भारत में कोरोना से लड़ रही टीमें संक्रमण की पूरी चेन का पता लगा कर उसकी जड़ तक पहुंचने की कोशिश कर रही हैं. लेकिन यह काम आसान नहीं. सिंगापुर में स्मार्टफोन कोरोना को रोकने में मददगार साबित हुआ है.
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मुंबई के धारावी में कोई एक व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाया जाता है. इतनी भीड़भाड़ वाले इलाके में कैसे पता लगाया जाए कि वह किस किस से संपर्क में आया था? कोरोना से लड़ रही टीमें अपने अपने तरीकों से संपर्क में आए व्यक्तियों की सूची बनाती हैं, फिर उन सबसे भी पूछताछ करती हैं कि वे लोग कहां कहां गए, किस किस से मिले. कोई चेन दिल्ली के निजामुद्दीन तक पहुंचाती है, तो कोई देश के किसी और भीड़भाड़ वाले इलाके में. हर जगह यही सब किया जाता है. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि यह काम कितना मुश्किल है. यह चोर पुलिस जैसा खेल है जिसमें पुलिस इधर उधर चोर का पीछा करती फिर रही है. एक चोर को पकड़ती है तो उसके दस और साथियों का पता चल जाता है, फिर उनके पीछे निकल पड़ती है. पर इस तरह से तो इस खेल का कोई अंत ही नहीं दिखता.
इसीलिए यूरोप में डॉक्टर और इंजीनियर सरकारों के साथ मिल कर कुछ ऐसे ऐप बनाने में लगे हैं जो पता लगा पाएंगे कि कोरोना संक्रमित लोग कब और किससे मिले. यानी जो काम भारत में टीमें कर रही हैं वह काम तकनीक कर देगी. आइडिया यह है कि स्मार्टफोन में लोकेशन ट्रैकर की मदद से संक्रमित व्यक्ति पर नजर रखी जाए. यह कोई नई तकनीक नहीं है. गूगल जैसी बड़ी कंपनियां ट्रैफिक का हाल बताने के लिए इसी का इस्तेमाल करती हैं. लेकिन अगर सरकार लोकेशन के बहाने आपके फोन में झांक सके, तो निजता का क्या होगा? इस बात की क्या गारंटी है कि फोन में मौजूद बाकी के डाटा को नहीं देखा जाएगा? इस तरह के सवाल लोगों को परेशान कर रहे हैं. खास कर यूरोप में डाटा सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है.
यूरोपीय आयोग इस वक्त मोबाइल ऑपरेटरों के साथ मिल कर इस पर चर्चा कर रहा है कि कैसे सुरक्षित तरीके से सिर्फ जरूरत का डाटा ही निकाला जाए. फ्रांस और जर्मनी में रिसर्च के मकसद से इसका इस्तेमाल पहले भी होता रहा है. इसके लिए "एनॉनिमाइज एंड एग्रीगेट" तकनीक का इस्तेमाल होता है. इसमें सिर्फ जिस डाटा की जरूरत होती है उसे ही लिया जाता है जैसे कि लोकेशन और यूजर की पहचान को जाहिर करने वाला डाटा सेव नहीं किया जाता. इसके बाद इसे ऐसे एग्रेगेटर में डाला जाता है जहां यह पहचानना नामुमकिन हो जाता है कि कौन सा डाटा किस यूजर से आया. लेकिन कोरोना संक्रमण के मामले में यूजर की पहचान करना भी जरूरी है. ऐसे में इस तकनीक में कैसे बदलाव किए जा सकते हैं, इस पर चर्चा चल रही है.
कोरोना वायरस की वे बातें जो हम अब तक नहीं जानते
चीन से दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस पर इतनी चर्चा और गहन रिसर्च के बावजूद हम इस खतरनाक वायरस के बारे में कई अहम बातें नहीं जानते हैं. डालते हैं इन्हीं पर नजर:
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किसके लिए घातक
सबसे बड़ा रहस्य यह है कि 80 फीसदी लोगों में इसके लक्षण या तो दिखते ही नहीं या बहुत कम दिखते हैं. दूसरे लोगों में यह घातक न्यूमोनिया की वजह बन उनकी जान ले लेता है. ब्रिटिश जर्नल लांसेट में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक संक्रमण से सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों के नाक और गले में वायरस का जमाव कम पीड़ित लोगों की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा होता है.
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और रिसर्च की जरूरत
तो क्या यह माना जाए कि बढ़ती उम्र की वजह से ज्यादा पीड़ित लोगों का प्रतिरोधी तंत्र मजबूती से काम नहीं कर रहा है या फिर वे वायरस के संपर्क में ज्यादा थे? यह सवाल अपनी जगह कायम है. अभी इस बारे में और रिसर्च करने की जरूरत है.
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हवा में वायरस
माना जाता है कि कोरोना वायरस शारीरिक संपर्क और संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से निकलने वाली छोटी छोटी बूंदों से फैलता है. तो फिर यह वायरस मौसमी फ्लू फैलाने वाले वायरस की तरह हवा में कैसे रह सकता है?
