देश के दूसरे महानगरों की तरह कोलकाता में भी लाखों प्रवासी मजदूर लॉकडाउन के चलते फंस गए हैं. इनमें से कोई मोटिया मजदूर के तौर पर माल ढुलाई का काम करता था तो कोई रिक्शा चलाकर परिवार का पेट पालता था.
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“इस महीने की शुरुआत में जो थोड़े-बहुत पैसे थे उसे गांव भेज दिया. अब हमारे पास एक सप्ताह से ना तो कोई काम है और ना ही कमाई. खाने के भी लाले पड़े हैं. हम अपने गांव भी नहीं जा सकते,” अपनी हालत बयान करते बिहार से 20 साल पहले कोलकाता आए रामाशीष के चेहरे पर निराशा साफ झलकती है.
केंद्र सरकार ने हालांकि राज्य सरकारों से प्रवासी मजदूरों के सामूहिक पलायन पर अंकुश लगाने और ऐसे लोगों की मदद करने को कहा है, लेकिन पेट की आग के आगे भला सरकारी निर्देशों की परवाह कौन करता है. देश के दूसरे शहरों की तरह कोलकाता के सैकड़ों मजदूर भी पैदल या साइकिल से ही बिहार और झारखंड स्थित अपने गांवों के लिए रवाना हो गए हैं. लेकिन अब भी लाखों लोग यहां फंसे लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं.
बड़ी तादाद
कोलकाता में बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड और ओडीशा जैसे पड़ोसी राज्यों के मजदूर बड़ी तादाद में रहते और काम करते हैं. इनमें से कोई एशिया में खाद्यान्नों की सबसे बड़ी मंडी बड़ा बाजार में सिर पर या रिक्शा वैन से सामान ढोने का काम करता है तो कोई हाथ रिक्शा खींचता है.
कोरोना वायरस के आतंक के बाद लॉकडाउन की वजह से उन सबकी कमाई ठप्प हो गई है. अब यह लोग पैसे-पैसे को मोहताज हो गए हैं. आलम यह है कि इन लोगों को परिवार समेत किसी स्वयंसेवी संस्था या सरकार की ओर से बांटे जाने वाले खाने के पैकेट के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ रही है. वह भी रोज नहीं मिल पाता.
बिहार के बेगूसराय जिले से यहां आकर मोटिया मजदूर के तौर पर काम करने वाले मुन्ना बताते हैं, "पहले मैं रोजाना पांच से छह सौ रुपए तक कमा लेता था, लेकिन बीते दो सप्ताह से एक ढेला भी कमाई नहीं हुई है.” कोलकाता के बड़ाबाजार इलाके में हाथ रिक्शा खींचने वाले मंगनी महतो बताते हैं, "दो सप्ताह से कमाई लगभग ठप्प है. लेकिन पेट तो मानता नहीं है. अब तो जमा पूंजी भी लगभग खत्म हो गई है. पता नहीं आगे क्या होगा.” वह कहते हैं कि सरकार ने जल्दी ही कुछ नहीं किया तो ज्यादातर मजदूर भुखमरी के शिकार हो जाएंगे.
गरीबों के लिए "कोरोना कवर"
लॉकडाउन के कारण जिन लोगों की कमाई का जरिया बंद हो गया उनके लिए सरकार ने कई एलान किए हैं. एक नजर डालते हैं केंद्र और राज्यों के मरहम पर.
तस्वीर: DW/A. Sharma
कोरोना पैकेज
कोरोना वायरस के चलते भारत सरकार ने 1.7 लाख करोड़ पैकेज का एलान किया है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ऐसे लोगों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की है जो गरीब और कमजोर तबके के हैं.
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सबसे बड़ी राहत
21 दिनों के लॉकडाउन के कारण संकट से जूझ रहे गरीब, किसान, मजदूर, छोटे कर्मचारियों और महिलाओं को राहत देने के लिए इस योजना को दो हिस्सों में बांटा गया है. पहली कोशिश हर नागरिक के पेट भरने की है. प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 80 करोड़ गरीबों और दिहाड़ी मजदूरों को खाद्य मदद दी जाएगी.
