कोरोना संकट के बीच मैर्केल पर क्यों टिकी हैं सबकी निगाहें?
क्रिस्टॉफ स्ट्राक
२७ अप्रैल २०२०
जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल के राजनीतिक करियर को कई बार खत्म घोषित किया जा चुका है. लेकिन हर बार वे एक बेहतरीन क्राइसिस मैनेजर के रूप में उभरी हैं. एक बार फिर वे दुनिया की सबसे लोकप्रिय नेता बन गई हैं.
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नेता जब दोबारा चुनाव लड़ने की हालत में ना रहे या ऐसा ना करना चाहे तो उस अवधि में अंग्रेजी में उसे "लेम डक" कहा जाता है. उसके राजनीतिक करियर को खत्म मान लिया जाता है और आलोचक उन्हें कमजोर और प्रभावहीन घोषित कर देते हैं. पिछले कुछ सालों में राजनीतिक आलोचकों ने कई बार अंगेला मैर्केल को "लेम डक" की श्रेणी में डाला है. 2017 के चुनावों में उनकी सीडीयू पार्टी के बुरे प्रदर्शन के बाद, फिर 2018 में उनके पार्टी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा देने के बाद और फिर उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी फ्रीडरिष मैर्त्स की खुद को बेहतर नेता सिद्ध करने की कोशिशों के बाद. दो साल पहले मैर्केल के सबसे करीबी भी उम्मीद कर रहे थे कि 2019 में कभी ना कभी वे इस्तीफा दे देंगी. लेकिन वे आज भी बनी हुई हैं.
इस वक्त मैर्केल अपनी सफलता के उस पड़ाव पर हैं जहां वे कई सालों से नहीं रही हैं - राष्ट्रीय से ज्यादा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर. इस्राएल के सरकारी टीवी चैनल कान के संवाददाता अमिचाई श्टाइन ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा, "यहां का मीडिया मैर्केल को दुनिया के सबसे मजबूत नेताओं में से एक मानता है. मैर्केल को एक ऐसे नेता के रूप में देखा जाता है जो जनता को स्थिति के बारे में बखूबी बता सकती हैं और उसे साफ साफ समझा भी सकती हैं."
दुनिया भर के अखबारों और सोशल मीडिया में इन दिनों इसी तरह की बातें छप रही हैं. मार्च में द न्यूजीलैंड हेराल्ड ने उनके बारे में एक लेख छापा जिसका शीर्षक था, "सत्ता से दूर हो रही हैं लेकिन संकट की इस घड़ी में भी चमक रही हैं जर्मनी की नेता." इसी तरह अप्रैल में अर्जेंटीना के सबसे जाने माने अखबार क्लैरिन में भी चांसलर मैर्केल की तारीफों से भरा लेख छपा. लेखक रिकार्डो रोआ ने लिखा कि 15 सालों तक सत्ता के शीर्ष पर रहने के बाद भी मैर्केल एक "सामान्य व्यक्ति" सा बर्ताव करती हैं.
रोआ के अनुसार इस संकट की घड़ी में मैर्केल "दुनिया के उन चुनिंदा नेताओं में से एक हैं जो खुद को बचाने की जगह नेतृत्व करने में लगी हैं, "वे वैज्ञानिक तर्क के साथ संवाद करती हैं. वे शांति से संवाद करती हैं और कुतर्क को खत्म कर देती हैं." उनकी वजह से तो स्पेनिश में एक नया शब्द ही रच दिया गया है, "मैर्केलीना" जिसका मतलब है नेतृत्व करने का उनका वह तरीका जिससे वे समस्याओं को सुलझाने की कोशिश करती हैं, न कि उन समस्याओं का राजनीतिक फायदा उठाने की.
कोरोना से जंग में ये महिलाएं हैं असली हीरो
दुनिया भर के देश कोरोना से लड़ने की कोशिशों में लगे हैं. इस जंग में कई नेताओं को आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ रहा है. लेकिन महिला नेताओं की जम कर तारीफ हो रही है. एक नजर इस जंग की असली हीरो पर.
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अंगेला मैर्केल
कोरोना संक्रमण के चलते जर्मनी की कम मृत्यु दर दुनिया भर में चर्चा का विषय बनी हुई है. इस संकट से निपटने के लिए चांसलर मैर्केल की रणनीति की चारों तरफ तारीफ हो रही है. मैर्केल ने शुरुआती दौर में ही चेतावनी दे दी थी कि देश की 60 फीसदी आबादी कोरोना से संक्रमित हो सकती है. औपचारिक रूप से उन्होंने "लॉकडाउन" शब्द का इस्तेमाल भी नहीं किया और लोगों से कहा कि वे समझती हैं कि आजादी कितनी जरूरी है.
