भारत सरकार ने कहा है कि देश में कोरोना वायरस के डेल्टा प्लस वेरिएंट के करीब 40 मामले सामने आए हैं. यह डेल्टा वेरिएंट की ही एक नई किस्म है जो संभवतः और ज्यादा तेजी से फैलता है. जानिए इसके बारे में क्या जानकारी उपलब्ध है.
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भारत में जिसे 'डेल्टा प्लस' कहा जा रहा है उसके बारे में पहली बार पब्लिक हेल्थ इंग्लैंड के एक बुलेटिन में जानकारी छपी थी. जिस डेल्टा वेरिएंट को सबसे पहले भारत में पाया गया था, यह उसी का वंशज है. इसमें भी के417एन नाम की वो स्पाइक प्रोटीन म्यूटेशन आ गई है जो पहली बार दक्षिण अफ्रीका में पाए गए बीटा वेरिएंट में भी पाई जाती है. कुछ वैज्ञानिकों को चिंता है कि यह म्यूटेशन और डेल्टा वेरिएंट की कुछ और विशेषताएं इस वेरिएंट को और ज्यादा फैलने वाला बना सकती हैं.
भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "के417एन म्यूटेशन पर हमारा ध्यान रहा है क्योंकि वो बीटा वेरिएंट में भी पाया जाता है. ऐसी रिपोर्टें आई थीं कि बीटा वेरिएंट में इम्यून सिस्टम से बचने की विशेषता है." भारत के जाने माने वायरोलॉजिस्ट शाहीद जमील का कहना है कि के417एन मोनोक्लोनल एंटीबॉडीज उपचार के प्रभाव को कम कर देता है.
कहां कहां मिला है डेल्टा प्लस
16 जून तक पूरी दुनिया में डेल्टा प्लस के 197 मामले देखे गए थे. इनमें से 83 अमेरिका में थे, 36 ब्रिटेन में थे, 22 पुर्तगाल में, 18 स्विट्जरलैंड में, 15 जापान में, नौ पोलैंड में, आठ भारत में, तीन नेपाल में और कनाडा, रूस और तुर्की में एक-एक. लेकिन 23 जून को भारत ने बताया कि महाराष्ट्र, केरल और मध्य प्रदेश में कुल मिला कर करीब 40 मामले मिले हैं.
भारत में इसका सबसे पहला मामला पांच अप्रैल को लिए गए एक सैंपल में मिला था. ब्रिटेन ने कहा है कि वहां के पहले पांच मामलों की पहचान 26 अप्रैल को हुई थी. ये लोग ऐसे लोगों के संपर्क में आए थे जो नेपाल और तुर्की से या तो आए थे या वहां से हो कर गुजरे थे. ब्रिटेन और भारत दोनों के ही मामलों में किसी की मृत्यु नहीं हुई थी.
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क्या चिंताएं हैं
भारत और दूसरे देशों में इस समय इस म्यूटेशन के खिलाफ मौजूदा टीकों की प्रभावकारिता का पता लगाने के लिए अध्ययन चल रहे हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने एक बयान में कहा, "डब्ल्यूएचओ इस वेरिएंट को डेल्टा वेरिएंट के एक हिस्से के रूप में ही ट्रैक कर रहा है, जैसा की हम चिंता पैदा करने वाले दूसरे वेरिएंट के लिए कर रहे हैं." संगठन ने यह भी कहा,"इस समय यह वेरिएंट ज्यादा मात्रा में नहीं मिला है और यह डेल्टा मामलों के बस कुछ ही मामलों में मिला है. डेल्टा और दूसरे चिंताजनक वेरिएंट अभी भी जन स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा बने हुए हैं."
लेकिन भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने चेतावनी दी कि जिन प्रांतों में यह पाया गया है वहां "सर्विलांस, ज्यादा जांच, कांटेक्ट ट्रेसिंग और टीकाकरण" की जरूरत है. विशेषज्ञों को चिंता है कि डेल्टा प्लस भारत में संक्रमण की एक और लहर ना ले आए. सरकारी संस्थान आईसीएमआर के एक वैज्ञानिक तरुण भटनागर का कहना है, "संभव है कि यह म्यूटेशन अपने आप में कोई तीसरी लहर नहीं लाए पाएगा, चूंकि यह कोविड के हिसाब से व्यवहार के पालन पर भी निर्भर करता है. लेकिन हां, ये तीसरी लहर के कारणों में से एक हो सकता है."
