क्या बस 50 दिनों तक शरीर में रहती हैं कोविड एंटीबॉडी?
चारु कार्तिकेय
२८ अगस्त २०२०
एक शोध में सामने आया है कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद, वो संभवतः सिर्फ 50 दिनों तक ही शरीर में रहती हों. संभव है कि भविष्य में लोगों को कोविड से बचाने के लिए वैक्सीन की एक खुराक की जगह कई खुराकें देनी पड़ें.
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कोरोना वायरस से इम्युनिटी को लेकर कई दिनों से चर्चा चल रही है और वैज्ञानिक इस सवाल का पुख्ता जवाब ढूंढने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर एक बार किसी के शरीर में कोविड-19 के खिलाफ एंटीबॉडी बन जाएं तो क्या उसके बाद उसे वायरस से संक्रमण नहीं होगा? लेकिन वायरस के दुनिया में फैलने के लगभग आठ महीने पूरे होने के बाद भी आज तक महामारी से जुड़े जिन सवालों का जवाब नहीं मिल पाया है, यह सवाल भी उन्हीं सवालों में शामिल है.
अब मुंबई में हुए एक शोध में सामने आया है कि शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद, वो संभवतः सिर्फ 50 दिनों तक ही शरीर में रहती हों. यह शोध जेजे अस्पताल समूह ने अपने 801 स्वास्थ्यकर्मियों पर सेरो सर्वेक्षण के जरिए किया. इन कर्मचारियों से कम से कम 28 को अप्रैल-मई में कोविड-19 हुआ था और सात सप्ताह बाद जून में किए गए सेरो सर्वेक्षण में इनके शरीर में कोई एंटीबॉडी नहीं मिली.
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इस शोध के नतीजे इंटरनेशनल जर्नल ऑफ कम्युनिटी मेडिसिन एंड पब्लिक हेल्थ में सितंबर में छपने वाले हैं. इन कर्मचारियों में 34 ऐसे भी थे जिन्हें तीन सप्ताह और पांच सप्ताह पहले कोविड हुआ था. उनमें से तीन सप्ताह पहले वाले समूह में 90 प्रतिशत कर्मियों में एंटीबॉडी मिली लेकिन पांच सप्ताह पहले वाले समूह में सिर्फ 38.5 प्रतिशत में एंटीबॉडी मिली.
शोधकर्ताओं का कहना है कि ये नतीजे ये संकेत देते हैं कि शरीर में एंटीबॉडी समय के साथ घटती जाती हैं और वैक्सीन बनाने की रणनीति को इस तथ्य की नई रोशनी में देखना चाहिए. उनका कहना है कि संभव है कि भविष्य में लोगों को कोविड से बचाने के लिए वैक्सीन की एक खुराक की जगह कई खुराकें देनी पड़ें.
लेकिन कई विशेषज्ञ अभी इन बातों को नहीं मान रहे हैं और कह रहे हैं कि अभी और अध्ययन की जरूरत है. कुछ जानकारों का कहना है कि यह भी जानना जरूरी है कि अध्ययन में शामिल हुए पहले संक्रमित हो कर ठीक हो चुके लोगों में संक्रमण के लक्षण भी आए थे या उन्हें बिना लक्षणों वाला संक्रमण हुआ था? ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ अध्ययन यह भी दिखाते हैं कि बिना लक्षणों वाले मरीजों में एंटीबॉडी का स्तर वैसा नहीं होता जैसे उनमें होता है जिन्हें लंबे समय तक या गंभीर संक्रमण हुआ हो.
एक और बात यह भी है कि कोविड संक्रमण से इम्युनिटी की प्रक्रिया को भी लेकर काफी चर्चा चल रही है. शोधकर्ता यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि शरीर को कोविड के खिलाफ इम्युनिटी इम्यूनोग्लोबिन-जी नामक एंटीबॉडी से मिलती है या टी-सेल से. इम्यूनोग्लोबिन-जी मानव शरीर में पाया जाने वाला सबसे आम एंटीबॉडी है, जबकि टी-सेल इम्यून तंत्र में पाई जाने वाली एक कोशिका है. कई विशेषज्ञों का मानना है कि संभव है कि कोविड के खिलाफ इम्युनिटी बनाने में इम्यूनोग्लोबिन-जी से ज्यादा टी-सेल की भूमिका हो.
नई अमेरिकी एडवाइजरी में केवल कोरोना ही नहीं, अपराध और आतंकवाद के कारण भी भारत को कहीं ज्यादा खतरनाक बताया गया है. होटल कारोबारियों का मानना है कि भारत को सीरिया, इराक और पाकिस्तान जैसे देशों के साथ रखना ठीक नहीं है.
