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समाज

कोरोना के रिकॉर्डतोड़ मामलों के बीच परेशान कारोबारी

हृदयेश जोशी
१९ अप्रैल २०२१

कोरोना से मची खलबली के बीच कारोबारियों का कहना है कि पूर्ण तालाबंदी से हालात और खराब होंगे.

Indien | Coronakrise: Wanderarbeiter kehren zurück
तस्वीर: Manish Kumar/DW

रविवार को भारत में कोरोना के 2 लाख 75 हजार मामले सामने आए और आधिकारिक रूप से 1,600 से अधिक लोगों की कोरोना से मौत हुई. यह सिर्फ आधिकारिक आंकड़े हैं. असल संख्या इससे अधिक होने की आशंका है क्योंकि राजधानी दिल्ली समेत देश के तमाम शहरों में लोग या तो कोरोना टेस्ट नहीं करा पाए या दो-तीन दिन से अपनी रिपोर्ट का इंतजार ही कर रहे थे.

इस बीच कई राज्यों ने आंशिक तालाबंदी यानी लॉकडाउन के कड़े नियमों को लागू किया है. दिल्ली सरकार ने सोमवार रात से राजधानी में हफ्ते भर का कर्फ्यू लगा दिया है. मुख्यमंत्री केजरीवाल ने इस कर्फ्यू के दौरान जरूरी सेवाओं को जारी रखने के साथ जरूरी चीजों की दुकानें खुली रखने, फूड डिलीवरी का काम जारी रखने और निर्माण इकाइयों को खुला रखने के आदेश दिया है.

केजरीवाल ने प्रवासी मजदूरों से भी कहा है वह शहर छोड़कर न जाएं क्योंकि यह लॉकडाउन लंबा नहीं होगा और उम्मीद है कि इसे आगे बढ़ाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. उद्योगपतियों, खासतौर से छोटे और मझौले कारोबारियों ने सरकार से अपील की है कि कोई कड़ा कदम उठाते वक्त अर्थव्यवस्था और गरीबों की रोजी रोटी का खयाल रखा जाए. इस बीच वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने औद्योगिक संघों को भरोसा दिलाया कि पिछले साल की तरह लॉकडाउन का सरकार का अभी कोई इरादा नहीं है.

असमंजस के हालात

कोरोना के बिगड़ते हालात के बीच प्रवासी मजदूरों और कर्मचारियों में एक बार फिर से डर बैठ गया है. तमाम राज्यों के बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों पर घर लौटने के लिए लोग जमा हो रहे हैं. पिछले साल मार्च में घोषित लॉकडाउन के बाद लाखों प्रवासियों को सैकड़ों किलोमीटर पैदल चल कर घर जाना पड़ा था और वह दोबारा वैसे हालात से गुजरना नहीं चाहते. जाहिर है इसका असर कारोबार पर दिखने लगा है.

दिल्ली से सटे फरीदाबाद के कारोबारी राज चावला, जो सूक्ष्म, लघु और मझौले उद्योगों (एमएसएमई सेक्टर) को मदद करने वाली एक संस्था के अध्यक्ष भी हैं, का कहना है कि कोरोना और लॉकडाउन को लेकर किसी स्पष्ट नीति की घोषणा में सरकार ने बहुत देर कर दी है. चावला के मुताबिक, "व्यापार पर महामारी का असर पहले ही दिख रहा है. मार्च से सेल्स में कमी आने लगी और उत्पादन गिर रहा है. बिजनेस पहले ही ढलान पर है. अब जिस तरह से पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार चला है और कुंभ जैसे धार्मिक समागम हुए हैं, हम महसूस करते हैं कि बीमारी का ग्राफ मई तक ही पीक पर पहुंचेगा क्योंकि संक्रमित लोगों के लक्षण दिखने में दो हफ्ते तक वक्त लग जाता है. ऐसे में उद्योगों पर कड़ी तालाबंदी किसी मकसद को हल नहीं करती."