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मेरिलिन एडो
कोरोना वायरस से दुनिया का पीछा तब तक पूरी तरह नहीं छूटेगा जब तक इसका टीका नहीं बन जाता. जर्मन सेंटर फॉर इन्फेक्शन रिसर्च की प्रोफेसर मेरिलिन एडो अपनी टीम के साथ मिल कर कोरोना वायरस से बचाने का टीका विकसित करने में लगी हैं. इससे पहले वे इबोला और मर्स के टीके भी विकसित कर चुकी हैं.
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जेसिंडा आर्डर्न
14 मार्च को न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा आर्डर्न ने घोषणा की कि देश में प्रवेश करने वाले किसी भी व्यक्ति को दो हफ्तों के लिए सेल्फ आइसोलेट करना होगा. उस वक्त देश में कोरोना के महज छह मामले सामने आए थे. आंकड़ा सौ के पार जाते ही उन्होंने देश में लॉकडाउन की घोषणा कर दी. बच्चों को उन्होंने संदेश दिया कि वे जानती हैं कि ईस्टर का खरगोश जरूरी है लेकिन इस साल उसे अपने घर में ही रहना होगा.
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जुंग इउन केओंग
दक्षिण कोरिया के सेंटर फॉर डिजीज एंड प्रिवेंशन की अध्यक्ष जुंग इउन केओंग को नेशनल हीरो घोषित किया गया है. स्थानीय मीडिया के अनुसार कोरोना संकट की शुरुआत से केओंग दिन रात काम कर रही हैं, ना सो रही हैं और ना ही दफ्तर से बाहर निकल रही हैं. उनकी मेहनत का ही नतीजा था कि देश भर टेस्टिंग मुमकिन हो पाई और संक्रमण का फैलाव रुक सका.
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मेट फ्रेडेरिक्सन
डेनमार्क की प्रधानमंत्री ने मार्च की शुरुआत से ही कड़े कदम उठाने शुरू कर दिए थे. 14 मार्च तक देश की सीमाओं को सील भी कर दिया गया था. डेनमार्क में अब तक कोरोना संक्रमण के 5,800 मामले ही सामने आए हैं.
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त्साई इंग वेन
चीन के बेहद करीब होते हुए भी ताइवान ने खुद को कोरोना से बचा लिया. वहां कोरोना संक्रमण के चार सौ से भी कम मामले सामने आए हैं, जबकि जानकारों का मानना था कि ताइवान सबसे बुरी तरह प्रभावित देशों में से एक हो सकता था. वेन की सरकार ने वक्त रहते चीन, हांगकांग और मकाउ से आने वाले लोगों पर ट्रैवल बैन लगा दिया था.
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15 सालों बाद जर्मन लोग इस तरह की सुन सुन कर थक चुके हैं क्योंकि दरअसल यह मैर्केल के राजनीतिक संघर्ष को नहीं, बल्कि संकट से निपटने की उनकी निपुणता को दर्शाती हैं. लेकिन दुनिया भर में हो रही यह तारीफ यह भी दर्शाती है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस तरह के नेतृत्व की कितनी कमी है.
इसी तरह की आवाजें अमेरिका में भी सुनी जा सकती हैं. द अटलांटिक, फोर्ब्स और द न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे अखबारों में मैर्केल की प्रशंसा और ट्रंप की आलोचना वाले कई लेख मिल जाएंगे. ऐसी ही खबरें लंदन से भी आ रही हैं जहां एक पत्रकार ने बताया कि लगभग हर प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान यह सवाल उठाया जाता है कि डाउनिंग स्ट्रीट जर्मनी की मिसाल ले कर क्यों काम नहीं कर रहा है.
जर्मनी में हुए ताजा शोध दिखाते हैं कि जिस तरह से मैर्केल इस महामारी से निपट रही हैं, उसके चलते देश में उनकी रेटिंग काफी बढ़ी है. मीडिया उन्हें एक बेहतरीन क्राइसिस मैनेजर के रूप में पेश कर रहा है. चारों तरफ से मिल रहे इस सम्मान के पीछे आखिर क्या है? मैर्केल की सीडीयू पार्टी के सदस्य आंद्रेयास निक का कहना है कि जर्मन लोग पिछले 15 सालों से जिस तरह मैर्केल को देख रहे हैं, उसकी तुलना में अंतरराष्ट्रीय समीक्षक और दूसरे देशों की संसद में काम करने वाले "मैर्केल के फैसले लेने के अनोखे तरीकों और नेतृत्व करने के स्टाइल को अधिक स्पष्टता से देखते हैं."
