एक अप्रैल को पूरे देश में 437 नए मामले सामने आए, जिस से कुल मामलों का आंकड़ा अब 1965 तक पहुंच गया है. केंद्र सरकार ने कहा है कि तब्लीगी जमात से जुड़े लगभग 9,000 लोगों के संक्रमित होने का खतरा है.
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भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के नए मामलों के सामने आने की दर बढ़ती जा रही है. बुधवार एक अप्रैल को पूरे देश में 437 नए मामलों का पता चला, जिससे कुल मामलों का आंकड़ा अब 1965 तक पहुंच गया है. ठीक हो जाने वालों की संख्या 150 है और मरने वालों की संख्या 50. दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित तब्लीगी जमात के मुख्यालय से फैला संक्रमण अभी भी केंद्र और राज्यों के लिए चिंता का बड़ा विषय बना हुआ है.
केंद्र सरकार ने कहा है कि संस्था से जुड़े लगभग 9,000 लोगों के संक्रमित होने का खतरा है. इनमें 7,688 भारतीय हैं और 1,306 विदेशी. 23 राज्य और चार केंद्र शासित प्रदेश इस प्रकरण से प्रभावित हैं. संस्था से जुड़े लगभग 400 लोगों में संक्रमण की पुष्टि हो गई है.इनमें से सबसे ज्यादा मामले तमिल नाडु में हैं, जहां 190 मामले हैं.
इसके अलावा आंध्र प्रदेश में 71 मामले, दिल्ली में 53, तेलांगना में 28, असम में 13, महाराष्ट्र में 12, अंडमान में 10, जम्मू और कश्मीर में छह और पुडुचेरी और गुजरात में दो-दो. और भी राज्यों में संक्रमण के मामलों के होने की आशंका है और चिन्हित मामलों की जांच चल रही है.
महामारी की रोकथाम के लिए सभी सरकारों के तमाम प्रयासों के बीच कई राज्य सरकारों का कहना है कि वे संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं. तालाबंदी की वजह से आय के स्त्रोत सूख रहे हैं और खर्च बढ़ता जा रहा है. आर्थिक मदद के लिए सरकारें केंद्र की तरफ देख रही हैं. छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि केंद्र ने तालाबंदी की घोषणा करने से पहले राज्य सरकारों से विमर्श नहीं किया और अब जब राज्यों में वित्तीय संकट खड़ा हो गया है ऐसे में केंद्र को राज्यों की पूरी मदद करनी चाहिए.
15 साल बाद विदेश से मदद लेगा भारत
इसी बीच प्रधानमंत्री ने कोविड-19 से लड़ने के उद्देश्य से जिस नए कोष की स्थापना की थी उसमें आम लोगों से लेकर उद्योगपति और औद्योगिक समूह दिल खोल कर अंशदान कर रहे हैं. कोष में अभी तक हजारों करोड़ रुपयों की धनराशि का दान हो चुका है और खबर है कि अब कोष में विदेश से भी अंशदान स्वीकार किया जाएगा.
बताया जा रहा है कि भारत सरकार ने 15 साल पहले विदेश से आर्थिक मदद लेना बंद कर दिया था. लेकिन यह स्थिति अभूतपूर्व है इसलिए प्रधानमंत्री इच्छुक हैं कि विदेश से भी अंशदान हो. इसके लिए उन्होंने भारत के सभी विदेशी दूतावासों को विशेष रूप से कहा है कि वे इस कोष का प्रचार करें ताकि विदेश से भी कोष में धनराशि प्राप्त हो सके.
चीन से दुनिया भर में फैले कोरोना वायरस पर इतनी चर्चा और गहन रिसर्च के बावजूद हम इस खतरनाक वायरस के बारे में कई अहम बातें नहीं जानते हैं. डालते हैं इन्हीं पर नजर:
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किसके लिए घातक
सबसे बड़ा रहस्य यह है कि 80 फीसदी लोगों में इसके लक्षण या तो दिखते ही नहीं या बहुत कम दिखते हैं. दूसरे लोगों में यह घातक न्यूमोनिया की वजह बन उनकी जान ले लेता है. ब्रिटिश जर्नल लांसेट में छपी रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक संक्रमण से सबसे ज्यादा पीड़ित लोगों के नाक और गले में वायरस का जमाव कम पीड़ित लोगों की तुलना में 60 फीसदी ज्यादा होता है.