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गरीब कल्याण योजना
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को तीन महीने तक मुफ्त राशन दिया जाएगा. ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के तहत काम करने वालों को अब 182 रुपये के बदले 202 रुपये मिलेंगे. इससे उनकी आय में 2000 रुपये की बढ़ोतरी होगी. इसके अलावा तीन करोड़ गरीब वृद्धों, गरीब विधवाओं और गरीब दिव्यांगों को एक-एक हजार रुपये की अनुग्रह राशि देने की घोषणा हुई है.
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लॉकडाउन में भी जलता रहे चूल्हा
उज्ज्वला योजना के लाभार्थियों को अगले तीन महीने तक मुफ्त में रसोई गैस सिलेंडर देने का ऐलान हुआ है, इससे 8 करोड़ गरीब परिवारों को लाभ होगा.
तस्वीर: DW
किसानों की फिक्र
राहत पैकेज के तहत देश के 8.7 करोड़ किसानों के खाते में अप्रैल के पहले हफ्ते में 2000 रुपये ट्रांसफर किए जाएंगे.
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कोरोना योद्धाओं का बीमा
कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे डॉक्टरों, पैरा मेडिकलकर्मियों, नर्स, आशा सहयोगी और अन्य मेडिकल स्टाफ के लिए बीमा की घोषणा की गई है. सरकार ने इन लोगों के लिए 50 लाख रुपये के मेडिकल इंश्योरेंस का ऐलान किया है. इसका लाभ करीब 20 लाख मेडिकल कर्मियों को मिलेगा.
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महिलाओं के लिए सहायता
जनधन योजना के जरिए 20 करोड़ महिलाओं के खाते में अगले 3 महीने तक डीबीटी यानी डायरेक्ट बेनेफिट ट्रांसफर के जरिए हर महीने 500 रुपये दिए जाएंगे.
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राज्यों की पहल
लॉकडाउन के कारण प्रभावित लोगों की मदद के लिए राज्य की सरकारें भी आगे आ रही हैं. बिहार सरकार ने राशन कार्डधारी परिवार को एक महीने का मुफ्त राशन देने का एलान किया है.
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आरबीआई की राहत
कोरोना से अर्थव्यवस्था को और अधिक नुकसान से बचाने के लिए रिजर्व बैंक ने भी बड़ी घोषणाएं की हैं. आरबीआई ने रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट और सीआरआर में कटौती की घोषणा की है. साथ ही आरबीआई ने टर्म लोन की किश्त चुकाने में तीन महीने की छूट दी है. ग्राहक अपनी मर्जी से ईएमआई चुका सकते हैं लेकिन बैंक दबाव नहीं डालेगा. इसका यह मतलब नहीं कि बकाया कभी चुकाना ही नहीं पड़ेगा. सिर्फ तीन महीने की मोहलत दी गई है.
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प्रवासी मजदूरों की चिंता
बड़े शहरों से गांवों की तरफ पलायन करने वाले प्रवासी मजदूरों को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी की है. केंद्र ने राज्यों से खेतिहर मजदूरों, औद्योगिक मजदूरों और असंगठित क्षेत्र के कामगारों के पलायन रोकने को कहा है. केंद्र की ओर से राज्यों को सलाह दी गई है कि वे इन समूहों को मुफ्त अनाज और अन्य जरूरी चीजों के बारे में जानकारी दे जिससे बड़े पैमाने पर पलायन को रोका जा सके.
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ऐसे प्रवासी मजदूर समूहों में एक साथ रहते हैं. यह लोग हर महीने अपने किसी न किसी साथी के हाथ अपने गांव पैसे भेज देते हैं ताकि वहां परिवार की रोजी-रोटी चलती रहे. अब कमाई बंद होने से यहां इनके सामने खाने-पीने का संकट है तो गांव में रहने वाले परिजनों के सामने भी भूख की समस्या गंभीर होती जा रही है.
वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक, कोलकाता में बाहरी राज्यों के प्रवासी मजदूरों की तादाद 3.90 लाख थी. अब यह तादाद पांच लाख से ऊपर होने का अनुमान है. इनमें से लगभग 50 फीसदी बिहार के हैं और 28 फीसदी उत्तर प्रदेश, झारखंड औऱ ओडीशा जैसे पड़ोसी राज्यों के.
पोस्टा मर्चेंट्स एसोसिएशन के सचिव विश्वनाथ अग्रवाल बताते हैं, "बाजार सीमित समय के लिए खुला है. लेकिन लॉकडाउन के चलते पुलिस के डर से वह लोग अपने घरों से बाहर ही नहीं निकल रहे हैं.”