पाबंदियां मंजूर, तालाबंदी नहीं

लॉकडाउन की आशंका से सबसे अधिक एमएसएमई सेक्टर के कारोबारी और कर्मचारी ही घबराए हुए हैं. यह क्षेत्र देश की जीडीपी में एक तिहाई से अधिक योगदान देता है और इसमें कम से कम 15 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है. उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक राजस्व कमाने वाले जिले नोएडा में 20 हजार उद्योग हैं जिनमें 15 लाख से अधिक कर्मचारी काम करते हैं. नोएडा एमएसएमई औद्योगिक संघ के जिला अध्यक्ष सुरेंद्र सिंह नाहटा कहते हैं कि 13 लाख कर्मचारियों के बीमा और सामाजिक सुरक्षा कार्ड बने हैं.

नाहटा कहते हैं, "हम पाबंदियों के पक्ष में हैं लेकिन पूर्ण तालाबंदी के पक्ष में कतई नहीं हैं. हम चाहें तो एक दिन आधा मार्केट खोलकर दूसरे दिन बाकी आधा कारोबार खोल सकते हैं. कर्मचारियों की प्रतिदिन हाजिरी आधी कर सकते हैं लेकिन सब कुछ बंद करना तो समाधान नहीं है क्योंकि यह भी तो नहीं पता कि कोविड की समस्या कब चलेगी."

नाहटा कहते हैं कि ऐसे कठिन समय में उद्योगों को प्रशासन का सहयोग चाहिए क्योंकि जितनी विनाशक कोरोना महामारी है, उतनी ही भुखमरी और बेरोजगारी, "जब पिछले साल मजदूर अपने घरों को लौट गएह थे, तो हमारे कारोबारी साथियों ने यहां के सुधरते हालात के वीडियो बना कर उन्हें भेजे थे और भरोसा देकर वापस बुलाया. अब वही मजदूर वापस जाने को हैं. इससे किसका फायदा होगा? हम प्रशासन से सहयोग मांग रहे हैं लेकिन सभी अधिकारी उदासीन बने हुए हैं."

उधर यूपी की ही एक अन्य कारोबारी शोभा धवन कहती हैं कि काम के दौरान कोविड से जुड़े नियमों का पालन सख्ती से हो, इसके लिए उनकी फैक्ट्रियों में रोजाना दो बार लैक्चर दिया जाता है. धवन के मुताबिक, "इस बीमारी से लड़ने के लिए अनुशासन चाहिए. लॉकडाउन हल नहीं है. हम कोविड से जुड़े नियम और हिदायतें रोज समझा रहे हैं ताकि वर्कर सुरक्षित भी रहें और काम भी चले. काम को रोकना समस्या का कोई हल नहीं है."

सरकार कारोबारियों के संपर्क में

महाराष्ट्र में पहले ही धारा 144 के साथ एक मई तक सख्त लॉकडाउन लगा दिया है. वहीं राजस्थान ने भी रविवार को कुछ रियायतों के साथ 15 दिन का लॉकडाउन घोषित किया. यूपी में नाइट कर्फ्यू लागू है और इसी तरह की पाबंदियां अन्य राज्य भी लगा रहे हैं लेकिन सभी राज्यों ने फैक्ट्रियों को इस तालाबंदी से छूट दी है जिससे पता चलता है कि सरकार को इस बार अहसास है कि पूर्ण तालाबंदी अर्थव्यवस्था और गरीब पर भारी पड़ेगी और इससे हालात बिगड़ेंगे.

उत्तराखंड में कुंभ में बड़े जमावड़े के बाद दिल्ली सरकार ने आदेश जारी किया है कि राज्य से आने वाले हर व्यक्ति को 15 दिन के होम आइसोलेशन में रहना होगा और 30 अप्रैल को अगले स्नान के लिए जाने वाले को अपनी पूर्ण पहचान के साथ रजिस्ट्रेशन कराना होगा. मध्य प्रदेश सरकार ने भी हरिद्वार से आने वालों को क्वारंटीन करने के आदेश दिए हैं और गुजरात ने इन यात्रियों को आरटी-पीसीआर रिपोर्ट दिखाने को कहा है.

सूत्र बताते हैं कि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने उद्योग संघों को भरोसा दिलाया कि सरकार का पूर्ण लॉकडाउन का कोई इरादा नहीं है. इस पर कोई आधिकारिक बयान नहीं है लेकिन इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक वित्तमंत्री ने उद्योगों से कहा है कि लॉकडाउन के बजाया सरकार छोटे-छोटे कंटेनमेंट जोन बनाए ताकि बीमारी का फैलाव रुके.

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