भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के मामलों की संख्या भले ही सरकारी आंकड़ों के अनुसार 28 लाख हो, लेकिन सीधी जांच के अलावा कई दूसरे तरीकों से किए जा रहे अध्ययन संकेत दे रहे हैं कि असल संख्या कहीं ज्यादा हो सकती है.
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सबसे पहले ये बात कई शहरों में कराए गए सेरो सर्वे में निकल कर आई थी. दिल्ली के पहले सेरो सर्वे के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी में कम से कम 23 प्रतिशत, यानी करीब 46 लाख लोगों को कोरोना वायरस संक्रमण हो चुका है. दिल्ली में संक्रमित व्यक्तियों का सरकारी आंकड़ा 1.56 लाख है. इसी तरह मुंबई के सेरो सर्वे में शहर में संक्रमित लोगों की संख्या 16 प्रतिशत, यानी करीब 29 लाख होने की संभावना है, जब कि शहर का सरकारी आंकड़ा 1.31 लाख है.
अब सरकारी संस्थान सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीएमएमबी) ने हैदराबाद में घरों से निकलने वाले मल-मूत्र वाले पानी यानी सीवेज के अध्ययन से कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्तियों की संख्या निकालने की कोशिश की है. इस अध्ययन का आधार कई अंतर्राष्ट्रीय अध्ययनों में साबित हो चुका यह निष्कर्ष था कि कोरोना वायरस मल के जरिए भी फैलता है.
सीवेज से अनुमान
सीसीएमबी ने हैदराबाद के सीवेज उपचार संयंत्रों से लिए सैंपलों की जांच में पाया कि शहर की छह प्रतिशत आबादी यानी छह लाख लोगों के कोविड-19 पॉजिटिव होने की संभावना है. इसमें पिछले 35 दिनों में संक्रमण से ठीक हुए लक्षण वाले और बिना लक्षण वाले सभी लोग शामिल हैं. एक सीमित अनुमान के अनुसार भी शहर में अभी भी सक्रीय रूप से वायरस छोड़ रहे लोगों की संख्या 2.6 लाख हो सकती है.
इस अनुमान और सरकारी आंकड़ों में कितना अंतर है इस बात का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि पूरे तेलंगाना राज्य में संक्रमित व्यक्तियों का सरकारी आंकड़ा एक लाख के आस पास है. सिर्फ महाराष्ट्र ही ऐसा एकमात्र राज्य है जहां संक्रमित व्यक्तियों की कुल संख्या छह लाख से ऊपर है. अध्ययन में यह भी कहा गया है कि सीवेज में कोरोना वायरस संक्रामक नहीं होता है, इसलिए इस तरह के अध्ययनों के लिए सीवेज के सैंपल उपयुक्त हैं.
एंटीबॉडी जांच से अनुमान
इसके अलावा एक निजी लेबोरेटरी द्वारा किए गए एक अध्ययन में और भी चौंकाने वाले आंकड़े सामने आए हैं. थाइरोकेयर कंपनी ने दावा किया है कि उसकी लैबों में किए गए एंटीबॉडी जांचों के विश्लेषण से पता चला है कि पूरे देश में औसतन 26 प्रतिशत, यानी करीब 35 करोड़ लोगों को संभावित रूप से कोरोना वायरस संक्रमण हो चुका है. थाइरोकेयर के मालिक डॉक्टर ए वेलुमणि का कहना है कि उन्होंने इस अध्ययन के लिए पिछले सात हफ्तों में 600 शहरों में हुई 2,70,000 एंटीबॉडी जांचों का विश्लेषण किया.
उन्होंने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "यह प्रतिशत हमारी अपेक्षा से कहीं ज्यादा है. एंटीबॉडीज की उपस्थिति सभी उम्र के लोगों में लगभग एक समान है, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं." उन्होंने यह भी बताया कि अगर स्थिति ऐसी ही रही तो दिसंबर से पहले तक यह संख्या बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में इस समय संक्रमण के कुल मामलों की संख्या 28.36 लाख है. बुधवार को 69,652 नए मामले सामने आए.
देखिए कोरोना के कारण स्कूलों में क्या क्या हो रहा है
कोरोना वायरस ने सब कुछ बदल दिया. भारत जैसे कई देश अब तक संक्रमण की पहली लहर से ही जूझ रहे हैं तो कई जगह दूसरी लहर दस्तक दे रही है. ऐसे में दुनिया भर के स्कूलों में बच्चों को कैसे पढ़ाया जा रहा है देखिए.
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थाईलैंड: बॉक्स में क्लास
थाई राजधानी बैंकॉक के वाट ख्लोंग टेयो स्कूल में आने वाले लगभग 250 बच्चे इस तरह क्लास में बनाए गए बॉक्स में बैठकर पढ़ रहे हैं. क्लास के बाहर सिंक और साबुन भी है. सुबह स्कूल आने पर बच्चों का टेम्परेचर चेक होता है. इसका असर भी हो रहा है. जुलाई से इस स्कूल में कोरोना का कोई मामला सामने नहीं आया है.