राजनीतिक पर्यवेक्षक विश्वनाथ चक्रवर्ती कहते हैं, "बिहार और उत्तर प्रदेश से प्रवासी मजदूरों के कोलकाता आने का जो सिलसिला 19वीं सदी के मध्य में शुरू हुआ था वह अब भी जस का तस है.” अर्थशास्त्री अभिरूप सरकार इसकी वजह बताते हैं. वह कहते हैं, "यहां कमाई ज्यादा है और यह शहर दूसरे महानगरों के मुकाबले काफी सस्ता है. ऐसे में मजदूर अधिक से अधिक पैसे बचा कर गांव भेज सकते हैं. इसी आकर्षण की वजह से प्रवासी मजदूरों के लिए सदियों से कोलकाता एक पसंदीदा ठिकाना रहा है.”
कोरोना की वजह से फैले आतंक और लंबे लॉकडाउन के चलते अब ऐसे लाखों लोग आशा और निराशा के भंवर में फंसे हैं. उनको पता नहीं है कि आखिर ऐसी हालत कब तक बनी रहेगी और हालात में सुधार होने तक उनकी सांसें साथ देंगी या नहीं?
भारत में 24 मार्च से अगले 21 दिनों के लिए लॉकडाउन है लेकिन उसके अगले दिन 25 मार्च से ही लोग पैदल अपने गांवों और कस्बों की तरफ जाने लगे. यह सिलसिला जारी है. देखिए...किस तरह से लोग जान जोखिम में डाल कर सफर कर रहे हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
घर जाने की बेताबी क्या होती है जरा इन लोगों से पूछिए. यह समूह किसी भी तरह से अपने घर, अपने गांव जाना चाहता है. जिंदगी को लॉकडाउन से बचाने लोग सिर पर गठरी और गोद में बच्चा लिए निकल पड़े हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
परेशान हाल मजदूर और उनके परिवार पिछले कुछ दिनों से इसी तरह से बदहवास हैं, पहले जनता कर्फ्यू और उसके बाद 21 दिनों का लॉकडाउन. उन्हें कोई भी गाड़ी नजर आती है तो वे उसे रुकने का इशारा करते हैं.
तस्वीर: DW/A. Ansari
कुछ लोगों के पैरों में चलते-चलते छाले पड़ गए हैं. हाथों में एक बैग है. पानी-बिस्कुट के सहारे वह सफर तय करना चाहते हैं.
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मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, गुड़गांव, दिल्ली, नोएडा में हजारों लोग किसी तरह से अपने घरों को पहुंचना चाहते हैं. वे कहते हैं कि शहर में अब रहकर क्या करना जब कोई काम ही नहीं है.
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कई लोगों का कहना है कि वे पिछले कुछ दिनों से भरपेट खाना नहीं खा पाए हैं. उन्होंने बताया कि वे जहां काम करते थे, वहां से उन्हें पांच-पांच सौ रुपये देकर जाने को कह दिया गया.
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यह परिवार नोएडा में रहता था, लेकिन तालाबंदी की वजह से उसके पास काम नहीं है और ना ही इतने पैसे कि आगे का खर्च निकल पाए. इसलिए पति-पत्नी ने झांसी के लिए पैदल ही चलने का फैसला किया.
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कुछ दिनों पहले तक यह लोग इस शहर का हिस्सा हुआ करते थे, लेकिन अब उन्हें इस शहर में अपना भविष्य नजर नहीं आता है. वे कहते हैं, “कोरोना से पहले, हमें भूख मार डालेगी.“
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कई प्रवासी मजदूर छोटे बच्चे और महिलाओं के साथ सफर कर रहे हैं. सफर में जंगल से भी गुजरना होगा और सुनसान हाइवे से भी. खतरों के साथ उन्हें सैकड़ों किलोमीटर सफर तय करना है.
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जो लोग अपने गांवों के लिए निकले हैं, उनके पास खाने-पीने का पर्याप्त इंतजाम नहीं है. ऐसे में कुछ लोग उन्हें खाने के पैकेट देकर मदद कर रहे हैं.
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राज्य सरकारों ने ऐसे लोगों के खाने पीने का इंतजाम किया है. उत्तर प्रदेश सरकार ने फंसे हुए लोगों को निकालने के लिए बसों का इंतजाम किया है. दिल्ली सरकार ने लोगों से अपील की है कि वे जहां हैं, वहीं रहें.