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समाज

कोरोना के शिकार हुए कोलकाता के मूर्तिकार भी

प्रभाकर मणि तिवारी
११ मई २०२०

पश्चिम बंगाल के सबसे बड़े त्योहार दुर्गा पूजा पर भी कोरोना की काली छाया गहराने लगी है. यूं तो करीब पांच महीने बचे हैं, लेकिन तैयारियां छह महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं. लॉकडाउन के चलते बहुत सारी अनिश्चितताएं हैं.

BdTD Indien Vorbereitungen für das Hindu-Festival Durga Puja
तस्वीर: Getty Images/AFP/A. Sankar

मूर्तिकारों के सबसे बड़े मोहल्ले कुमारटोली में मूर्तियों के आर्डर भी छः महीने पहले ही दे दिए जाते हैं, लेकिन कोलकाता में कुमारटोली में सन्नाटा पसरा है. यह इस इलाके के मूर्तिकारों के लिए सबसे व्यस्त समय होता था. फिलहाल इस मोहल्ले को सील कर दिया गया है. नतीजतन मूर्तिकार मूर्तियां गढ़ने की बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं. इनके साथ ही हजारों की तादाद में ऐसे मजदूर भी अनिश्चित भविष्य की ओर ताक रहे हैं जो पूजा के पंडाल बनाते थे. यही हाल बिजली की सजावट करने वाले हुगली जिले के चंदननगर के कलाकारों का है.

लॉकडाउन और मंदी के चलते कोलकाता समेत राज्य की ज्यादातर प्रमुख आयोजन समितियों ने इस बार अपने बजट में 50 से 70 फीसदी तक कटौती करने का फैसला किया है क्योंकि उनको प्रायोजक मिलना मुश्किल है. लेकिन इस कटौती के बावजूद पूजा पर अनिश्चितता कायम है. इसके साथ ही सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या आगे हालत सुधारने की स्थिति में मूर्तिकार कम समय में इतनी बड़ी तादाद में मूर्तियां बना सकेंगे? अकेले कोलकाता और आसपास के इलाकों में ही छोटी-बड़ी चार हजार पूजा आयोजित की जाती है.

तस्वीर: DW/R. Chakraborty

मूर्तिकारों की चिंता

पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा से पहले हर साल कोलकाता में मूर्तिकारों के सबसे बड़े मोहल्ले कुमारटोली के कलाकारों को सिर्फ मौसम की चिंता सताती रहती थी. उनको आशंका रहती थी कि कहीं बारिश नहीं होने लगे. इससे मूर्तियों को सुखाना मुश्किल हो जाएगा. लेकिन इस साल उनके मन में बारिश की दूर-दूर तक चिंता नहीं है. जब मूर्तियां बनाने का काम ही ठप है तो बारिश की चिंता क्या करना. इस साल तो कोरोना वायरस ही महिषासुर बना हुआ है. कोरोना के आतंक की वजह से कुमारटोली में मार्च में ही एक पोस्ट लगा कर विदेशियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई थी. मूर्तिकारों को काम करते देखने और उकी फोटो खींचने के लिए मोहल्ले में विदेशियों की भारी भीड़ जुटती रही है.

कुमारटोली के मूर्तिकारों के संगठन के सदस्य अपूर्व पाल बताते हैं, "इस साल तो काम ही शुरू नहीं हो सका है. हम हर साल विदेशों में दो सौ ज्यादा प्रतिमाएं भेजते थे. लेकिन इस साल महज 10 मूर्तियां मार्च के दूसरे सप्ताह में भेजी गई थीं.” मूर्तिकारों का कहना है कि दुर्गा पूजा के दौरान होने वाली कमाई से ही पूरे साल उनकी रोजी-रोटी चलती थी. लेकिन इस साल इसी पर कोरोना का ग्रहण लग गया है. महिला मूर्तिकार चायना पाल कहती हैं, "इस साल हम कोरोना से भले बच जाएं, लगता है भूख से मर जाएंगे. कमाई का सीजन कोरोना की भेंट चढ़ गया है.” वह कहती हैं कि फिलहाल अगले कुछ महीनों के दौरान हालात सामान्य होने के आसार कम ही हैं. उसके बाद भी जो समय बचेगा उसमें ज्यादा मूर्तियां बनाना संभव नहीं है.

