़ के चलते कोरोना वायरस का डर भी लोगों को सता रहा है. यही वजह है कि कुछ लोग तो 40-50 किमी दूर से साइकिल चला कर दफ्तर की आवाजाही कर रहे हैं. कोलकाता में साइकिल के बढ़ते इस्तेमाल और कोरोना महामारी के दौर में इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने ज्यादातर इलाकों में साइकिल चलाने पर लगी पाबंदी हटा दी है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दफ्तर और कामकाज की जगहों पर आने-जाने के लिए मुसीबतों से जूझ रहे लोगों को ध्यान में रखते हुए पुलिस से महानगर के प्रमुख इलाकों में साइकिलों पर लगी पाबंदी हटाने को कहा था. इसी के अनुरूप कोलकाता पुलिस के आयुक्त अनुज शर्मा ने एक अधिसूचना जारी कर यह पाबंदी हटा ली है. यह छूट फिलहाल 30 जुलाई तक रहेगी. उसके बाद हालात को देखते हुए इसे आगे बढ़ाने पर विचार किया जाएगा.

पहली जून से पश्चिम बंगाल सरकार ने विभिन्न क्षेत्रों को खोलने की छूट दी थी. तमाम निजी और सरकारी दफ्तरों को भी आठ जून से 70 फीसदी तक कर्मचारियों के साथ खोलने का निर्देश दिया गया था. लेकिन निजी बसों, लोकल ट्रेनों और मेट्रो का संचालन अभी भी शुरू नहीं हुआ. आम लोगों को घर से दफ्तर या कामकाज की जगहों तक आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा था. सरकार की छूट के बावजूद पीली टैक्सियां भी सड़कों पर कम ही हैं. इसकी वजह यह है कि ज्यादातार टैक्सी ड्राइवर बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश के हैं जो लॉकडाउन के दौरान कमाई ठप होने की वजह से अपने गांव लौट गए हैं. सरकारी बसें जरूर चल रही हैं. लेकिन उनकी तादाद बहुत कम है. नतीजतन ज्यादातर बसों में भारी भीड़ उमड़ने की वजह से सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ती रहीं हैं. इसके साथ ही राज्य में कोरोना संक्रमण के मामले भी तेजी से बढ़ते रहे. बीते महज पांच दिनों में संक्रमण के दो हजार मामले सामने आए हैं.

ठसाठस भरी बसतस्वीर: DW/P. M. Tewari

सुरक्षा के लिए साइकिल

राज्य सरकार आम लोगों की दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए उनको साइकिल से दफ्तर आने-जाने की अनुमति देने पर विचार कर रही थी. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कोलकाता पुलिस को इस प्रस्ताव पर समुचित अध्ययन का निर्देश दिया था. उन्होंने पुलिस के शीर्ष अधिकारियों से ऐसी सड़कों की शिनाख्त करने को कहा था जहां साइकिल सवारों को सुरक्षित सवारी की अनुमति दी जा सके. बीते सोमवार को केबिनेट की बैठक के बाद ममता ने कहा, "कई लोगों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. लोगों की सुरक्षा के लिए सोशल डिस्टेंसिंग का पालन अनिवार्य है. इसलिए मैंने कोलकाता पुलिस से साइकिलों को अनुमति देने को कहा है.” मुख्यमंत्री ने कहा है कि अगर कोरोना महामारी के चलते लॉकडाउन लंबा खिंचा तो सरकार विदेशों की तर्ज पर अलग साइकिल लेन बनाने पर विचार करेगी.

पुलिस की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है कि साइकिल सवारों को ट्रैफिक नियमों का पालन करना होगा. उनको ऐसी सड़कों से बचना होगा जहां बसें और दूसरी गाड़ियां चल रही हैं ताकि किसी हादसे से बचा जा सके. ट्रैफिक पुलिस उपायुक्त रूपेश कुमार बताते हैं, "साइकिलों को अनुमति देते समय साइकिल सवारों की सुरक्षा को ध्यान में रखा गया है. महानगर की तमाम प्रमुख सड़कों के समानांतर ऐसी सड़कें है जहां ट्रैफिक अपेक्षाकृत कम होता है. साइकिल सवार उन सड़कों का इस्तेमाल कर घर से दफ्तर आ-जा सकते हैं.” पहले महानगर में 62 प्रमुख सड़कों और फ्लाईओवरों पर रात 11 बजे से सुबह सात बजे तक साइकिल चलाने पर कड़ी पाबंदी थी. लेकिन अब यह पाबंदी हटा ली गई है. एक पुलिस अधिकारी बताते हैं, "साइकिल जैसे धीमी गति वाले वाहन दूसरे वाहनों की गति भी धीमा कर देते हैं. इसी वजह से मुख्य सड़कों पर साइकिल चलाने पर पाबंदी लगाई गई थी. लेकिन लॉकडाउन के दौरान निजी परिवहन की गैर-मौजूदगी की वजह से साइकिल सवारों को अनुमति दी गई है.”

