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कोविड के चलते घर-घर नहीं पहुंच पा रहे गणपति

अपूर्वा अग्रवाल
१९ अगस्त २०२०

मुंबई में कोरोना के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे. कोरोना के डर से लोग गणपति की मूर्ति भी घर नहीं ला रहे हैं. महाराष्ट्र में गणपति उत्सव 11 दिन तक चलता है, जो इस साल 22 अगस्त को गणेश चतुर्थी से शुरू हो रहा है.

Indien Mumbai Ganesha Pooja Coronakrise
तस्वीर: Praful Vykar

महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले में रहने वाली श्रद्धा मालवंकर हर साल गणेश उत्सव पर डेढ़ फुट की मूर्ति 11 दिनों के लिए अपने घर लाती रही हैं. उत्सव में शामिल होने के लिए पिछले साल तक उनके घर में रिश्तेदारों का जमावड़ा गणेश चतुर्थी के कई दिन पहले से ही लगने लगता. वहीं मालवंकर परिवार भी ईको फ्रेंडली गणेश पूजन की हर संभव कोशिश करता है.

कुछ ऐसा ही नवी मुंबई में रहने वाले ईशान नाडकर्णी के घर में होता था. हालांकि नडकर्णी परिवार में गणपति सिर्फ डेढ़ दिन के लिए रखे जाते लेकिन मूर्ति ईको फ्रेंडली हो, इस पर काफी जोर रहता. पिछले कुछ सालों से ईशान और उनका परिवार ऑनलाइन गणेश प्रतिमा का ऑर्डर कर रहे हैं. लेकिन इस साल नजारा कुछ अलग है. कोविड-19 ने ना सिर्फ लोगों के जीने के अंदाज में बदलाव कर दिया है बल्कि त्योहारों की रौनक पर भी इसका असर हुआ है.

फीकी है चमक

गणेश उत्सव को शुरू होने में कुछ ही दिन बाकी है लेकिन दोनों परिवारों के घर उनके कोई रिश्तेदार नहीं पहुंचे हैं. यहां तक कि मालवंकर परिवार इस साल सिर्फ पांच दिन के लिए गणपति ला रहा है. श्रद्धा ने डीडब्ल्यू को बातचीत में बताया, "इस साल बजट काफी बिगड़ गया है. इसलिए पूजा के लिए ना तो नए कपड़े खरीदे हैं और ना हर साल की तरह बर्तन. इस साल गणपति की कोई रौनक ही नहीं है.”

श्रद्धा कहती हैं कि इस बार त्योहार की रौनक कम हैतस्वीर: DW/A. Agrawal

ईशान बताते हैं, "हर साल गणपति के दौरान हमारे घर में सब रिश्तेदार मिलाकर तकरीबन 20 लोग हो जाते थे. लेकिन इस साल सिर्फ तीन लोग ही है.” यहां तक कि नाडकर्णी परिवार ने कोई मूर्ति भी नहीं ली और घर में पहले से मौजूद मेटल की मूर्ति के साथ ही पूजा करने का फैसला किया है.

बाजार का हाल

हालांकि गणपति की रौनक बाजार में भी नहीं दिख रही. दुकानदार बताते हैं कि महामारी के चलते लोगों ने घर से निकलना कम कर दिया है. रही सही कसर बारिश ने पूरी कर दी. मुंबई के मुलुंड इलाके मे सुनील आर्ट्स नाम से अपनी दुकान चलाने वाले प्रफुल्ल विजय वायकर बताते हैं, "हर साल गणपति उत्सव पर करीब 1500 से 2000 मूर्तियां सप्लाई करने के ऑर्डर होते थे. लेकिन इस साल बिक्री 50-60 फीसदी घट गई है.”

लोग पैसा खर्च करने से बच रहे हैं. जो ले भी रहे हैं वह छोटी मूर्तियों को तवज्जो दे रहे हैं. मुंबई से लोग बड़ी संख्या में बाहर गए हैं जिसके चलते भी कस्टमर कम हुए हैं. पहले मिट्टी की दो फुट की एक मूर्ति 3,500 से 4,000 रुपये के करीब बिकती थी. लेकिन अब खरीदार विसर्जन संबंधी सरकारी दिशा-निर्देशों के चलते छह से सात इंच की मूर्ति को तरजीह दे रहे हैं. छोटी मूर्तियां बमुश्किल पांच सौ से हजार रुपये में बिकती है.