पंडाल की तैयारीतस्वीर: DW/Prabhakar Mani Tewari

कोलकाता में लगभग पांच सौ बड़े बजट वाली पूजा होती है जिनका बजट लाखों और कुछ मामलों में करोड़ों में होता है. कुमारटोली में तीन पीढ़ी से काम करने वाले मूर्तिकार अतनु पाल (83) कहते हैं, "मैंने कभी ऐसा संकट नहीं देखा था. मेरे बाप-दादा ने भी कभी ऐसी किसी महामारी की वजह से कमाई ठप होने का जिक्र नहीं किया था. कोरोना की वजह से ज्यादातर पूजा समितियों ने अपने बजट में कटौती करते हुए आर्डर रद्द कर दिए हैं. उन सबने हालात सुधरने पर संपर्क करने का भरोसा दिया है. लेकिन हर बीतते दिन के साथ उम्मीदें क्षीण हो रही हैं.” मूर्तिकारों को डर है कि बजट में कटौती की वजह से अब अगर समय पर पूजा आयोजित की गई तो उनको भी मूर्तियों की कीमत घटानी होगी. चायना पाल कहती हैं, "ऐसा नहीं किया तो शायद हमारी एक भी मूर्ति नहीं बिकेगी.”

कुमारटोली मूर्तिकार सांस्कृतिक समिति के प्रवक्ता बाबू पाल बताते हैं, "दुर्गा पूजा से पहले मूर्तियां तैयार करना एक कड़ी चुनौती होगी. फिलहाल हम मुनाफा कमाने की स्थिति में नहीं हैं. इस साल मांग में पहले के मुकाबले काफी कमी का अंदेशा है.”

बजट में कटौती

कोलकाता और आस-पास की तमाम प्रमुख पूजा समितियों ने इस साल अपने बजट में 50 से 70 फीसदी तक कटौती करने का फैसला किया है. एक आयोजक सौम्य बनर्जी कहते हैं, "हमने पंडाल बनाने और सजाने वाले कलाकारों को अग्रिम रकम का भुगतान कर दिया है. लेकिन अब कार्पोरेट सेक्टर से न तो विज्ञापन मिलेंगे और न ही प्रायोजक. ऐसे में हमें बजट में मजबूरन भारी कटौती करनी होगी.” एक अन्य आयोजन समिति के सचिव सुबीर दास कहते हैं, "इस साल हम बीते साल के मुकाबले आधे खर्च पर पूजा आयोजित करेंगे.” कोलकाता के शीर्ष पांच आयोजनों में शामिल कॉलेज स्क्वायर पूजा समिति ने तो अपने बजट में 90 फीसदी की कटौती कर दी है. आयोजन समिति के संरक्षक सुब्रत मुखर्जी कहते हैं, "फिलहाल तो पूजा पर ही कोरोना का गहरा साया मंडरा रहा है. पूजा का आयोजन अबकी बेहद छोटे पैमाने पर किया जाएगा. इस साल ज्यादातर पंडालों में सजावट या बिजली की झालरें देखने को भी नहीं मिलेंगी.”

तस्वीर: DW/R. Chakraborty

पूजा समितियों के बजट में कटौती ने पंडाल बनाने वाले हजारों मजदूरों और बिजली की सजावट का काम करने वाले हुगली जिले के चंदननगर के कलाकारों के सामने भी आजीविक का संकट पैदा कर दिया है. कोलकाता में दुर्गा पूजा के दौरान बिजली की झालरों के जरिए देश-दुनिया में पूरे साल घटने वाली घटनाओं का सजीव चित्रण किया जाता है. लेकिन इस साल ऐसा कुछ नहीं होगा. पंडाल बनाने वाले मजदूर राज्य के विभिन्न हिस्सों से यहां आकर महीनों काम करते हैं. मालदा जिले के सौरभ कर्मकार सवाल करते हैं, "इस साल हमारा पता नहीं क्या होगा. हर साल पंडाल बना कर हम अच्छी-खासी रकम कमा लेते थे. लेकिन इस साल कोरोना ने तमाम समीकरण गड़बड़ा दिए हैं.” चंदननगर के बिजली कलाकार भी हताश हैं. एक कलाकार बाबलू पाल कहते हैं, "दुर्गा पूजा हमारी कमाई का सबसे बड़ा साधन था. इसी कमाई से हम पूरे साल परिवार का पेट पालते थे. लेकिन अबकी इस पर कोरोना का ग्रहण लग गया है.”

लगातार लंबे खिंचते लॉकडाउन के दौरान कमाई ठप होने की वजह से कुमारटोली के मूर्तिकारों ने राज्य सरकार से विशेष पैकेज की मांग की है. एक मूर्तिकार मंटू पाल कहते हैं, "सरकार को हमारा ख्याल रखना चाहिए ताकि हम दो जून की रोटी खा सकें.” फिलहाल कुछ गैर-सरकारी संगठनों ने मोहल्ले में राशन और दूसरी चीजें बांटी हैं. लेकिन वह नाकाफी ही है. इलाके की विधायक और राज्य की बाल व महिला कल्याण मंत्री शशी पांजा कहती हैं, "सरकार मूर्तिकारों की मांग पर सहानुभूति से विचार कर रही है." लेकिन मौजूदा परिस्थिति में अबकी दुर्गा पूजा इनके लिए खुशियों की बजाय हताशा की सौगात लेकर ही आएगी."

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