सीके/एए (रॉयटर्स)
कोरोना वायरस: कितनी दूरी रखना है जरूरी
कोरोना महामारी के इस लंबे दौर में अब लोग सोशल डिस्टेंसिंग यानि दूसरों से शारीरिक रूप से दूरी बना कर रखने की अहमियत समझ चुके हैं. लेकिन किस जगह पर कम से कम कितने दूर रहने से आप सुरक्षित रहेंगे, ये जानिए.
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दो मीटर काफी नहीं
अमेरिकी मेडिकल जर्नल में छपी 1948 की इस स्टडी में बैक्टीरिया का संक्रमण देखा गया, जो करीब 2.9 मीटर तक फैला. अब बात वायरस की है और उसके लिए तो इस तस्वीर में लोगों के बीच जितनी दूरी भी शायद काफी ना हो.
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सबकी अपनी समझ
आइसलैंड के गड़रिया एसोसिएशन ने अपने समझने की आसानी के लिए अपने माहौल के हिसाब से नियम रखा कि संक्रमण से बचने के लिए कम से कम दो भेड़ों के बराबर दूरी रखनी चाहिए. यह करीब दो मीटर की दूरी होगी.
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ब्रिटेन और अमेरिका के रिसर्चरों का साझी सलाह
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे एक विश्लेषण में ऑक्सफोर्ड, लंदन और केम्ब्रिज के रिसर्चरों ने मिल कर बताया है कि एयरोसॉल के माध्यम से फैलने वाले इस वायरस के लिए अलग अलग जगहों पर कितनी दूरी बरकरार रखनी चाहिए.
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कृपया दूरी बना कर रखें!
दूसरों से 1.5 से 2 मीटर (5 से 6 फुट) की दूरी रखने का नियम सामान्य रूप से प्रचलित है. इसके अलावा साफ सफाई रखने, हाथ धोने और मास्क पहनने से संक्रमण से बचा जा सकता है.
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कहां से आया 2-मीटर वाला नियम
एमआईटी की रिसर्चर लिडिया बोरुइबा बताती हैं कि यह काफी पुराना है. सन 1897 में जर्मन डॉक्टर सी फ्लुगे ने सबसे पहले इसकी सलाह दी थी. इसके बाद 1948 की एक स्टडी में अमेरिका में इसे लेकर एक बड़ी स्टडी हुई थी.
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खुली जगहों पर
बाजार से खरीदी कुत्ते की रस्सियां आमतौर पर इतनी ही लंबी होती हैं, जितनी दूरी रखनी है यानि छह फुट. इसे संयोग ही मानें या रस्सी को इतना लंबा बनाने के पीछे भी ऐसा ही कोई आधार था.
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वायरस का माध्यम एयरोसॉल
वायरस असल में बैक्टीरिया से कहीं ज्यादा सूक्ष्म होते हैं. यह हवा में कई घंटों तक तैरते रह सकते हैं और इसीलिए हवा के माध्यम से ज्यादा फैलते हैं. इसीलिए केवल दूरी काफी नहीं हैं, मास्क पहनने के अलावा और भी सारी चीजें करनी चाहिए.
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और किन चीजों का ख्याल
आप जिस कमरे में हैं वहां बाकी लोगों ने मास्क पहना है या नहीं. वे ऊंची आवाज में बात कर रहे हैं या गाना गा रहे हैं तो वायरस ज्यादा दूर तक जा सकता है. आसपास कोई खांसे तो भी वायरस दूर तक फैलते हैं.
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कमरे में कितनी देर सुरक्षित
किसी कमरे में अगर कोई संक्रमित व्यक्ति हो तो उसके साथ वहां अगर बहुत सारे लोग हैं, तो आपको कम से कम समय के लिए वहां होना चाहिए. वह भी तब जब कमरे में हवा की आवाजाही की व्यवस्था हो, मास्क पहना हो और आराम से बात हो रही हो.
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इतना काफी है? या और?
ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने इस तरह स्कूली बच्चों को आसानी से दिखाने की कोशिश की थी कि उन्हें लगभग कितनी दूरी बना कर रखनी चाहिए. एक औसत वयस्क के केवल दो हाथों की लंबाई ही 1.5 मीटर के आसपास होती है.
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यहां मास्क नहीं चाहिए
ऐसे खुले माहौल में जितनी देर तक चाहें बिना मास्क के रहा जा सकता है. लेकिन वहां भी आपके आसपास कितने लोगों की भीड़ है और वे कितनी बातें कर रहे हैं - इन चीजों से फर्क पड़ता है. (फाबियान श्मिट/आरपी)