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लेवल 4 के मायने
अगस्त में जारी अपनी नई ट्रैवल एडवाइजरी में अमेरिका ने भारत के अलावा सीरिया, इराक, यमन और पाकिस्तान के साथ भारत को भी लेवल 4 में रखा है. अमेरिकी सूची में लेवल 4 का मतलब है सबसे ज्यादा खतरनाक ठिकाने जहां जाने से पर्यटकों को सबसे ज्यादा बचने की सलाह दी जाती है.
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कोरोना काल में व्यवस्था
फिलहाल भारत ने अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस के साथ 'एयर ट्रांसपोर्ट बबल' स्थापित कर लिया है. भारत के अलावा इस बबल में शामिल देशों के विमान भी भारत आ सकते हैं और बाहर जा सकते हैं. कनाडा, ब्रिटेन और यूएई के साथ भी भारत ने विशेष यात्रा इंतजाम किए हैं.
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'एयर बबल' का फायदा नहीं
ऐसे बबल का फायदा उन देशों को मिल सकता है जहां एक तो कोरोना महामारी पर काबू पा लिया गया हो और दूसरे जिनकी सीमाएं दूसरे देशों के लिए खुली ना हों. भारत और अमेरिका दोनों के साथ ऐसा नहीं है. ना तो यहां महामारी अभी मिटी है और ना ही भारत ने ऐसा बबल केवल अमेरिका के साथ बनाया है.
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अमेरिकी एडवाइजरी में और परेशानियों का जिक्र
अमेरिका ने भारत में यात्रा को लेकर अपने नागरिकों को चेताया है कि यहां उन्हें सीमाएं सील होने, एयरपोर्ट बंद होने, आंशिक लॉकडाउन, बिजनेस बंद होने और कोरोना के कारण पैदा हुई किसी आपातकालीन स्थिति का सामना करना पड़ सकता है.
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भारतीय टूरिज्म सेक्टर की आपत्ति
भारत में यात्रा, पर्यटन और होटल उद्योग के एक संयुक्त संगठन, फेडरेशन ऑफ एसोसिएशंस इन इंडियन टूरिज्म एंड हॉस्पिटैलिटी (फेथ) ने हाल ही में बयान जारी कर कहा है कि हवाई यात्रा मार्गों के खुलने की शुरुआत होते ही अमेरिका की ऐसी सलाह भारत में टूरिज्म सेक्टर से जुड़े कारोबार के लिए बहुत नुकसानदेह साबित होगा.
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अमेरिकी टूरिस्ट की इतनी परवाह क्यों
भारतीय ट्रैवल एंड टूरिज्म सेक्टर के लिए अमेरिकी पर्यटक काफी अहमियत रखते हैं. कारण यह है कि एक तो वे बाकी तमाम देशों के नागरिकों के मुकाबले कहीं ज्यादा लंबे समय तक भारत में रहते हैं. ज्यादातर अमेरिकी यात्री औसतन 29 दिन से भी ज्यादा लंबा समय भारत में बिताते हैं जो कि बाकी तमाम विदेशी पर्यटकों से ज्यादा है. और दूसरी बात यह कि अमेरिकी टूरिस्ट बाकियों के बनिस्पत भारत में खर्च भी ज्यादा करते हैं.
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खराब धारणा बनाने वाला
भारतीय टूरिज्म कारोबारियों को यमन, सीरिया, पाकिस्तान और इराक जैसे देशों के साथ एक ही श्रेणी में डाला जाना भी नागवार गुजरा है. उनका मानना है कि इससे देश के बारे में एक तरह की नकारात्मक धारणा बनती है जो कि पहले से ही संघर्ष कर रहे हॉस्पीटैलिटी सेक्टर के लिए काफी बुरा साबित हो सकता है.
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कोरोना ही नहीं अपराध, आतंकवाद पर भी चिंता
मार्च में कोरोना के मद्देनजर अमेरिका ने सभी अंतरराष्ट्रीय यात्राओं को लेवल 4 में डाला था लेकिन अगस्त में इसे बदलते हुए उसने सभी देशों को लेवल 1 से लेकर 4 तक में बांटा. लेवल 4 वाले देश सबसे ज्यादा खतरनाक बताए गए और इसमें भारत और चीन समेत 50 देश रखे गए हैं. अमेरिकी एडवाइजरी में केवल कोरोना ही नहीं, अपराध और आतंकवाद के कारण भी भारत को कहीं ज्यादा खतरनाक बताया गया है.