मैर्केल की सफलता के लिए आंद्रेयास निक तीन कारण देखते हैं: पहला है उनका समस्या से निपटने का तरीका जो कि "व्यावहारिक और लक्ष्य पर केंद्रित होता है. वे विश्लेषणात्मक रूप से समस्या की जांच करती हैं और बहुत ध्यान से समाधान खोजती हैं." दूसरा है उनका एक प्रशिक्षित वैज्ञानिक होना और तीसरा उनका महिला होना.
निक मैर्केल की ही पार्टी के हैं. जाहिर है, वे तो उनकी तारीफ करेंगे ही. लेकिन इसी तरह के जवाब विपक्ष से भी मिलते हैं. लेफ्ट पार्टी के बोडो रामेलोव पिछले हफ्तों में मैर्केल के साथ कई बैठकें कर चुके हैं. वे थ्यूरिंजिया राज्य के मुख्यमंत्री भी हैं. उनका कहना है कि चांसलर के कदम लक्ष्यों पर निर्धारित होते हैं और बहुत शांति से लिए जाते हैं, "ऐसा उनकी बेहतरीन वीडियो और फोन कॉन्फ्रेंस से भी पता चलता है और इससे पेचीदा बहस में भी निश्चिंतता का अहसास होता है."
ऐसा क्या है अंगेला मैर्केल के व्यक्तित्व में
अंगेला मैर्केल चौथी बार जर्मनी की चांसलर बन गई है. अपनी गंभीर मुद्रा और सुरक्षात्मक शासनशैली के लिए जानी जाने वाली चांसलर मैर्केल के व्यक्तित्व के कुछ अलग पहलू दिखाती तस्वीरें.
तस्वीर: dapd
'शक्ति का त्रिकोण'
मैर्केल को अक्सर हाथ मिलाकर खड़े होने पर एक त्रिकोण सी मुद्रा में देखा जाता है. जनता के सामने हों या कैमरे के सामने- ये हस्त मुद्रा उनकी पहचान है. और एक बेहद शक्तिशाली नेता होने के कारण कई लोग इसे शक्ति का त्रिकोण कहते हैं.
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यूरोप की नेता
जर्मन चांसलर अपनी लगभग हर सार्वजनिक उपस्थिति में शांत और गंभीर होती हैं, खासकर यूरोप के भीतर. इसी कारण सही मौकों पर आई उनकी मुस्कान खबर बन जाती है. जैसे हाल ही में ब्रातिस्लावा में आयोजित यूरोपीय नेताओं के सम्मेलन में.
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सेल्फी में चांसलर
2015 में जर्मनी में शरणार्थियों की संख्या में आए उभार के दौरान ही एक सीरियाई युवा के साथ उनकी ये सेल्फी बहुत महत्वपूर्ण संदेश बन गई. शरणार्थियों के लिए द्वार खुले रखने वाली मैर्केल ने अपने मत को साफ करते हुए तमाम स्कूलों और शरणार्थी कैंपों का दौरा किया.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
गठबंधन सरकार में जुगलबंदी
जर्मनी की चांसलर और सीडीयू पार्टी की मुखिया के तौर पर मैर्केल के सामने चुनौतियां भी बड़ी हैं. वह सरकार में अपनी सहयोगी पार्टी एसपीडी के बड़े नेता जिग्मार गाब्रिएल की तरह तुरंत प्रतिक्रिया नहीं देतीं बल्कि बहुत ही ठंडे दिमाग से वस्तुनिष्ठता वाले बयानों के लिए जानी जाती हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/W. Kumm
तेज डिजिटल विकास पर उत्सुक
एक भौतिकशास्त्री के रूप में प्रशिक्षित मैर्केल वैज्ञानिक सोच और अभिरुचि वाली तो रही हैं, लेकिन इंटरनेट और डिजिटल मीडिया में वे बहुत ज्यादा बढ़ चढ़ कर हिस्सा नहीं लेतीं. हालांकि उनका आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट है, जिस पर उनके सरकारी फोटोग्राफर की खींची तस्वीरें डाली जाती हैं. 2015 में यूएन में फेसबुक संस्थापक मार्क जकरबर्ग के साथ.
