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समाज

कोरोना से लड़ाई में हांफ रहा है बिहार

मनीष कुमार
२० अप्रैल २०२१

तेजी से बढ़ते कोरोना संक्रमण के साथ ही बिहार में स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति एक बार फिर जगजाहिर हो गई है. अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा रेमडेसिविर जैसी जरूरी दवा को लेकर हाहाकार मचा है.

Indien Bihar Krankenhaus | Hinweisschild
तस्वीर: Manish Kumar/DW

बिहार में कोरोना संक्रमण की स्थिति दिनों-दिन भयावह होती जा रही है. हालत यह है कि महज सत्रह दिनों में राज्य में कोविड के मामले आठ गुणा बढ़ गए. प्रदेश में प्रतिदिन कोरोना के पांच से आठ हजार मामले सामने आ रहे हैं. स्थिति की भयावहता का आकलन संक्रमण दर की लगातार बढ़ती स्थिति से किया जा सकता है, जो एक अप्रैल को 0.80 प्रतिशत से बढ़कर 18 अप्रैल को 7.82 फीसद पर पहुंच गई. स्थिति बिगड़ते ही सरकारी तथा प्राइवेट अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ने लगी और इसी के साथ सरकारी दावों के पोल भी खुलने लगे. देखते ही देखते अस्पतालों में बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर तथा रेमडेसिविर उपलब्ध नहीं के बोर्ड टंग गए.

संक्रमण के तेजी से फैलने तथा प्रदेशभर से मरीजों के आने के कारण पटना एम्स, पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल (पीएमसीएच) तथा एनएमसीएच के कोविड वॉर्ड पूरी तरह भर गए. यही हाल राजधानी पटना के प्राइवेट अस्पतालों का भी है. सरकारी अस्पतालों में तो ऑक्सीजन की सप्लाई हो रही है लेकिन प्राइवेट अस्पतालों को इसकी किल्लत झेलनी पड़ रही है. इस वजह से वे मरीजों को भर्ती करने से इंकार कर रहे हैं. हाईटेक हॉस्पीटल के प्रबंधक एके पांडेय कहते हैं, "ऑक्सीजन सिलेंडर की उपलब्धता नहीं होने के कारण कोरोना संक्रमितों को भर्ती नहीं कर पा रहे हैं. हम उन्हें पीएमसीएच या अन्य सरकारी अस्पताल में जाने की सलाह दे रहे हैं."

इसी तरह कई ऐसे प्राइवेट अस्पताल हैं जिन्होंने मरीज को भर्ती तो कर लिया किंतु उनके पास भी ऑक्सीजन की कमी के कारण उन मरीजों को रखना भारी पड़ रहा है. मेडिजोन अस्पताल के निदेशक पंकज कुमार मेहता कहते हैं, "ऑक्सीजन की कमी से चार गंभीर मरीजों को दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करना पड़ गया. इन मरीजों को मरते हुए हम कैसे देख सकते हैं." यही वजह है कि कई अस्पताल मरीजों को डिस्चार्ज करने लगे.

रेमडेसिविर के लिए भी मारामारी

मरीजों को रेमडेसिविर इंजेक्शन के लिए भी जूझना पड़ रहा है. सभी सरकारी अस्पतालों को भी मांग के अनुरूप इसकी आपूर्ति नहीं की जा रही है. वैसे सरकार भारी संख्या में इस इंजेक्शन की खरीदारी की तैयारी कर रही है. इस परिस्थिति में इंजेक्शन की कालाबाजारी भी शुरू हो गई है. सिनजेन इंटरनेशनल लिमिटेड के रेमडेसिविर इंजेक्शन रेमविन की कीमत केंद्र सरकार ने 2450 रुपये तय की है लेकिन आइजीआइएमएस में इलाज करा रही एक महिला के बेटे ने इसे चार हजार रुपये में खरीदा. इस कीमत पर भी उसे एक डोज ही मिली.

एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती एक मरीज के परिजन ने बताया कि सिपला कंपनी के सेरेमी इंजेक्शन के एक डोज की कीमत 18 हजार रुपये चुकानी पड़ी. छह डोज के लिए एक लाख रुपये देने पड़े. हालांकि सोमवार से सरकार ने व्यवस्था की है कि राज्य औषधि नियंत्रक की ईमेल आईडी पर मरीज के आधार कार्ड, दवा पर्ची व कोरोना रिपोर्ट की कॉपी भेजने पर संबंधित अस्पताल को सीधे रेमडेसिविर इंजेक्शन की आपूर्ति कर दी जाएगी. प्राइवेट अस्पतालों में मुंहमांगी रकम देने के बाद भी मरीजों की परेशानी कम होती नहीं दिख रही.

स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि कोविड डेडिकेटेड नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल (एनएमसीएच) के अधीक्षक डॉ. विनोद सिंह ने बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को पत्र लिख कर अधीक्षक के अतिरिक्त कार्यभार से मुक्त करने का आग्रह किया. इसकी वजह उन्होंने काफी प्रयास के बाद भी अस्पताल में ऑक्सीजन सप्लाई में आ रही कमी को बताया. हालांकि इससे इतर प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय कहते हैं, "ऑक्सीजन व रेमडेसिविर इंजेक्शन की उपलब्धता को लेकर हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं. तेजी से मरीजों की बढ़ती हुई संख्या के कारण इनकी किल्लत हुई है, अगले एक-दो दिन में ये समस्याएं दूर हो जाएंगी."

वहीं राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक मनोज कुमार का कहना है, "रेमडेसिविर इंजेक्शन की देशभर में कमी है, इसलिए इसकी आपूर्ति होने में थोड़ा समय लगेगा. सरकार ने 50 हजार वॉयल की खरीद के लिए ऑर्डर दे दिया है. ऑक्सीजन की मांग पूरी करने के लिए राज्य के सभी जिलों की मैपिंग का निर्देश दिया गया है. लिक्विड ऑक्सीजन मंगवाए जा रहे हैं, तथा सभी 14 प्लांट को 24 घंटे चलाने को कहा गया है."

इलाज में रेमडेसिविर कितनी कारगर

हालात की गंभीरता को देखते हुए सोमवार को सुनवाई के दौरान पटना हाईकोर्ट ने केंद्र व राज्य सरकार को सख्त निर्देश देते हुए कहा कि बेड, ऑक्सीजन या दवाओं की कमी की वजह से अगर किसी कोरोना संक्रमित की मौत होती है, तो इसे मानवाधिकार का उल्लंघन माना जाएगा. न्यायमूर्ति चक्रधारी शरण सिंह की खंडपीठ ने राज्य सरकार से यह भी पूछा है कि पटना सहित प्रदेश के सभी कोविड डेडिकेटेड अस्पताल व कोविड केयर सेंटर में ऑक्सीजन की कमी पूरी हुई या नहीं.

अदालत ने राजधानी के कई अस्पतालों में कोविड अस्पताल में तब्दील कर वहां जल्द से जल्द कोरोना संक्रमितों का इलाज सुनिश्चित करने का निर्देश भी दिया. हाईकोर्ट ने बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग के सचिव को राज्य के सभी कोविड अस्पतालों के औचक निरीक्षण का भी आदेश जारी किया. अदालत ने यह भी पूछा है कि कोरोना से बचाव के लिए केंद्र सरकार द्वारा 2020 के मार्च में जारी कोविड प्रोटोकॉल का किस हद तक अनुपालन किया गया. सुनवाई के दौरान पटना एम्स के निदेशक पीके सिन्हा ने अदालत को बताया कि रेमडेसिविर इंजेक्शन कोरोना के इलाज के लिए है ही नहीं और केंद्र सरकार के कोविड प्रोटकॉल में इसका जिक्र किया गया है. बेवजह इसकी मांग को लेकर डर फैला हुआ है. इस पर कोर्ट ने स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रमुख से यह पूछा कि अगली सुनवाई में राज्य सरकार यह बताए कि कोविड के इलाज में रेमडेसिविर इंजेक्शन कितनी कारगर और जरूरी है. अदालत ने इसके लिए करीब साढ़े छह करोड़ के ऑर्डर पर भी आपत्ति जताई.