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न्यूजीलैंड: सबकी किस्मत कहां ऐसी
राजधानी वेलिंग्टन के ये स्टूडेंट खुश हैं कि फिर से स्कूल जा पा रहे हैं. लेकिन ऑकलैंड में रहने वाले स्कूली बच्चे इतने खुशकिस्मत नहीं हैं. तीन महीने से न्यूजीलैंड में कोरोना का कोई मामला नहीं देखा गया था. लेकिन 11 अगस्त को देश के सबसे बड़े शहर ऑकलैंड में चार नए मामले सामने आए. इसके बाद शहर प्रशासन ने स्कूल और अन्य गैर जरूरी प्रतिष्ठान बंद कर लोगों से घर पर ही रहने को कहा है.
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स्वीडन: कोई विशेष उपाय नहीं
स्वीडन में स्कूली बच्चों की अभी गर्मी की छुट्टियां ही चल रही हैं. लेकिन यह तस्वीर छुट्टियों से पहले की है, जो कोरोना महामारी को लेकर स्वीडन के अलग नजरिए को दिखाती है. पूरी दुनिया से उलट स्वीडन में सरकार ने कभी लोगों से मास्क पहनने को नहीं कहा. वहां व्यापारिक प्रतिष्ठान, बार, रेस्तरां और स्कूल, सभी खुले रहे.
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जर्मनी: फिर से स्कूल, लेकिन पर्याप्त दूरी
ये बच्चे जर्मनी में सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के डॉर्टमुंड शहर के एक स्कूल के हैं. राज्य के सभी स्कूलों में बच्चों को मास्क पहनना जरूरी है. उन्हें क्लास में भी मास्क पहने रहना है. हालांकि देश के बाकी 15 राज्यों में क्लास में मास्क पहनना जरूरी नहीं है. यह कहना जल्दबाजी होगा कि इसका कितना असर हो रहा है. नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया में 12 अगस्त से स्कूल खुल गए.
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वेस्ट बैंक: पांच महीने बाद खुले स्कूल
येरुशलम से 30 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित हेब्रोन में भी स्कूल खुल गए हैं. यहां भी बच्चों के लिए क्लास में मास्क पहनना जरूरी है, कुछ स्कूल तो बच्चों से ग्लव्स पहनने को भी कह रहे हैं. मास्क के बावजूद टीचर का उत्साह साफ दिख रहा है. फिलीस्तीनी इलाकों में मार्च में स्कूल बंद किए गए थे. सबसे ज्यादा कोरोना के मामले हेब्रोन में ही सामने आए थे.
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ट्यूनीशिया: मई से मास्क में
ट्यूनिशिया की राजधानी ट्यूनिस के स्कूलों में मई से ही बच्चों ने मास्क पहनना शुरू कर दिया गया था. आने वाले हफ्तों में वहां फिर स्कूल खुलेंगे. मार्च में कोरोना के कारण ट्यूनिशिया में स्कूलों को कई हफ्तों तक बंद रखा गया. तब माता-पिता को ही अपने बच्चों को घर पर पढ़ाना पड़ा. स्कूल खुलने तक उन्हें ऑनलाइन क्लासों का ही सहारा था.
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भारत: लाउडस्पीकर से पढ़ाई
यह फोटो भारत के पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र के शहर डंडवा के एक स्कूल की है. जिन बच्चों के पास इंटरने की सुविधा नहीं है, यहां उनके लिए खास प्रबंध किया गया है. उन्हें यहां क्लास की रिकॉर्डिंग लाउडस्पीकर पर सुनाई जा रही है ताकि वे अपना स्कूल का छूटा हुआ काम पूरा कर सकें. महाराष्ट्र भारत में सबसे ज्यादा कोरोना प्रभावित राज्यों में शामिल है.
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कांगो: टेम्परेचर टेस्ट जरूरी
डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो की राजधानी किंगशासा के पास लिंगवाला इलाके के इस स्कूल में कोरोना के खतरे को बहुत गंभीरता से लिया जा रहा है. स्कूल आने वाले हर छात्र का टेम्परेचर टेस्ट करने के बाद ही उसे अंदर आने दिया जाता है. स्कूल में मास्क पहनना भी जरूरी है.
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अमेरिका: कोरोना के बीच पढ़ाई
अमेरिका के स्कूलों में भी बच्चों का रोज टेम्परेचर चेक किया जाता है ताकि कोरोना के संभावित मामलों का पता लगाया जा सके. यह बहुत जरूरी है क्योंकि अमेरिका में कोरोना वायरस के मामले अब भी दुनिया में सबसे ज्यादा हैं. जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार देश में कोरोना के मामले 54 लाख से ज्यादा हो गए हैं जबकि अब तक लगभग 1.70 लाख लोग मारे गए हैं.
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ब्राजील: ग्लव्स और गले मिलना
मौरा सिल्वा (बाएं) पश्चिमी रियो दे जेनेरो में एक बड़ी झुग्गी बस्ती के स्कूल में टीचर हैं. वह अपने छात्रों के घर जा रही हैं और अपने साथ "हग किट" लेकर जाती हैं. अपने छात्रों को गले लगाने से पहले सिल्वा और उनके छात्र मास्क पहनते हैं और वह उन्हें ग्लव्स पहनने में भी मदद करती हैं.