कोरोना संकट के बीच तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी टालने की अपील
६ अप्रैल २०२०अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त दलित चिंतक आनंद तेलतुम्बड़े की आसन्न गिरफ्तारी के साए में भारतीय प्रबंध संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद के 280 शिक्षकों और छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट से उनकी जमानत अर्जी पर पुनर्विचार की मार्मिक अपील की है. सुप्रीम कोर्ट ने 16 मार्च को उनकी अग्रिम जमानत अर्जी खारिज कर दी थी और छह अप्रैल यानी सोमवार तक ‘सरेंडर' करने का आदेश दिया था. आईआईएम अहमदाबाद की अपील में कहा गया है कि कम से कम कोरोना संक्रमण के खतरे और डॉ तेलतुम्बड़े के स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें जेल न भेजा जाए.
आईआईएम के बयान में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस और कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि डॉ तेलतुम्बड़े एक वरिष्ठ नागरिक हैं और उनकी सेहत भी अच्छी नहीं हैं, उन्हें संक्रमण का पूरा पूरा खतरा है, और इन हालात में और कोरोना के संकट को देखते हुए उनकी गिरफ्तारी से उनका स्वास्थ्य और जीवन खतरे में पड़ सकता है. बयान में ये भी याद दिलाया गया है कि तेलतुम्बड़े जांच में पूरा सहयोग करते आ रहे हैं और वे कहीं भागकर नहीं जाने वाले हैं, इसलिए कोर्ट इतना ही कर दे कि उनकी गिरफ्तारी की तारीख को आगे बढ़ा दे. जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता गौतम नवलखा पर भी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. उनकी याचिका भी सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो चुकी है.
इससे पहले डॉ आनंद तेलतुम्बड़े की बेटियां भी अपने पिता की शख्सियत और उनके विचारों और उनके योगदान के बारे में अपनी भावनाएं जाहिर कर चुकी हैं. प्रो. तेलतुम्बड़े अकादमिक जगत में जाना पहचाना नाम हैं और दलित चिंतक और मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय मामलों के विशेषज्ञ के रूप में उनकी प्रसिद्धि पूरी दुनिया में मानी जाती है. वो आईआईएम अहमदाबाद के इंजीनियरिंग ग्रेजुएट हैं, कई किताबों के लेखक हैं और आईआईटी खड्गपुर के पूर्व प्रोफेसर रह चुके हैं. तेलतुम्बड़े कॉरपोरेट सेक्टर में भी उच्च प्रबंध पदों पर काम कर चुके हैं.
इन दिनों तेलतुम्बड़े गोवा प्रबंध संस्थान में बिग डाटा एनालेटिक्स के वरिष्ठ प्रोफेसर के रूप में कार्यरत थे. पुणे पुलिस ने उन पर जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में कथित रूप से हिंसा भड़काने का मुकदमा दर्ज किया हुआ है. तेलतुम्बड़े से पहले इस मामले में नौ मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, साहित्यकार और अधिवक्ता जेल की सजा काट रहे हैं. जिनमें मशहूर अधिवक्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज भी हैं. इन लोगों पर प्रतिबंधित माओवादियों से साठगांठ का भी आरोप लगाया गया है.
महाराष्ट्र पुलिस इस मामले की छानबीन करती आ रही थी. राज्य में नवगठित शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस की गठबंधन सरकार ने पिछले दिनों भीमा कोरेगांव मामले की जांच में कमियों का इशारा करते हुए फिर से जांच बैठाने की बात कही थी. एनसीपी नेता शरद पवार इस बारे में बयान भी दे चुके थे लेकिन उस बयान के कुछ ही दिनों के भीतर केंद्रीय गृह मंत्रालय के तहत आने वाली राष्ट्रीय जांच एजेंसी, एनआईए ने ये मामला महाराष्ट्र सरकार से वापस ले लिया. इस पर केंद्र और राज्य के बीच तकरार भी हुई थी और इसे राज्य के अधिकारों का अतिक्रमण और कामकाज में हस्तक्षेप बताया गया था.
तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी को टालने की आखिरी उम्मीद के रूप में, आईआईएम अहमदाबाद के छात्रों, शिक्षकों और पूर्व छात्रों ने अपने एक प्रतिष्ठित एलुमिनस के प्रति सम्मान और एकजुटता दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट के नाम ये बयान जारी किया है. बयान में इस मामले पर कोर्ट से तत्पर कार्रवाई की गुजारिश की गई है. पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संकट को देखते हुए और कोर्ट परिसर में भीड़, गहमागहमी और आवाजाही से बचाव के उपाय के तहत जरूरी मामलों की ऑनलाइन सुनवाई को भी मंजूरी दे दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वकील वीडियो कॉन्ंफ्रेस के जरिए अपने मामलों पर बहस कर सकते हैं और सातों दिन चौबीसों घंटे किसी भी समय ऑनलाइन केस फाइल कर सकते हैं. कोर्ट परिसर के प्रेस कक्षों में स्मार्ट टीवी पर कार्यवाहियां देखने की इजाजत भी उन्हें दी गई है. इसी सिलसिले में कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं ने सुप्रीम कोर्ट से सुनवाई के लाइव प्रसारण की अनुमति देने की भी गुजारिश की है. हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटलीकरण की प्रक्रिया में तेजी दिखाई है और ई-अदालत जैसे प्रोग्राम लांच किए गए हैं. डॉ तेलतुम्बड़े के मामले में पुनर्विचार की नई गुहार को भी सुप्रीम कोर्ट की ऑनलाइन आपात सेवा के साथ जोड़कर देखा जा रहा है.
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