कोरोना ने छीना जुबान का स्वाद

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927 करोड़ के भरोसे ही इलाज की व्यवस्था

दरअसल स्वास्थ्य महकमा चिकित्सक, नर्स व पैरामेडिकल स्टाफ की कमी से बुरी तरह जूझ रहा है. मई 2020 में एक मामले की सुनवाई के दौरान विभाग ने हाईकोर्ट को बताया था कि प्रदेश में चिकित्सकों के स्वीकृत 11,645 पदों में से 8768 पद रिक्त हैं. 75 प्रतिशत नर्सिंग स्टाफ की भी कमी है. वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में स्वास्थ्य विभाग के लिए 13,264 करोड़ की राशि का प्रावधान किया गया. उस समय सरकार ने कहा था कि पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 21.28 फीसद अधिक राशि दी गई है. इसमें भवन निर्माण पर सबसे ज्यादा 6,000 करोड़ रुपये खर्च करने का प्रावधान किया गया.

इसके बाद शेष राशि में से उपकरण, वेतन व अन्य जरूरी खर्चे को अलग करने पर महज 927 करोड़ की राशि बचती है जिसे राज्यभर में इलाज, दवा व मानव संसाधन (हेल्थ वर्कर) बढ़ाने के मद में खर्च किया जाना है. भवन निर्माण पर फोकस किया गया किंतु मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करने की आवश्यकता के अनुसार योजना नहीं बनाई गई तथा उसके लिए कम बजटीय प्रावधान भी किया गया. राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय का कहना है, "विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार प्रति एक हजार की आबादी पर एक चिकित्सक होना चाहिए. बिहार की आबादी 12 करोड़ है जिसके अनुरूप यहां 1,20,000 डॉक्टर होने चाहिए. अभी हमारे यहां 1,19,612 डॉक्टर हैं." इनमें 40,100 एलोपैथिक, 34,257 होमियोपैथिक, 33,922 आयुर्वेदिक, 6,130 डेंटिस्ट तथा 5,203 यूनानी चिकित्सक हैं.

हेल्थकेयर व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए राज्य में 11 मेडिकल कॉलेज, 23 जीएनएम व 54 नर्सिंग स्कूल तथा 28 पारामेडिकल संस्थान खोलने की प्रक्रिया चल रही है. वहीं जानकार बताते हैं कि एक हद तक लालफीताशाही भी बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था कायम करने में बड़ी बाधा है. दरभंगा मेडिकल कॉलेज अस्पताल में यथोचित विद्युत व्यवस्था नहीं किए जाने के कारण 40 वेंटीलेटर शो पीस बनकर रह गए हैं. इसकी आपूर्ति दो माह पहले पीएम केयर्स फंड से की गई थी. कोरोना संकट के मद्देनजर भी इसके इंस्टॉलेशन के लिए जिम्मेदार लोगों ने समय रहते पहल नहीं की. प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में चिकित्सकों समेत स्वास्थ्यकर्मियों का समय पर नहीं आना भी किसी से छुपा नहीं है. शायद इन्हीं वजहों से बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव कहते हैं, "बिहार की स्वास्थ्य सेवा ही आईसीयू में है. एक वर्ष में भी सरकार ऑक्सीजन की व्यवस्था सुनिश्चित नहीं करा सकी. वेंटीलेटर, बेड व जरूरी की कमी क्यों दिखती है? पीएम केयर्स फंड का सुदपयोग कहां हुआ."

वजह चाहे जो भी हो, इतना तो तय है कि कुव्यवस्था की मार तो अंतत: आम जनता को भी झेलनी पड़ती है. तभी तो ऑक्सीजन नहीं मिलने के कारण पीएमसीएच की गेट पर दम तोड़ने वाले बिहारशरीफ निवासी व औरंगाबाद में तैनात कोषागार पदाधिकारी मो. गुलफाम के पिता मो. असलम ने कहा, "बेटे को सिस्टम ने मार डाला. जब एक अधिकारी सिस्टम की भेंट चढ़ गया तो आम आदमी के साथ क्या होता होगा." वहीं पत्रकार अमित शेखर कहते हैं, "यह तो राजधानी के अस्पतालों की स्थिति है. संक्रमण फैलने पर कल्पना कीजिए जिला व अनुमंडल स्तर के अस्पतालों का हाल क्या होगा. जो पहले से ही मानव संसाधन की कमी समेत कई अन्य समस्याएं झेल रहे हैं. वहां तो स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा.''

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