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वायरस की ताकत
अध्ययन बताते हैं कि नया कोरोना वायरस लैब मे तीन घंटे तक हवा में रह सकता है. वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि इतनी देर हवा में रहने के बाद भी क्या यह किसी को संक्रमित कर सकता है? पेरिस के सेंट अंटोनी अस्पताल की डॉक्टर कैरीन लाकोम्बे कहती हैं, "हम वायरस ढूंढ तो सकते हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्या वायरस तब संक्रमण में सक्षम है."
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असल मामले कितने
दुनिया में जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देश ही सघन जांच कर रहे हैं. ऐसे में दुनिया भर में कोरोना के मामलों की असल संख्या क्या है, यह नहीं पता. ब्रिटिश सरकार ने 17 मार्च को अंदेशा जताया कि 55 हजार लोगों को वायरस लग सकता है जबकि तब तक महज 2000 लोग ही टेस्ट में संक्रमित पाए गए थे.
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नए तरीके की जरूरत
बीमारी से निपटने और इसे रोकने के लिए कुल मरीजों की असल संख्या जानना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें अलग रखा जा सके और उनका इलाज हो सके. यह तभी संभव होगा जब ब्लड टेस्ट के नए तरीके विकसित किए जा सकें.
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गर्मी से भागेगा कोरोना?
क्या उत्तरी गोलार्ध में वसंत के गर्म दिनों या गर्मी के आने बाद कोविड-19 बीमारी रुक जाएगी? विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा संभव है, लेकिन पक्के तौर पर ऐसा कहना मुश्किल है. फ्लू जैसे सांस संबंधी वायरस ठंडे और सूखे मौसम में ज्यादा टिकते हैं इसीलिए वे सर्दियों में तेजी से फैलते हैं.
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चेतावनी
अमेरिका के मेडिकल हावर्ड स्कूल ने चेतावनी दी है कि मौसम में बदलाव होने से जरूरी नहीं है कि कोविड-19 के मामले रुक जाएं. विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम से भरोसे रहने की बजाय बीमारी की रोकथाम के सभी प्रयासों को लगातार और तेजी से किए जाने की जरूरत है.
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कोरोना एक पहेली
वयस्कों के मुकाबले बच्चों को कोविड-19 होने का खतरा कम है. जो संक्रमित भी हुए वे ज्यादा बीमार नहीं हुए. बीमार लोगों के साथ रहने वाले बच्चों में भी इस वायरस से लगने की संभावना दो से तीन गुनी कम थी. प्रोफेसर लाकोम्बे कहती हैं, "कोरोना के बारे में बहुत सारी बातें हैं जो हम अब तक नहीं जानते हैं जो इस वायरस से निपटने में बाधा बन रही हैं." रिपोर्ट: एके/एनआर (एएएफपी)
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एक दूसरा तरीका है जिसमें ब्लूटूथ का इस्तेमाल होता है. अगर आप वायरलेस हेडफोन या स्पीकर इस्तेमाल करते हैं तो आप जानते हैं कि ब्लूटूथ कैसे काम करता है. सिंगापुर की एक कंपनी इसी का इस्तेमाल कर रही है. अगर लोगों के स्मार्टफोन पर इस कंपनी का ऐप डला है और उनका ब्लूटूथ भी ऑन है तो वह आसपास के लोगों के फोन से कोड जमा कर सकता है. इस तरह से पता किया जा सकता है कि क्या किसी पार्क या अन्य सार्वजनिक जगह पर ज्यादा लोग तो जमा नहीं हैं.
सिंगापुर में इसका इस्तेमाल हो रहा है और जर्मनी भी इसे इस्तेमाल करने पर विचार कर रहा है. इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि यूजर का सारा डाटा सुरक्षित रहता है, बाहर से कोई उसे नहीं देख सकता. और सबसे बड़ा नुकसान यह है कि यह तभी काम करेगा अगर लोग अपनी मर्जी से ऐप और ब्लूटूथ दोनों चलाने को राजी होंगे. यानी अगर कुछ लोग बड़ी संख्या में कहीं जमा होते हैं और सभी का ब्लूटूथ बंद है तो उनकी जानकारी नहीं मिल सकेगी.
सिंगापुर में जनता ने साथ दिया. सरकार के पास ऐसे लोगों का डाटा था जिनका टेस्ट पॉसिटिव निकला. जब भी कोई ऐसे व्यक्ति के आस पास आया, तो उसके फोन पर मेसेज पहुंच जाता कि आप एक कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति की रेंज में हैं. इस तरह से लोग सतर्क हो जाते और अपनी रक्षा कर पाते. इसी तरह इस्राएल में लोकेशन ट्रैकर का इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत सरकार ने भी आरोग्य सेतु ऐप लॉन्च किया है जिसे महज तीन दिनों में 50 लाख से ज्यादा लोग इंस्टॉल कर चुके हैं.
