पिछले 24 घंटों में संक्रमण के 16,000 से भी ज्यादा नए मामले सामने आए हैं, जिनसे देश में अभी तक दर्ज किए गए कुल मामलों की संख्या 4,73,105 और संक्रमण से मरने वालों की संख्या 14,894 हो गई है.
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भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के बढ़ते हुए मामलों को देखकर एक बार फिर चिंताएं उभर रही हैं. संक्रमण के नए मामलों में रोज नई उछाल दर्ज की जा रही है. गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी किए गए ताजा आंकड़ों के अनुसार पिछले 24 घंटों में 16,000 से भी ज्यादा नए मामले सामने आए हैं, जिनसे देश में अभी तक दर्ज किए गए कुल मामलों की संख्या 4,73,105 हो गई है.
इनमें 1,86,514 सक्रीय मामले हैं और 2,71,696 ऐसे मरीजों के मामले हैं जो ठीक हो गए. इतनी बड़ी संख्या में नए मामले इसलिए भी आ रहे हैं कि क्योंकि जांच की संख्या भी बढ़ा दी गई है. आईसीएमआर के अनुसार पिछले 24 घंटों में दो लाख से भी ज्यादा सैंपलों की जांच हुई, जो कि अपने आप में एक नया कीर्तिमान है. अभी तक देश में कुल 75,60,782 सैंपलों की जांच हो चुकी है.
संक्रमण से मरने वालों की संख्या 14,894 हो गई है और प्रतिदिन 400 से भी ज्यादा मौतें हो रही हैं. कुल 1,42,900 मामलों के साथ महाराष्ट्र अभी भी सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्य बना हुआ है. दूसरे नंबर पर दिल्ली है, 70,390 मामलों के साथ. लेकिन शहरों की सूची में दिल्ली मुंबई को भी पीछे छोड़ कर पहले नंबर पर आ गई है. सुप्रीम कोर्ट से फटकार मिलने के बाद, केंद्र सरकार दिल्ली में संक्रमण के प्रबंधन में सक्रीय हो गई है और रणनीति में कई परिवर्तन ला रही है.
दिल्ली में रोज जांच किए जाने वाले सैंपलों की संख्या बढ़ा दी गई है और रोजाना 20,000 के आस पास सैंपलों की जांच हो रही है. दिल्ली में अभी तक 4.2 लाख टेस्ट हो चुके हैं जबकि मुंबई में सिर्फ 2.94 लाख हुए हैं. दिल्ली में जांच की संख्या और बढ़ाने के लिए सरकार ने अब घर घर जाकर एक एक परिवार की जांच करने का निर्णय लिया है.
लगभग दो करोड़ आबादी वाले इस शहर में करीब 45 लाख परिवार हैं और इन सब तक सरकार कैसे प्रभावशाली रूप से पहुंचेगी इस बात को लेकर शंका व्यक्त की जा रही है. देश के दूसरे हिस्सों में भी स्थिति चिंताजनक बनी हुई है. पश्चिम बंगाल ने तो बढ़ते मामलों को देखते हुए तालाबंदी को 31 जुलाई तक बढ़ाने का फैसला ले लिया है. राज्य में सभी शिक्षण संस्थान बंद रहेंगे, लेकिन तालाबंदी में लागू रियायतों में से किसी को भी वापस नहीं लिया जाएगा.
कर्णाटक में भी राजधानी बेंगलुरु में तालाबंदी और बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है. इसी बीच सरकारों के वित्तीय संकट से गुजरने की भी खबरें आ रही हैं. महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम 6,000 करोड़ रुपये के घाटे से गुजर रहा है और परिवहन ने घोषणा की है कि करीब एक लाख कर्मचारियों के मई के वेतन में से आधा वेतन काट लिया जाएगा. कर्मचारियों को मई का वेतन अभी तक मिला भी नहीं है.
यह तो आप जानते ही हैं कि एक ही परिवार के सदस्यों का ब्लड ग्रुप अलग-अलग हो सकता है. लेकिन क्या आपको पता है कि किस ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना वायरस से ज्यादा खतरा हो सकता है और किसे कम.
