राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोविड-19 प्रबंधन की स्थिति संभलने के बाद एक बार फिर बिगड़ती नजर आ रही है. मंगलवार को दिल्ली में संक्रमण के 1,544 नए मामले सामने आए, जो कि पिछले 40 दिनों में नए मामलों की सबसे बड़ी संख्या है.
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आखिरी बार इस तरह की संख्या 16 जुलाई को दर्ज की गई थी, जिस दिन शहर में 1,652 नए मामले आए थे. उसके पहले जून में दिल्ली की हालत और ज्यादा खराब थी. रोज लगभग 2,000 नए मामले सामने आ रहे थे और 60 के आस पास लोगों की जान जा रही थी. कोविड-19 की जांच में भारी कमी होने की लगातार खबरें आ रही थीं. अस्पतालों में बिस्तरों के खाली ना होने की भी खबरें आ रही थीं और बताया जा रहा था कि कई संक्रमित व्यक्तियों की भी अस्पतालों में भर्ती नहीं हो रही थी.
हालात इतने खराब हो गए थे कि सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को कोविड-19 प्रबंधन में गंभीर त्रुटियों के लिए फटकारा था. उसके बाद दिल्ली सरकार कोविड-19 प्रबंधन की रणनीति में कई बदलाव ले कर आई. रैपिड जांच की मदद से जांच की संख्या बढ़ाई, प्रभावशाली कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग भी की, कन्टेनमेंट इलाकों को और बारीकी से चिन्हित किया और अस्पतालों में प्रबंधन को भी सुधारा. इसमें दिल्ली सरकार को केंद्र सरकार का सहयोग भी मिला.
उसके बाद नए मामलों का गिरना शुरू हुआ और जुलाई के अंत तक तो ऐसी स्थिति बन गई थी कि रोजाना सिर्फ 600 के आस पास नए मामले सामने आ रहे थे. लेकिन अब फिर से हालात चिंताजनक मोड़ ले रहे हैं. जांच की संख्या भी गिर गई है और पॉजिटिविटी दर, यानी जांच किए गए सैंपलों में से पॉजिटिव निकलने वाले सैंपलों का प्रतिशत, भी बढ़ रही है. जहां ये दर छह प्रतिशत से नीचे गिर गई थी, वहीं अब दर 7.7 प्रतिशत पर है. सोमवार को तो दर 8.9 प्रतिशत पर पहुंच गई थी.
मंगलवार को सिर्फ 19,841 सैंपलों की जांच की गई, जब कि पिछले महीने रोजाना 20,000 से ज्यादा सैंपलों की जांच की जा रही थी. कुछ दिन ऐसी भी थे जब 24,000 से ज्यादा सैंपलों की जांच हुई थी. जानकार मान रहे हैं कि जांच की संख्या का गिरना सीधे तौर पर स्थिति के और बिगड़ने से जुड़ा हुआ है. संभव है कि स्थिति संभलने पर प्रशासन ने थोड़ी ढील दे दी और वहीं चूक हो गई. भारत ही नहीं पूरी दुनिया में अधिकतर जगहों पर देखा यही जा रहा है कि जहां भी महामारी के खिलाफ स्थिति में थोड़ा भी सुधार हुआ है, वहां प्रशासन के ढील देते ही हालात फिर बिगड़ जाते हैं.
न्यूजीलैंड में 102 दिनों तक संक्रमण का एक भी नया मामला सामने नहीं आया, लेकिन जैसे ही लोग निश्चिंत होना शुरू हुए वहां महामारी ने फिर से पैर पसारना शुरू कर दिया. विशेषज्ञों का कहना है कि सबक यही है कि वायरस के खिलाफ कुछ दिनों की कामयाबी को उससे स्थायी छुटकारा समझ लेना एक भूल है और हर जगह सरकारों और आम लोगों को लगातार सतर्क बने रहना चाहिए.
भारत में कोविड-19 प्रबंधन की नोडल संस्था आईसीएमआर के महानिदेशक डॉक्टर बलराम भार्गव ने एक अखबार से बातचीत के दौरान कहा है कि दिल्ली-एनसीआर में आबादी का घनत्व और लोगों की आवाजाही ज्यादा है, इसलिए यहां लगातार सावधानी बरतने की जरूरत है.
राष्ट्रीय स्तर पर तो स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी ही हुई है. जहां यूरोप के कई देशों में संक्रमण की दूसरी लहर शुरू हो चुकी है, भारत में तो अभी पहली लहर ही चलती चली जा रही है. पिछले 24 घंटों में 67,151 नए मामले सामने आए हैं और 1,059 लोगों की जान चली गई है. इस बीच, हांगकांग में एक व्यक्ति के दोबारा संक्रमण होने के मामले की दुनिया में पहली बार पुष्टि होने के बाद, तेलंगाना में अधिकारियों ने कहा है की वहां भी ऐसे दो मामले दर्ज किए गए हैं.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
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कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
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ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.