कोरोना से लड़ने में तकनीक मदद तो कर रही है लेकिन अधिकार संगठनों को चिंता है कि कोरोना संकट के खत्म हो जाने के बाद भी सरकारें इनका इस्तेमाल जारी रखेंगी और इस तरह नागरिकों की निगरानी की जाएगी. एमनेस्टी इंटरनेशनल, ह्यूमन राइट्स वॉच और प्राइवेसी इंटरनेशनल जैसे 100 मानवाधिकार संगठनों ने एक साझा बयान जारी कर कहा है, "वायरस से लड़ने के सरकारों के प्रयासों को इनवेजिव डिजिटल सरवेलेंस का बहाना बनने नहीं दिया जा सकता." कोरोना संकट के खत्म होने के बाद भी अगर कोई सरकार लोगों पर नजर रखती है तो उसे निजता का हनन माना जाएगा.
चीन से आए कोरोना वायरस से बचने के तमाम उपाय अगर आप इंटरनेट पर खोज रहे हैं तो आपको सावधान रहने की भी जरूरत है. सोशल मीडिया पर लिखी हर चीज सच नहीं होती. कोरोना वायरस को लेकर फैले इस तरह के भ्रम से दूर रहिए.
तस्वीर: picture-alliance/Hollandse Hoogte
चीन से आए पार्सल से कोरोना वायरस फैल सकता है?
कोरोना वायरस कैसे फैलता है इसको लेकर वैज्ञानिक जानकारियां जुटा रहे हैं. अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के मुताबिक कोरोना वायरस का अस्तित्व सतह पर खत्म हो जाता है. जिसके कारण चीन से आने वाले उत्पादों या पैकेट से वायरस के फैलने का जोखिम बहुत कम है. तो अगली बार डिलीवरी बॉय आपके घर चीन से मंगाया आपका सामान लेकर आए तो आपको डरने की जरूरत नहीं है.
नाक में ब्लीच लगाने से कोरोना से बचा जा सकता है?
ब्लीच या क्लोरीन जैसे कीटाणुनाशक सॉल्वैंट्स जिसमें 75 प्रतिशत इथेनॉल, पैरासिटिक एसिड और क्लोरोफॉर्म होता है, असल में कोरोना वायरस को सतह पर खत्म कर सकते हैं. हालांकि ऐसे कीटनाशकों को त्वचा पर लगाने से कोई फायदा नहीं होता बल्कि शरीर पर ऐसे रसायन डालना बेहद खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकता है.
पालतू जानवरों से कोरोना वायरस फैल सकता है?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक घर के पालतू जानवरों जैसे बिल्ली या कुत्तों से कोरोना वायरस नहीं फैलता. जानवरों से फैलने वाले दूसरे बैक्टीरिया से बचने के लिए पालतू जानवरों को हाथ लगाने के बाद हाथ धोना अपने आप में अच्छी आदत है. शोधकर्ता कह चुके हैं कि चीन के वुहान शहर में किसी जंगली जानवर से कोरोना वायरस दुनिया भर में फैला.
निमोनिया की वैक्सीन कोरोना वायरस का भी इलाज है?
यह वायरस नया और अलग है. इस वायरस की अपनी वैक्सीन बनाई जा रही है. निमोनिया की वैक्सीन कोरोना वायरस का उपचार नहीं है. इस समय विश्व में कई देशों के वैज्ञानिक कोरोना वायरस या 2019 - एनकोव से लड़ने वाली वैक्सीन बनाने में जुटे हैं.
खारे पानी से नाक धोने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है?
सोशल मीडिया पर ऐसा पोस्ट वायरल हो रहा है जिसके मुताबिक खारे पानी से नाग रगड़ने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक ऐसा कोई प्रमाण नहीं है जो इस दावे की पुष्टि करता हो.
माउथवॉश के गरारे से वायरस से बचा जा सकता है ?
माउथवॉश के गरारे से कोरोना वायरस से नहीं बचा जा सकता है. कुछ कंपनियों के माउथवॉश कुछ मिनटों के लिए आपकी लार में रहने वाले विशेष रोगाणुओं को खत्म कर सकते हैं, लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यह आपको कोरोना वायरस से नहीं बचाता.
लहसुन खाने से कोरोना वायरस से बचा जा सकता है?
यह दावा सोशल मीडिया पर जंगल की आग की तरह फैल रहा है. लहसुन में जरूर कुछ रोगाणुरोधी गुण होते हैं लेकिन डब्ल्यूएचओ के मुताबिक कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए लहसुन लाभकारी नहीं है.
गलत सूचना पर कार्रवाई
सोशल मीडिया दिग्गज फेसबुक और ट्विटर वायरस के बारे में गलत जानकारी वाले पोस्ट हटाने पर काम कर रहे हैं. जनवरी के आखिर में फेसबुक ने घोषणा की है कि वह ऐसी पोस्ट हटा देगा जिसमें कोरोना वायरस के बारे में गलत दावे और गलत जानकारी दी गई है. (रिपोर्ट-जेसी लिया विंगार्ड/एसबी)