हममें से कई लोग कोरोना वायरस से हर दिन संक्रमण और मौत की दर पर नजर रख रहे हैं. आपलोगों ने देखा होगा कि हर देश में मौत की दर अलग है. इसके कुछ कारणों को हमने समझने की कोशिश की है.
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जर्मनी में कोरोना वायरस से कारण संक्रमित लोगों की मौत की दर तुलनात्मक रूप से कम है. यह दर इटली के मुकाबले तो बहुत कम है जहां बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई है. फिलहाल आंकड़े बता रहे हैं कि जर्मनी में संक्रमित लोगों के मौत की दर 0.4 है और इटली में इससे करीब 20 गुना ज्यादा.
विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि इस फर्क के पीछे बहुत सारे कारण हैं. इनमें पहला कारण है पॉपुलेशन पिरामिड या देश की आबादी में लिंग और उम्र का विभाजन. इसके बाद हर देश की मेडिकल या स्वास्थ्य सेवा की क्षमता भी अलग है. इसके बाद सबसे आखिर लेकिन अहम कारण है कोरोना वायरस से संक्रमित कितने लोगों की जांच हुई. आखिरी कारण इस वजह से ज्यादा अहम है क्योंकि इसी के आधार पर आंकड़ों की सत्यता प्रमाणित होती है.
कुछ देशों में मारे गए लोगों की अतिरिक्त जांच की गई और आंकड़ों पर उनसे मिली जानकारियों का भी असर हो सकता है.
किन लोगों का परीक्षण हुआ?
अर्थशास्त्री आंद्रेयास बाकहाउस ने ट्वीट कर बताया है कि इटली में कोरोना वायरस से पीड़ितों की औसत आयु 62 साल है जबकि जर्मनी में 45 साल(इस रिपोर्ट को लिखते समय). इसे इस तरह से समझा जा सकता है कि इटली के जिन युवाओं में हल्के फुल्के लक्षण दिखने के बाद कोरोना का परीक्षण किया गया उनकी संख्या जर्मनी के मुकाबले कम है.
जाहिर है कि जब परीक्षण कम हुआ तो संक्रमित लोगों की सूची से वो लोग पहले ही बाहर हो गए जिनका परीक्षण नहीं हुआ. ऐसे में मौत की दर पर भी इसका असर पड़ा क्योंकि केवल गंभीर रूप से संक्रमित लोगों को ही पीड़ितों में शामिल किया गया. इटली के राष्ट्रीय अखबार कोरियेर डेला सेरा का कहना है कि देश में ऐसे मामलों की संख्या बहुत ज्यादा हो सकती है जिनके बारे में रिपोर्ट नहीं दी गई. इसमें वो लोग भी शामिल है जो संक्रमित हुए और वो भी जिनकी संक्रमण के बाद मौत हुई.
दक्षिण कोरिया में स्थिति बिल्कुल उल्टी है. यहां प्रशासन ने दूसरे देशों की तुलना में बहुत ज्यादा लोगों का परीक्षण किया है. दक्षिण कोरिया में कोरोना के कारण मौत की दर भी बेहद कम है.
पॉपुलेशन पिरामिड
आबादी की औसत आयु भी इसमें भूमिका निभा सकती है. बुजुर्ग लोगों में उनकी पहले से मौजूद बीमारियों के कारण कोरोना वायरस की चपेट में आने का खतरा ज्यादा है. ऐसी स्थिति में वायरस के लिए उनके इम्यून सिस्टम से लड़ना निश्चित रूप से ज्यादा आसान है. आमतौर पर युवा ज्यादा स्वस्थ रहते हैं और जैसे जैसे हमारी उम्र बढ़ती है हमारा इम्यून सिस्टम भी कमजोर पड़ता जाता है और हमारे लिए संक्रामक रोगों की चपेट में आना आसान होता जाता है.