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कितने तरह के ब्लड ग्रुप
कुल चार तरह के ब्लड ग्रुप होते हैं. किसी व्यक्ति की लाल रक्त कोशिकाओं में पाए जाने वाले प्रोटीन कंपाउंड ’ए’ और ‘बी’ एंटीजेन के आधार पर इनका नामकरण किया जाता है. जिनमें केवल ए या बी पाया जाता है उनका ब्लड ग्रुप ‘ए’ या ‘बी’ कहलाता है. इसी तरह जिनमें दोनों पाए जाते हैं उन्हें ‘एबी’ और जिसमें दोनों नहीं पाए जाते हैं, उन्हें ‘ओ’ कहा जाता है.
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इम्युनिटी में होता है अंतर
इम्युनिटी यानि बीमारियों से लड़ने की क्षमता किसी ब्लड ग्रुप में दूसरों से कम या ज्यादा हो सकती है. रिसर्चर बताते हैं कि खून चढ़ाने पर कुछ ब्लड ग्रुप दूसरों के मुकाबले ज्यादा कड़ी प्रतिक्रिया भी दे सकते हैं. इसके अलावा एक और कारक होता है जिसे ‘रीसेस फैक्टर’ कहते हैं - जो कि कुछ लोगों में पाया जाता है जबकि कुछ में नहीं.
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कोविड-19 से कैसा संबंध
कुछ लोगों में कोरोना का संक्रमण होने पर बहुत गंभीर प्रतिक्रिया होती है तो वहीं कुछ लोगों को पता तक नहीं चलता, जिन्हें एसिम्टमैटिक कहा जा रहा है. नई रिसर्च दिखा रही है कि लोगों के ब्लड ग्रुप का इस तरह की प्रतिक्रिया से संबंध हो सकता है. इससे तय होता है कि किसी व्यक्ति की इम्यून प्रतिक्रिया कितनी कमजोर या मजबूत होगी.
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ब्लड ग्रुप और कोरोना पर शोध
जर्मनी और नॉर्वे के रिसर्चरों ने कोरोना के साथ अलग अलग रक्त समूहों के संबंध का अध्ययन किया. इनकी खोज को ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया. उन्होंने इटली और स्पेन के 1,610 मरीजों का अध्ययन किया, जिनमें कोविड-19 के कारण सांस लेने का तंत्र फेल हो गया था. ये गंभीर मामले से थे जिनमें से कई की जान चली गई.
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ब्लड ग्रुप ‘ए’ सबसे आगे
पता चला है कि ‘ए’ ब्लड ग्रुप वालों को कोरोना से गंभीर रूप से प्रभावित होने का खतरा सबसे ज्यादा है. कोविड-19 से संक्रमित होने पर इनको ऑक्सीजन देने या वेंटिलेटर पर रखने की जरूरत पड़ने की संभावना ‘ओ’ ग्रुप वाले से दोगुनी होती है. जर्मनी में 43 प्रतिशत लोगों का ब्लड ग्रुप ए है जबकि ‘ओ’ ग्रुप वाले 41 प्रतिशत लोग हैं.
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क्या ‘ओ’ वाले कोरोना से सुरक्षित हैं
अब तक सामने आए मामलों को देखकर कहा जा सकता है कि ओ वाले काफी खुशकिस्मत हैं. ऐसा नहीं है कि वे कोरोना पॉजिटिव नहीं होंगे लेकिन स्टडी से पता चलता है कि संक्रमण होने के बावजूद उनमें इसके गंभीर लक्षण नहीं दिखे. ओ ग्रुप वाले यूनिवर्सल डोनर भी होते हैं यानि जरूरत पड़ने पर उनका खून किसी को भी चढ़ाया जा सकता है.
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‘बी’ और ‘एबी’ को कितना खतरा
इन दोनों ब्लड ग्रुप के लोग अपेक्षाकृत कम ही होते हैं. इनमें कोरोना होने पर हालत गंभीर होने का खतरा भी मध्यम रेंज में ही होता है. मलेरिया जैसी बीमारी का भी ब्लड ग्रुप के साथ संबंध स्थापित किया जा चुका है. कोरोना की ही तरह ‘ओ’ वालों को मलेरिया से बहुत खतरा नहीं होता. ‘ए’ ग्रुप वालों को प्लेग का खतरा भी कम होता है.