कोरोना के कारण दोहरे संकट में किसान
१९ अप्रैल २०२०गर्मियों का मौसम महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि देश के अधिकतर किसानों के लिए मुश्किलों से भरा होता है. लेकिन इस बार गर्मियों से पहले ही देश मे कोरोना वायरस ने दस्तक दे दिया, जिसके बाद किसानों को अलग अलग तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. अधिकतर किसान इस समय तैयार फसल को नहीं बेच पाने से मायूस हैं.
लॉकडाउन का किसानों पर असर
कोरोना वायरस या कोविड-19 की चुनौती से निपटने के लिए देश ‘लॉकडाउन' मोड पर है. यह देशव्यापी तालाबंदी किसानों के आर्थिक नुकसान का सबब बन रहा है. विशेषकर सब्जी और फल उत्पादक किसानों की मुसीबतें अधिक बढ़ गईं हैं.
नाशिक और इसके आसपास के क्षेत्र मे अंगूर की खेती खूब होती है. इन दिनों अंगूर खेतों मे पक कर तैयार है. किसानों की परेशानी यह है कि इसे तोड़ दें तो बेचें कहां, और अगर खेतों में इसे यूं ही छोड़ दिया जाय, तो फसल बर्बाद. वसंत खेरनार ने इस बार 6 एकड़ जमीन पर अंगूर उगाया है. वसंत बताते हैं कि लॉकडाउन की वजह से उनकी खेतों मे पक चुके अंगूरों को बेच पाना मुमकिन नहीं हो पा रहा है. अंगूर बचाने के लिए कोल्ड स्टोरेज का सहारा भी नहीं है क्योंकि अधिकतर कोल्ड स्टोरेज पहले से ही भरे पड़े हैं.
अंगूर ही नहीं बल्कि केला, संतरा, आम और अनार जैसे फल उगाने वाले किसान भी परेशान हैं. नांदेड़ ज़िले के सुखदेव जाधव के पास 6 एकड़ खेती की जमीन है. इसमें उन्होंने हल्दी और सब्जियां उगाई हैं. लॉकडाउन से चिंतित सुखदेव कहते हैं कि फसल बेचने मे दिक्कत आ रही है. नाशिक जिले के कोसवान क्षेत्र के किसान राजराम गायकवाड ने ढाई एकड़ मे प्याज की खेती की थी. राजराम का कहना है कि जो प्याज लॉकडाउन के पहले 1800 से 2000 रुपए क्विंटल बिक रहा था वह अब 400 से 800 रुपए के आस पास है.
सप्लाई चेन मे दिक्कत
आम तौर पर नाशिक के अंगूर की मांग देश के दूसरे राज्यों और विदेशों मे भी है. येवला, नाशिक के किसान राहुल का कहना है कि स्थानीय किसानों के लिए बाहर का बाजार बंद हो गया है. उनका कहना है कि कोरोना वायरस के बावजूद नाशिक के अंगूर की मांग बरकरार थी लेकिन लॉकडाउन ने सप्लाई चेन को तोड़ दिया है. किसानों को अपनी उत्पाद दूर दराज के इलाके में भेजने के लिए ट्रांसपोर्ट की समस्या आ रही है. राजराम गायकवाड का भी कहना है कि किसानों को अपना उत्पाद बेच पाने मे कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
कृषि उत्पाद के व्यापार से जुड़े नाशिक के राजेंद्र खंडाले कहते हैं मांग होने के बावजूद सप्लाई नहीं हो पा रही है. शहरों मे लोगों को सब्जियों और फलों की कमी हो रही है जबकि खेतों मे फसल बर्बाद हो रहा है. लॉकडाउन ने अल्फांसो आम को जमीन पर ला पटका है. औसतन 5 हजार रुपए प्रति पेटी का कीमत अब घटकर 2 से 3 हजार रुपए ही रह गई है. कई किसानों को इस भाव पर भी ग्राहक नहीं मिल रहे हैं. संकट के इस दौर मे सरकार का समर्थन करने वाले किसान भी खेतों में खड़ी अपनी फसल को देख मायूस हो रहे हैं.
किसान माल ढुलाई के लिए साधन ना मिलने या स्थानीय मार्केट के बंद रहने से परेशान हैं.
ट्रांसपोर्टर की अपनी समस्याएं हैं
कृषि उत्पाद को उपभोक्ता तक पहुंचाने का जो सप्लाई चेन है उसमे ट्रांसपोर्ट एक अहम कड़ी है. लॉकडाउन मे यही कड़ी कमजोर हो गई है. लॉकडाउन के दौरान कृषि उत्पाद और इससे जुड़ी सेवाओं को जारी रखने की अनुमति दी गई है, लेकिन शुरुआती दिनों मे इसको लेकर किसी को कोई जानकारी नहीं थी.
ट्रांसपोर्टर जगदीश विसपूत बताते हैं कि लॉकडाउन को लेकर शुरू मे स्पष्ट गाइडलाइन नहीं थी जिसके कारण गाड़ियों को रोक लिया जाता था. वह कहते हैं कि व्यवहारिक दिक्कतों के चलते ट्रांसपोर्टर काम लेने से भी घबराते हैं. एक अन्य ट्रांसपोर्टर संजय पाटिल का कहना है कि इन दिनों काम लगभग नहीं के बराबर है और उनकी अधिकतर ट्रकें यहां-वहां खड़ी हैं.
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