हालांकि सिर्फ इतने भर से ही जर्मनी और इटली के फर्क को नहीं समझा जा सकता. इसकी वजह यह है कि दोनों देशों का पॉपुलेशन पिरामिड लगभग एक जैसा है. 2018 में जर्मनी की मध्यम आयु (सबसे बुजुर्ग और सबसे युवा आबादी की औसत उम्र) 46 साल जबकि इटली की 46.3 साल थी. इस कारण का ज्यादा असर उप सहारा अफ्रीका के देशों में ज्यादा नजर आएगा जहां मध्यम आयु कम है. चाड में मध्यम आयु 16 साल है, यहां यह कारण ज्यादा बड़ी भूमिका निभाएगा.
सांस का सेहत से संबंध
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महामारी का समय
मौत की दर में फर्क को महामारी के समय से भी समझा जा सकता है. जिन देशों में इस महामारी का ज्यादा असर दिखा जैसे कि इटली और स्पेन में, वहां यह जर्मनी से पहले पहुंचा था. वायरस के संक्रमण की शुरूआत से लेकर गंभीर मरीजों की मौत की स्थिति तक पहुंचने में समय लगता है. जिन मामलों की पुष्टि हो चुकी है उनमें मौत की दर महामारी के आखिरी समय में तेज हो सकती है.
कई वैज्ञानिकों का कहना है कि जर्मनी में अभी महामारी अपने गंभीर चरण में नहीं पहुंची है. ऐसी स्थिति आने के बाद हम मौत की दर को बढ़ते देख सकते हैं.
स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति
सबसे अहम सवाल यह है कि देश की स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना वायरस जैसी किसी महामारी का सामना करने के लिए कितनी तैयार हैं. इसके साथ ही यह भी कि क्या वो संक्रमण की गति को रोकने में सक्षम हैं. गति रोकने का मतलब है कि कि क्या संक्रमण और मृत्यु दर को पूरी आबादी में रोग के फैलने के बाद भी स्थिर रखा जा सकता है.
यह संभव है, उदाहरण के लिए कोरोना वायरस के गंभीर मरीजों को सांस देने वाली या वेंटीलेटर मशीनों के सहारे मरने से रोका जा सकता है. ऐसे में जरूरी यह है कि पर्याप्त संख्या में ऐसे अस्पताल, बेड और मशीनें मौजूद हों. अगर बहुत कम इंटेंसिव केयर बेड और वेंटीलेटर होंगे तो जिन मरीजों को इनकी सुविधा नहीं मिलेगी उनके मरने का खतरा ज्यादा होगा.
सिर्फ इसी मामले में जर्मनी और इटली के बीच बड़ा फर्क है. इटली में 6 करोड़ की आबादी है. महामारी जब शुरू हुई तो वहां इंटेंसिव केयर के 5000 बेड मौजूद थे. जर्मनी में 8 करोड़ की आबादी है और यहां 28,000 इंटेंसिव केयर बेड हैं. कहा यह भी जा रहा है कि जर्मनी बहुत जल्द अपने इंटेंसिव केयर बेड की संख्या दोगुनी कर लेगा.
गरीबों के लिए "कोरोना कवर"
लॉकडाउन के कारण जिन लोगों की कमाई का जरिया बंद हो गया उनके लिए सरकार ने कई एलान किए हैं. एक नजर डालते हैं केंद्र और राज्यों के मरहम पर.
तस्वीर: DW/A. Sharma
कोरोना पैकेज
कोरोना वायरस के चलते भारत सरकार ने 1.7 लाख करोड़ पैकेज का एलान किया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐसे लोगों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की है जो गरीब और कमजोर तबके के हैं.
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सबसे बड़ी राहत
21 दिनों के लॉकडाउन के कारण संकट से जूझ रहे गरीब, किसान, मजदूर, छोटे कर्मचारियों और महिलाओं को राहत देने के लिए इस योजना को दो हिस्सों में बांटा गया है. पहली कोशिश हर नागरिक के पेट भरने की है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों को खाद्य मदद दी जाएगी.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
गरीब कल्याण योजना
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को तीन महीने तक मुफ्त राशन दिया जाएगा. ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के तहत काम करने वालों को अब 182 रुपये के बदले 202 रुपये मिलेंगे. इससे उनकी आय में 2000 रुपये की बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा तीन करोड़ गरीब वृद्धों, गरीब विधवाओं और गरीब दिव्यांगों को एक-एक हजार रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा हुई है.