खुश हैं साइकिल चालक

साइकिल की सवारी को सरकार की हरी झंडी मिलने से साइकिल चालक बेहद खुश हैं. रोजाना 40 किमी की सवारी कर कोलकाता पहुंचने वाले एक निजी संस्थान के कर्मचारी वीरेश्वर लाहिड़ी कहते हैं, "इससे समय कुछ ज्यादा तो लगता है. लेकिन यह बसों के इंतजार में लगने वाले समय से कम ही है. इसके अलावा इससे सोशल डिस्टेंसिंग का भी पालन हो रहा है. बसों में भीड़भाड़ की वजह से संक्रमण का खतरा बना रहता है.” एक सरकारी दफ्तर में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करने वाले पंकज सरदार ने तो दफ्तर आने-जाने के लिए एक पुरानी साइकिल खरीदी है. वह कहते हैं, "साइकिल की सवारी सबसे सुरक्षित है और इससे कोई प्रदूषण भी नहीं होता. इसके अलावा बस के किराए के पैसे भी बचते हैं.”

साइकिल का सहारातस्वीर: DW/P. M. Tewari

कोलकाता में साइकिल सवारों के एक संगठन साइकिल समाज ने भी सरकार के फैसले पर खुशी जताई है. संगठन के सदस्य अभिरूप बासु कहते हैं, "यह कदम सराहनीय है. सरकार को अब साइकिल के लिए विदेशों की तर्ज पर अलग ट्रैक बनाने पर भी विचार करना चाहिए. कोरोना फिलहाल लंबे समय तक हमारे साथ रहेगा.” एक अन्य सदस्य अभिजीत नंदी कहते हैं, "सरकार ने तमाम दफ्तर तो खोल दिए हैं. लेकिन लोकल ट्रेन व मेट्रो नहीं चलने और सड़कों पर पर्याप्त तादाद में बसें नहीं होने की वजह से आम लोगों को आवाजाही में काफी दिक्कत हो रही थी. अब लोगों ने साइकिल का सहारा लिया है. यह सुरक्षा के लिहाज से भी बेहतर है.”

बसें कम, संक्रमण का खतरा

फिलहाल महज तीस फीसदी बसें ही सड़कों पर उतरी हैं. निजी बस मालिकों के संगठन ज्वायंट काउंसिल ऑफ बस सिंडीकेट के महासचिव तपन बनर्जी कहते हैं, "हम बसों की तादाद बढ़ाने पर विचार कर रहे हैं. मना करने के बावजूद लोग भारी तादाद में बसों में चढ़ रहे हैं. इससे संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है.” सरकारी अधिकारियों का कहना है कि आठ जून से सरकारी दफ्तरों में 70 फीसदी कर्मचारियों के साथ काम शुरू होने के बावजूद खासकर उपनगरों से आने वाले ज्यादातर कर्मचारी समय पर नहीं पहुंच पा रहे थे. ऐसे लोग लोकल ट्रेनों और मेट्रो के जरिए आवाजाही करते हैं. इसी को देखते हुए सरकार ने साइकिल की सवारी पर लगी पाबंदी हटाने का फैसला किया.

पर्यावरणविदों ने भी सरकार के फैसले पर खुशी जताई है. पर्यावरणविद् रघु जाना कहते हैं, "सरकार को लॉकडाउन खत्म होने के बाद भी साइकिल को दी गई छूट जारी रखनी चाहिए. इससे पर्यावरण को बचाने में मदद मिलेगी. कोरोना और लॉकडाउन जैसी आपात स्थिति में साइकिलें ही आम लोगों का सबसे बड़ा सहारा बनी हैं.” एक अन्य पर्यावरणविद् रंतीदेब राय कहते हैं, "विश्व स्वास्थ्य संगठन और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने लॉकडाउन के बाद सामान्य स्थिति बहाल करने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने के लिए तमाम सरकारों से साइकिल को परिवहन के वैकल्पिक साधन के तौर पर बढ़ावा देने की सिफारिश की है.”

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