1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें
समाजएशिया

पहले शौक और अब लत बनते ऑनलाइन गेम्स

अपूर्वा अग्रवाल
२ अक्टूबर २०२०

कोरोना महामारी ने आम लोगों की जिंदगी को पूरी तरह से बदल कर रख दिया है. रिश्तेदारों, दोस्तों से दूरी और घर में सिमटती जिंदगियों में अब ऑनलाइन गेम्स मजबूती से जगह से बना रहे हैं. लेकिन क्या आपको इसकी लत तो नहीं लग गई?

Doku KW40 | Spielend reich - eSport als Milliardengeschäft
तस्वीर: ORF

पुणे की सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट कंपनी टेकलिफ्ट टेक्नोलॉजी के डायरेक्टर पलाश झाबक कोरोना के चलते घर में लंबे समय से बंद हैं और फिलहाल घर से ही काम कर रहे हैं. लेकिन घर में रहने के चलते इनकी आदतें काफी कुछ बदल गई हैं. पलाश कहते हैं कि काम के बाद का अधिकतर वक्त अब ऑनलाइन पोकर खेलने में गुजर जाता है क्योंकि काफी लोग खेलने के लिए जब-तब मिल जाते हैं. वीकेंड में आधे से ज्यादा दिन पोकर खेलते हुए और फिर जो समय बचता है तो उसमें वह अपने परिवार के साथ लूडो किंग खेल लेते हैं.

ऑनलाइन गेमिंग में कुछ इस तरह की रुझान गुड़गांव में रहने वाले संदीपन दत्ता भी रखते हैं. संदीपन पेशे से ट्रेडर हैं और पिछले 10-15 साल से ऑनलाइन फीफा खेल रहे हैं. संदीपन फुटबाल के बहुत बड़े फैन हैं इसलिए फीफा पर पैसे खर्च करना उन्हें बिल्कुल भी बुरा नहीं लगता. संदीपन कहते हैं, "ऑनलाइन गेमिंग मेरे अंदर जीतने का जज्बा बनाए रखता है. मुझे मजा आता है. एक सिटिंग में आप 3 घंटे तक खेल लेते हैं.” हालांकि लॉकडाउन में उनकी भी गेम खेलने की आदतें बदली है. अब वह हफ्ते में दो-तीन बार तक की सिंटिंग ले लेते हैं जो पहले इतनी नहीं थी. फीफा के बाद संदीपन भी अपने परिवार के साथ ऑनलाइन पोकर खेलते हैं. परिवार वाले इन गेमों को एक-दूसरे से जुड़ने का जरिया भी मानने लगे हैं.

बदल रही है सोच

दिल्ली की फाइनेंशियल एडवाजइरी फर्म मेपल कैपिटल एडवाइजर्स की रिपोर्ट "गेमिंग-इंडिया स्टोरी” के मुताबिक भारत की गेमिंग इंडस्ट्री दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ रही है. भारत की गेमिंग इंडस्ट्री का मौजूदा कारोबार तकरीबन 93 करोड़ डॉलर का है जो हर साल 41 फीसदी की दर से बढ़ रहा है. इंडस्ट्री ने साल 2020 में वैश्विक महामारी के चलते एक बड़ा उछाल देखा. यहां तक कि आज भारत दुनिया में सबसे ज्यादा ऐप्स डाउनलोड करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया है.

ऑनलाइन गेम्स, अरबों का कारोबारतस्वीर: Imago Images/RHR-Foto

ऑनलाइन गेमों की लोकप्रियता के पीछे मौजूदा दौर में कोरोना महामारी को एक कारण माना जा सकता है लेकिन काफी कुछ भूमिका बदलते सामाजिक ताने-बाने ने निभाई है. मोबाइल फोन की पहुंच और इंटरनेट की सुलभता ने लोगों को वर्चुअल दुनिया से जोड़ दिया है. इसके साथ सेलिब्रिटी एनडोर्समेंट्स के चलते लोगों का ऑनलाइन गेम्स पर विश्वास पैदा हुआ है. परिवार से दूरी, अंतर्मुखी स्वभाव, जोखिम का साहस जैसे कई अन्य कारण भी है जिनके चलते आम जिंदगियों में इन खेलों के लिए जगह बन रही है. 

