कोरोना वायरस क्या है: महामारी या सर्वव्यापी महामारी?
फाबियान श्मिट
३ मार्च २०२०
फर्क केवल नाम का नहीं है. इससे किसी बीमारी की गंभीरता का अंदाजा लगता है और उसी के हिसाब से उससे निपटने के कदम उठाए जाते हैं. क्या यूएन की विश्व स्वास्थ्य एजेंसी ने इसकी गंभीरता को समय रहते समझा?
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विश्व स्वास्थ्य संगठन ने चेतावनी तो दे दी थी कि हम कोरोना वायरस की सर्वव्यापी महामारी को फैलते देख सकते हैं. लेकिन क्या वाकई यह इतनी बड़ी वैश्विक इमरजेंसी बन चुका है कि इसे लेकर अनिश्चितता का माहौल है. यूएन संस्था ने एक हफ्ते पहले ही कोरोना वायरस के कारण दुनिया पर खतरे के स्तर को बढ़ा कर "अति उच्च" कर दिया है और उसका मानना है कि अब तो कोविड-19 का वैश्विक संक्रमण फैलना लगभग तय है. लेकिन एजेंसी ने अब तक इसकी आधिकारिक रूप से पुष्टि कर कोरोना वायरस को एक पैनडेमिक यानि सर्वव्यापी महामारी घोषित क्यों नहीं किया है?
जेनेवा स्थित संस्था के हिसाब से किसी भी बीमारी को "पैनडेमिक फेज" में रखने के लिए छह स्तरों पर परखा जाता है. फिलहाल एजेंसी ने जो स्तर घोषित किया है, वही उसका सबसे ऊंचे खतरे का स्तर है. एजेंसी की नई परिभाषा के अनुसार, जनवरी के अंत में एजेंसी ने इसे - पब्लिक हेल्थ इमरजेंसी ऑफ इंटरनेशनल कनसर्न (PHEIC) - माना है. इसका मतलब हुआ कि अब यह दुनिया भर के वैज्ञानिकों और इतिहासकारों के ऊपर है कि वे इसे सर्वव्यापी महामारी मानते हैं या नहीं. अब यह यूएन एजेंसी के अधिकारक्षेत्र की बात नहीं रह गई है. अब राष्ट्रीय, राज्य स्तरीय और क्षेत्रीय स्वास्थ्य संस्थानों की जिम्मेदारी है कि वे अपने स्तर पर स्वास्थ्य चेतावनियां जारी करें.
फाबियान श्मिट, डॉयचे वेले (साइंस विभाग)
डॉयचे वेले ने विश्व स्वास्थ्य संगठन के खतरों के मूल्यांकन के तरीकों को लेकर कई मेडिकल पेशेवरों से बात की. ज्यादातर को इस नई परिभाषा का पता नहीं है. इससे भी अंदाजा लगता है कि राष्ट्रीय या क्षेत्रीय स्तर पर ऐसे गंभीर खतरों के जुड़ी जानकारियां पहुंचाने में सुधार की कितनी जरूरत है.
कोरोना के कोविड-19 वायरस के जुड़ी सही जानकारी पाना अब भी ज्यादातर लोगों के लिए मुश्किल साबित हो रहा है. ना केवल पत्रकार बल्कि कई राष्ट्रीय स्तर के स्वास्थ्य अधिकारी भी भरोसेमंद जानकारी की तलाश में हैं. घबराहट और अफरा-तफरी के हालात बन रहे हैं और पुख्ता आंकड़े आसानी से ना मिलने के कारण भी परेशानी बढ़ रही है. इन समस्याओं के बावजूद किया क्या जा सकता है? सबसे पहले तो यह स्वीकार किया जाए कि कोविड-19 बहुत तेजी से फैल रहा है. कल तक मिली जानकारी आज सही नहीं होगी. यह तय करना कि कोरोना अभी एक महामारी है या फिर सर्वव्यापी महामारी बन सकती है, या बन चुकी है, यह सब भी अब केवल शब्दों का खेल भर है.
अब जो बात सबसे ज्यादा मायने रखती है, वह यह है कि डॉक्टर, हेल्थ केयर स्टाफ और तमाम राज्यों के स्वास्थ्य विभाग और आम लोग सही कदम उठाएं और जिम्मेदार रवैया अपनाएं. आम शब्दों में कहें तो इसके लिए आम लोग भीड़भाड़ वाले आयोजनों में जाने से बच सकते हैं और जहां भी हों बार बार अपने हाथों को धो सकते हैं. अगर सर्दी, जुकाम और फ्लू जैसे लक्षण दिखें तो घर पर ही रहें, ना कि बाहर निकल कर औरों को और दफ्तर में अपने सहकर्मियों को इसके खतरे में डालें. अगर लक्षण बने रहें तो अपने डॉक्टर को फोन कर अपनी स्थिति बताएं और उनकी सलाह मानें. डॉक्टर की क्लीनिक पर खुद ना जाकर भी आप वायरस को फैलने से बचा सकते हैं.
आपने कुत्ते और बिल्ली को घास खाते देखा होगा. बीमार होने पर वो ऐसा करते हैं. और भी कई जीव ऐसे ही अपना प्राकृतिक इलाज करते हैं. उनका सहज ज्ञान इंसान के लिए भी फायदेमंद हो सकता है.
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परजीवियों से बचाव
चिंपाजी जब विषाणुओं के संक्रमण से बीमार होते हैं या फिर उन्हें डायरिया या मलेरिया होता है तो वे एक खास पौधे तक जाते हैं. चिंपाजियों का पीछा कर वैज्ञानिक आसपिलिया नाम के पौधे तक पहुंचे.
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आसपिलिया का फायदा
इसकी खुरदुरी पत्तियां चिंपाजियों का पेट साफ करती हैं. आसपिलिया की मदद से परजीवी जल्द शरीर से बाहर निकल जाते हैं. संक्रमण भी कम होने लगता है. तंजानिया के लोग भी इस पौधे का दवा के तौर पर इस्तेमाल करते हैं.
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वंडर प्लम
काला प्लम विटेक्स डोनियाना, बंदर बड़े चाव से खाते हैं. ये सांप के जहर से लड़ता है. येलो फीवर और मासिक धर्म की दवाएं बनाने के लिए इंसान भी इसका इस्तेमाल करता है.
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अभिभावकों से सीख
मेमना बड़ी भेड़ों को चरते हुए देखता है और काफी कुछ सीखता है. की़ड़े की शिकायत होने पर भेड़ ऐसे पौधे चरती है जिनमें टैननिन की मात्रा बहुत ज्यादा हो. तबियत ठीक होने के बाद भेड़ फिर से सामान्य घास चरने लगती है.
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अल्कोहल की जरूरत
फ्रूट फ्लाई कही जाने वाली बहुत ही छोटी मक्खियां परजीवी से लड़ने के लिए सड़ते फलों का सहारा लेती है. फलों के खराब पर उनमें अल्कोहल बनता है. फ्रूट फ्लाई ऐसे फलों में अंडे देती हैं ताकि विषाणु और परजीवियों खुद मर जाएं.
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समझदार गीजू
विषाणु के चलते बीमार होने पर गीजू ऐसे पौधे खाता है जिनमें एल्कोलॉयड बहुत ज्यादा हो.
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जहरीले फूल
मोनार्क तितली अंडे देने के लिए मिल्कवीड पौधे का इस्तेमाल करती है. इसके फूल में बहुत ज्यादा कार्डेनोलिडेन होता है, जो तितली के दुश्मनों के लिए जहरीला होता है.
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मेहनती मधुमक्खियां
मधुमक्खियां प्रोपोलिस बनाती हैं. ये शहद और प्राकृतिक मोम का मिश्रण है. यह बैक्टीरिया, विषाणु और संक्रमण से बचाता है. शहद का इस्तेमाल इंसान, बंदर, भालू और चिड़िया भी करते हैं.
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निकोटिन वाला बसेरा
मेक्सिको की गोरैया घोंसला बनाने के लिए सिगरेट के ठुड्डों का सहारा लेने लगी है. रिसर्चरों के मुताबिक सिग्रेट बट्स में काफी निकोटिन होता है जो परजीवियों से बचाता है. लेकिन इसके नुकसान भी हैं.
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घास से इलाज
बिल्ली और कुत्ते प्राकृतिक रूप से शुद्ध शाकाहारी नहीं हैं. लेकिन बीमार पड़ने पर दोनों खास किस्म की घास खाते हैं. घास खाने के उनका पेट गड़बड़ा जाता है और बीमार कर रही चीज उल्टी या दस्त के साथ बाहर आ जाती है.
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मिट्टी से संतुलन
कुआला पेड़ पौधे और छाल खाता है. लेकिन बीमार होने पर वो खाने के तुरंत बाद मिट्टी खाता है. मिट्टी खुराक के अम्लीय और क्षारीय गुणों को फीका कर देती है.
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मच्छरों को धोखा
कापुचिन बंदरों के पास इंसान की तरह मच्छरदानी नहीं होती. लेकिन मच्छरों से बचने के लिए वो अपने शरीर पर खास गंध वाला पेस्ट रगड़ते हैं. गंध से परजीवी दूर भागते हैं.
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क्रमिक विकास की देन
कनखजूरा खुद को एक खास तरह के जहर में लपेट लेता है. वैज्ञानिकों को लगता है जीव जंतुओं ने लाखों साल के विकास क्रम में अपनी रक्षा के लिए कई जानकारियां जुटाई और भावी पीढ़ी को दीं.