तस्वीर: Reuters/D. Siddiqui
लॉकडाउन में भी जलता रहे चूल्हा
उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को अगले तीन महीने तक मुफ्त में रसोई गैस सिलेंडर देने का ऐलान हुआ है, इससे 8 करोड़ गरीब परिवारों को लाभ होगा.
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किसानों की फिक्र
राहत पैकेज के तहत देश के 8.7 करोड़ किसानों के खाते में अप्रैल के पहले हफ्ते में 2000 रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे.
तस्वीर: Reuters/A. Sharma
कोरोना योद्धाओं का बीमा
कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों, पैरा मेडिकलकर्मियों, नर्स, आशा सहयोगी और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए बीमा की घोषणा की गई है. सरकार ने इन लोगों के लिए 50 लाख रुपये के मेडिकल इंश्योरेंस का ऐलान किया है. इसका लाभ करीब 20 लाख मेडिकल कर्मियों को मिलेगा.
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महिलाओं के लिए सहायता
जनधन योजना के जरिए 20 करोड़ महिलाओं के खाते में अगले 3 महीने तक डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के जरिए हर महीने 500 रुपये दिए जाएंगे.
तस्वीर: DW/A. Ansari
राज्यों की पहल
लॉकडाउन के कारण प्रभावित लोगों की मदद के लिए राज्य की सरकारें भी आगे आ रही हैं. बिहार सरकार ने राशन कार्डधारी परिवार को एक महीने का मुफ्त राशन देने का एलान किया है.
तस्वीर: DW/A. Ansari
आरबीआई की राहत
कोरोना से अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए रिजर्व बैंक ने भी बड़ी घोषणाएं की हैं. आरबीआई ने रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर में कटौती की घोषणा की है. साथ ही आरबीआई ने टर्म लोन की किश्त चुकाने में तीन महीने की छूट दी है. ग्राहक अपनी मर्जी से ईएमआई चुका सकते हैं लेकिन बैंक दबाव नहीं डालेगा. इसका यह मतलब नहीं कि बकाया कभी चुकाना ही नहीं पड़ेगा. सिर्फ तीन महीने की मोहलत दी गई है.
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प्रवासी मजदूरों की चिंता
बड़े शहरों से गांवों की तरफ पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी की है. केंद्र ने राज्यों से खेतिहर मजदूरों, औद्योगिक मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पलायन रोकने को कहा है. केंद्र की ओर से राज्यों को सलाह दी गई है कि वे इन समूहों को मुफ्त अनाज और अन्य जरूरी चीजों के बारे में जानकारी दे जिससे बड़े पैमाने पर पलायन को रोका जा सके.
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इंटेंसिव केयर बेड
दुनिया भर में इंटेंसिव केयर बेड की मौजूदगी की कहानी अलग है. जर्मनी में प्रति 1 लाख लोगों पर 29 बेड हैं जबकि अमेरिका में 34. इसी तरह इटली में केवल 12 और स्पेन में प्रति एक लाख लोगों पर केवल 10 इंटेंसिव केयर बेड हैं. यहां यह ध्यान देना भी जरूरी है कि दक्षिण कोरिया ने बड़े पैमाने पर टेस्ट और मरीजों को अलग थलग रखने की व्यवस्था के जरिए कोविड 19 को फैलने से रोका है. दक्षिण कोरिया में 1 लाख लोगों पर इंटेंसिव केयर के महज 10.6 बेड ही मौजूद हैं.
दक्षिण कोरिया ने लोगों को क्वारंटीन करने के लिए सख्त नियम बनाए और शुरूआत से ही संक्रमण की गति को एक समान बनाए रखा. इस देश में महज 10 हजार लोग संक्रमित हुए हैं. इटली में यहां से 8 गुना, जर्मनी में 5 गुना और स्पेन में छह गुना और अमेरिका में 10 गुना ज्यादा लोग संक्रमित हुए हैं. जब तक यह महामारी चल रही है तब तक अलग अलग देशों में इसके संक्रमण और मौत की दरों के बारे में अंतर दिखता रहेगा. एक बार जब सबकुछ थम जाएगा तब शायद ज्यादा भरोसेमंद आंकड़े सामने आ सकेंगे.