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और रिसर्च की जरूरत
तो क्या यह माना जाए कि बढ़ती उम्र की वजह से ज्यादा पीड़ित लोगों का प्रतिरोधी तंत्र मजबूती से काम नहीं कर रहा है या फिर वे वायरस के संपर्क में ज्यादा थे? यह सवाल अपनी जगह कायम है. अभी इस बारे में और रिसर्च करने की जरूरत है.
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हवा में वायरस
माना जाता है कि कोरोना वायरस शारीरिक संपर्क और संक्रमित व्यक्ति के खांसने और छींकने से निकलने वाली छोटी छोटी बूंदों से फैलता है. तो फिर यह वायरस मौसमी फ्लू फैलाने वाले वायरस की तरह हवा में कैसे रह सकता है?
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वायरस की ताकत
अध्ययन बताते हैं कि नया कोरोना वायरस लैब मे तीन घंटे तक हवा में रह सकता है. वैज्ञानिक यह नहीं जानते कि इतनी देर हवा में रहने के बाद भी क्या यह किसी को संक्रमित कर सकता है? पेरिस के सेंट अंटोनी अस्पताल की डॉक्टर कैरीन लाकोम्बे कहती हैं, "हम वायरस ढूंढ तो सकते हैं, लेकिन हम यह नहीं जानते कि क्या वायरस तब संक्रमण में सक्षम है."
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असल मामले कितने
दुनिया में जर्मनी और दक्षिण कोरिया जैसे कुछ देश ही सघन जांच कर रहे हैं. ऐसे में दुनिया भर में कोरोना के मामलों की असल संख्या क्या है, यह नहीं पता. ब्रिटिश सरकार ने 17 मार्च को अंदेशा जताया कि 55 हजार लोगों को वायरस लग सकता है जबकि तब तक महज 2000 लोग ही टेस्ट में संक्रमित पाए गए थे.
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नए तरीके की जरूरत
बीमारी से निपटने और इसे रोकने के लिए कुल मरीजों की असल संख्या जानना बहुत जरूरी है ताकि उन्हें अलग रखा जा सके और उनका इलाज हो सके. यह तभी संभव होगा जब ब्लड टेस्ट के नए तरीके विकसित किए जा सकें.
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गर्मी से भागेगा कोरोना?
क्या उत्तरी गोलार्ध में वसंत के गर्म दिनों या गर्मी के आने बाद कोविड-19 बीमारी रुक जाएगी? विशेषज्ञ कहते हैं कि ऐसा संभव है, लेकिन पक्के तौर पर ऐसा कहना मुश्किल है. फ्लू जैसे सांस संबंधी वायरस ठंडे और सूखे मौसम में ज्यादा टिकते हैं इसीलिए वे सर्दियों में तेजी से फैलते हैं.
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चेतावनी
अमेरिका के मेडिकल हावर्ड स्कूल ने चेतावनी दी है कि मौसम में बदलाव होने से जरूरी नहीं है कि कोविड-19 के मामले रुक जाएं. विशेषज्ञों का कहना है कि मौसम से भरोसे रहने की बजाय बीमारी की रोकथाम के सभी प्रयासों को लगातार और तेजी से किए जाने की जरूरत है.
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कोरोना एक पहेली
वयस्कों के मुकाबले बच्चों को कोविड-19 होने का खतरा कम है. जो संक्रमित भी हुए वे ज्यादा बीमार नहीं हुए. बीमार लोगों के साथ रहने वाले बच्चों में भी इस वायरस से लगने की संभावना दो से तीन गुनी कम थी. प्रोफेसर लाकोम्बे कहती हैं, "कोरोना के बारे में बहुत सारी बातें हैं जो हम अब तक नहीं जानते हैं जो इस वायरस से निपटने में बाधा बन रही हैं." रिपोर्ट: एके/एनआर (एएएफपी)