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उपदेशक की बेटी
एक प्रोटेस्टेंट पादरी की बेटी के रूप में जन्मी मैर्केल के नैतिक मूल्यों पर उनके पिता की शिक्षाओं का गहरा असर माना जाता है. ईसाई परवरिश के साथ बड़ी हुईं मैर्केल को 2016 में पोप फ्रांसिस के साथ वैटिकन में मिलने का मौका मिला. अपनी पसंदीदा किताबों पर चर्चा करते हुए.
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दोस्ताना राजनैतिक संबंधों की चैंपियन
अपने व्यस्त कार्यक्रमों के चलते मैर्केल के जीवन में ऐसे मौके भी कम ही आते हैं जब वे रिलेक्स दिखें. लेकिन 2013 में जर्मनी और फ्रांस के बीच एलिजी समझौते पर हस्ताक्षर होने की 50वीं वर्षगांठ के मौके पर मैर्केल ने पूरी संसद को न्यौता दिया और दोनों देशों की दोस्ती का जश्न शैंपेन की बोतल के साथ मनाया गया.
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एक निजी चांसलर
चांसलर के रूप में अंगेला मैर्केल साल में बहुत कम ही बार छुट्टियां ले पाती हैं. सार्वजनिक जीवन में होने के कारण अक्सर छुट्टी के समय भी उन पर नजर होती है. जैसे यहां पोलैंड में पति योआखिम जाउअर के साथ छुट्टी पर गईं मैर्केल की तस्वीर. (हाइके मुंड/आरपी)
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हाल ही में मैर्केल ने लॉकडाउन नियमों में ढील देने पर राज्यों की कड़े शब्दों में आलोचना की. इस पर रामेलोव का कहना है, "ऐसे वक्त में हमें मिल कर काम करने की जरूरत है." उनका कहना है कि इस वक्त राजनीति खतरे को खत्म करने और लोगों की मदद के लिए ठोस कदम लेने पर केंद्रित होनी चाहिए. उन्होंने यह कहा कि संकट की इस घड़ी में वे "एक शांत स्वभाव वाली महिला वैज्ञानिक" को राजनीति के शीर्ष पर देखना चाहेंगे, बजाय किसी ऐसे पॉपुलिस्ट पुरुष के जो खतरे को नजरअंदाज कर दे.
इस पूरे संकट के दौरान मैर्केल को कभी भी सार्वजनिक रूप से मास्क लगाए नहीं देखा गया. क्योंकि मैर्केल तो मैर्केल हैं. हालांकि इस वक्त उन्हें जिस तरह वैज्ञानिक की भूमिका में देखा जा रहा है, इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था. वह स्थिति का आकलन करती हैं, प्रमाण जमा करती हैं और बहुत शांति से उसका विश्लेषण करते हुए आगे बढ़ती हैं. मैर्केल की ये बातें अकसर जर्मन लोगों को उबाऊ लगती हैं.
अगर कोरोना संकट ना हुआ होता तो इस वक्त मैर्केल की सीडीयू पार्टी ने अपना नया पार्टी अध्यक्ष चुन लिया होता. और इसके बाद विश्लेषक मैर्केल के दिन गिनने में लग गए होते. लेकिन अब लगता है कि नया अध्यक्ष दिसंबर तक नहीं चुना जा सकेगा. और उससे पहले एक बड़ा बदलाव आएगा. 1 जुलाई से मैर्केल अगले छह महीनों के लिए यूरोपीय परिषद की अध्यक्षता संभालने जा रही हैं. साल भर पहले सीडीयू के नेता इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि जर्मनी के पास यह मौका आने से पहले ही क्या मैर्केल की जगह कोई और ले चुका होगा. लेकिन अब जब यह जिम्मेदारी मैर्केल के पास आएगी, तो किसी को इससे आपत्ति नहीं होगी.
मैर्केल को ले कर उठ रहे इस उत्साह के बीच यह सवाल अब भी बरकरार है कि आगे क्या होगा. जगह जगह अटकलें भी लगने लगी हैं. ब्रिटेन के संडे टाइम्स ने तो मैर्केल के साथ बवेरिया राज्य के मुख्यमंत्री मार्कुस जोएडर की तस्वीर छापते हुए उन्हें इस दौड़ में दावेदार भी घोषित कर दिया. तेल अवीव के अमिचाई श्टाइन का भी कहना है कि इस वक्त मैर्केल में "दुनिया की दिलचस्पी की एक बड़ी वजह यह भी है कि कोई नहीं जानता कि उनकी जगह कौन लेगा." और इस सवाल का जवाब तो बहुत जल्द नहीं मिलने वाला है.