नए- नए ट्रेंड

पलाश बताते हैं, "पहले उनके करीबियों को लगता था कि पोकर बेकार गेम है. अधिकतर लोग जुआ मानते थे. लेकिन अब इसके इंटरनेशनल टूर्नामेंट पॉपुलर होने लगे हैं तो लोगों की सोच बदली है." संदीपन भी कहते हैं कि पहले इन गेमों में पायरेसी होती थी लेकिन अब लोग अपने शौकों को तरजीह देने लगे हैं इसलिए इन चीजों को अपनी लाइफस्टाइल का हिस्सा बना रहे हैं.

ऑनलाइन गेमिंग में कुछ नए ट्रेंड भी नजर आ रहे हैं. मसलन अब लड़कियां भी काफी सक्रिय नजर आती है. इसके साथ-साथ कपल्स भी टीम बना कर खेलते हैं. यहां तक कि 18-20 साल के युवाओं जैसे नए लोग भी गेम के गुर सीखने के लिए बकायदा उस पर मेहनत करते हैं. संदीपन अपने अनुभव से कहते हैं, "पोकर, रमी जैसे गेमों में आप अपनी स्ट्रेटजी और तरीकों पर काम कर सकते हैं लेकिन लूडो जैसे गेम जो पूरी तरह मशीनी है वहां आपको ज्यादा कुछ नहीं करना होता. उनमें मेहनत नहीं लगती इसलिए वो अलग उम्र वालों को पसंद आते हैं.” वहीं नए स्मार्टफोन यूजर्स के बीच पबजी और क्रेंडी क्रश जैसे गेमों को लेकर दीवानगी नजर आती है.

इंडोनेशिया की टीम ने पिछले साल बर्लिन में पबजी ओपन में भाग लिया थातस्वीर: DW/S. Caroline

क्या गेमिंग एक लत है

मुंबई में रहने वाले साफ्टवेयर इंजीनियर अभिनय जैन रोजाना 5-10 घंटे ऑनलाइन गेम्स खेलते हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुझे इसमें मजा आता है और यह फन है. अगर लत भी है तो बुरा क्या है.” वहीं पलाश कहते हैं, "हर जगह हर तरह के लोग है. गेमिंग को लत माना जा सकता है लेकिन किसी भी गेम में प्लेयर को रिस्पान्सबिल तो होना ही चाहिए.”

जानकार मानते हैं कि गेमिंग की लत दो तरह से लोगों को प्रभावित कर सकती है. पहला जहां सिंगल प्लेयर गेम होता है वहां प्लेयर मिशन को हर हाल में पूरा करना चाहता है और एक स्टैंडर्ड  सेट करना चाहता है. वहीं दूसरा, जहां मल्टीप्लेयर गेम होता है वहां प्लेयर के सामने मुश्किलें आती रहती हैं और कई बार वे उसमें पूरी तरह खो जाते हैं. कई बार तो प्लेयर वर्चुअल दुनिया में ही रमा रहता है. इस लत के चलते कई बार लोग अकेले रहना पसंद करने लगते हैं. इसके अलावा थकान, चिंता, एकाग्रता की कमी के साथ-साथ ही माइग्रेन जैसी बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है.

कैसा है भविष्य

भारत के सबसे बड़े ई-स्पोर्ट और मोबाइल गेमिंग प्लेटफार्म (एमपीएल) में अब तक 70 गेम्स आ चुके हैं. 2018 में बने एमपीएल के तकरीबन छह करोड़ यूजर्स है और बड़ी संख्या में डेवल्पर्स इससे जुड़े हुए हैं. "गेमिंग-इंडिया स्टोरी” की रिपोर्ट भी कहती है कि साल 2024 तक भारत की गेमिंग इंडस्ट्री 375 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगी. डिजिटल इंफ्रास्टक्चर और यूजर्स को बांध कर रखने वाला गेमिंग कंटेंट इसमें अहम भूमिका निभाएगा. कुल मिलाकर माना जा सकता है कि भारत समेत पूरी दुनिया में ऑनलाइन गेमिंग का भविष्य फिलहाल तो सुनहरा ही नजर आता है.

__________________________

हमसे जुड़ें: Facebook | Twitter | YouTube | GooglePlay | AppStore

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें