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समाज

कोरोना विस्तार और व्यापक लॉकडाउन के बीच फैलती गरीबी

शिवप्रसाद जोशी
१३ अप्रैल २०२०

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि भारत में 40 करोड़ लोग और अधिक गरीबी की चपेट में आ सकते हैं.

Indien Neu Delhi | Coronavirus: Karan Kumar mit Maske
तस्वीर: Reuters/A. Abidi

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन, आईएलओ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के असंगठित सेक्टर पर आने वाले दिनों में बड़ी गाज गिर सकती है जिसका सबसे गहरा असर निचले स्तर के कर्मचारियों और मजदूरों पर पड़ेगा. 90 फीसदी कामगार इस सेक्टर में कार्यरत है. पूरी दुनिया में बेरोजगारों की तादाद करीब 19 करोड़ बताई गई है. उनके अलावा साढ़े 16 करोड़ लोग ऐसे हैं जिनके पास पर्याप्त काम नहीं हैं और 12 करोड़ वे हैं जिन्होंने या तो काम की तलाश करना छोड़ दिया है या श्रम बाजार तक जिनकी पहुंच नहीं है. कुल मिलाकर पूरी दुनिया में 47 करोड़ से ज्यादा लोग प्रभावित हैं. चिंता ये है कि कोरोना पश्चात के हालात रोजगार के लिहाज से और डरावने हो सकते हैं.

आईएलओ की ताजा रिपोर्ट से पहले जनवरी में संयुक्त राष्ट्र की देखरेख में ही सामने आई "द वर्ल्ड एम्प्लॉयमेंट ऐंड सोशल आउटलुकः ट्रेंड्स 2020” (वेसो) रिपोर्ट मे वैश्विक बेरोजगारी की दर आंकी गयी है. वैश्विक आर्थिक वृद्धि के अनुपात में काम करने के अवसरों में निरतंर हो रही कटौती ने श्रम बाजार को अस्थिर किया है. नयी नौकरियां पर्याप्त मात्रा में सृजित नहीं की जा सक रही हैं, रोजगार के अवसर कम होते जाने की सूरत में वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में असंतोष के हालात भी बनने लगे हैं. रही सही कसर कोरोना महामारी ने पूरी कर दी है. जिसकी वजह से उद्योग धंधे, उत्पादन और निर्माण कार्य ठप्प हो चुके हैं और महामारी से उबरने के रास्ते धुंधले पड़े हुए हैं. 

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत को लेकर जाहिर अपनी चिंताओं में कहा है कि लॉकडाउन की बहुत सख्त और बहुत लंबी मियाद की वजह से भारत में असंगठित क्षेत्र के कामगारों पर निर्णायक असर पड़ा है, सामाजिक सुरक्षा, रोजगार औj स्वास्थ्य के लिहाज से भी वे और अधिक वलनरेबल हुए हैं. लॉकडाउन की घोषणा होते ही सैकड़ों हजारों की संख्या में अन्य राज्यों में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के आननफानन में अपने अपने घरों को लौट जाने की कोशिशों के विचलित करने वाले दृश्यों ने कोरोना काल और सरकारों की कार्रवाइयों का एक विडंबनापूर्ण यथार्थ उजागर किया है.

इस बीच भारतीय उद्योग परिसंघ, सीआईआई ने भी आशंका जताई है कि अगर पर्यटन और होटल जैसे उद्योगों में रिकवरी अक्टूबर से आगे तक खिंचती है तो आधा से ज्यादा इकाइयों का काम रुक सकता है और दो करोड़ से अधिक नौकरियां जा सकती हैं. लेकिन ये कहानी सिर्फ होटल या पर्यटन उद्योग की नहीं, दूसरे सेवा क्षेत्रों में स्थितियां नाजुक हैं, मांग में भारी गिरावट आ जाने से उत्पादन और निर्माण सेक्टर बेहाल हैं. इन क्षेत्रों में काम कर रहे बचेखुचे लोगों पर भी तलवार लटक रही है.

राष्ट्रीय सैंपल सर्वे (एनएसएस) और पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वेज (पीएलएफएस) के आंकड़ों पर आधारित हाल के अनुमानों के मुताबिक करीब 14 करोड़ गैर कृषि रोजगारों पर फौरी खतरा मंडरा रहा है. इनमें स्थायी कर्मचारी ही नहीं, दिहाड़ी मजदूर भी शामिल हैं. शहरी क्षेत्रों के दूसरे असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों, फुटकर विक्रेताओं, ऑनलाइन डिलीवरी में कार्यरत कर्मचारियों, सब्जी और फल विक्रेताओं के लिए भी भीषण मुश्किलें हैं. कंपनियों में कार्यरत कर्मचारिकों, सिक्टोरिटी स्टाफ, माली, चपरासी, गार्ड आदि जैसी नौकरियों पर भी छंटनी का खतरा बना हुआ है.

सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकोनमी, सीएमआईई नामक भारतीय शोध संस्था ने भी इस बीच देश में रोजगार के हालात पर अध्ययन किए हैं. उसकी एक ताजा रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडाउन पूर्व भारत में रोजगार वाले लोगों की अनुमानित संख्या करीब 40 करोड़ थी. और करीब तीन करोड़ लोग बेरोजगार थे. लेकिन लॉकडाउन लागू होने के एक सप्ताह बाद के अनुमान के मुताबिक साढ़े 28 करोड़ लोग ही रोजगार में बने रह पाए थे. यानी अंदेशा ये है कि इस दौरान करीब 12 करोड़ लोगों को अपनी नौकरियां गंवानी पड़ी हैं. एक अनुमान ये है कि इनमें से भी ज्यादा प्रतिशत ऐसे लोगों का होगा जो अपने घरों के अकेले कमाने वाले रहे होंगें, तो उस स्थिति में उन परिवारों का जीवनयापन ही संकट में आ गया दिखता है.

आईएलओ का कहना है कि 75 साल से ज्यादा के समय में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का ये सबसे बड़ा इम्तहान होने जा रहा है. एक देश भी नाकाम रहता है तो वो सबकी नाकामी होगी. जाहिर है कि ऐसे नाजुक मौकों पर वैश्विक समाज को असाधारण एकजुटता दिखानी होगी. सरकारों को भी अपने अपने देशों में हालात सुधारने के लिए युद्धस्तर पर अभी से जुट जाना होगा. अपने बेहाल नागरिकों की जीवनयापन की स्थितियां सुधारना सबसे बड़ी और सबसे पहली चुनौती होनी चाहिए.

इसके लिए नीतियों में जरूरी बदलाव करने होंगे, नयी नीतियां बनानी होंगी, राहत पैकेज देने होंगे, निजी उद्यमों को हर लिहाज से प्रोत्साहित करते रहना होगा. खुदरा व्यापार, होटल उद्योग, और उत्पादन सेक्टरों में रोजगार बहाली के लिए उपायों की एक पूरी व्यवस्था बनानी होगी. त्वरित कार्यदलों, टास्क फोर्सेस के गठन की फौरन जरूरत होगी. सबसे अहम चुनौती है भूखे, बेरोजगार और बीमार कामगारों के बीच आपात राहत पहुंचाने की. कोरोना पश्चात् दीर्घ अवधि में निर्णायक लक्ष्य यही है कि भारत को हर साल करीब एक करोड़ रोजगार सृजित करने की जरूरत है तभी वो बड़े पैमाने पर काम करने की उम्र में पहुंच रही एक बड़ी आबादी को रोजगार में खपा सकता है. 

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