चीन से आए कोरोना वायरस से बचने के तमाम उपाय अगर आप इंटरनेट पर खोज रहे हैं तो आपको सावधान रहने की भी जरूरत है. सोशल मीडिया पर लिखी हर चीज सच नहीं होती. कोरोना वायरस को लेकर फैले इस तरह के भ्रम से दूर रहिए.
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चीन से आए पार्सल से कोरोना वायरस फैल सकता है?
कोरोना वायरस कैसे फैलता है इसको लेकर वैज्ञानिक जानकारियां जुटा रहे हैं. अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के मुताबिक कोरोना वायरस का अस्तित्व सतह पर खत्म हो जाता है. जिसके कारण चीन से आने वाले उत्पादों या पैकेट से वायरस के फैलने का जोखिम बहुत कम है. तो अगली बार डिलीवरी बॉय आपके घर चीन से मंगाया आपका सामान लेकर आए तो आपको डरने की जरूरत नहीं है.
नाक में ब्लीच लगाने से कोरोना से बचा जा सकता है?
ब्लीच या क्लोरीन जैसे कीटाणुनाशक सॉल्वैंट्स जिसमें 75 प्रतिशत इथेनॉल, पैरासिटिक एसिड और क्लोरोफॉर्म होता है, असल में कोरोना वायरस को सतह पर खत्म कर सकते हैं. हालांकि ऐसे कीटनाशकों को त्वचा पर लगाने से कोई फायदा नहीं होता बल्कि शरीर पर ऐसे रसायन डालना बेहद खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकता है.
पालतू जानवरों से कोरोना वायरस फैल सकता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक घर के पालतू जानवरों जैसे बिल्ली या कुत्तों से कोरोना वायरस नहीं फैलता. जानवरों से फैलने वाले दूसरे बैक्टीरिया से बचने के लिए पालतू जानवरों को हाथ लगाने के बाद हाथ धोना अपने आप में अच्छी आदत है. शोधकर्ता कह चुके हैं कि चीन के वुहान शहर में किसी जंगली जानवर से कोरोना वायरस दुनिया भर में फैला.
निमोनिया की वैक्सीन कोरोना वायरस का भी इलाज है?
यह वायरस नया और अलग है. इस वायरस की अपनी वैक्सीन बनाई जा रही है. निमोनिया की वैक्सीन कोरोना वायरस का उपचार नहीं है. इस समय विश्व में कई देशों के वैज्ञानिक कोरोना वायरस या 2019 - एनकोव से लड़ने वाली वैक्सीन बनाने में जुटे हैं.
खारे पानी से नाक धोने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है?
सोशल मीडिया पर ऐसा पोस्ट वायरल हो रहा है जिसके मुताबिक खारे पानी से नाग रगड़ने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो इस दावे की पुष्टि करता हो.
माउथवॉश के गरारे से वायरस से बचा जा सकता है ?
माउथवॉश के गरारे से कोरोना वायरस से नहीं बचा जा सकता है. कुछ कंपनियों के माउथवॉश कुछ मिनटों के लिए आपकी लार में रहने वाले विशेष रोगाणुओं को खत्म कर सकते हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह आपको कोरोना वायरस से नहीं बचाता.
लहसुन खाने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है?
यह दावा सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है. लहसुन में जरूर कुछ रोगाणुरोधी गुण होते हैं लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए लहसुन लाभकारी नहीं है.
गलत सूचना पर कार्रवाई
सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक और ट्विटर वायरस के बारे में गलत जानकारी वाले पोस्ट हटाने पर काम कर रहे हैं. जनवरी के आखिर में फेसबुक ने घोषणा की है कि वह ऐसी पोस्ट हटा देगा जिसमें कोरोना वायरस के बारे में गलत दावे और गलत जानकारी दी गई है. (रिपोर्ट-जेसी लिया विंगार्ड/एसबी)