दुकानदार कहते हैं कि अब वो जैसे-तैसे माल निकालना चाहते हैं क्योंकि बने-बनाए माल का कुछ इस्तेमाल तो आगे नहीं होगा. दुकानदारों की एक चुनौती इस काम में जुटे मजदूरों से जुड़ी भी है. प्रफुल्ल कहते हैं कि आमतौर पर हमारी दुकान पर 20 लोगों का स्टाफ होता था. मूर्तियों को तैयार करना, उनका रंग-रोगन और ग्राहकों तक भेजना जैसे सब कामों के लिए पहले लोग कम पड़ जाते थे. लेकिन अब हम प्रयास कर रहे हैं कि हमारे साथ जुड़े 12-15 मजदूरों के सामने खाने-पीने की समस्या ना आए.

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पंडालों की परंपरा

मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई इलाकों में भव्य गणेश पंडाल सजाने की भी परंपरा रही है लेकिन इस बार सब अलग ढंग से हो रहा है. मुंबई के सबसे पुराने गणपति पंडाल श्री सार्वजनिक गणेशोत्सव संस्था हर साल 25 फुट की प्रतिमा रखती रही है. लेकिन इस साल पंडाल सिर्फ तीन फुट की प्रतिमा रखने जा रहा है. स्वंतत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने वर्ष 1901 में पहली बार सार्वजनिक रूप से इसी पंडाल से गणेशोत्सव का कार्यक्रम शुरू किया था.

संस्था के ट्रेजरर संतोष नारकर ने बताया, "साल 2020 तिलक का 100वीं पुण्यतिथि वर्ष है इसलिए पंडाल की योजना पहले भव्य कार्यक्रम की थी लेकिन कोविड महामारी के चलते अब समाजसेवा पर जोर है”. संस्था इस साल ब्लड डोनेशन कैंप चला रही है. पिछले साल तक इस पंडाल में गणेश दर्शन के लिए रोजाना तकरीबन 50 हजार श्रद्धालु पहुंचते थे लेकिन इस बार भीड़ ना जुटे, इसके लिए इंतजाम किए जा रहे हैं. मूर्ति विसर्जन के लिए भी कई पंडालों में अस्थायी तौर पर तालाब तैयार किए गए है.

तस्वीर: DW/A. Agrawal

कुछ ऐसे ही तैयारी मुंबई के मशहूर लालबागचा राजा सार्वजनिक गणेशोत्सव मडंल ने भी की है. इस पंडाल में आम लोगों समेत बड़ी संख्या में सेलिब्रिटीज दर्शन को पहुंचते हैं. लेकिन इस साल पंडाल में कोई भी मूर्ति नहीं है. मंडल के सचिव सुधीर सालनी ने बताया कि तीन अगस्त 31 अगस्त से प्लाज्मा डोनेशन कैंप चला रहा है. साथ ही गणेश पूजा के सभी 11 दिन ब्लड डोनेशन कैंप चलाया जाएगा.

कोई चढ़ावा नहीं

इस साल गणेश उत्सव का ना केवल सामाजिक और सांस्कृतिक स्वरूप बदला है बल्कि आर्थिक रूप से भी बाजार से लेकर पंडालों को काफी नुकसान हो रहा है. लालबागचा राजा संस्था को गणेश पर्व में हर साल डोनेशन और चढ़ावे के तौर पर आठ से 10 करोड़ रुपये मिलते थे. जो इस साल ना के बराबर है. वहीं पंडाल अपनी ओर से महाराष्ट्र में कोविड-19 के चलते जान गवां बैठे 111 पुलिसवालों के परिवारों को आर्थिक मदद देने की कोशिश में लगा हुआ है.

श्री सार्वजनिक गणेशोत्सव संस्था भी इस साल कोई डोनेशन नहीं मांग रही. संस्था ने तय किया है इस साल 11 दिनों तक चलने वाले गणेश उत्सव के दौरान जो पैसा चढ़ावे और भेंट के रूप में आएगा उसे प्रधानमंत्री राहत कोष में दिया जाएगा. संस्था ने बताया कि उनके अपने कार्यकर्ताओं ने अपने पास से एक-एक हजार रुपये देकर ब्लड डोनेशन कैंप की व्यवस्था की है. संस्था यह भी कह रही है कि त्योहार मनाने का यह ढंग कारगर होता है तो वह आगे भी सादगी पर जोर देंगे.

इस बीच मूर्तिकारों को भी डर सता रहा है कि अगर इसी सादगी से लोग गणेश उत्सव मनाने लगे तो उनकी रोजी-रोटी को बड़ा झटका लगेगा.

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