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समाजविश्व

कोरोना महामारी के बाद एक करोड़ बच्चे नहीं लौटेंगे स्कूल

१३ जुलाई २०२०

बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाली ब्रिटेन की संस्था "सेव द चिल्ड्रन" का कहना है कि कोरोना महामारी ने एक "अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल" खड़ा कर दिया है जिसके कारण करोड़ों बच्चों से शिक्षा का अधिकार छिन जाएगा.

Bangladesch Justiz l Schulranzen dürfen nicht mehr als 10 Kilogramm wiegen
तस्वीर: bdnews24.com

अपनी ताजा रिपोर्ट में सेव द चिल्ड्रन संस्था ने संयुक्त राष्ट्र के डाटा का हवाला देते हुए लिखा है कि अप्रैल 2020 में दुनिया भर में 1.6 अरब बच्चे स्कूल और यूनिवर्सिटी नहीं जा सके. यह दुनिया के कुल छात्रों का 90 फीसदी हिस्सा है. रिपोर्ट में लिखा गया है, "मानव इतिहास में पहली बार वैश्विक स्तर पर बच्चों की एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित हुई." इसके परिणामस्वरूप जो आर्थिक तंगी देखी जाएगी, उसके कारण आने वाले वक्त में स्कूलों के एडमिशन पर बुरा असर पड़ेगा. इतना ही नहीं, रिपोर्ट के अनुसार अब 9 से 11 करोड़ बच्चों के गरीबी में धकेले जाने का खतरा भी बढ़ गया.

साथ ही परिवारों की आर्थिक रूप से मदद करने के लिए छात्रों को पढ़ाई छोड़ कम उम्र में ही नौकरियां शुरू करनी होंगी. ऐसी स्थिति में लड़कियों की जल्दी शादी भी कराई जाएगी और करीब एक करोड़ छात्र कभी शिक्षा की ओर नहीं लौट पाएंगे. संस्था ने चेतावनी दी है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 2021 के अंत तक शिक्षा बजट में 77 अरब डॉलर की कमी आएगी. सेव द चिल्ड्रन की सीईओ इंगेर एशिंग बताती हैं, "करीब एक करोड़ बच्चे कभी स्कूल नहीं लौटेंगे. यह एक अभूतपूर्व शिक्षा आपातकाल है और सरकारों को तत्काल शिक्षा में निवेश करने की जरूरत है. लेकिन हम बहुत ही बड़े बजट कटौतियों का जोखिम देख रहे हैं. इससे गरीब और अमीर का मौजूदा फासला और भी बढ़ जाएगा और लड़के लड़कियों का फर्क भी."

सेव द चिल्ड्रन ने सरकारों और दानकर्ताओं से अपील की है कि स्कूलों के दोबारा खुलने के बाद वे शिक्षा में और निवेश करें और तब तक डिस्टेंस लर्निंग को प्रोत्साहित करें. एशिंग का कहना है, "हम जानते हैं कि गरीब बच्चों को इसका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है. वे पहले ही हाशिए पर थे. इस बीच पिछले आधे अकैडमिक साल से डिस्टेंस लर्निंग या किसी भी तरह से शिक्षा तक उनकी पहुंच ही नहीं है." उन्होंने लेनदारों से कम आय वाले देशों के लिए ऋण चुकाने की सीमा को निलंबित करने का भी आग्रह किया है, जिससे शिक्षा बजट में 14 अरब डॉलर बच सकेंगे. एशिंग के अनुसार, "अगर हमने शिक्षा संकट को शुरू हो जाने दिया तो बच्चों के भविष्य पर इसका बहुत बुरा असर होगा जो लंबे वक्त तक दिखेगा. दुनिया ने जो 2030 तक सभी बच्चों को शिक्षा का अधिकार दिलवाने का प्रण लिया था, वह कई सालों पीछे धकेल दिया जाएगा."

संस्था के अनुसार इन 12 देशों के बच्चों पर खतरा सबसे ज्यादा है: नाइजर, माली, चाड, लाइबेरिया, अफगानिस्तान, गिनी, मॉरिटानिया, यमन, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सेनेगल और आयवरी कोस्ट. कोरोना महामारी शुरू होने से पहले भी दुनिया भर के करीब 26 करोड़ बच्चे शिक्षा से वंचित थे. अब कोरोना संकट के कारण, जिन बच्चों को शिक्षा मिल पा रही थी, उनसे भी यह छिन जाने का खतरा बन गया  है,

आईबी/एए (एएफपी)

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