इस रविवार जर्मनी अपने अगले चांसलर का चुनाव करेगा. यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था जर्मनी विश्व में अमेरिका, चीन और जापान के बाद चौथी सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है.
तस्वीर: Getty Images/S. Gallup
भूगोल
जर्मनी के उत्तर में डेनमार्क, पश्चिम में फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड्स और लग्जमबर्ग है. इसके दक्षिण में स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रिया है जबकि पूर्व में चेक रिपब्लिक और पोलैंड. 357,050 वर्ग किलोमीटर वाला यह देश उत्तर में बाल्टिक सागर से लेकर दक्षिण में बवेरियाई आल्प्स तक फैला है. राइन, एल्बे और डैन्यूब यहां की प्रमुख नदियां हैं.
तस्वीर: Reuters/M. Dalder
राजधानी
जर्मन राजधानी बर्लिन में करीब 35 लाख लोग रहते हैं. जर्मनी का सबसे बड़े शहर होने के साथ ही बर्लिन यूरोपीय संघ में भी लंदन के बाद दूसरा सबसे बड़ा नगर है.
तस्वीर: picture-alliance/R. Schlesinger
आबादी
यूरोपीय संघ के सबसे ज्यादा आबादी वाले इस देश में करीब 8.28 करोड़ लोग रहते हैं. इनमें करीब एक करोड़ लोग विदेशी हैं. तुर्की के बाहर सबसे ज्यादा तुर्क मूल के लोग जर्मनी में ही हैं. जर्मनी में प्रति वर्ग किलोमीटर 232 लोग रहते हैं.
तस्वीर: Getty Images
धर्म
जर्मनी का मुख्य धर्म ईसाई है. यहां के करीब एक तिहाई लोग प्रोटेस्टेंट और इतने ही कैथोलिक हैं. इनके अलावा जर्मनी में कई धर्मों को लोग रहते हैं, जिनमें मुस्लिम और यहूदी प्रमुख हैं. मुस्लिम आबादी करीब 44 लाख है जबकि यहूदियों की तादाद 99,000 है.
आयरन चांसलर के नाम से विख्यात ओटो फॉन बिस्मार्क ने कई स्वतंत्र राज्यों को मिला कर 1871 में जर्मनी की स्थापना की थी. प्रथम विश्व युद्ध में जर्मनी को पराजय मिली और इसके बाद की परिस्थितियों में देश में हिटलर का शासन पनपा. हिटलर के दौर में होलोकॉस्ट हुआ और फिर दूसरे विश्व युद्ध में करीब एक करोड़ लोग मारे गये. जर्मनी और बर्लिन चार हिस्सों में बंट गया. 1990 में जर्मनी का एकीकरण हुआ.
तस्वीर: ullstein bild
राजनीतिक संस्थाएं
जर्मनी में संसद के दो सदन हैं, निचला सदन बुंडेस्टाग और ऊपरी सदन बुंडेसराट. सरकार का प्रमुख चांसलर होता है. मौजूदा चांसलर अंगेला मैर्केल 2005 से इस पद पर हैं. वह क्रिश्चियन डेमोक्रैट पार्टी से जुड़ी हैं. एक औपचारिक पद राष्ट्रपति का भी है. जर्मनी यूरोपीय संघ का संस्थापक सदस्य है और उन 11 देशों में हैं जिन्होंने सबसे पहले यूरो मुद्रा को अपनाया.
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अर्थव्यवस्था
जर्मनी यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है और यह चीन के बाद दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. गाड़ियां और मशीनरी के अलावा रसायनों का भी निर्यात यहां से होता है. प्रमुख कंपनियों में डायमलर, बीएमडब्ल्यू, फॉक्सवागेन, पोर्शे, आउडी, और सीमेंस शामिल हैं. 2016 में यहां की जीडीपी 3.134 लाख करोड़ यूरो थी. प्रति व्यक्ति आय करीब 37 लाख 32 हजार रुपये है. बेरोजगारी की दर 2017 में करीब 5.7 फीसदी है.
तस्वीर: picture alliance/dpa
सशस्त्र सेना
जर्मन सेना में करीब 178,304 सैनिक हैं. देश का संविधान कहता है कि इनका इस्तेमाल केवल रक्षात्मक उद्देश्यों के लिए हो सकता है. सेना को देश के बाहर के अभियान में हिस्सा लेने के लिए संसद की मंजूरी लेनी पड़ती है. जर्मनी में सेना में अनिवार्य सेवा 2011 में खत्म कर दी गयी थी.