कोरोना के टीके से यूपी के मुसलमानों को परहेज क्यों!
११ जून २०२१
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की पूर्व छात्रा 27 वर्षीय आबिदा अहमद दुखी हैं लेकिन काफी गुस्से में भी हैं. इस साल अप्रैल महीने में कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के बाद, उन्होंने अपने परिवार के तीन सदस्यों को खो दिया. निजी तौर पर नुकसान होने के बावजूद, आबिदा ने कोरोना टीके की पहली खुराक लगवाने का साहस किया. वह सरकार की तरफ से संचालित कोविन ऐप्लिकेशन के जरिए टीका के लिए स्लॉट बुक करने में कामयाब रहीं.
आबिदा ने डॉयचे वेले से बात करते हुए कहा, "हर दिन हजारों की संख्या में भारतीयों की मौत हो रही थी क्योंकि लाइफ-सपोर्ट के लिए उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिल रहा था. कई लोगों को तो मौत के बाद सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार भी नसीब नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में आप चैन से कैसे रह सकते हैं या हमें दिलासा दिला सकते हैं? जब लोग मर रहे थे, तो सरकार कुछ नहीं कर पाई. ऐसे में हम इस सरकार पर कैसे विश्वास करेंगे?”
आमना खातून एक निजी कंपनी में सेल्स एक्जीक्यूटिव के तौर पर काम करती हैं. कोविड की वजह से उन्होंने भी अपने चाचा को खोया है. वह कहती हैं कि लोगों में इस बात को लेकर काफी भ्रम है कि क्या भारत में इस्तेमाल होने वाले कोरोनावायरस के टीके इस बीमारी से बचाव करते हैं. साथ ही, टीका लगवाने से होने वाले कई संभावित दुष्प्रभावों को लेकर भी लोगों के बीच गलत धारणाएं बन गई हैं.
टीका लेने के बाद भी मौत होने से पैदा हुआ भ्रम
खातून ने डॉयचे वेले को बताया, "कोरोना की दूसरी लहर में कई ऐसे लोगों की भी मौत हुई है जो टीके की पहली खुराक ले चुके थे. अधिकारियों ने टीके के प्रभाव को लेकर सही तरीके से अपनी बात नहीं रखी है.” सामुदायिक चिकित्सा विभाग के अली जाफर अबेदी कहते हैं, "कई ऐसी आशंकाएं हैं जिसकी वजह से लोग टीका लगवाने में हिचकिचा रहे हैं. लोगों को लगता है कि टीका लेने से उनके शरीर पर गलत प्रभाव होगा. हमें इन्हीं भ्रांतियों को दूर करने की जरूरत है.”
पिछले दो महीने में मुस्लिम समुदाय का एक वर्ग टीका लेने से परहेज कर रहा है. विशेषतौर पर, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना वली रहमानी हाल में हुई मौत के बाद से. कोरोना टीका की पहली खुराक लेने के एक सप्ताह के भीतर वली रहमानी कोरोना पॉजिटिव हो गए थे.
रहमानी की मौत के बाद से टीके के प्रभाव को लेकर मुस्लिम समुदाय के बीच भ्रम की स्थिति बढ़ गई. हालांकि, बात ये है कि कोरोना से शरीर को बचाने वाले एंडीबॉडी बनने में टीके की दूसरी खुराक लेने के बाद दो सप्ताह तक का समय लगता है. टीके को लेकर समाज में फैल रही गलत धारणाओं से निपटने के लिए, कई मुस्लिम नेता जागरूकता अभियान चला रहे हैं.
ध्वस्त स्वास्थ्य व्यवस्था
अलीगढ़ शहर की आबादी करीब 12 लाख है. कोरोना की दूसरी लहर शुरू होने के बाद, अप्रैल और मई महीने में इस शहर की स्वास्थ्य व्यवस्था देश के कई अन्य शहरों की तरह ध्वस्त हो गई थी. मरीज और उनके परिजन अस्पताल में बेड के लिए संघर्ष कर रहे थे. जिन्हें किसी तरह बेड मिल रहा था, वे ऑक्सीजन और दवाइयों जैसी दूसरी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहे थे. पड़ोसी जिले हाथरस और कासगंज के रहने वाले लोग भी इलाज के लिए अलीगढ़ आ रहे थे.
हाथरस की रहने वाली एक गृहिणी आशा देवी ने डॉयचे वेले को बताया, "यह एक बुरा सपना था और सरकार ने हमारी मदद नहीं की. नागरिकों ने एक-दूसरे की मदद की लेकिन जरूरतमंदों की मदद के लिए अस्पताल के बिस्तर नहीं थे.”
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, जिले में 18,700 से ज्यादा लोग कोराना वायरस से संक्रमित हुए और 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुई. हालांकि, यहां रहने वाले लोगों का कहना है कि हकीकत सरकारी आंकड़ों से काफी ज्यादा भयावह थी.
अफवाह को दूर करने और स्पष्ट संदेश देने की जरूरत
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों, कर्मचारियों, और उनके परिजनों के बीच भी कोरोना संक्रमण तेजी से फैला. कई लोगों की मौत हुई. एएमयू के कुलपति तारीक मंसूर ने कहा कि टीका लगवाने से जुड़ी हिचकिचाहट ने कैंपस में कोरोना संक्रमण के मामले को बढ़ाने में योगदान दिया. मंसूर ने पिछले महीने एएमयू समुदाय को लिखे एक खुले खत में कहा था, "टीका लगवाने में हिचकिचाहट की वजह से विश्वविद्याल के कर्मचारी और उनके परिवार के बीच कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े. साथ ही, इसकी वजह से मरने वालों की संख्या भी बढ़ी. मौजूदा स्थिति को नियंत्रित करने और संभावित तीसरी लहर को रोकने के लिए टीका लगवाना जरूरी है.”
कुछ लोगों का मानना है कि टीके को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा होने की एक वजह संवाद की कमी भी है. एक वरिष्ठ फैकल्टी सदस्य ने डीडब्ल्यू को बताया, "शुरू से ही स्पष्ट तौर पर यह संदेश प्रसारित किया जाना चाहिए था कि टीका लेने से लोग गंभीर तौर पर बीमार नहीं होंगे. हालांकि, ऐसा नहीं किया गया. टीका को लेकर मुस्लिम समाज के बीच कई तरह की अफवाहें हैं. उनमें से एक यह भी है कि यह नसबंदी करने के लिए लगाया जा रहा है और यह मुस्लिम आबादी को नियंत्रित करने की एक चाल है.”
ऐसी अफवाहों को दूर करना एक कठिन काम है. हालांकि, कुछ लोगों को लगता है कि इससे बड़ा मुद्दा अधिकारियों के प्रति अविश्वास है. सायरा मेहनाज एक डॉक्टर हैं. वह कहती हैं कि समुदाय के बीच टीका लगवाने से जुड़ी झिझक को दूर किया जा सकता है लेकिन अभी हमें ज्यादा से ज्यादा टीकों की जरूरत है, ताकि बड़ी संख्या में लोगों को टीका लगाया जा सके और उन्हें सुरक्षित किया जा सके.